9सितंबर, 2021 की सुबह पश्चिमी दिल्ली के मोती नगर से सटे बसई दारापुर इलाके में एक 4 मंजिला मकान के दूसरी मंजिल पर रहने वाले अभिषेक को सुबहसुबह ही एक अजीब सी बदबू आई. यह बदबू ऐसी थी कि उसे सूंघने पर इंसान के हलक से पानी का घूंट तक न उतरे.

हालांकि अभिषेक को इस तरह की बदबू पिछले कई दिनों से आ रही थी. उस ने अपने  फ्लैट में इस बदबू को तलाशने की कोशिश भी की थी. उसे लगा की शायद उस के फ्लैट के किसी कोने में कोई चूहा मरा हो. लेकिन घंटों तलाशने के बाद भी उसे अपने कमरे में चूहा वगैरह मरा हुआ नहीं दिखाई दिया था.

9 सितंबर को तो हद ही हो गई थी. तेज बदबू को सहना मुश्किल हो गया. तब उस ने तय कर लिया कि वह बिल्डिंग में बाकी फ्लैटों में जा कर वहां  रहने वाले लोगों से बदबू आने का  कारण पूछेगा.

वह सीढि़यों का इस्तेमाल कर नीचे पहली मंजिल पर गया. इस बीच उस ने सीढि़यों को भी बड़े ध्यान से देखा कि कहीं यहीं तो कुछ नहीं मरा हुआ हो.

पहली मंजिल पर पहुंच कर उस ने दरवाजा खटखटाया और उन से बदबू आने की वजह पूछी. उस फ्लैट में रहने वाले शख्स ने बताया कि वह खुद इस बदबू से पिछले कुछ दिनों से परेशान है.

अभिषेक ने पहली मंजिल पर रहने वाले शख्स को अपने साथ ले कर तीसरी मंजिल पर चलने के लिए कहा कि वे लोग उन से पूछेंगे कि आखिर मामला क्या है और बदबू क्यों आ रही है. वे सीढि़यों से ऊपर तीसरी मंजिल की ओर आगे बढ़े. जैसेजैसे वह तीसरी मंजिल के दरवाजे के करीब पहुंचे, बदबू और ज्यादा तीखी हो गई. इस के साथ ही उन के मन में चूहे के मरने का वहम भी खत्म हो गया क्योंकि वह बदबू दूसरी तरह की थी.

वे दोनों तीसरी मंजिल पर पहुंचे भी नहीं थे कि उन्हें अपनी जेब से रुमाल निकाल कर अपनी नाक पर रखने के लिए मजबूर होना पड़ा. तीसरी मंजिल के दरवाजे पर पहुंचते ही अभिषेक और उस के साथ मौजूद दूसरा शख्स बेहाल हो गए.

किसी तरह तीसरी मंजिल के दरवाजे पर पहुंच कर उन्होंने देखा कि कमरा बाहर से लौक किया हुआ है. लेकिन अभिषेक के मन में शक बढ़ता ही जा रहा था. उसे यह तो पता चल गया था कि बदबू चूहे के मरने की नहीं है, लेकिन वह इस के अलावा अंदाजा नहीं लगा पा रहा था कि किस वजह से बदबू इतनी तीखी और असहनीय है.

उस ने वक्त जाया न करते हुए तुरंत ही दिल्ली पुलिस के 100 नंबर पर फोन कर के इस पूरी घटना की सूचना दी. इस के बाद वे दोनों वहां पुलिस के आने का इंतजार करने लगे.

करीब आधे घंटे में पुलिस कंट्रोल रूम की जिप्सी में कुछ पुलिसकर्मी आए और वह तुरंत मकान के तीसरी मंजिल पर जा पहुंचे. पुलिस टीम ने दरवाजे के बाहर लगे लौक को तोड़ा और वे कमरे में जा घुसे.

हालांकि उस तीक्ष्ण बदबू में घुसने का काम आसान नहीं था. उन्होंने फ्लैट में बाहर के रूम में कुछ नहीं पाया, तो पुलिसकर्मी अलगअलग कमरों में खोजने लगे.

इतने में बाथरूम में जा कर देखने वाले पुलिसकर्मी ने बाकियों को आवाज लगाई और देखा कि एक व्यक्ति की लाश सड़ी गली अवस्था में प्लास्टिक की काली पन्नी में लपेट कर रखी हुई थी.

यह देख कर सभी का माथा ठनक गया. आखिर ये लाश थी किस की? पीसीआर के पुलिसकर्मियों ने यह सूचना स्थानीय थाने को दे दी. थाना पुलिस ने तुरंत मौके पर पहुंचकर जांच की. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम  को भी बुला

लिया गया.  वह लाश किसी और की नहीं बल्कि जम्मूकश्मीर में नैशनल कौन्फ्रैंस पार्टी के नेता त्रिलोचन सिंह वजीर की थी.

सूचना मिलने पर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी वहां पहुंच गए. मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दी.

दरअसल, त्रिलोचन सिंह वजीर जम्मू कश्मीर की राजनीति का सिख चेहरा थे और राज्य में नैशनल कौन्फ्रैंस पार्टी के सीनियर लीडर भी थे. वह उमर अब्दुल्ला के करीबी थे. इस के साथ ही वह पिछले 3 दशकों से जम्मूकश्मीर में कमर्शियल परिवहन संभालते थे. त्रिलोचन सिंह वजीर कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों के साथ भी जुड़े हुए थे और जम्मू कश्मीर में उन की खासी साख थी.

9 सितंबर को जब दिल्ली के बसई दारापुर इलाके से त्रिलोचन सिंह वजीर की सड़ीगली अवस्था में लाश मिलने की खबर फैली तो लोगों को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. लेकिन सब से बड़ा सवाल यह था कि वह यहां पहुंचे कैसे?

त्रिलोचन सिंह वजीर के लिए 2 सितंबर का दिन खुशियों से भरा था. कनाडा में उन के परिवार में एक बच्चे ने जन्म लिया था यानी वह दादा बने थे. इस खुशी में त्रिलोचन सिंह जल्द ही कनाडा जा कर अपने परिवार के साथ वक्त गुजारना चाहते थे.

उन्होंने अगले दिन 3 सितंबर के दिन फ्लाइट बुक की थी लेकिन वह दिल्ली से जाने वाली थी. इसी के चलते 2 सितंबर की रात वह अपने जानकार हरप्रीत के घर बसई दारापुर में  रुकने के लिए आए थे.

उन के जानकार हरप्रीत ने सुबह की फ्लाइट पकड़ने के लिए उन्हें एअरपोर्ट छोड़ कर आने का आश्वासन दिया था. इसी वजह से त्रिलोचन सिंह वजीर दिल्ली में यहां पर आए थे.

चूंकि मामला राजनैतिक था, इसलिए लोकल पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच की टीमें भी इस केस को सुलझाने में जुट गईं. पुलिस की सभी टीमों ने एक्टिव हो कर काम किया. खबर फैलने के बाद अगले दिन ही मामले में आरोपी राजेंद्र चौधरी उर्फ राजू को जम्मू पुलिस ने जम्मू से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली.

राजू ने यह खुलासा किया कि त्रिलोचन की हत्या उन्हें बेहोश करने के बाद की गई थी. राजू से पूछताछ में पुलिस को यह पता चला कि त्रिलोचन सिंह वजीर की हत्या में 4 लोग शामिल थे.

पुलिस पूछताछ में उस ने बताया कि त्रिलोचन को पहले खाने में बेहोशी की दवा दी गई थी. उस के बाद उसी हालत में उन्हें गोली मारी गई थी.

राजू ने कई खुलासे किए. उस ने बताया कि इस हत्या में अन्य आरोपी हरप्रीत ने अपने मामा की हत्या का बदला लेने के लिए त्रिलोचन सिंह की हत्या को अंजाम दिया था.

पुलिस ने 15 सितंबर को हत्याकांड में शामिल दूसरे आरोपी बिल्ला को जम्मू से गिरफ्तार कर लिया. और उस के कुछ दिनों बाद 19 सितंबर को तीसरा आरोपी हरप्रीत सिंह खालसा भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

हरप्रीत सिंह खालसा वही शख्स था, जिस ने खुद को त्रिलोचन सिंह के सामने पत्रकार बताया था. हरप्रीत ने लगभग एक साल पहले त्रिलोचन सिंह वजीर से एक पत्रकार के रूप में अपना परिचय दिया था. हरप्रीत ने वजीर को कहा कि वह एक अखबार चलाता है जिस की 2 लाख प्रतियां छपती हैं, इस के अलावा उस की एक वेबसाइट भी है.

उस ने वजीर को विश्वास दिलाया था कि वह उन पर कहानियां प्रकाशित करेगा. इसी वजह से वजीर के उस से अच्छे संबंध हो गए और वजीर उस पर विश्वास करते थे.

इस हत्याकांड का चौथा आरोपी हरमीत सिंह पुलिस की पकड़ में नहीं आ सका. जिस की तलाश लगातार जारी है.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों के बयानों से मृतक के घर वाले संतुष्ट नहीं है. उन का कहना है कि इस हत्या के पीछे कोई बड़ी साजिश है, इसलिए इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई. जो अपने तरीके से इस केस की गुत्थी को सुलझाने का काम कर रही थी. अब देखना यह है कि सीबीआई जांच में किन बड़े चेहरों का नकाब उतरता है?

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