31 वर्षीय कल्पना बसु कर्नाटक के जिला बीवी का धोखा में आने वाले तालुका माहेर की रहने वाली थी. उस का जन्म एक मध्यवर्गीय किसान परिवार में हुआ था. उस के जन्म के कुछ दिनों पहले ही पिता का निधन हो गया था. मां ने मेहनतमजदूरी कर उसे पालापोसा. पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वह ज्यादा पढ़ाईलिखाई भी नहीं कर पाई थी.
कल्पना खूबसूरत होने के साथसाथ महत्त्वाकांक्षी भी थी. वह चाहती थी कि उसे ऐसा जीवनसाथी मिले जो उस की तरह हैंडसम हो और उस की भावनाओं की कद्र करते हुए सभी इच्छाओं को पूरा करे. लेकिन उस के इन सपनों पर पानी तब फिर गया जब उस की शादी एक ऐसे मामूली टैक्सी ड्राइवर बसवराज बसु के साथ हो गई, जो उस के सपनों के पटल पर कहीं भी फिट नहीं बैठता था.
38 वर्षीय बसवराज बसु उसी तालुका का रहने वाला था, जिस तालुका में कल्पना रहती थी. प्यार तो उसे बचपन से ही नहीं मिला था. उस के पैदा होने के बाद ही मांबाप दोनों की मौत हो गई थी. उसे नानानानी ने पालपोस कर बड़ा किया था. नानानानी की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वह भी पढ़लिख नहीं सका. जिंदगी का बोझ उठाने के लिए जैसेतैसे वह टैक्सी ड्राइवर बन गया था. ड्राइविंग का लाइसैंस मिलने पर वह माहेर शहर आ कर कैब चलाने लगा. जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो गया तो नातेरिश्तेदारों ने उस की शादी कराने की सोची. आखिरकार उस की शादी कल्पना से हो गई.
खुले विचारों वाली कल्पना से शादी कर के वह खुश था. लेकिन कल्पना उस से खुश नहीं थी. ड्राइवर के साथ शादी हो जाने से उस की सारी ख्वाहिशों और सपनों पर जैसे पानी फिर गया था. पति के रूप में एक मामूली टैक्सी ड्राइवर को पा कर उस के सारे सपने कांच की तरह टूट कर बिखर गए थे.
कुल मिला कर बसवराज बसु और कल्पना का कोई मेल नहीं था, लेकिन मजबूरी यह थी कि वह करती भी तो क्या. बसवराज बसु अपनी आमदनी के अनुसार पत्नी की जरूरतों को पूरी करने की कोशिश करता था, पर पत्नी की ख्वाहिशें कम नहीं थीं. उस की आकांक्षाएं ऐसी थीं, जिन्हें पूरा करना बसवराज के वश की बात नहीं थी. लिहाजा वह अपनी किस्मत को ही कोसती रहती.
समय अपनी गति से चलता रहा. कल्पना 2 बच्चों की मां बन गई. इस के बाद कल्पना की जरूरतें और ज्यादा बढ़ गई थीं, जिन्हें बसवराज बसु पूरा नहीं कर पा रहा था. ऐसी स्थिति में कल्पना की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. उस का पति जब घर से टैक्सी ले कर निकलता था तो तीसरेचौथे दिन ही घर लौट कर आता था. घर आने के बाद भी वह कल्पना का साथ नहीं दे पाता था. ऐसे में कल्पना जल बिन मछली की तरह तड़प कर रह जाया करती थी.
उड़ान के लिए कल्पना को लगे पंख
कल्पना खूबसूरत और जवान थी. बस्ती में ऐसे कई युवक थे, जो उस को चाहत भरी नजरों से देखते थे. एक दिन कल्पना के मन में विचार आया कि क्यों न ऐसे युवकों से लाभ उठाया जाए. इस से उस के सपने तो पूरे हो ही सकते हैं, साथ ही शरीर की जरूरत भी पूरी हो जाएगी.
यही सोच कर कल्पना ने उन युवकों को हरी झंडी दे दी. कई युवक उस के जाल में फंस गए. बच्चों के स्कूल और पति के काम पर जाने के बाद वह मौका देख कर उन्हें घर बुला कर मौजमस्ती करने लगी, साथ ही उन से मनमुताबिक पैसे भी लेने लगी.
कल्पना का रहनसहन और घर के बदलते माहौल को पहले तो बसवराज समझ नहीं सका, लेकिन जब सच्चाई उस के सामने आई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि जिस पत्नी को वह अपनी जान से भी ज्यादा चाहता है, जिस के लिए वह रातदिन मेहनत करता है, उस के पीठ पीछे वह इस तरह का काम करेगी. उस ने यह भी नहीं सोचा कि दोनों बच्चों पर इस का क्या असर पड़ेगा.
मामला काफी नाजुक था. मौका देख कर बसवराज बसु ने जब कल्पना को समझाना चाहा तो वह उस पर ही बरस पड़ी. उस ने पति को घुड़कते हुए कहा कि तुम्हारे और बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद अगर मैं अकेली रहती हूं. ऐसे में अगर मैं किसी से दोचार बातें कर लेती हूं तो इस में बुरा क्या है. तुम्हें यह अच्छा नहीं लगता तो मैं आत्महत्या कर लेती हूं.
कल्पना का बदला व्यवहार और माहौल देख कर बसवराज बसु यह बात अच्छी तरह से समझ गया कि कल्पना को समझानेबुझाने से कोई फायदा नहीं होगा. इसलिए उस ने उस जगह को छोड़ देना ही सही समझा. वह पत्नी और बच्चों को ले कर बेलगांव शहर चला गया.
वहां बसवराज कुड़चड़े थाने के अंतर्गत आने वाले अनु अपार्टमेंट में किराए का फ्लैट ले कर रहने लगा. उस ने टैक्सी चलानी बंद कर दी और किसी की निजी कार चलाने लगा. उसे विश्वास था कि बेलगांव में रह कर पत्नी के आशिक छूट जाएंगे और वह सुधर जाएगी.
लेकिन बसवराज की यह सोच गलत साबित हुई. कल्पना चतुर और स्मार्ट महिला थी. बेलगांव आ कर वह और भी आजाद हो गई. यहां उसे न समाज का डर था और न गांव का. उस ने उसी अपार्टमेंट में रहने वाले पंकज पवार नाम के युवक को फांस लिया. पंकज एक निजी कंपनी में डाटा एंट्री औपरेटर था. वह मडगांव का रहने वाला था.
बसवराज की सोच हुई गलत साबित
31 वर्षीय पंकज पवार की शादी हो चुकी थी. उस के 2 बच्चे भी थे. लेकिन वह कल्पना के लटकोंझटकों से बच नहीं सका. कल्पना से संबंध बन जाने के बाद पंकज पवार उस के फ्लैट पर आनेजाने लगा. एक दिन पंकज कल्पना से मुलाकात कराने के लिए अपने 3 दोस्तों सुरेश सोलंकी, अब्दुल शेख और आदित्य को भी साथ ले आया. पहली ही मुलाकात में ही कल्पना ने उस के तीनों दोस्तों पर ऐसा जादू किया कि वे भी उस के मुरीद हो गए. उन तीनों से भी कल्पना के संबंध बन गए.
कुछ ही दिनों में कल्पना के यहां आने वाले युवकों की संख्या बढ़ने लगी. धीरेधीरे कल्पना के कारनामों की जानकारी इलाके भर में फैल गई. उस की वजह से बसवराज बसु की ही नहीं, बल्कि पूरे मोहल्ले की बदनामी होने लगी. ऐसे में बसवराज का वहां रहना मुश्किल हो गया. दोनों बच्चे अब काफी बड़े हो गए थे. बसवराज बसु ने अपने बच्चों के भविष्य के मद्देनजर कल्पना को काफी समझाया, लेकिन अपनी मौजमस्ती के आगे उस ने बच्चों को कोई अहमियत नहीं दी.
कल्पना पर जब पति के समझाने का कोई असर नहीं हुआ तो वह उसे छोड़ कर वहीं पर जा कर रहने लगा, जहां वह नौकरी करता था. इस के बावजूद वह अपनी पूरी पगार ला कर कल्पना को दे जाता था.
हालांकि कल्पना के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. बसवराज बसु के जाने के बाद वह और भी आजाद हो गई थी. वह अपने चारों दोस्तों के साथ बारीबारी से घूमतीफिरती और मौजमजा करती. इस के अलावा वह उन से अच्छीखासी रकम भी ऐंठती थी. वह पूरे समय अपने रूपयौवन को सजानेसंवारने में लगी रहती थी. यहां तक कि अब वह घर पर खाना तक नहीं बनाती थी. खाना पकाने के लिए उस ने अपने प्रेमी अब्दुल शेख की पत्नी सिमरन शेख को सेवा में रख लिया था.
2 अप्रैल, 2018 को बसवराज बसु की जिंदगी का आखिरी दिन था. एक दिन पहले उसे जो पगार मिली थी, उसे पत्नी को देने के लिए वह 2 अप्रैल को दोपहर में फ्लैट पर पत्नी के पास पहुंचा. घर का जो माहौल था, उसे देख कर उस का खून खौल उठा. कल्पना ने बेशरमी की हद कर दी थी. वहां पर सुरेश सोलंकी, आदित्य और अब्दुल शेख जिस अवस्था में थे, उसे देख कर साफ लग रहा था कि कल्पना उन के साथ क्या कर रही थी. यह देख कर बसवराज का खून खौल गया.
वह पत्नी को खरीखोटी सुनाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हें खर्चे के लिए पैसे देने के लिए आता हूं. लेकिन तुम्हारा यह घिनौना रूप देख कर तुम्हें पैसा देने और यहां आने का मन नहीं होता. लेकिन बच्चों के लिए यह सब करना पड़ता है.’’
बसवराज की मौत आई रस्सी में लिपट कर
पति की बात सुन कर कल्पना डरी नहीं बल्कि वह भी उस पर हावी होते हुए बोली, ‘‘तो मत आओ. मैं ने तुम्हें कब बुलाया और पैसे मांगे. तुम क्या समझते हो, मेरे पास पैसे नहीं हैं? तुम कान खोल कर सुन लो, मैं जिस ऐशोआराम से रह रही हूं, वह तुम्हारे पैसों से नहीं मिल सकता. तुम्हारी पूरी पगार से तो मेरा शैंपू ही आएगा. रहा सवाल बच्चों का तो उन की चिंता तुम छोड़ दो.’’
कल्पना की यह बात सुन कर बसवराज बसु को जबरदस्त धक्का लगा. इस के बाद पतिपत्नी के बीच झगड़ा बढ़ गया. तभी गुस्से में आगबबूला कल्पना ने अपने तीनों प्रेमियों को इशारा कर दिया. कल्पना का इशारा पाते ही उस के तीनों प्रेमियों ने मिल कर बसवराज बसु को पीटपीट कर बेदम कर दिया.
शारीरिक रूप से कमजोर बसवराज बसु बेहोश हो कर जमीन पर गिर गया. उसी समय अब्दुल शेख की बीवी सिमरन भी वहां आ गई. तभी कल्पना के घर के अंदर बंधी नायलौन की रस्सी खोल कर बसवराज के गले में डाल कर पूरी ताकत से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई. यह देख कर सिमरन सहम गई.
टुकड़ों में बंट गया पति
अब्दुल शेख और कल्पना ने सिमरन को धमकी दी कि अपना मुंह बंद रखे. अगर मुंह खोला तो उस का भी यही हाल होगा. डर की वजह से सिमरन चुप रही. कल्पना और उस के प्रेमियों का गुस्सा शांत हुआ तो वे बुरी तरह घबरा गए. हत्या के समय पंकज वहां नहीं था.
थोड़ी देर सोचने के बाद कल्पना और उस के प्रेमियों ने बसवराज बसु की लाश ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. कल्पना ने शव ठिकाने लगवाने के मकसद से पंकज को फोन कर के बुला लिया. लेकिन पंकज को जब हत्या का पता चला तो वह घबरा गया. पहले तो पंकज ने इस मामले से अपना हाथ खींच लिया, लेकिन अपनी प्रेमिका कल्पना को मुसीबत में घिरी देख कर वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया.
चारों ने मिल कर बसवराज बसु के शव को बाथरूम में ले जा कर उस के 3 टुकड़े किए और उन टुकड़ों को कपड़ों में लपेट कर प्लास्टिक की 3 बोरियों में भर दिया. मौका देख कर उसी रात 12 बजे इन लोगों ने तीनों बोरियों को अब्दुल शेख की कार की डिक्की में रख दिया. इस के बाद ये लोग कुड़चड़े महामार्ग के अनमोड़ घाट गए और उन बोरियों को एकएक किलोमीटर की दूरी पर घाट की घाटियों में दफन कर के लौट आए.
जैसेजैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे इस हत्याकांड के सभी अभियुक्त बेखबर होते गए. उन का मानना था कि इस हत्याकांड से कभी परदा नहीं उठेगा और उन का राज राज ही रह जाएगा. लेकिन वे यह भूल गए थे कि उन के इस राज की साक्षी अब्दुल शेख की बीवी सिमरन शेख थी, जिस की आंखों के सामने बसवराज बसु की हत्या का सारा खेल खेला गया था. वह इस राज को अपने सीने में छिपाए हुए थी.
पता नहीं क्यों सिमरन को हत्या में शामिल लोगों से डर लगने लगा था. यहां तक कि अपने पति से भी उस का विश्वास नहीं रहा. उसे ऐसा लगने लगा जैसे उस की जान को खतरा है. वे लोग अपना पाप छिपाने के लिए कभी भी उस की हत्या कर सकते हैं. इस डर की वजह से सिमरन शेख बेलगांव की जानीमानी पत्रकार ऊषा नाईक देईकर से मिली और उस ने बसवराज बसु हत्याकांड की सारी सच्चाई बता दी.
आखिर राज खुल ही गया
बसवराज बसु की हत्या की सच्चाई जान कर ऊषा नाईक के होश उड़ गए. उन्होंने सिमरन शेख को साहस और सुरक्षा का भरोसा दे कर मामले की सारी जानकारी बेलगांव कुड़चड़े पुलिस थाने के थानाप्रभारी रवींद्र देसाई और उन के वरिष्ठ अधिकारियों को दी. वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में थानाप्रभारी रवींद्र देसाई ने अपनी जांच तेजी से शुरू कर दी.
उन्होंने 24 घंटे के अंदर बसवराज बसु हत्याकांड में शामिल कल्पना बसु के साथ पंकज पवार, अब्दुल शेख और सुरेश सोलंकी को गिरफ्त में ले कर वरिष्ठ अधिकारियों के सामने पेश किया, जहां सीपी अरविंद गवस ने उन से पूछताछ की. पुलिस गिरफ्त में आए चारों आरोपी कोई पेशेवर अपराधी नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.
9 मई, 2018 को उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस अनमोड़ घाट की उस जगह पर ले कर गई, जहां उन्होंने बसवराज बसु के शव के टुकड़े दफन किए थे. उन की निशानदेही पर पुलिस ने शव के तीनों टुकड़ों को बरामद कर लिया. घटना के समय बसवराज जींस पैंट पहने हुए था. उस की पैंट की जेब में उस का ड्राइविंग लाइसेंस मिला, जिस से यह बात सिद्ध हो गई कि शव बसवराज का ही था. शव को कब्जे में लेने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मडगांव के बांबोली अस्पताल भेज दिया.
पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए कल्पना बसु, पंकज पवार, सुरेश सोलंकी और अब्दुल शेख से विस्तृत पूछताछ कर के उन के विरुद्ध भांदंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. फिर चारों को मडगांव मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक इस हत्याकांड का एक आरोपी आदित्य गुंजर फरार था, जिस की पुलिस बड़ी सरगरमी से तलाश कर रही थी.