डी.रूपा वह चर्चित नाम है जिसे रूपा दिवाकर मौदगिल के नाम से भी जाना जाता है. देश की यह चर्चित आईपीएस अफसर किसी परिचय की मोहताज नहीं, इन के चर्चे मीडिया में सुर्खियां बनते रहते हैं. बेबाक, निडर और साहसी आईपीएस डी. रूपा का सर्विस रिकौर्ड बड़ा शानदार रहा है, हालांकि इस के लिए उन को अभी तक 20 साल के कैरियर में 43 बार ट्रांसफर का दर्द झेलना पड़ा. लेकिन वह इसे अपनी नौकरी का हिस्सा मानती रहीं, कभी कोई शिकायत नहीं की.
वह जिस राज्य में रहीं, वहां का मुख्यमंत्री कभी चैन से नहीं सो पाया. क्योंकि डी. रूपा अपने काम के तरीकों से कब और कहां के भ्रष्टाचार का खुलासा कर दें या कोई ऐसी काररवाई कर दें कि राज्य में भूचाल आ जाए और वह मीडिया में छा जाए, कोई नहीं जान सकता.
डी. रूपा कभी गलत होते नहीं देख सकतीं, सच को सब के सामने लाने के लिए वह बिलकुल भी नहीं डरती, सामने वाला कितना भी ताकतवर और रसूख वाला हो, वह इस की बिलकुल परवाह नहीं करती.
देश की बागडोर असल मायनों में अफसरों के हाथ में होती है, यदि नौकरशाही दुरुस्त हो तो कानूनव्यवस्था चाकचौबंद रहती है. डी. रूपा जैसे ही अफसर हैं जो देश सेवा का जुनून लिए नौकरशाही की साख बचाए हुए हैं. अफसर चुपचाप शांति से अपनी सर्विस लाइफ जीते रहते हैं. विरले ही अफसर होते हैं जो सिस्टम और भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ आवाज उठाते हैं. डी. रूपा ऐसे ही अफसरों में से एक हैं. उन की दिलेरी के किस्से आज मिसाल के तौर पर पेश किए जा रहे हैं.
सिस्टम से भी टकरा जाने वाली कर्नाटक कैडर की आईपीएस डी. रूपा पहली महिला आईपीएस अफसर तो थी ही, साथ ही राज्य के गृह सचिव पद को संभालने वाली भी पहली महिला थीं.
डी. रूपा कर्नाटक के पश्चिमी घाट की तलहटी में बसे दावणगेरे कस्बे में पैदा हुई थीं, तब यह जिला नहीं हुआ करता था. तब यह एक छोटा सा कस्बा हुआ करता था.
रूपा के पिता जे.एच. दिवाकर सरकारी टेलीकौम कंपनी बीएसएनएल में इंजीनियर थे. मां हेमावती पोस्ट औफिस में डाक अधीक्षक की पोस्ट पर थीं.
रूपा की एक छोटी बहन थी रोहिणी दिवाकर. रोहिणी 2008 बैच की आईआरएस अधिकारी हैं और संयुक्त आयकर आयुक्त के पद पर तैनात हैं.
डी. रूपा जब तीसरी कक्षा में थीं, तब क्लास टीचर ने बच्चों से कहा कि वे बडे़ हो कर क्या बनना चाहते हैं. आज मत बताओ, घर जाओ, अपने मातापिता से बात करो, फिर कल आ कर बताना.
बनना चाहती थीं आईपीएस
डी. रूपा घर पहुंचीं. मां हेमावती से बात की कि उन को बड़े हो कर क्या बनना है तो उन की मां ने कहा कि डाक्टर बनो. रूपा को यह कुछ नहीं भाया तब उन्होंने पिता से बात की. उन्होंने कहा कि आईएएस या आईपीएस अफसर बनना.
पिता ने रूपा को इस बारे में भी बताया कि आईएएस बनने से डीसी सा डीएम बन जाते हैं और आईपीएस बनने से एसपी बन जाते हैं. यह लीडरशिप रोल रूपा को इतना भाया कि रूपा ने अगले दिन कक्षा में जा कर अपनी क्लास टीचर को अपने आईपीएस बनने की इच्छा बता दी.
रूपा ही अकेली ऐसी छात्रा थी, जिस ने पुलिस अधिकारी बनने की बात कही थी. यह सुन कर अध्यापिका ने सभी बच्चों को ताली बजाने को कहा. रूपा का जवाब सुन कर सभी खुश हुए. तब रूपा को लगा था कि इस में कुछ विशेषता है, बड़े हो कर आईएएस या आईपीएस बनना है.
इसी दौरान रूपा ने एनसीसी जौइन कर ली. गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में कैंप होता है. जब रूपा नौंवीं कक्षा में थी तब उस ने गणतंत्र दिवस पर अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए इस कैंप में भाग लिया था. यह मौका उन्हें तब मिला था, जब उन्होंने वहां तक पहुंचने के लिए 4-5 पड़ाव पार किए थे.
उस समय गणतंत्र दिवस के मौके पर देश की चर्चित महिला अफसर किरन बेदी आई थीं, उन्होंने वहां युवाओं को प्रेरित करने के लिए जो भाषण दिया, उस से रूपा काफी प्रेरित हुईं. उस समय प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक पत्रिका आती थी ‘कंप्टीशन सक्सेस रिव्यू’. यह पत्रिका किसी ने रूपा को पढ़ने के लिए दी.
उस पत्रिका में यूपीएससी में टौप किए लोगों के इंटरव्यू और सौल्व्ड पेपर्स आते थे. उस पत्रिका को पढ़ कर रूपा ने जाना कि कैसे उसे इस क्षेत्र में कैरियर बनाना है. उस समय कर्नाटक में इंजीनियरिंग और मैडिकल कालेजों की भरमार थी.
इंजीनियर और डाक्टर बनने की हवा चल रही थी. कोई पुलिस सेवा में जाने की सोचता तक नहीं था. इस संबंध में अधिक जानकारी भी नहीं मिल पाती थी.
इस के बावजूद रूपा ने पुलिस सेवा को अपना कैरियर बनाने की ठानी. उन्होंने साइकोलौजी और सोशियोलौजी में यूपीएससी पास करने की ठान ली. उन की जलती हुई महत्त्वाकांक्षा में ईंधन का काम किया टीवी धारावाहिक ‘उड़ान’ ने, जोकि देश की दूसरी महिला पुलिस अधिकारी कंचन चौधरी के जीवन से पे्ररित था. दूरदर्शन पर प्रसारित इस धारावाहिक में पुलिस अधिकारी को एक दोस्त और जनता के रक्षक के रूप में दिखाया गया था. दूरदर्शन देख देख कर ही रूपा ने हिंदी बोलना सीखा.
रूपा ने 10वीं में स्टेट लेवल पर 23वीं रैंक हासिल की. रूपा ने आर्ट से आगे बढ़ने का फैसला किया. उन्होंने कर्नाटक के कुवेंपु विश्वविद्यालय से प्रथम रैंक में स्वर्ण पदक हासिल करने के साथ बीए की पढ़ाई पूरी की. इस के बाद बेंगलुरु विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान से एमए किया. इस में उन की तीसरी रैंक थी.
एमए करने के बाद रूपा ने नेट (हृश्वञ्ज) की परीक्षा पास की. उन्होंने जेआरएफ निकाला और साथ ही आईपीएस की तैयारी करती रहीं. उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में 43वीं रैंक हासिल की.
इस शानदार रैंक पर वह चाहतीं तो आईएएस चुन सकती थीं लेकिन उन्होंने आईपीएस को चुना. हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी से प्रशिक्षण लिया, जहां उन को अपने बैच में 5वां स्थान मिला. उन्हें कर्नाटक कैडर आवंटित किया गया.
डी. रूपा शार्पशूटर थीं. ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने कई पदक भी जीते. इस के अलावा वह भरतनाट्यम की कुशल डांसर थीं. रूपा ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी शिक्षा ली थी.
कन्नड़ फिल्म बेलाताड़ा भीमन्ना के लिए एक गीत भी अपनी आवाज में गाया था. इस फिल्म ने रविचंद्रन ने मुख्य भूमिका निभाई थी. रूपा तेज दिमाग के साथ खूबसूरती भी थीं. ब्यूटी विद ब्रेन के कारण रूपा ने 2 बार ‘मिस दावणगेरे’ का खिताब जीता था.
2000 बैच की आईपीएस अफसर रूपा ने 2002 में उडुपी से सहायक एसपी के रूप में अपना कैरियर शुरू किया. 2003 में रूपा ने 1998 बैच के आईएएस अधिकारी मौनिश मौदगिल से विवाह किया. पंजाब के रहने वाले मौनिश ने आईआईटी बौंबे से अपनी बीटेक इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पूरी की.
मौनिश ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास की और ओडिशा कैडर में आईएएस अफसर बने.
रूपा और मौनिश दोनों पहली बार मसूरी में फाउंडेशन ट्रेनिंग में मिले और शादी करने का फैसला किया. उन को एक बेटी अनघा और एक बेटा रौशिल है.
पहली नियुक्ति बनी चुनौती
रूपा की एसपी के रूप में सब से पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के धारवाड़ जिले में हुई. पोस्टिंग हुए एक महीने का समय ही बीता था कि उन को एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई, वह जिम्मेदारी थी मध्य प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती को गिरफ्तार करने की. मामला कर्नाटक के हुबली से जुड़ा था, जहां 15 अगस्त, 1994 को ईदगाह पर तिरंगा फहराने के मामले में उमा भारती के खिलाफ वारंट जारी हुआ था. आरोप था कि उन की इस पहल से सांप्रदायिक सौहार्द खतरे में पड़ा था.
10 साल पुराने इस मामले में कोर्ट ने उमा भारती के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया था. इस वारंट को तामील कराने के लिए डी. रूपा धारवाड़ से निकलीं. लेकिन जब तक वह पहुंचती, उमा भारती ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
उमा भारती को गिरफ्तार कर के उन को कोर्ट मे पेश किया गया. इसी प्रकरण से पहली बार डी. रूपा चर्चा में आई थीं. रूपा धारवाड़ के बाद गडग, बीदर और यादगीर जिले में भी एसपी पद पर तैनात रहीं. 2008 में गडग में बतौर एसपी तैनाती के दौरान उन्होंने एक पूर्व मंत्री यावगल को गिरफ्तार किया था.
उन्होंने अपने ही अधीनस्थ डीएसपी मासूति को अपने और पूर्वमंत्री के बीच सौदा कराने की कोशिश के लिए निलंबित कर दिया था. कुछ महीनों के भीतर ही रूपा को स्थानांतरित कर दिया गया.
इस मामले को 5 सालों तक खींचा गया. इस के लिए विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाया गया लेकिन रूपा कानूनी तौर पर सही थीं, इसलिए उन पर कोई काररवाई नहीं हुई.
गुलबर्गा से अलग कर के बनाया गया था नया जिला यादगीर. नया जिला होने से कोई सशस्त्र बल नहीं था, ला ऐंड और्डर बनाए रखने की बड़ी मुश्किलें थीं. उस पर किसी तरह काम कर के रूपा ने जिले में पूर्णतया शांति बनाए रखी. एसपी के पद पर होते हुए भी वहां उन के रहने के लिए कोई आवास नहीं था.
किराए पर भी कोई आवास नहीं मिला. यादगीर में ही रूपा के पति मौनिश को अतिरिक्त चार्ज मिला हुआ था. उन्हें एक आवास आवंटित किया गया था. रूपा पति को मिले आवास में ही जा कर रहने लगीं.
वहां रूपा को कुछ कष्ट सहने पड़े. पास में ही एक गांव में स्कूल था. उस स्कूल से रूपा की बेटी अनिघा ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई शुरू की. वहां बच्चों को स्कूल में जमीन पर बैठ कर पढ़ना होता था.
कुछ लोग यह सोचते हैं कि आईपीएस की जिंदगी बड़ी सुखद होती है, आलीशन घर होते हैं, एसी चैंबर होते हैं, पैसा होता है, नौकरचाकर होते हैं, मगर चुनौतियां कुछ इस तरह की भी हो सकती हैं, जो रूपा के सामने आईं.
यादगीर के बाद 2013 में रूपा बेंगलुरु में डिप्टी कमिश्नर औफ पुलिस (सिटी आर्म्ड रिजर्व) के पद पर तैनात हुईं. वहां रूपा ने देखा कुछ राजनेता, विधायक और सांसद अनाधिकृत रूप से अतिरिक्त गनमैन रखे हुए थे. यह देख कर रूपा ने एक लिस्ट बनाई और 82 राजनेताआें से 290 गनमैन वापस ले लिए.
तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के पास कानवाय के लिए विभाग के 8 नए एसयूवी वाहन थे, किसी ने वापस नहीं लिए. वह रूपा ने वापस ले लिए. इस काररवाई के बाद रूपा का ट्रांसफर कर दिया गया.
नौकरशाही पर लगाम लगाने और उन को सबक सिखाने के लिए राजनेता ट्रांसफर को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं. यही वजह है कि नौकरशाही ट्रांसफर के डर से और कंफर्ट जोन में रहने के लिए शांत रहती है. लेकिन रूपा शांत रहने वाले अफसरों में से नहीं थीं. कुछ भी गलत होते देख कर वह चुप नहीं बैठती थीं.
डी. रूपा को लगातार 2 साल 2016 और 2017 में राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया. जुलाई 2017 में रूपा को डीआईजी जेल के पद पर तैनात किया गया. रूपा का पहला जेल निरीक्षण एक घंटे का था. उन्होंने जेल में कैदियों से बात की तो वह उन को अंदर से रुला गई. कैदियों की कहानियों, जेल में बिताए वर्ष, उन की आंखों के पछतावे ने रूपा को रुला दिया. कुछ कैदी तो 12 साल की जेल की सजा काटने के बाद भी पैरोल पर नहीं गए थे.
जेलों का देखा हाल
डीआईजी रूपा ने सब से पहले जरूरतमंद कैदियों को मुफ्त कानूनी सहायता दी और बेकरी का प्रशिक्षण भी दिलाया. तुमकुरू जेल में भी उन्होंने 21 महिला कैदियों के लिए बेकरी प्रशिक्षण इकाई खोली.
10 जुलाई, 2017 को डीआईजी डी. रूपा ने परप्पना अग्रहारा जेल का दौरा किया. उसी जेल में एआईडीएमके की अध्यक्ष जयललिता की सहयोगी वी.के. शशिकला भी बंद थी. शशिकला को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में बंद किया गया था. शशिकला उस समय मजबूत सीएम कैंडिडेट थी और पावर में थी.
शशिकला को जेल में वीआईपी सुविधा मिल रही थी. शशिकला को उन की बैरक से अटैच एक किचन दिया गया था, जिस में उन के लिए विशेष तौर पर खास खाना बनाया जाता था. डी. रूपा ने शासन को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में जेल प्रशासन पर आरोप लगाया कि इन सुविधाओं के लिए शशिकला द्वारा उन को 2 करोड़ रुपए दिए गए थे.
इस के अलावा उन्होंने और भी अवैध गतिविधियां होते देखीं. उन के मुताबिक 25 कैदियों का ड्रग टेस्ट कराया तो उन में से 18 का टेस्ट पौजिटिव आया. फेक स्टांप पेपर केस में दोषी पाए गए अब्दुल करीम तेलगी, जिस को भर्ती के वक्त व्हीलचेयर चलाने के लिए एक व्यक्ति दिया गया था, वह असल में 4 लोगों से मालिश करवा रहा था.
डी. रूपा ने डीजीपी (जेल) के. सत्यनारायण राव पर अपने काम में बाधा डालने का भी आरोप लगाया. आरोपों के बदले पुलिस महकमे की ओर से रूपा को शो कौज नोटिस भेजा गया.
साथ ही रूपा पर 20 करोड़ रुपए का मानहानि का मुकदमा दायर किया गया. 17 जुलाई, 2017 को रूपा का स्थानांतरण डीआईजी जेल से आईजी (ट्रैफिक रोड ऐंड सेफ्टी) पद पर कर दिया गया.
डी. रूपा इजरायल के विदेश मंत्रालय द्वारा दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के लिए ‘डिस्कवर इजरायल प्रतिनिधिमंडल’ का हिस्सा बनने के लिए चुनी गईं.
2020 में डी. रूपा कर्नाटक की प्रथम महिला गृह सचिव (कारागार, अपराध और सहायक सेवाएं) बनीं. रूपा सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती हैं खासतौर पर माइक्रो ब्लौगिंग साइट ट्विटर पर. वह रोज के रोज अपने से जुड़ी हर बात को ट्विटर पर शेयर करती हैं.
14 नवंबर, 2020 को ट््विटर पर उन्होंने ट्वीट किया, ‘कुछ लोग पटाखों पर प्रतिबंध लगाने पर आपत्ति क्यों जताते हैं.’ इस ट्वीट के बाद ‘ट्रूइंडोलौजी’ नाम के यूजर से उन की बहस हो गई. डी. रूपा का मत था कि पटाखे दीवाली से जुडे़ रीतिरिवाजों का हिस्सा नहीं रहे और 15वीं शताब्दी में आतिशबाजी का जन्म हुआ. इसलिए इस बैन को सकारात्मक रूप से लेना चाहिए. हालांकि ट्विटर पर सनातन धर्म से जुड़े सही तथ्यों को रखने का दावा करने वाले ट्विटर यूजर ट्रूइंडोलौजी ने इस का विरोध किया. इस यूजर ने शास्त्रों का उदाहरण देते हुए यह साबित करने की कोशिश की कि कई हजार सालों से आतिशबाजी दीवाली पर्व का हिस्सा रही है.
दोनों के बीच बहस इस हद तक पहुंच गई कि ट्विटर ने ट्रूइंडोलौजी एकाउंट को सस्पेंड कर दिया. आरोप लगा कि डी. रूपा ने अपनी पावर का गलत इस्तेमाल कर के विरोधी यूजर का एकाउंट सस्पेंड कराया है, जबकि ऐसा नहीं था. यूजर के एकाउंट को वापस लाने के लिए हैशटैग चलने लगा. इस बहस में फिल्म एक्ट्रैस कंगना रनौत ने भी डी. रूपा को काफी कुछ कहा.
619 करोड़ रुपए के ‘बेंगलुरु सेफ सिटी प्रोजेक्ट’ के तहत पूरे बेंगलुरु शहर में सीसीटीवी कैमरे लगने थे, जिन के टेंडर निकाले गए थे. इसी टेंडर प्रक्रिया में गृह सचिव रूपा ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रशासन) हेमंत निंबालकर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. डी. रूपा को टेंडर प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं मिली थीं.
भिड़ गईं सीनियर से
इस पर हेमंत निंबालकर ने 7 दिसंबर, 2020 को प्रमुख सचिव को भेजी गई रिपोर्ट में कहा कि किसी ने खुद को गृह सचिव बता कर इस योजना के बारे में गोपनीय सूचना हासिल करने की कोशिश की थी. इस पर रूपा ने बतौर गृह सचिव कहा, ‘मैं शिकायत करती हूं कि किसी अन्य व्यक्ति की ओर से अपने आप को गृह सचिव के रूप में पेश करने की बात झूठी और व्यक्तिगत दुर्भावना से प्रेरित है.’
प्रोजेक्ट को ले कर 2 वरिष्ठ अधिकारियों के बीच में ठन गई तो कर्नाटक सरकार ने बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर कमल पंत को इस प्रक्रिया में अवैध दखल की जांच करने का आदेश दिया. दोनों के बीच बढ़े विवाद के बाद सरकार ने दोनों का तबादला कर दिया.
31 दिसंबर, 2020 को डी. रूपा को गृह सचिव के पद से हटा कर कर्नाटक राज्य हस्तशिल्प विकास निगम के प्रबंध निदेशक के पद पर भेज दिया गया. एक जनवरी, 2021 को उन्होंने अपना पदभार ग्रहण कर लिया.
यह थी देश की महिला आईपीएस अफसर डी. रूपा की कहानी, जो आज के युवाओं को प्रेरणा देने वाली है कि किस तरह एक छोटी सी जगह से निकल कर अपनी मेहनत और लगन के बल पर अपने सपने को पूरा किया जाता है, हकीकत में अपने सपने को कैसे जिया जाता है.
परिस्थितियां कैसी भी हों, इंसान को साहस से काम लेना चाहिए, उन का डट कर मुकाबला करना चाहिए. डी. रूपा पूरे कैरियर में बड़ी ईमानदारी से अपने कार्यों को करती आईं, कभी अपने तबादलों से नहीं डरीं. बल्कि इन तबादलों को अपनी नौकरी का एक हिस्सा मानती रहीं.
20 साल के कैरियर में दोगुने से ज्यादा तबादले हुए लेकिन उन के माथे पर कभी शिकन नहीं आई. आज हमारे देश को ऐसे ही कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार पुलिस अधिकारियों की जरूरत है जो अपने सेवा भाव से देश और समाज का भला कर सकें.