मामला 26 साल पुराना जरूर है. लेकिन आज भी इस घिनौने अपराध को जानसुन कर रूह कांप जाती है. जलगांव का सैक्स स्कैंडल उस दौर का सब से बड़ा सैक्स स्कैंडल था, जिस ने राजनीति में भूचाल ला दिया था. और महिला आईपीएस अधिकारी मीरा बोरवंकर के नाम का डंका बज गया था.

1994 के उस दौर में महाराष्ट्र स्टेट सीआईडी के हैड अरविंद ईनामदार थे. मीरा बोरवंकर सीआईडी में क्राइम ब्रांच की इंचार्ज थीं. उन दिनों क्राइम ब्रांच का काम  संगठित अपराध और गैंगस्टरों को खत्म करना था. मीरा बोरवंकर तब तक महाराष्ट्र के कई जिलों में चर्चित पुलिस अधीक्षक रह चुकी थीं. उन्होंने कई कुख्यात अपराधियों की नाक में नकेल डाली थी.

आकर्षक और सौम्य व्यक्तित्व की मीरा इसलिए भी चर्चाओं में थीं, क्योंकि वह महाराष्ट्र की पहली और उन दिनों की एकलौती महिला आईपीएस अफसर थीं. आमतौर पर तब महिलाओं की छवि घर परिवार का पालनपोषण करने और घर की रसोई संभालने वाली नारी के रूप में होती थी. लेकिन मीरा ने आईपीएस बनने के बाद अपराधियों की कमर तोड़ कर इस छवि को बदलने का काम किया था.

दरअसल, सीआईडी को लगातार शिकायत मिल रही थी कि जलगांव में प्रभावशाली लोगों का एक ऐसा गिरोह सक्रिय है जो स्कूली लड़कियों व कामकाजी महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर उन का शारीरिक शोषण करता है.

इसी दौरान लड़कियों की वीडियो भी तैयार कर ली जाती है, जिस से लड़कियों को ब्लैकमेल कर के उन्हें बड़ेबड़े कारोबारियों, नौकरशाहों और राजनेताओं के बिस्तर की शोभा बनने को मजबूर किया जा सके.

लेकिन बदनामी के डर से कोई भी पीडि़त लड़की न तो पुलिस के सामने आ रही थी और न ही सीआईडी को किसी तरह का सबूत मिल रहा था.

अरविंद ईनामदार ने अपनी टीम के एसपी स्तर के 2 अफसरों दीपक जोग और मीरा बोरवंकर को इस सैक्स  स्कैंडल के आरोपियों को पकड़ने का जिम्मा सौंपा.

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दीपक जोग को इस मामले में बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी. लेकिन मीरा ने महिला होने के नाते इस अपराध को बेहद गंभीरता से लिया और खुद इस केस की छानबीन में जुट गईं.

मीरा ने एक तेजतर्रार टीम का गठन किया और शहर में जिस्मफरोशी का धंधा करने वाले लोगों के बीच में टीम के लोगों की घुसपैठ करवा दी. अपराध ऐसा था जिस में न तो कोई शिकायत करने वाला था, न ही किसी अपराधी का चेहरा सामने था.

लेकिन मीरा ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी टीम के लोगों को उस वक्त तक इस प्रयास में लगे रहने के लिए कहा, जब तक असल अपराधियों के चेहरे सामने नहीं आ जाते.

इसी प्रयास के दौरान उन की टीम ने एक लड़की को पेश किया जो देह व्यापार की दलदल में फंस चुकी थी. जब लड़की को मीरा के सामने लाया गया तो उन्होंने बड़े प्यार और चतुराई से उन लोगों के नाम उगलवा लिए जिन के कारण वह देह व्यापार के धंधे में आई थी.

नाम, पते सब हासिल हो गए थे. लेकिन लड़की के बयान के अलावा कोई ऐसा सबूत नहीं था कि उन प्रभावशाली लोगों पर हाथ डाल कर उन्हें कानून के कटघरे में खड़ा किया जा सके. मीरा ने सीआईडी के मुखिया अरविंद ईनामदार से मशविरा किया तो उन्होंने सलाह दी कि पहले ठोस सबूत इकट्ठा करो फिर उन लोगों पर हाथ डालना.

इस के बाद मीरा ने छद्मवेश में महिला पुलिसकर्मियों को उस गिरोह के भीतर शामिल करा दिया. धीरेधीरे गिरोह के खिलाफ सबूत एकत्र होने लगे. जल्दी ही गिरोह के चंगुल में फंसी लड़कियों की लंबी फेहरिस्त तैयार हो गई. उन तमाम प्रभावशाली लोगों के चेहरे भी सामने आ गए जो सैक्स रैकेट के इस बड़े सिंडीकेट में शामिल थे.

फिर शुरू हुआ इन की धरपकड़ के बाद सफेदपोशों के चेहरों को बेनकाब करने का अभियान. मीरा बोरवंकर ने जैसे ही बड़ेबड़े कारोबारियों, सरकारी अफसरों, राजनीति से जुडे़ लोगों के साथ जरायम की दुनिया से जुड़े लोगों पर हाथ डालना शुरू किया तो पूरे देश में हड़कंप मच गया.

मीरा पर लोगों को छोड़ने की सिफारिशों का दबाव बढ़ने लगा. और तो और अपने खुद के विभाग के बड़े अफसरों ने भी मीरा पर धमकी भरा दबाव बना कर कहा कि इतने प्रभावशाली लोगों पर हाथ डाल कर वह अपने लिए दुश्मन पैदा कर रही हैं. वे सब तो अपने प्रभाव से छूट जाएंगे, लेकिन इस की कीमत उन्हें चुकानी पड़ सकती है.

लेकिन मीरा किरण बेदी को अपना आदर्श मान कर पुलिस महकमे में आई थीं, जिन्होंने देश की लौह महिला कही जाने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कारवां में शामिल गाड़ी तक का चालान कर दिया था.

मीरा ने कोई दबाव नहीं माना. क्योंकि जलगांव में यह धंधा कई दशकों से चला आ रहा था. खास बात यह कि गिरोह के लोग 10 से 12 साल तक की लड़कियों का यौनशोषण कर रहे थे. शिकार महिलाओं की संख्या भी 300 के लगभग थी.

ब्लैकमेलिंग के डर से लड़कियां उन की शिकायत भी नहीं करती थीं. इस गिरोह ने स्कूल और कालेज की लड़कियों को देह व्यापार के व्यवसाय में ढकेला था. जानेमाने राजनीतिज्ञ, बिजनैसमैन और अपराधियों द्वारा महिलाओं से बलात्कार किया जाता था. साथ ही ये लोग उन की फिल्म बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया करते थे.

मीरा ने अपने अधिकारियों को विश्वास में ले कर जलगांव में सैक्स रैकेट चलाने वाले करीब 2 दरजन से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर उन्हें मीडिया के सामने बेनकाब किया. इन में कई बड़े व्यापारी, सरकारी अफसर, बड़े नेता और जुर्म की दुनिया से जुड़े बड़ेबड़े लोग शामिल थे.

इस गिरोह का खुलासा होने के बाद पूरे देश में हंगामा हो गया. मीरा बोरवंकर अचानक इस ताकतवर गिरोह का भंडाफोड़ करने के बाद मीडिया की सुर्खियों में छा गईं. देश के लोग खासतौर से महिलाओं के लिए वह ऐसी सुपरकौप बन गईं जिन्हें कोई भी मुश्किल नहीं डिगा पाई थी.

जलगांव सैक्स स्कैंडल को हुए 26 साल से अधिक का समय बीत चुका है. मीरा बोरवंकर भी अब पुलिस महकमे से सेवानिवृत्त हो चुकी हैं, लेकिन आज भी वह देश में पुलिस विभाग की लेडी सुपरकौप के नाम से मशहूर हैं और रहेंगी.

सब से बड़ी बात यह थी कि जिस समय उन्होंने देश के इस बहुचर्चित केस का खुलासा किया था उस समय वह गर्भवती थीं. इस स्कैंडल का खुलासा करने में मीरा ने अहम रोल निभाया था. वह देश भर की मीडिया की सुर्खियों में छाई रहीं.

कई लोगों ने साल 2014 में आई रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म ‘मर्दानी’ देखी होगी. लोगों को शायद यह बात पता नहीं होगी यह फिल्म मीरा बोरवंकर के जीवन से ही प्रेरित थी.

देश की बागडोर असल मायने में उन ईमानदार अफसरों के हाथों में ही होती है जो पूरी निष्ठा के साथ अपना फर्ज निभाते हुए कानूनव्यवस्था चाकचौबंद रखते हैं. जिस तरह भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी नौकरशाही से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है. ऐसे में मीरा जैसे कुछ अफसर ऐसा काम कर जाते हैं, जो लोगों के लिए मिसाल बन जाता है.

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महाराष्ट्र में ‘लेडी सुपरकौप’ के नाम से मशहूर आईपीएस अफसर मीरा बोरवंकर की कहानी पुलिस विभाग में कुछ ऐसी ही मिसाल पेश करती है.

पिता से मिली बहादुरी की सीख

मीरा बोरवंकर के पिता ओ.पी. चड्ढा बौर्डर सिक्योरिटी फोर्स में थे. उन का जन्म और पढ़ाई पंजाब के फाजिल्का जिले में हुआ. उन्होंने अपनी पढ़ाई डीसी मौडल स्कूल फाजिल्का में की थी. मीरा के पिता ओ.पी. चड्ढा की पोस्टिंग फाजिल्का में ही थी. इसी दरमियान मीरा ने मैट्रिक तक शिक्षा फाजिल्का में पाई.

इस के बाद 1971 में उन के पिता का तबादला हुआ तो उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई जालंधर से की. लायलपुर खालसा कालेज से उन्होंने अंगरेजी साहित्य में एमए किया. वह बहुमुखी प्रतिभा की छात्रा थीं. वह नीति विश्लेषण कानून प्रवर्तन में मिनेसोटा, अमेरिका के विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए गईं.

1971-72 के दौरान जब मीरा कालेज में थीं, तब किरण बेदी आईपीएस बन चुकी थीं और देश भर में उन के कारनामों का डंका बज रहा था.

मीरा पढ़ाई के साथ स्पोर्ट्स, म्यूजिक और दूसरी गतिविधियों में भी अव्वल थीं. यही कारण था कि एक दिन उन की एक शिक्षिका ने उन से कहा कि मीरा तुम किरण बेदी की इतनी बड़ी फैन हो, उन की तारीफ करती नहीं थकतीं. तुम्हारे भीतर भी आईपीएस बनने के सारे गुण हैं. तुम यूपीएससी की तैयारी क्यों नहीं करतीं.

बस मीरा के भीतर टीचर की यह बात घर कर गई. उन्होंने आईपीएस बनने की ठान ली और पुलिस की सेवा में जाने का मन बना लिया. मीरा ने यूपीएससी की तैयारियां शुरू कर दीं. पहली बार में ही मीरा ने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली.

मीरा ने फिर से यूपीएससी की परीक्षा दी और सफल रहीं, लेकिन इस बार उन्होंने आईपीएस को चुना. ट्रेनिंग के समय वह अकेली महिला थीं. यह उन के लिए कठिन था, क्योंकि उन्हें ट्रेनिंग में कोई रियायत नहीं मिलती थी.

उन की पोस्टिंग बहुत जगहों पर हुई परंतु पुरुषों को एक लेडी औफिसर के नीचे काम करना अच्छा नहीं लगता था. पुलिस सेवा में महिलाओं की उपस्थिति केवल एक या दो प्रतिशत होने के बावजूद मीरा अपने समकक्ष पुरुष अधिकारियों से कहीं ज्यादा सक्रिय और अलग तरह से काम करती थीं. उन के नेतृत्व में 300 औफिसर्स काम करते थे.

लेकिन मीरा ने कभी अपने मातहत पुरुष अधिकारियों के अहं को ठेस नहीं लगने दी, न ही उन्हें कभी छोटा होने का अहसास कराया. यही कारण रहा कि मीरा को अपने पूरे पुलिस कार्यकाल में पुरुष साथी अफसरों का भरपूर सहयोग मिला.

मीरा 1981 बैच में आईपीएस चुनी गई थीं. उन की शादी रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अभय बोरवंकर से हुई थी. अभय रिटायर होने के बाद फिलहाल अपना बिजनैस संभाल रहे हैं, जिस में मीरा भी उन का हाथ बंटाती हैं.

मीरा बोरवंकर महाराष्ट्र पुलिस के इतिहास में पहली महिला अधिकारी रही हैं, जो मुंबई क्राइम ब्रांच की कमिश्नर बनी थीं.

1987-1991 तक मीरा डिप्टी कमिश्नर औफ पुलिस के रूप में सेवा देती रहीं. वे औरंगाबाद में डिस्ट्रिक्ट सुपरिंटेंडेंट औफ पुलिस के स्वतंत्र प्रभार में रहीं और सतारा के चार्ज में 1996-1999 तक रहीं. 1993-1995 तक उन्होंने स्टेट क्राइम ब्रांच की भी बागडोर संभाली.

मीरा मुंबई में सीबीआई की आर्थिक अपराध शाखा और नई दिल्ली की एंटी करप्शन ब्रांच में डीआईजी के रूप में भी तैनात रहीं. 2013 में वह पुणे की पुलिस कमिश्नर बनीं.

इस दौरान वह जहां भी रहीं, उन्होंने अंडरवर्ल्ड के खिलाफ जोरदार मुहिम चला कर उस की कमर तोड़ दी.  मुंबई में नियुक्तिके दौरान माफिया राज को खत्म करने में उन का अहम रोल रहा. उन्होंने दाऊद इब्राहिम कासकर और छोटा राजन गैंग के कई सदस्यों को सलाखों के पीछे भेजा. उन्होंने उन दिनों के बहुचर्चित तेलगी घोटाले में कई आरोपियों को गिरफ्तार किया था.

जांबाज अफसर थीं मीरा

मीरा ने नौकरी के शुरुआती समय में ही अपने तेवरों से साफ कर दिया था कि वह हर हाल में गुंडा राज का खात्मा कर के रहेंगी. अपनी बेहतरीन सेवाओं और जांबाजी के लिए वह लेडी सुपरकौप के नाम से मशहूर हो गई थीं. ईमानदारी, बेहतरीन सेवा और कर्तव्यनिष्ठा के लिए उन्हें 1997 में राष्ट्रपति पुरस्कार तथा वर्ष 2001-02 में पुलिस कैरियर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

इस के अलावा उन्हें 2016 में पूर्ण विश्वविद्यालय का जीवन साधना गौरव पुरस्कार, 2014 में  फिक्की एफएलओ और गोल्डन महाराष्ट का वुमन अचीवर अवार्ड, 2008 में मिनेसोटा विश्वविद्यालय से यूएसए का अंतरराष्टीय नेतृत्व पुरस्कार, 2006 में बौंबे मैनेजमेंट एसोसिएशन द्वारा मैनेजमेंट वुमन अचीवर अवार्ड से सम्मानित किया था.

2004 में उन्हें उत्कृष्ट पुलिस सेवा के लिए यशवंतराव चह्वाण मुक्त विश्वविद्यालय, नासिक से रुक्मणी पुरस्कार से नवाजा गया. 2002 में उन्हें लोकसत्ता दुर्गा जीवन पुरस्कार दिया गया था. आज वह देश की अनेक युवतियों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत हैं.

मीरा ने सतारा में एक ऐसे डकैती केस को सुलझाया था, जिस की उन दिनों देशभर में चर्चा हुई थी. मीरा ने इस केस का इतनी चतुराई से खुलासा किया था कि पूरा पुलिस विभाग उन के दिमाग का लोहा मान गया था. पुलिस डिपार्टमेंट में उन की छवि एक ईमानदार और बहादुर अफसर की थी.

अक्तूबर, 2017 में मीरा बोरवंकर 36 साल की पुलिस सेवा के बाद महानिदेशक एनसीआरबी और ब्यूरो औफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के पद से रिटायर हुई थीं. लेकिन इस से पहले महाराष्ट्र के एडीजीपी जेल के पद पर रहते हुए उन्होंने मुंबई में हुए 26/11 हमलों के दोषी अजमल आमिर कसाब और 1993 मुंबई अटैक के दोषी याकूब मेमन को सफलतापूर्वक फांसी दिलवाई थी.

वह उन 5 अधिकारियों में शामिल थीं, जो मेमन की फांसी के समय जेल परिसर में मौजूद थे. मीरा की देखरेख में ही उसे फांसी दी गई थी. कसाब के मामले का जिक्र करते हुए मीरा ने बताया था कि तब इस बात का पूरा खयाल रखा गया था कि फांसी की जानकारी किसी तरह मीडिया तक न पहुंचने पाए. मीडिया की नजरों से बचने के लिए वह अपने गनर की बाइक पर बैठ कर मुंह और यूनिफार्म को छिपा कर यरवदा जेल पहुंची थीं.

भले ही मीरा पुलिस की वर्दी से दूर हो गई हों, लेकिन महाराष्ट्र के पुलिस महकमे में आज भी उन की बहादुरी और कारनामों के चर्चे जीवंत हैं.

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