18वर्ष की वैष्णवी दरमियाने कद की सुंदर युवती थी. उस के पिता हरीराम गुप्ता अपने सब बच्चों से ज्यादा उसे प्यार करते थे. चूंकि वह जवान थी, इसलिए सतरंगी सपने उस के दिल में आकार लेने लगे थे. वह अपने भावी जीवनसाथी के बारे में सोचती रहती थी. कभी खयालों में तो कभी कल्पनाओं में वह उस के वजूद को आकार देने की कोशिश करती रहती.
वैष्णवी उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के संडीला कस्बे के मोहल्ला इमलिया बाग में रहने वाले हरीराम गुप्ता की बेटी थी. हरीराम के 3 बेटे थे, वेद प्रकाश उर्फ उत्तम, ज्ञानप्रकाश उर्फ ज्ञानू, सर्वेश उर्फ शक्कू और 2 बेटियां वैष्णवी और लक्ष्मी थीं.
वेदप्रकाश उर्फ उत्तम ने घर में ही बनी दुकान में किराने की दुकान खोल रखी थी. हरीराम और ज्ञानू उस की मदद करते थे. हरीराम ने तीसरे बेटे सर्वेश को एक पिकअप गाड़ी खरीद कर दे दी थी. वह उसी में सवारियां ढो कर अच्छेखासे पैसे कमा लेता था.
एक दिन वैष्णवी की मुलाकात गांव के ही रहने वाले गोविंदा से हुई तो वह उसे देखती रह गई. वह बिलकुल वैसा ही था, जैसा अक्स उस के ख्वाबोंखयालों में उभरता था. गोविंदा से निगाहें मिलते ही उस के शरीर में सनसनी सी फैल गई.
उधर गोविंदा का भी यही हाल था. वैष्णवी के मुसकराने का अंदाज देख कर उस का दिल भी जोरों से धड़क उठा. मन हुआ कि वह आगे बढ़ कर उसे अपनी बांहों में ले ले, मगर यह मुमकिन नहीं था, इसलिए वह मन मसोस कर रह गया. होंठों की मुसकराहट ने दोनों को एकदूसरे के आकर्षण में बांध दिया था. उस दिन के बाद उन के बीच आंखमिचौली का खेल शुरू हो गया.
गोविंदा भी संडीला के मोहल्ला अशरफ टोला में रहने वाले दिलीप सिंह का बेटा था. दिलीप सिंह के परिवार में पत्नी सुशीला के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे, जिस में गोविंदा तीसरे नंबर का था. दिलीप सिंह चाय का स्टाल लगाते थे.
सन 2002 में दिलीप बीमार हो कर बिस्तर से लग गए. उस समय उन के दोनों बेटे गोविंदा और आकाश पढ़ रहे थे. पिता के बीमार होने से घर की आर्थिक स्थिति खस्ता हो गई तो दोनों भाइयों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
घर की जिम्मेदारी संभालने के लिए दोनों भाई कस्बे की एक गारमेंट शौप पर नौकरी करने लगे. दिलीप सिंह की बड़ी बेटी का विवाह हो चुका था. 2 बेटे और एक बेटी अविवाहित थे.
नजरें चार होने के बाद गोविंदा रोजाना वैष्णवी के घर के कईकई चक्कर लगाने लगा. वैष्णवी को भी चैन नहीं था. वह भी उस का दीदार करने के लिए जबतब बाहरी दरवाजे की चौखट पर आ बैठती.
जब नजरें मिलतीं तो दोनों मुसकरा देते. इस से उन के दिल को सुकून मिल जाता था. यह उन की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गया था.
दिन यूं ही गुजरते जा रहे थे. दिलों ही दिलों में मोहब्बत जवान होती जा रही थी. लब खामोश थे, मगर निगाहें बातें करती थीं और दिल का हाल बयान कर देती थीं. लेकिन आखिर ऐसा कब तक चलता.
गोविंदा चाहता था कि वह वैष्णवी से बात कर के अपने दिल का हाल बता दे. पर यह बात सरेआम नहीं कही जा सकती थी. आखिर एक दिन गोविंदा को मौका मिल गया तो उस ने अपने दिल की बात उस से कह दी. चूंकि वैष्णवी भी उसे चाहती थी इसलिए मुसकरा कर उस ने नजरें झुका लीं.
प्यार स्वीकार हो जाने पर वह बहुत खुश हुआ. जैसे आजकल अधिकांश लड़के लड़कियों के पास स्मार्टफोन होता है तो वे दूसरों को दिखाने के लिए उसे हाथ में पकड़े रहते हैं. ऐसा करते हुए उस ने वैष्णवी को नहीं देखा था. फिर भी उस ने मौका मिलने पर एक दिन वैष्णवी से उस का मोबाइल नंबर मांगा. वैष्णवी ने उसे बता दिया कि उस के पास फोन नहीं है.
‘‘कोई बात नहीं, मैं जल्द ही एक फोन खरीद कर तुम्हें दे दूंगा.’’ गोविंदा ने कहा.
इतना सुन कर वैष्णवी मन ही मन खुश हुई. अगले ही दिन गोविंदा ने एक मोबाइल खरीद कर वैष्णवी को दे दिया. वैष्णवी ने उसे पहले ही बता दिया था कि मोबाइल इतना बड़ा ले कर आए, जिसे वह आसानी से छिपा कर रख सके, इसलिए गोविंदा उस के लिए बटन वाला फीचर मोबाइल ले कर आया था. उस मोबाइल को वैष्णवी ने छिपा कर रख लिया. जब उसे समय मिलता, वह गोविंदा से बात कर लेती.
दोनों ही फोन पर काफीकाफी देर तक प्यारमोहब्बत की बातें करते थे. उन की मोहब्बत दिनोंदिन बढ़ती गई. दोनों जब तक बात नहीं कर लेते, तसल्ली नहीं होती थी. उन्हें मोहब्बत के सिवाय कुछ और नजर नहीं आता था. दोनों शादी के फैसले के अलावा यह भी तय कर चुके थे कि वे साथ जिएंगे, साथ ही मरेंगे.
बात 2 जनवरी, 2019 की है. दोपहर के समय गोविंदा अपने घर आया. उस समय वह कुछ परेशान था. उस ने खाना भी नहीं खाया. गोविंदा ने अपनी छोटी बहन सोनम से सारी बातें बता देता था. उस ने वैष्णवी और अपने प्यार की बात सोनम को बता दी थी. उस दिन छोटी बहन ने गोविंदा से उस की परेशानी की वजह पूछी तो उस ने अपनी परेशानी बता दी. साथ ही उसे कसम दी कि इस बारे में घर वालों को कुछ न बताए.
इतना कह कर वह अपराह्न 3 बजे के करीब घर से चला गया. जब वह देर रात तक घर नहीं लौटा तो मां सुशीला और भाई आकाश ने उसे सारी जगह खोजा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.
4 जनवरी, 2019 को सीतापुर के थाना संदना की पुलिस ने एक अज्ञात युवक की लाश बरामद की. चूंकि लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी, इसलिए इस की सूचना आसपास के जिलों की पुलिस को भी भेज दी गई.
गोविंदा के भाई आकाश के किसी दोस्त को वाट्सऐप पर एक लाश की फोटो मिली तो वह उस फोटो को पहचान गया. वह लाश गोविंदा की थी. उस ने वह फोटो आकाश को वाट्सऐप कर के फोन भी कर दिया. आकाश ने जैसे ही भाई गोविंदा की लाश देखी तो वह फफक कर रो पड़ा. घर के सदस्यों को पता चला तो वह भी गमगीन हो गए.
गोविंदा की छोटी बहन सोनम ने रोते हुए मां और भाई को बताया कि गोविंदा इमलिया बाग मोहल्ले में रहने वाले हरीराम की बेटी वैष्णवी से प्यार करता था. 2 जनवरी को वैष्णवी का मोबाइल उस के घर वालों ने छीन लिया था. यह बात गोविंदा को पता चली तो वह वैष्णवी के घर गया था. गोविंदा ने सोनम को कसम दी थी कि वह यह बात किसी को न बताए.
आकाश पता कर के किसी तरह वैष्णवी के घर पहुंचा तो हरीराम घर पर ही मिल गया. उस ने गोविंदा के घर पर आने की बात से साफ इनकार कर दिया.
तब गोविंदा की मां सुशीला कोतवाली संडीला पहुंच गई. उस ने इंसपेक्टर जगदीश यादव को पूरी बात बता दी. इंसपेक्टर यादव ने सुशीला से कहा कि पहले सीतापुर के संदना थाने जा कर बरामद की गई लाश देख लें. हो सकता है वह गोविंदा की न हो कर किसी और की लाश हो.
सुशीला अपने बेटे आकाश को ले कर थाना संदना, सीतापुर पहुंच गई. थानाप्रभारी ने मांबेटों को मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो उन्होंने उस की शिनाख्त गोविंदा के रूप में कर दी. पोस्टमार्टम के बाद गोविंदा की लाश उन्हें सौंप दी गई.
5 जनवरी की देर रात सुशीला ने संडीला कोतवाली के इंसपेक्टर जगदीश यादव को एक तहरीर दी. तहरीर के आधार पर पुलिस ने हरीराम गुप्ता और उस के बेटों वेदप्रकाश गुप्ता, ज्ञानप्रकाश गुप्ता, सर्वेश गुप्ता के अलावा दोनों बेटियों वैष्णवी और लक्ष्मी के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 148, 302, 201, 342 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.
चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए अगले ही दिन एएसपी ज्ञानंजय सिंह के निर्देश पर इंसपेक्टर यादव ने हरीराम गुप्ता, वेदप्रकाश गुप्ता और ज्ञानप्रकाश गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही गोविंदा की हत्या की थी. इस के बाद उन्होंने उस की हत्या के पीछे की सारी कहानी बता दी.
गोविंदा और वैष्णवी एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उन्होंने अपनी मोहब्बत की कहानी को घर वालों और जमाने से छिपाने की बहुत कोशिश की थी, परंतु कामयाब नहीं हो सके. उन के प्रेम संबंधों की खबर किसी तरह वैष्णवी के घर वालों को लग गई. इस के बाद वे उस पर निगाह रखने लगे.
एक दिन वैष्णवी घर पर अकेली थी. गोविंदा ने वैष्णवी को मोबाइल दे ही रखा था. उस दिन वैष्णवी ने गोविंदा को फोन कर के घर आने को कह दिया. गोविंदा उस के दरवाजे पर पहुंच गया. जैसे ही गोविंदा ने दस्तक दी, वैष्णवी ने दरवाजा खोल दिया. गोविंदा को सामने देख वह खुशी से झूम उठी.
वह उसे घर के अंदर ले गई. गोविंदा के अंदर दाखिल होते ही वैष्णवी ने दरवाजा बंद कर दिया और उस से लिपट गई. वैष्णवी की आंखों में आंसू छलक आए. गोविंदा ने उस से पूछा, ‘‘क्या हुआ वैष्णवी?’’
‘‘गोविंदा, घर में सब को हमारे संबंधों का पता चल गया है. मेरे घर वाले हमें कभी एक नहीं होने देंगे.’’ वह बोली.
‘‘ऐसा नहीं होगा वैष्णवी. तुम मेरे ऊपर विश्वास रखो. मैं जल्द तुम्हें यहां से कहीं दूर ले जाऊंगा. वहां सिर्फ हम दोनों होंगे, हमारा प्यार होगा और हमारी खुशियां होंगी.’’ गोविंदा ने भरोसा दिया.
‘‘सच कह रहे हो?’’ आश्चर्यचकित होते हुए बोली.
‘‘एकदम सच.’’ गोविंदा ने कहा. इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को बांहों में लिया तो तनहाई के आलम में उन्हें बहकते देर नहीं लगी.
उस दिन गोविंदा काफी देर तक वैष्णवी के घर में रहा. दोनों ने जी भर कर बातें कीं और भावी जिंदगी के सपने बुने. फिर गोविंदा अपने घर चला गया.
उन की इस मुलाकात की जानकारी किसी तरह हरीराम और उस के बेटों को हो गई. वे सभी गुस्से से भर उठे और अपने घर की इज्जत नीलाम करने वाले को सबक सिखाने की ठान ली.
2 जनवरी, 2019 को हरीराम ने वैष्णवी को मोबाइल पर बात करते पकड़ लिया. हरीराम को समझते देर नहीं लगी कि वह गोविंदा से बात कर रही है और मोबाइल भी उसी का दिया हुआ है. हरीराम ने उस से मोबाइल छीन कर तोड़ दिया और उसे कई तमाचे जड़ दिए.
दूसरी ओर गोविंदा को फोन पर वैष्णवी के पिता की गुस्से से भरी आवाज सुनाई दे गई थी, क्योंकि जिस समय वैष्णवी की गोविंदा से बात चल रही थी, उसी समय हरीराम कमरे में आया था. बेटी को फोन पर बात करते देख वह दरवाजे से ही दहाड़ा था.
पिता के दहाड़ने की आवाज सुन कर गोविंदा को समझते देर नहीं लगी कि वैष्णवी के पिता ने उसे बातें करते पकड़ लिया है. वह परेशान हो उठा.
वह घर पहुंचा तो काफी परेशान था. मां सुशीला ने गोविंदा से खाना खा लेने को कहा, लेकिन उस ने खाना नहीं खाया. छोटी बहन सोनम को समझते देर नहीं लगी कि जरूर कोई बात है.
उस ने पूछा तो गोविंदा ने वैष्णवी के मोबाइल पर बात करते पकड़े जाने की बात बता दी और कहा कि वह वैष्णवी के घर जा रहा है. जाते समय उस ने सोनम को कसम दी कि यह बात किसी को न बताए. इस के बाद वह घर से निकल गया.
गोविंदा सीधे वैष्णवी के घर पहुंचा. घर पर हरीराम मिला तो वह उस से लड़ने लगा. शोर सुन कर हरीराम के तीनों बेटे वेदप्रकाश, ज्ञानप्रकाश और सर्वेश बाहर निकल आए. उन्होंने उसे दबोच लिया और पिटाई शुरू कर दी. फिर उस के मुंह पर टेप चिपकाने के बाद उस के हाथपैर बांध कर जिंदा ही बोरे में बंद कर दिया. यह सब वैष्णवी और लक्ष्मी के सामने हुआ था.
देर रात साढ़े 10 बजे सभी ने बोरे में बंद गोविंदा को सर्वेश की पिकअप गाड़ी में रख लिया. फिर वे सीतापुर की तरफ रवाना हो गए. सीतापुर के संदना थाना क्षेत्र में एक सुनसान जगह पर उन्होंने हाथपैर बंधे गोविंदा को बोरे से निकाला और साथ लाए बांके से उस का गला रेत दिया. उस की हत्या करने के बाद उन लोगों ने उस का पर्स, आधार कार्ड और बोरे को जला दिया. लेकिन वह पूरी तरह नहीं जल पाए थे.
हरीराम, वेदप्रकाश व ज्ञानप्रकाश से पूछताछ करने के बाद इसंपेक्टर यादव ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त बांका और पिकअप गाड़ी भी बरामद कर ली. इस के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.
फिर 23 जनवरी, 2019 को इंसपेक्टर यादव ने वैष्णवी और सर्वेश को भी गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक लक्ष्मी की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. बाकी अभियुक्त जेल में थे.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
सौजन्य- सत्यकथा, मार्च 2018)