राजस्थान के जिला जोधपुर के पाल बाईपास स्थित शहर के सब से महंगे कहे जाने वाले रिहायशी इलाके पार्श्वनाथ सिटी के दक्षिणपश्चिम दिशा की ओर से दाखिल होते ही निचले तल में बेरीकैड्स से घिरी विशाल चौमंजिला इमारत अपनी भव्यता से ही नहीं चौंकाती थी, बल्कि इस बात का अहसास कराती थी कि निश्चित रूप से यह किसी बड़े और रसूखदार आदमी का मकान है. वह जिस रसूखदार महिला का मकान था, उस का नाम सुमता विश्नोई था. मंगलवार 11 अक्तूबर, 2016 को नवरात्र खत्म होने पर आयोजित पूजाअर्चना में मेहमानों की आवाजाही को ले कर इमारत के बाहर और भीतर अच्छीखासी गहमागहमी थी.
दोपहर लगभग 2 बजे नवरात्र पूजन के बाद जब सुमता अपने मेहमानों की खातिरदारी में लगी थी, तभी एकाएक वहां पसरी चहलपहल को जैसे काठ मार गया. मेहमानों के खिले और ठहाके लगाते चेहरों पर एकाएक बदहवासी सी छा गई. महफिल की इस रौनक को बदमजा करने वाली उस शख्सियत का नाम था अर्जुन सिंह, जो शहर के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त थे.
वह बड़ी लापरवाही से विशाल ड्राइंगरूम के महंगे कालीन को रौंदते हुए सातवें आश्चर्य की तरह सुमता विश्नोई के सामने आ खड़े हुए थे. हतप्रभ सुमता की चौकस निगाहें पहले सीसीटीवी स्क्रीन पर गईं, जो सलेट की तरह साफ पड़ी थी. इस के बाद उस की भेदती निगाहें अपने बौडीगार्ड और सब से विश्वसनीय सहयोगी प्रदीप विश्नोई के चेहरे पर जा कर अटक गईं, जो असहाय निगाहों से उसी की तरफ देख रहा था.
सुमता के चेहरे पर हैरानी के भाव आए बिना नहीं रह सके. क्योंकि बंगला पूरी तरह से हाईटेक था. उस के एक कमरे से तकनीकी उपकरणों एस्कौर्टिंग तथा पायलटिंग सरीखे ‘एप’ की मदद से इमारत में किसी के भी दाखिल होने को ले कर चौकस नजर रखी जा रही थी. इस के बावजूद बंगले में पुलिस आ गई थी और किसी को भनक तक नहीं लगी थी. सीसीटीवी की स्क्रीन पर भी किसी के भीतर आने की झलक तक नहीं दिखी थी.
सुमता का सब से बड़ा ‘सुरक्षा चक्र’ टूट चुका था. इस का मतलब साफ था कि कोई घर का भेदी पलीता लगा गया था. उस का चेहरा जर्द पड़ चुका था. लेकिन उस ने समय की नजाकत को फौरन भांप लिया था और अगले ही पल चेहरे का तनाव दूर करते हुए भरपूर आत्मविश्वास के साथ एडीसीपी अर्जुन सिंह से नजरे मिलाते हुए पूछा, ‘‘आप से सिर्फ एक बात पूछूंगी औफिसर कि आप मुझ तक पहुंचे कैसे?’’
अर्जुन सिंह के कठोर चेहरे पर एक पल के लिए कई रंग आए और गए, लेकिन अगले ही पल चेहरे की कठोरता मुसकराहट में बदल गई. किसी गहरे रहस्य को उजागर करने के अंदाज में उन्होंने कहा, ‘‘आप के जीपीएस सिस्टम में लगी ‘सिम’ को जब हम ने ‘टै्रस’ किया तो उसे मौनीटर करने वाले नंबर और उस से बात करने वाले दूसरे लोगों के नंबर हमारे सामने आ गए. जब उन नंबरों को खंगाला गया तो उस से जो नाम सामने आया, मैं गलत नहीं हूं तो वह नाम आप का था.’’
मारवाड़ी लिबास में चेहरे पर हल्का घूंघट डाले किसी कुलीन परिवार की सुलक्षणा बहूबेटी की तरह नजर आने वाली महिला के रूप में 3 राज्यों की कुख्यात तस्कर लेडी डौन के रूप में कल्पना करने से भी हिचक रहे अर्जुन सिंह अब सुमता के जवाब से पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे थे कि उन्होंने प्रदेश की सब से बड़ी शातिर महिला तस्कर को पहचानने में कहीं कोई गलती नहीं की थी.
अर्जुन सिंह ने अपनी काररवाई को आगे बढ़ाते हुए पुलिस की गिरफ्त में आई लेडी डौन की उत्सुकता को मिटाना जरूरी समझा. उन्होंने कहा, ‘‘पहले तो मैं तुम्हारे हौसले की दाद देना जरूरी समझता हूं कि शुक्रवार 7 अक्तूबर, 2016 को यानी 4 दिनों पहले डोडापोस्त से भरी गाड़ी पकड़े जाने के बाद भी तुम्हारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा और न तुम ने भागने की कोशिश की और न छिपने की. क्योंकि तुम्हें तस्करी के अपने ‘फूलप्रूफ’ सिस्टम पर पूरा भरोसा था कि पुलिस चाहे जितनी भी गहरी जांच कर ले, तुम्हारी छाया तक को नहीं छू सकती.’’
अर्जुन सिंह ने पस्त होते सुमता के चेहरे पर एक नजर डाल कर आगे कहा, ‘‘कल यानी मंगलवार 10 अक्तूबर को पुलिस को जोधुपर की तरफ से आने वाली फौर्च्यूनर गाड़ी में डोडापोस्त होने की जानकारी मिली तो गाड़ी को लूणी-काकाणी के पास रोक कर उस की तलाशी ली गई. मालबरामदगी के साथ उस में जीपीएस सिस्टम भी लगा पाया गया. डोडापोस्त के साथ पकडे़ गए तुम्हारे आदमी तो इस बारे में कुछ नहीं बता पाए, क्योंकि वे तो सिर्फ माल सप्लाई करते थे. इस के बाद उन का काम खत्म हो जाता था.
‘‘गाड़ी में लगे जीपीएस सिस्टम ने हमें तुम तक पहुंचा दिया. हम ने जब जीपीएस से ताल्लुक रखने वाली कंपनी से जानकारी जुटाई तो हमें पता चला कि इसे सुमता विश्नोई औपरेट कर रही थी. सूचना सही थी, लिहाजा तुम्हारी वह सोच गलत साबित हो गई कि महंगी टाउनशिप में रिहायश से आपराधिक गतिविधियो ंपर परदा पड़ा रहता है और कोई शक नहीं करता. लेकिन उस में सेंध लग गई.’’
पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) समीर कुमार के निर्देशन में तस्करी के इतने बड़े नेटवर्क का खुलासा होने के बाद पुलिस कमिश्नर अशोक राठौर भी तत्काल मौके पर पहुंच गए थे. सुमीर कुमार के निर्देशन में 50 से अधिक जवानों की टीम ने सुमता विश्नोई के घर छापा मारा था. अर्जुन सिंह, विपिन कुमार और थाना बोरानाडा के थानाप्रभारी अनवर खां छापे की पूरी कमान संभाले थे.
पुलिस टीम ने सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई और उस के विश्वसनीय सहयोगी प्रवीण विश्नोई को 75 ग्राम अफीम और 4 लाख 20 हजार रुपए की नकदी के साथ हिरासत में लिया था. सुमता के विशाल मकान की तलाशी में होने वाले खुलासों ने पुलिस अधिकारियों को बुरी तरह चौंका दिया था.
अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर विपिन शर्मा के अनुसार, सिर्फ चौथी तक पढ़ीलिखी ग्रामीण परिवेश की औरत अपने बैडरूम में बनाए गए जीपीएस कंट्रोल रूम से 3 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में तस्करी का पूरा नेटवर्क चला रही थी. तलाशी में उस का जो स्मार्ट फोन मिला था, उस से वह करोड़ों की तस्करी का कारोबार करती थी.
नोट गिनने वाली मशीन की बरामदगी ने पुलिस को हैरान कर दिया था कि तस्करी के धंधे से इतनी रकम आ रही थी कि नोट गिनने के लिए उसे मशीन की जरूरत पड़ती थी. इनोवा और फौर्च्यूनर गाड़ी तो पुलिस पहले ही जब्त कर चुकी थी. इस के बाद उस के घर से मिली स्कौर्पियो, वेरना, स्विफ्ट और इंडिगो ने पुलिस के इस शक को और पुख्ता कर दिया था कि सुमता अपने धंधे में रफ्तार और टैक्नोलौजी का बेहतर इस्तेमाल कर रही थी.
पुलिस ने उस के घर से फर्जी आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस के अलावा भारी संख्या में जमीनों के दस्तावेज बरामद किए. इस के अलावा पुलिस ने आर्म्स एक्ट के तहत मनोहरलाल, शैतानाराम, घेवरराम तथा शांतिलाल को भी गिरफ्तार किया था.
सुमता को अब इस बात पर पछतावा हो रहा था कि तस्करी के लिए गाडि़यों पर नजर रखने के लिए उस ने जो जीपीएस सिस्टम लगवाया था, वही उस की गिरफ्तारी की वजह बन गया. यही नहीं, किसी प्रकार के खतरे से बचने के लिए वह चुराई गई लग्जरी गाडि़यां ही इस्तेमाल करती थी. लेकिन अब उस का यह भ्रम टूट गया था. अपने घर के बैडरूम से सुमता ने जीपीएस टै्रकर को ‘एप’ के जरिए मोबाइल से कनेक्ट कर रखा था.
सुमता विश्नोई एक बार की सप्लाई के लिए 2 गाडि़यों का इस्तेमाल करती थी. एक गाड़ी में डोडापोस्त होता था तो दूसरी गाड़ी एस्कौर्ट के रूप में 3-4 किलोमीटर आगे चलती थी. अगर कहीं पुलिस चैकिंग का अंदेशा होता था तो पीछे वाली गाड़ी को तुरंत सतर्क कर दिया जाता था. इस मामले में सुमिता गैरों पर बिलकुल भरोसा नहीं करती थी. एस्कौर्ट गाडि़यों में उस के अपने लोग होते थे.
यही नहीं, सुमता को स्थानीय ड्राइवरों पर भी भरोसा नहीं होता था, इसलिए वह मध्य प्रदेश के ड्राइवरों का इस्तेमाल करती थी. 3 ट्रिप के बाद उस ड्राइवर को हटा दिया जाता था. इस बीच ड्राइवर को इस बात की भनक तक नहीं लग पाती थी कि वह किस के लिए काम कर रहा है. स्थानीय ड्राइवर वह इसलिए नहीं रखती थी, क्योंकि उन से उसे पुलिस और तस्करों के दूसरे गैंग से मुखबिरी का अंदेशा रहता था.
50 तस्करों के गिरोह की मुखिया सुमता अपने इस धंधे में बहुत ज्यादा सतर्कता बरतती थी. उसे पता था कि पुलिस मोबाइल लोकेशन और कौल ट्रैस कर के आसानी से पकड़ सकती है. इसीलिए हर 6 दिन बाद वह गिरोह के सदस्यों के मोबाइल के सिम बदलवा देती थी. सिम खरीदने के लिए फरजी आईडी का उपयोग किया जाता था. पैसों के लेनदेन के लिए उस ने फर्जी नामों से बैंक खाते खुलवा रखे थे.
सुमता ने तस्करी जैसे खतरनाक और जटिल धंधे का इतना बड़ा नेटवर्क कैसे खड़ा किया, यह बात हैरान करने वाली थी. जबकि इस की वजह यह थी कि वह अखबारों की उन खबरों को गौर से पढ़ती थी, जिन में तस्करों के बारे में लिखा होता था कि पुलिस ने उन्हें कैसे पकड़ा था, उन की कौन सी कमजोरी पुलिस के लिए फायदेमंद बनी थी, पुलिस ने उन्हें पकड़ने के लिए कौन से तरीके अपनाए थे, कौन सी कमजोरियों की वजह से वे पुलिस के हत्थे चढ़े थे?
सुमता के बताए अनुसार, तस्करी उस के लिए एक तरह से नशा बन गई थी. यही वजह थी कि कई बार चित्तौड़गढ़ से जोधपुर तक का साढ़े 3 सौ किलोमीटर का फासला उस ने खुद गाड़ी चला कर तय किया था. इस से उसे पता चला कि लग्जरी गाड़ी चलाने वाली महिलाओं पर पुलिस जल्दी शक नहीं करती. उस ने इस का भरपूर फायदा उठाया और प्रदेश में जब भी डोडापोस्त को ले कर पुलिस ने सख्ती की, उस ने खुद गाड़ी चला कर माल पहुंचाया.
सुमता की दिलेरी की इसी बात से पता चलता है कि पुलिस गिरफ्त में होने के बावजूद डरने के बजाय वह मीडिया को डराने से बाज नहीं आई थी. कोर्ट में पेशी के दौरान उस के तेवरों में जरा भी कमी नहीं आई थी. जिस समय उसे रिमांड पर पुलिस के हवाले किया जा रहा था, मीडिया वालों ने उस के फोटो लेने के लिए उसे घेर लिया. इस पर वह बुरी तरह से भड़क उठी और चेतावनी देने वाले अंदाज में बोली, ‘‘कैमरे नीचे कर लो, वरना अभी कोर्ट में हंगामा हो जाएगा.’’
सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई की कहानी वाकई हैरान करने वाली है. बकरियां और गायभैंस चरा कर बामुश्किल जिंदगी गुजारने वाली गांव की सीधीसादी औरत कैसे 3 राज्यों की इनामी तस्कर के रूप में खतरनाक ‘लेडी डौन’ बन गई, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है.
जोधपुर के ओसियां में एक गांव है बानों का बास. यहां सुनीता, जो अब सुमता के नाम से जारी जा रही है, कभी गायभैंस और बकरियां चराया करती थी. चौथी कक्षा में फेल होने की वजह से वह पढ़ाई छोड़ चुकी थी. पिता किसान थे. सुनीता भले ही गायभैंस चराती थी, लेकिन उस का सपना था कि उस के पास सवारी के लिए अमीरों की तरह महंगी कारों का काफिला हो और बंगलों में ऐशोआराम की जिंदगी जिए.
अच्छे कपड़ों के लिए बचपन में गुल्लक में एकएक रुपए जमा करने वाली सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई के घर में जब पुलिस ने छापा मारा तो तलाशी लेने में पूरा एक दिन लग गया. मकान में बाथरूम से ले कर हर कमरे में एसी लगे थे. सारा फर्नीचर विदेशी था. हाईटेक सिक्योरिटी लौक लगे उस के घर से पुलिस ने 5 लग्जरी कारें बरामद कीं. उस के बैंक एकाउंट में करोड़ों की रकम होने का अंदेशा है.
राजूराम भादू से बाल विवाह के बाद सन 2001 में सुनीता का गौना हुआ था. इस के बाद उसे 2 बेटे हुए. पति के पास कोई रोजगार नहीं था, इसलिए जीवन तंगहाली में गुजर रहा था. पति के लिए नौकरी और बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने की चाहत सन 2010 में उसे गांव से जोधपुर ले आई. शहर में वह किराए के मकान में रहती थी.
सुनीता उर्फ सुमता पति के लिए नौकरी ढूंढ रही थी, तभी किसी रिश्तेदार ने उसे राजूराम ईरोम से मिलवाया. अनपढ़ होने के बावजूद राजूराम को लग्जरी कार में देख कर वह चौंकी. रिश्तेदार से पूछने पर पता चला कि वह गुजरात का अवैध शराब का बहुत बड़ा तस्कर है.
अमीर बनने का राजूराम का यह तरीका उसे इस कदर भाया कि उस ने उस से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. जल्दी ही वह उस के काम करने के तरीके और नेटवर्क को समझ गई. पर राजूराम ने उसे काम देने से मना कर दिया. उस का कहना था कि औरतों को तस्करी जैसे खतरनाक धंधे में नहीं आना चाहिए.
लेकिन एक बार शराब की डिलवरी के लिए एस्कौर्ट वाहन का ड्राइवर नहीं आया तो सुनीता इस काम के लिए अड़ गई. उस ने कहा कि वह कार चलाना जानती है और यह काम अच्छी तरह कर लेगी. सुनीता की जिद पर राजूराम ने उसे काम सौंप दिया. पहली बार में उसे 10 हजार रुपए की कमाई हुई.
फिर क्या था, सुनीता ने शराब से भरी गाडि़यों को नियमित रूप से एस्कौर्ट करना शुरू कर दिया और फिर धीरेधीरे वह राजूराम की पार्टनर बन गई. तस्करी के धंधे में आने के बाद उस के घर तस्करों का आनाजाना शुरू हो गया. इस से ससुराल वालों की बदनामी होने लगी तो उन्होंने उस से नाता तोड़ लिया.
पति ने भी ऐतराज किया तो सुनीता ने उसे ट्रैक्टर दिलवा कर बंगलुरु भेज दिया और खुद पूरी तरह से तस्करी के धंधे में उतर गई. लेकिन जब अंधाधुंध कमाई होने लगी तो खिलाफत करने वाले ससुराल वाले भी उस के साथ आ गए और उस के काम में हाथ बंटाने लगे.
सुनीता ने राजूराम ईरोम का रुझान अपनी ओर होते देखा तो उसे प्रेमजाल में फंसा कर धंधे की कमान अपने हाथों में ले ली. अब तक वह सुनीता से सुमता हो गई थी. उस का दोहरा व्यक्तित्व भले ही चौंकाने वाला था, लेकिन यही उस के कारोबार की बरकत और लोगों को प्रभावित करने का सब से बड़ा हथियार था.
बुधवार 12 अक्तूबर, 2016 को कोर्ट से रिमांड हासिल करने के बाद शाम को जब उसे थाना बोरानाडा लाया गया तो मारवाड़ी पोशाक में चेहरे पर घूंघट डाले सुमता एकदम शांत थी. बेंच पर बैठने की इजाजत ले कर जब वह बैठी तो पूछताछ में उस ने बताया कि तस्करी के कारोबार में पांव रखने से पहले उस ने एक तीर से 2 निशाने साधे.
अपना मैदान खाली करने के लिए उस ने पुलिस की मुखबिरी कर के तस्करी के बड़े घडि़यालों को पकड़वाया. इस से उसे पुलिस का विश्वास हासिल हो गया. रास्ता खुला तो तस्करी के काम में मारवाड़ से ले कर मध्य प्रदेश तक उस की कमाई में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई. बेहिसाब कमाई को देख कर जैसे उसे पंख लग गए.
इस का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हर दूसरे दिन 2 से 3 क्विंटल डोडापोस्त की सप्लाई से उसे 3 लाख रुपए का मुनाफा होता था. इस तरह हर महीने उसे 45 से 50 लाख रुपए की कमाई होती थी.
कभी पार्श्वनाथ कालोनी के बाहरी इलाके में किराए की टापरी में रहने वाली सुमिता का अपना मकान अब करीब 4 करोड़ का है. उस के बच्चे शहर के प्रतिष्ठित कान्वैंट स्कूल में पढ़ते हैं. ब्लैकमनी को व्हाइट करने के लिए उस ने बेटे मनीष के नाम से कंस्ट्रक्शन कंपनी खोल रखी थी.
कारोबार को ले कर उस में आत्मविश्वास कूटकूट कर भरा था. इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले उसने तस्करी के धंधे में जमे लोगों को खत्म किया. क्योंकि वह जानती थी कि जब तक वे लोग रहेंगे, वह निश्ंिचत हो कर धंधा नहीं कर पाएगी. इस धंधे में गैंगवार भी होती है. सीधी लड़ाई लड़ने के बजाय उस ने कांटे से कांटा निकालने की जुगत लड़ाई. अपने पार्टनर राजूराम की गैंगवार का नतीजा वह देख चुकी थी.
इसलिए उस ने सीधी लड़ाई लड़ने के बजाय पुलिस को इत्तला दे कर विरोधी तस्करों को पकड़वाया. इस तरह बिना जंग के ही उस के लिए पूरा मैदान खाली हो गया. जालौर, बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर और जैसलमेर की डोडापोस्त की सप्लाई आसानी से उस के हाथों में आ गई.
डोडापोस्त की सप्लाई के हिसाब से पश्चिमी राजस्थान बहुत अच्छा इलाका है. यहां लोग इस के लती भी हैं. जिस से सुमिता को काफी लाभ हुआ.
जोधपुर पश्चिम के डीसीपी समीर सिंह के अनुसार, राजस्थान में किसी महिला तस्कर से जुड़ा यह पहला मामला है. अभी तो बहुत कुछ खुलासा होना बाकी है, क्योंकि कई सालों तक ‘लेडी डौन’ सुमिता ने पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर अंधाधुंध कमाई की है. डोडापोस्त की इतनी बड़ी तस्कर को पकड़ लेना जोधपुर पुलिस की एक बहुत बड़ी कामयाबी है. फिलहाल सुमता पुलिस अभिरक्षा में है. देखना यह है कि अभी उस के और कितने किस्सों का खुलासा होता है.
सुनीता उर्फ सुमता ने तस्करी से 6 सालों में करोड़ों की कमाई कर के जो प्रौपटी बनाई है, पुलिस उसे कुर्क कराने का प्रयास कर रही है. इस के लिए पुलिस तस्करी से कमाई गई उस की और उस के रिश्तेदारों की प्रौपटी का पता लगाया जा रहा है. पुलिस उस से और उस के गिरोह से जुड़े तस्करी के कई पुराने लंबित मामलों को भी खोलने का प्रयास कर रही है.
पुलिस एनडीपीएस एक्ट की धारा 68 के तहत सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई के पिछले 6 साल के तस्करी के सारे मामले खंगाल रही है. लूणी थाना क्षेत्र में गत 15 अगस्त, 2016 को पुलिस ने 2 क्विंटल 85 किलोग्राम डोडापोस्त से भरी इनोवा गाड़ी पकड़ी थी, लेकिन तस्कर फरार हो गए थे.
पूछताछ में सुमता ने स्वीकार किया कि वह इनोवा और उस में भरा डोडापोस्त उसी का था. पुलिस सुमता गिरोह के पूरे नेटवर्क का खुलासा करने के लिए उस के पार्टनर राजूराम ईरोम की तलाश में जुटी है. लेकिन वह अभी पुलिस की पहुंच से दूर है.