गोरखपुर के थाना शाहपुर में किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि रेलवे डेयरी कालोनी के पास 2 लोगों की लाशें पड़ी हैं.
यह बात 23/24 जनवरी, 2019 की रात के साढ़े 12 बजे की है. थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह उस समय रात्रि गश्त पर थे.
2 लाशों की खबर पा कर वह सीधे घटनास्थल पर पहुंच गए. इस की सूचना उन्होंने आलाअधिकारियों को भी दे दी थी. एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह, सीओ (कैंट) प्रभात राय भी घटनास्थल पर पहुंच गए.
लाशों की तलाशी लेने पर उन की जेब से मिले आधारकार्ड की वजह से दोनों की पहचान रमेश यादव निवासी कुशीनगर, हनुमानगंज और अरविंद कुमार सिंह निवासी शाहपुर के रूप में हुई. कुशीनगर वहां से दूर था इसलिए पुलिस ने उसी रात अरविंद के घर वालों को सूचना दे कर मौके पर बुला लिया.
अरविंद के पिता राजेश सिंह मौके पर पहुंचे और उन्होंने उन में से एक लाश की पहचान अपने बेटे अरविंद कुमार सिंह उर्फ रानू के रूप में कर दी. राजेश सिंह ने दूसरे मृतक को बेटे के दोस्त रमेश सिंह के रूप में पहचाना. पुलिस ने घटनास्थल से 4 खाली खोखे बरामद किए. सुबह को रमेश के घर वाले भी शाहपुर पहुंच गए.
पहचान होने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भिजवा दीं. राजेश सिंह ने बेटे की हत्या के लिए 12 नामजद और 4 अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया. सभी आरोपी रुद्रपुर, देवरिया के थे. मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद थी इसलिए पुलिस ने नामजद आरोपियों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन उन का इस घटना में कहीं कोई हाथ नहीं पाया गया.
एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने इस दोहरे हत्याकांड के खुलासे के लिए पुलिस की 4 टीमें बनाईं. छानबीन में पुलिस को पता चला कि इस हत्याकांड में रमेश के दोस्त शेरू आदि का हाथ हो सकता है. क्योंकि दोनों की आपस में नहीं बनती थी. दुर्गेश यादव उर्फ शेरू गोरखपुर के गांव जमीन भीटी का रहने वाला था.
इस प्रकार की भी जानकारी मिली कि वारदात में उस का भाई बृजेश यादव उर्फ मंटू भी शामिल रहा हो. पुलिस ने दुर्गेश और बृजेश के घर पर दबिश दी, लेकिन दोनों भाई घर से फरार मिले. काफी कोशिश के बाद भी जब बृजेश और दुर्गेश नहीं मिले तो आईजी (जोन) जयनारायण सिंह ने उन पर 25-25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. पुलिस टीमें अपने स्तर से दोनों आरोपियों को तलाशने लगीं.
इसी दौरान 29 जनवरी को शाहपुर थानाप्रभारी नवीन सिंह को एक मुखबिर से खबर मिली कि दोहरी हत्या की घटना में शामिल मुख्य आरोपी दुर्गेश यादव उर्फ शेरू अपने साथी राशिद खान के साथ हनुमान मंदिर बिछिया से मोहद्दीपुर की तरफ आने वाला है.
इस सूचना के बाद नवीन कुमार सिंह, कौआबाग चौकी प्रभारी राजाराम द्विवेदी और स्वाट टीम प्रभारी दीपक कुमार के साथ मोहद्दीपुर ओरवब्रिज के पास पहुंच गए और उन दोनों के आने का इंतजार करने लगे.
थोड़ी देर बाद एक काले रंग की मोटरसाइकिल पर 2 व्यक्ति आते दिखे तो मुखबिर के इशारे पर पुलिस ने मोटरसाइकिल रोकने का इशारा किया. पुलिस को देख दोनों ने मोटरसाइकिल मोड़ कर भागने की कोशिश की, लेकिन हड़बड़ाहट में मोटरसाइकिल फिसल कर गिर गई. तभी पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया.
तलाशी लेने पर दोनों के पास से .32 बोर की 1-1 पिस्टल और 5-5 जिंदा कारतूस बरामद हुए. पूछताछ में उन में से एक युवक ने अपना नाम दुर्गेश यादव और दूसरे ने राशिद खान निवासी गांव चेरिया थाना बेलीपार, जनपद गोरखपुर बताया. पुलिस दोनों को शाहपुर थाने ले आई. उन की गिरफ्तारी की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी गई.
सूचना मिलते ही एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह और क्षेत्राधिकारी प्रभात राय शाहपुर थाने पहुंच गए. दुर्गेश यादव उर्फ शेरू और राशिद खान से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने दोहरे हत्याकांड का अपराध स्वीकार कर लिया.
पूछताछ में पता चला कि आरोपी दुर्गेश उर्फ शेरू और मृतक रमेश यादव दोनों गहरे दोस्त थे. उन के बीच दांतकाटी रोटी जैसी दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे के हमराज भी थे. फिर उन के बीच ऐसा क्या हुआ कि वे एकदूसरे के खून के प्यासे बन गए. पूछताछ के बाद आरोपियों के बयानों से कहानी कुछ इस तरह सामने आई—
24 वर्षीय रमेश यादव मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर कुशीनगर के धोबी छापर का रहने वाला था. वह 4 भाईबहनों में दूसरे नंबर पर था. बेहद स्मार्ट रमेश पढ़लिख कर जीवन में कुछ बड़ा बनना चाहता था.
हनुमानगंज के धोबी छापर इलाके में जहां वह रहता था, वह इलाका आज भी पिछड़ा माना जाता है. वहां रह कर वह अपने सपनों का महल खड़ा नहीं कर सकता था इसलिए उस ने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया. उस के सपनों को साकार करने के लिए घर वालों ने भी उसे पूरी आजादी दे दी थी.
जीवन में आगे बढ़ने के लिए रमेश को जिस चीज की जरूरत होती घर वाले पूरी करते थे. रमेश गोरखपुर शहर आ गया और शाहपुर इलाके में पादरी बाजार मोहल्ले में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. यहीं रह कर वह पढ़ता भी था.
इसी मोहल्ले में दुर्गेश यादव उर्फ शेरू भी रहता था. यहां उस का अपना निजी मकान था. उस के परिवार में एक छोटा भाई बृजेश कुमार यादव उर्फ मंटू और मांबाप रहते थे. दुर्गेश के पिता बलवंत यादव प्राइवेट जौब करते थे. हालांकि बलवंत यादव मूलरूप से गगहा थाने के जमीनी भीटी गांव के रहने वाले थे. गांव में उन की खेती की जमीन भी थी.
चूंकि, रमेश और दुर्गेश पास में रहते थे. दोनों हमउम्र भी थे इसीलिए जल्द ही दोनों के बीच दोस्ती हो गई. धीरेधीरे उन की दोस्ती घनिष्ठ से भी घनिष्ठतम हो गई. दुर्गेश से दोस्ती से पहले रमेश का एक और भी बचपन का दोस्त था- अरविंद कुमार सिंह उर्फ रानू. रानू शाहपुर के गीता वाटिका इलाके की आवास विकास कालोनी में मांबाप के साथ रहता था.
उस के पिता राजेश सिंह सरकारी मुलाजिम थे तो चाचा आरपीएफ में दारोगा थे. रानू के परिवार के लोग बड़े ओहदे पर थे और इज्जतदार भी थे. गोरखपुर के अलावा रानू का देवरिया के रुद्रपुर में पुश्तैनी घर और संपत्ति थी. उस के दादादादी गांव में ही रहते थे, इसलिए वह अकसर गांव आताजाता रहता था.
दुर्गेश से दोस्ती के बाद रमेश ने अपने घर पर एक पार्टी दी. पार्टी में रानू और दुर्गेश भी आए थे. वहीं पर रमेश ने दुर्गेश और रानू का आपस में परिचय कराया था. इस के बाद रानू भी दुर्गेश का दोस्त बन गया था. जितनी गहरी रानू की रमेश से छनती थी, पता नहीं क्यों उतनी रमेश से उस की नहीं बनती थी और न ही उस की दोस्ती उसे रास आ रही थी. इसलिए रानू दुर्गेश से कम ही मिलताजुलता था.
देखने में रमेश जितना मासूम और स्मार्ट दिखता था दरअसल, वो वैसा था नहीं. रमेश किसी बात को ले कर कभीकभी दुर्गेश उर्फ शेरू से नाराज हो जाता था तो उस का रौद्र रूप देख कर वह भीतर तक सहम जाता था.
इस कारण दुर्गेश पर वह भारी पड़ता था. उस समय शेरू अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था, जब कभी दुर्गेश एकांत में होता था तो वह जरूर सोचता कि आखिर रमेश उस के साथ ऐसा क्यों करता है.
दरअसल, रमेश के चेहरे पर एक और चेहरा था. उस चेहरे के पीछे एक गंभीर राज छिपा था. उस राज को उस के बचपन के दोस्त रानू के अलावा कोई तीसरा नहीं जानता था. रमेश यादव एक शातिर अपराधी था और पुलिस का मुखबिर भी.
हनुमानगंज थाने में उस पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे, पुलिस का मुखबिर होने की वजह से उस के सिर पर थानेदार और अन्य पुलिसकर्मियों का हाथ था. इसीलिए वह किसी से न दबता था और न ही डरता था. मुखबिर होने की वजह से पुलिस भी उस के छोटेमोटे अपराधों को नजरअंदाज कर देती थी.
दुर्गेश रमेश की दबंगई से तंग आ चुका था. दबंगई के साथ ही वह उस से छोटीछोटी बात पर भिड़ जाता और मारपीट करने पर उतर आता था. आखिर दुर्गेश यह कब तक सहन करता, यहीं से उन की दोस्ती में दरार आ गई.
खुद को कमजोर समझने वाला दुर्गेश धीरेधीरे रमेश से अलग हो गया और उस ने अपनी एक अलग मंडली बना ली. इस मंडली में शामिल थे राशिद खान, संदीप यादव, मनीश साहनी, नवनीत मिश्रा उर्फ लकी, अंगेश सिंह और बृजेश यादव उर्फ मंटू.
अब दुर्गेश यादव रमेश से ताकतवर बन कर उस के सामने आना चाहता था ताकि रमेश से अपने अपमान का बदला ले सके. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. क्योंकि रमेश अपने साथ हमेशा लोडेड पिस्टल ले कर चलता था. दुर्गेश यही सोचता था कि काश मेरे पास भी पिस्टल होती तो सारी की सारी गोलियां उस के सीने में उतार कर उस से अपना बदला ले लेता.
दोस्त से जानी दुश्मन बने दुर्गेश और रमेश एकदूसरे को देख लेने के लिए दुश्मनी के मैदान में बड़ी लकीर खींच चुके थे.
इस बीच एक और रोमांचक कहानी ने जन्म ले लिया. रोमांचक कहानी की मूल कड़ी थी दुर्गेश की प्रेमिका रूपाली. दुर्गेश और रूपाली दोनों एकदूसरे को दिलोजान से मोहब्बत करते थे.
बात दिसंबर 2018 की है. रूपाली कैंट थाना क्षेत्र स्थित व्हील पार्क में दुर्गेश से मिली. उस दिन वह बेहद उदास थी. उस की उदासी देख कर दुर्गेश तड़प उठा. जब उस ने रूपाली से उस की उदासी का कारण पूछा तो वह फफक कर रो पड़ी. वह बोली, ‘‘तुम्हारा दोस्त रमेश पिछले कई दिनों से मेरे साथ बदतमीजी कर रहा है. जातेआते रास्ते में छेड़ता है. ऊलजलूल फब्तियां कसता है.’’ यह सुन कर गुस्से से दुर्गेश की आंखें सुर्ख हो गईं.
रूपाली की बातें सुन कर दुर्गेश बोला, ‘‘उस कमीने से मैं ने कब की दोस्ती तोड़ दी है. अब वह मेरा दोस्त नहीं, दुश्मन है. तुम्हें छेड़ना उसे बहुत महंगा पड़ेगा. तुम चिंता क्यों करती हो. मैं उसे इस की ऐसी सजा दूंगा जिस की उस ने कल्पना तक नहीं की होगी.’’
दरअसल दुर्गेश उर्फ शेरू से 36 का आंकड़ा होने के बाद रमेश का दिल दुर्गेश की प्रेमिका रूपाली पर आ गया था. रमेश उस से एकतरफा प्यार करने लगा था. लेकिन रूपाली दुर्गेश के प्रति वफादार थी. उस ने रमेश को कभी लिफ्ट नहीं दी. रूपाली के कठोर व्यवहार से तमतमाया रमेश रूपाली को आतेजाते रास्ते में छेड़ने लगा था.
दुर्गेश यादव जानता था कि वह कभी अकेले दम रमेश से मुकाबला नहीं कर सकता. बदले के जुनून में दुर्गेश ने रमेश को मात देने के लिए आखिरकार रास्ता निकाल ही लिया. इस खेल में उस ने महराजगंज जिले में तैनात सिपाही विकास यादव को शामिल कर लिया. सिपाही विकास यादव दुर्गेश का दूर का रिश्तेदार था. उस के बूते पर दुर्गेश खुद को रमेश से ताकतवर समझने लगा था.
दुर्गेश ने रमेश यादव को ठिकाने लगाने के लिए अपने दोस्तों राशिद खान, संदीप यादव, मनीष साहनी, नवनीत मिश्रा उर्फ लकी, अंगेश सिंह व अपने भाई बृजेश यादव उर्फ मंटू के साथ मिल कर एक योजना बनाई. इस योजना में उस ने सिपाही विकास यादव को भी शामिल कर लिया था. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने 23 जनवरी, 2019 की तारीख पक्की कर दी थी.
इस के एक दिन पहले यानी 22 जनवरी को रूपाली को ले कर दुर्गेश और रमेश के बीच हाथापाई हुई थी. इस में रमेश फिर से दुर्गेश पर भारी पड़ गया था.
योजना के अनुसार, 23 जनवरी की रात शाहपुर इलाके की रेलवे डेयरी कालोनी के पास दुर्गेश उर्फ शेरू ने दोस्तों को मीट और लिट्टी की दावत दी थी. दावत में राशिद खान, संदीप यादव, मनीष साहनी, नवनीत मिश्रा, अंगेश सिंह, बृजेश यादव के अलावा सिपाही विकास यादव भी शामिल हुआ था.
दावत में मीट और लिट्टी के साथ शराब भी चली. जब शराब रंग दिखाने लगी तो दुर्गेश ने रमेश को फोन कर दावत खाने के बहाने रेलवे डेयरी कालोनी बुलाया.
उस समय रमेश गोरखपुर रेलवे स्टेशन के बाहर अपने दोस्त अरविंद उर्फ रानू के साथ खड़ा था. दुश्मनी के बावजूद रमेश दुर्गेश के कहने पर रानू के साथ रेलवे डेयरी कालोनी पहुंच गया. उस समय रात के साढ़े 11 बज रहे थे.
रमेश और रानू के पहुंचते ही दुर्गेश और उस के दोस्त चौकन्ने हो गए. रमेश को देखते ही दुर्गेश को रूपाली वाली बात याद आ गई और उस का खून खौल उठा. दुर्गेश ने रमेश और रानू को बैठने के लिए बोला तो रमेश ने पूछा, ‘‘तुम ने मुझे यहां क्यों बुलाया?’’
दुर्गेश ने कहा कि तुम बैठो तो सही तुम्हें बताता हूं कि मैं ने तुम्हें क्यों बुलाया है. तब तक दुर्गेश का भाई बृजेश यादव उर्फ मंटू पीछे से रमेश पर टूट पड़ा. रमेश समझ गया कि यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है. जैसे ही रमेश वहां से वापस जाने के लिए पीछे मुड़ा तभी दुर्गेश ने पिस्टल निकाल कर रमेश की खोपड़ी से सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही रमेश का भेजा उड़ गया.
दोस्त को गोली लगी देख रानू सन्न रह गया और जान बचाने के लिए वह तेजी से भागा. रानू को भागते देख दुर्गेश का छोटा भाई बृजेश और राशिद खान उस के पीछे भागे और 15 मीटर की दूरी पर उसे भी गोली मार दी.
गोली लगते ही रानू ने भी मौके पर दम तोड़ दिया. हालांकि रानू की रमेश और दुर्गेश की दुश्मनी के बीच कोई भूमिका नहीं थी. वह घटनास्थल पर मौजूद था और हत्या का एकमात्र गवाह भी, इसलिए दुर्गेश ने उसे भी मार दिया.
दुर्गेश यादव व राशिद खान से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को एकएक कर के गिरफ्तार कर लिया. सिपाही विकास यादव को इस घटना से अलग कर के उस के खिलाफ विभागीय जांच कराई जा रही है. फिलहाल पुलिस का कहना है कि उस का इस घटना से कोई लेनादेना नहीं था. यदि जांच में वह दोषी पाया गया तो उस के खिलाफ भी मुकदमा पंजीकृत किया जाएगा.
9 मार्च, 2019 को राशिद खान की जमानत के लिए अदालत में अरजी दाखिल की गई थी. घटना की गंभीरता को देखते हुए सरकारी वकील की बहस के बाद न्यायाधीश ने उस की जमानत अरजी रद्द कर दी थी. कथा लिखने तक पुलिस सभी आरोपियों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. द्य
—कथा में रूपाली और सिपाही विकास यादव परिवर्तित नाम हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
कहानी सौजन्य: सत्यकथा, मई 2019