6 जुलाई, 2021 की बात है. मध्य प्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से तकरीबन 90 किलोमीटर दूर स्थित अमदरा थाने में किसी ने फोन कर के सूचना दी कि नैशनल हाईवे-30 पर रैगवां गांव के नजदीक एक जीप और कार में जबरदस्त भिड़ंत हुई है. सूचना देने वाले ने खुद को कार चालक बताते हुए कहा कि कि दुर्घटनास्थल पर एक बच्चा काफी रो रहा है.

यह सूचना मिलने के बाद अमदरा पुलिस कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गई. घटनास्थल सिंहवासिनी मंदिर के पास था. वहां 2 साल का एक बच्चा बहुत रो रहा था, जबकि दुर्घटना के कोई चिह्न वहां नजर नहीं आ रहे थे. वहां कुछ दूरी पर एक जीप जरूर खड़ी मिली, तब पुलिस बच्चे को थाने ले आई. थाने में भी वह बहुत रो रहा था. उसे खानेपीने की चीजें दे कर किसी तरह चुप कराया.

अब यह प्रश्न उठ रहा था कि आखिर ये बच्चा किस का हो सकता है? कौन है जो उसे वहां छोड़ कर चला गया? उस के परिजन कौन हो सकते हैं? दुर्घटना की झूठी खबर किस ने और क्यों दी? इत्यादि…

इस बात की तफ्तीश चल ही रही थी कि एक बार फिर थाने में किसी का फोन आया. उन के द्वारा दी गईसूचना सन्न कर देने वाली थी. सूचना मिली कि नैशनल हाइवे-30 पर रैगवां गांव की झाडि़यों के पास एक महिला की लाश पड़ी है.

देर न करते हुए थानाप्रभारी हरीश दुबे अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. थोड़ी देर में ही मैहर की एसडीपीओ हिमाली सोनी भी पहुंच गईं. अमदरा पुलिस साथ में उस बच्चे को भी ले गई थी.

बच्चा महिला की लाश को देखते ही मम्मी…मम्मी… कह कर रोने लगा. यह देख पुलिस भी भौचक्की रह गई. बच्चे को चुप करवा कर पुलिस ने बच्चे से पूछा कि मम्मी को किस ने मारा है?

2 साल के उस बच्चे ने तुरंत जवाब दिया ‘‘पापा ने.’’

2 साल के बच्चे के इन 2 शब्दों से इतना तो स्पष्ट हो ही गया था कि करीब 30-32 साल की महिला की वह लाश उस बच्चे की मां की है. पास ही एमपी 21सीए 3195 नंबर की एक जीप भी खड़ी थी.

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पुलिस उस जीप की छानबीन करते हुए लाश के साथ उस के किसी कनेक्शन का अंदेशा भी जता रही थी. पुलिस ने बारीकी से जीप की जांच की. जीप में बच्चे के जूते, बिखरी चूडि़यां मिलीं. उस के बाद पुलिस को जीप, बच्चा और औरत की लाश के साथ कनेक्शन का मामला समझ में आ गया था.

थानाप्रभारी को 6 जुलाई, 2021 की सुबह 10 बजे की सूचना के अनुसार सिंहवासिनी मंदिर के पास बच्चा मिला था. उसी दिन दोपहर 2 बजे महिला की लाश मिली थी. इस पर सतना के एसपी धर्मवीर सिंह ने मैहर की एसडीपीओ हिमाली सोनी और अमदरा थाना टीआई हरीश दुबे के नेतृत्व में 3 टीमें गठित कर दीं.

इन टीमों में एसआई लक्ष्मी बागरी, अजीत सिंह, एएसआई दीपेश कुमार, अशोक मिश्रा, दशरथ सिंह, अजय त्रिपाठी, हैडकांस्टेबल अशोक सिंह, कांस्टेबल जितेंद्र पटेल, गजराज सिंह, नितिन कनौजिया, अखिलेश्वर सिंह, दिनेश रावत, महिला कांस्टेबल पूजा चौहान आदि को शामिल किया गया.

तीनों टीमें अलगअलग दिशाओं में आरोपियों की तलाश में जुट गई थीं. अमदरा थाने की टीम टीआई हरीश दुबे के नेतृत्व में उस जीप के मालिक के पास पहुंच गई जो मृतका के पास सड़क पर खड़ी मिली थी. वह जीप राधेश्याम नाम के व्यक्ति की थी. वह कटनी जिले में रीठी का निवासी था.

पूछताछ के दौरान राधेश्याम ने बताया वह जीप उस ने अखिलेश यादव नाम के व्यक्ति को किराए पर दी थी. पुलिस टीम तुरंत अखिलेश के घर जा धमकी थी. वह घर पर नहीं था. 2 अन्य टीमें रैपुरा और जबलपुर में भी उस की खोज कर रही थीं.

इसी सिलसिले में अखिलेश यादव के भाई से भी पूछताछ की गई. उसे विश्वास में ले कर अखिलेश की लोकेशन पर नजर रखी गई. इस तरह से घटना की जानकारी के 24 घंटे के अंदर ही अखिलेश और उस के साथी पुलिस के हाथ लग गए, जिन के संबंध महिला की हत्या से थे.

गहन छानबीन से पुलिस को पता चला कि बरामद लाश आदिवासी महिला मेमबाई (32 वर्ष) की थी. मेमबाई कटनी जिले के गांव रीठी की रहने वाली थी. पुलिस को आरोपी तक पहुंचने में ज्यादा मुश्किल इसलिए भी नहीं आई, क्योंकि कई सुराग जीप में ही मिल गए थे.

पुलिस को मेमबाई और अखिलेश के मधुर संबंधों के बारे में जो कुछ और जानकारी मिली, वह काफी चौंकाने वाली थी.

इस हत्याकांड में भले ही किसी तरह की धनसंपदा के लालच की बू नहीं आ रही थी, लेकिन शादीशुदा औरत से प्यार में अंधे व्यक्ति द्वारा मजबूरी और बौखलाहट में उठाया गया कदम जरूर कहा जा सकता है. उस की विस्तृत कहानी इस प्रकार निकली—

अखिलेश जवानी की दहलीज पर था. एक भावी जीवनसाथी के सपनों में खोया हुआ अपनी जीवनसंगिनी को ले कर कल्पनाएं करता रहता था.

2 साल पहले की बात है. अखिलेश की जिंदगी मजे में कट रही थी. उस का कामधंधा भी गति पर था. वह पेशे से ड्राइवर था.

अखिलेश रीठी गांव के सिंघइया टोला में रहता था, जबकि मेमबाई के पति गोविंद प्रसाद आदिवासी का मकान गांव रीठी में बना हुआ था.

अखिलेश एक अस्पताल की एंबुलैंस चलाता था. उस का अकसर उसी रास्ते से गुजरना होता था, जहां मेमबाई अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी. इसी आनेजाने में एक दिन उस की निगाह अदिवासी युवती मेमबाई पर पड़ गई, जिस की खूबसूरती उस के मांसल देह से टपकती थी. उसे देखते ही अखिलेश उस का दीवाना बन बैठा था.

मेमबाई अभी जवानी के शबाब में थी. बातें भी बड़ी मजेदार करती थी. अखिलेश से उस की अचानक मुलाकात हो गई. पहली ही नजर में उसे देखा तो देखता ही रह गया था, और जब उस से बातें करने की शुरुआत की तो ऐसे लगा जैसे उस की बातें सुनता ही रहे.

फिर दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. बात बढ़ी, परवान चढ़ी और आंखों के रास्ते दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए.

अखिलेश को जब मालूम हुआ कि मेमबाई 3 बच्चों की मां है, तब उसे थोड़ा झटका लगा. लेकिन तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी. कारण वह उसे अपना दिल दे चुका था. उस के मन मिजाज में अपनी इच्छाओं और तमन्नाओं का बीजारोपण कर चुका था. उस ने मन को दृढ़ता से समझा लिया था कि ‘शादीशुदा है तो क्या हुआ, प्यार तो उसी से करेगा. वह उस का पहला प्यार जो है.’

यह ठीक वैसी ही बात थी, जैसे कहा जाता है कि प्यार अंधा होता है. अखिलेश को मेमबाई अक्की कह कर बुलाती थी. वह उस से उम्र में छोटा था. बहुत जल्द ही वह मेमबाई के प्यार में काफी हद तक अंधा हो गया. उस की वह सब तमाम जरूरतें पूरी करने लगा था, जो मेमबाई को अपने मजदूर पति गोविंद आदिवासी से नसीब नहीं हो पाती थीं.

उन के जिस्मानी संबंध भी बन गए. उन के प्रेम संबंध में एक बार यौनसंबंध की दखल हो गई तो फिर उन का यह सिलसिला बन गया. अखिलेश को इस में आनंद आने लगा. इस में कोई खलल नहीं आने पाए, इस के लिए वह मेमबाई और उस के परिवार पर पैसे खर्च करने लगा. उन की हर जरूरतों के लिए तैयार रहने लगा.

जब गोविंद अपने काम के लिए घर से बाहर होता, तब अखिलेश उस के घर के अंदर घुस जाता. उस के दिलोदिमाग पर अखिलेश का बांकपन छा गया था. वैसे गोविंद जान चुका था कि अखिलेश के उस की पत्नी से अवैध संबंध हैं, फिर भी वह चुप रहता था. इस की वजह यह थी कि अखिलेश उस की आर्थिक मदद भी करता था.

कभीकभी गोविंद की मेमबाई से कहासुनी हो जाती तो वह उलटे पति पर ही हावी हो जाती थी. वह मुंह बनाती हुई पति को कोसती, ‘‘मैं तो केवल बच्चे पैदा करने की मशीन हूं न, तुम से मुझे न सुख मिल रहा है और न सुकून.’’

पत्नी के ताने सुनसुन कर उस के कान पक गए थे, लेकिन वह पलट कर कभी जवाब नहीं देता था. कई बार उस के तंज का जवाब देने के लिए पत्नी से केवल इतना कहता, ‘‘जा, चली जा, जहां सुख मिले और चैन.’’

फिर एक दिन मेमबाई फटेहाल जिंदगी को लात मारती हुई अपने आशिक अखिलेश के साथ चली आई. साथ में अपने अबोध बेटे राज को भी ले आई.

2 बेटियों को वह पति गोविंद के भरोसे छोड़ आई. पति से बेवफाई कर मेमबाई अपने दिलदार अखिलेश के साथ कटनी के भट्टा मोहल्ला में एक किराए के मकान में रहने लगी. वहीं उस ने अपनी गृहस्थी बसा ली.

अखिलेश की कमाई से मेमबाई के कई सपने पूरे हुए. अपने बेटे राज के लिए भी ख्वाब बुनने लगी. अखिलेश भी माशूका के हाथों में अपनी महीने भर की कमाई रख देता था. इस का पता जब अखिलेश के मातापिता को चला, तब वे उस से काफी खफा हो गए और विरोध करने लगे.

वे नहीं चाहते थे कि उन का बेटा किसी शादीशुदा महिला के साथ रहे. उन्होंने अपने घर अपनी मनपसंद बहू के सपने देखे थे.

मांबाप के विरोध के आगे अखिलेश की एक नहीं चली. उसे आखिरकार उन की पसंद की लड़की से ही ब्याह करना पड़ा. उस का रूपा यादव से ब्याह हो गया. अब अखिलेश के सामने 2 महिलाओं के बीच पिसने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.

वह प्रेमिका और पत्नी के बीच के संबंधों को ले कर चिंतित रहने लगा. मेमबाई ने भी महसूस किया कि उस के बुने सपने बिखरने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला है.

इस पर अखिलेश और मेमबाई के बीच कहासुनी भी होने लगी. अखिलेश परिस्थितियों को संभालने के लिए अपनी कमाई का आधाआधा दोनों को देने लगा.

मेमबाई तो मान गई, लेकिन ब्याहता रूपा यादव से उस की बातबात पर तल्खी बनी रही. कई बार उस की छोटीछोटी बातों की नाराजगी या शिकायतों का गुस्सा फूट पड़ता था.

यही नहीं मेमबाई पुरानी बातों को ले कर अखिलेश को ताने देने लगी थी, ‘‘काहे लाए थे, जब दूसरी शादी करनी थी. पहले तो हमारा रूप बहुत भाता था, अब घर में सुंदरी ले आए हो तो हम बंदरिया लग रहे हैं.’’

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अखिलेश इन तानों पर प्रतिक्रिया देता, ‘‘जो मिलता है उस में आधाआधा इसलिए ही तो कर दिए हैं. इतने में ही काम चलाना होगा. हम तुम्हें घर से भगा तो नहीं रहे.’’

इस तरह से दोनों के बीच रोजाना झगड़े होने लगे थे. दिनप्रतिदिन अखिलेश टूटने लगा था. अब अखिलेश के परिवार वाले भी उस पर दवाब बनाने लगे थे. उस की पत्नी का भी पारा चढ़ने लगा था. वह भी जब तब अखिलेश को ताने मारने लगी थी.

अखिलेश ने भी मन ही मन ठान लिया कि अब मेमबाई को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा. एक दिन अखिलेश ने एक योजना बनाई. 3 दोस्तों को बुलाया. उन के साथ उस ने मैहर की मां शारदा के दर्शन करने का प्लान बनाया. प्लान में सोहन लोधी, अजय यादव और एक नाबालिग बालक को शामिल कर लिया.

प्लान की रूपरेखा तैयार करने के बाद वह घर में नाराज बैठी मेमबाई से बोला, ‘‘चलो, एक दिन मैहर शारदा मां के दर्शन कर आते हैं. वैसे भी इस समय बहुत लोग जा रहे हैं.’’

यह सुन कर मेमबाई के चेहरे पर मुसकान आ गई. खुशी से बोली, ‘‘मैं भी सोच रही थी, लेकिन तुम जितना खर्च दे रहे हो उस से पेट भरना तक मुश्किल है.’’

अखिलेश ने कहा, ‘‘मंदिरवंदिर चल कर पहले मन को पवित्र कर के आना चाहिए. इस से मन को शांति मिलती.’’

मेमबाई ने कहा, ‘‘ठीक है फिर कल ही चलो.’’

अखिलेश तो जैसे तैयार ही बैठा था बोला, ‘‘तैयार हो जाना और राज को भी ले लेना.’’

मेमबाई तो खुश थी, जो उस के चेहरे और हावभाव से झलक रहा था. अखिलेश भी प्लान के मुताबिक सही उठ रहे कदम से मन ही मन खुश हो रहा था.

अगले ही दिन यानी 5 जुलाई, 2021 को अखिलेश ने पहले से ही 3195 रुपए किराए में राधेश्याम की जीप बुक कर ली. उस पर अपने दोस्तों को बैठा लिया. दोनों साथी मेमबाई के साथ बीच वाली सीट पर बैठ गए और एक साथी पीछे. उन दोस्तों में से एक को मेमबाई अच्छी तरह पहचानती थी, इसलिए उस ने जरा भी सवालजवाब नहीं किया. अखिलेश जीप खुद चला रहा था.

वे सभी निर्धारित समय के अनुसार मैहर पहुंच गए, लेकिन वे मंदिर में दर्शन के लिए नहीं गए. इस पर मेमबाई को शक हुआ. इस से पहले कि वह कुछ पूछती, अखिलेश ने जीप को यूटर्न दे कर घुमा ली. तब तक अंधेरा हो चुका था.

उसी समय जीप की पिछली सीट पर बैठे अखिलेश के एक साथी ने अपने लोअर का नाड़ा निकाला और मेमबाई के गले में फंसा दिया. यह देख बगल में बैठे अन्य साथियों ने मेमबाई के हाथपैर कस कर जकड़ लिए. मेमबाई छटपटा कर रह गई.

संयोग से नाड़ा टूट गया. तभी फुरती के साथ अखिलेश ने जीप रोकी और रस्सी निकालते हुए बीच वाली सीट की तरफ भागा.

तब तक जीप का गेट खोल कर मेमबाई बाहर निकलने की कोशिश करने लगी, लेकिन जीप से उतरने से पहले ही अखिलेश उस के गले में रस्सी बांध चुका था. वह जीप के अंदर ही छटपटा कर रह गई.

अंत में वह हार गई. अखिलेश और उस के साथियों ने गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. लाश को राष्ट्रीय राजमार्ग 30 में आने वाले गांव रैगवां की झाडि़यों के बीच फेंक कर वे फरार हो गए.

इस पूरे मामले की तहकीकात के बाद अमदरा पुलिस ने सभी आरोपियों अखिलेश यादव (25 वर्ष) उर्फ अक्की निवासी ग्राम सिंघइया टोला, जिला कटनी, सोहन लोधी (19 वर्ष) व अजय यादव (18 वर्ष) निवासी ग्राम लोधी जिला पन्ना (मध्य प्रदेश) के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर उन्हें निचली अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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