कहावत है कि जो जैसे लोगों की संगति में रहता है, वैसे ही उस के आचारविचार होते हैं और वैसी ही सोच भी हो जाती है. अच्छे दोस्त अच्छे काम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जबकि बुरे लोगों की संगति में अच्छे लोग भी बुरे हो जाते हैं.

बिहार के संबंध में कहा जाता है कि अगर यहां की राजनीति और भौगोलिक पृष्ठभूमि के बारे में समझना है तो पहले वहां आतंक के पर्याय रहे बाहुबलियों को समझना व जानना होगा. पूर्वांचल की धरती पर अनेक माफियाओं का जन्म हुआ. इन में एक नाम है सूरजभान सिंह.

गंगा किनारे बसे पटना जिले के मोकामा की धरती पर 5 मार्च, 1965 को जन्मे सूरजभान सिंह के जवान होते ही पिता चाहते थे कि उन का अच्छी कदकाठी वाला बेटा भी सेना में जाए. क्योंकि उन के बड़े भाई सीआरपीएफ में थे. लेकिन होनी को कोई नहीं टाल सकता.

पिता का बेटे को सेना में भेजने का सपना तब टूट गया, जब सूरजभान को ऐसी संगत मिली कि जवान होते ही वह रंगदारी और वसूली करने लगा. एक समय ऐसा भी आया जब सूरजभान के अपराध की तपिश से बिहार सिहर उठा था.

सूरजभान के गुनाहों का सूरज उस की उम्र के साथ ही चढ़ता चला गया. थोड़े ही दिनों में रंगदारी, हत्या, अपहरण जैसे अपराध उस के लिए बहुत छोटे हो गए.

जिस सरदार गुलजीत सिंह की दुकान पर सूरजभान के पिता नौकरी करते थे और जिस से घर चलता था, बाहुबली बनने के बाद सूरजभान उस से भी रंगदारी मांगने लगा. इस बात की शिकायत सूरजभान के पिता से की गई. पिता के समझाने का भी बेटे पर कोई असर नहीं हुआ. पिता को यह बरदाश्त नहीं हुआ और शर्म से उन्होंने गंगा में छलांग लगा कर जान दे दी.

बाहुबली अशोक सम्राट से हुई दुश्मनी

उस दौर में बिहार में बाहुबलियों का बोलबाला था. 90 के दशक में  सूरजभान ने  मोकामा से बाहर भी अपना दबदबा बनाने की कोशिशें तेज कर दी थीं. गोरखपुर से ले कर बिहार तक रेलवे के ठेकों पर सूरजभान अपना एकछत्र राज जमाने की कोशिश करने लगा.

लेकिन उस समय गुनाह की दुनिया में उत्तर बिहार के डौन अशोक सम्राट का नाम था, जो बेगूसराय से खौफ का कारोबार चलाता था. सूरजभान की राह का रोड़ा अशोक सम्राट ही था. दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गई.

इसी बीच, मोकामा में अशोक सम्राट और सूरजभान के बीच गैंगवार की घटना हुई. यहां अशोक ने सूरजभान पर जानलेवा हमला बोला था. इस दौरान सूरजभान के पैर में गोली लगी, इस के बावजूद किसी तरह सूरजभान बच निकला, लेकिन गैंगवार में सूरजभान का चचेरा भाई अजय और पोखरिया निवासी शूटर मनोज मारे गए.

अशोक सम्राट की ताकत इतनी बढ़ गई थी कि वह सरकार और प्रशासन को चुनौती देने लगा था. उस दौर में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. ऐसा माना जाता है कि प्रशासन को अपने पीछे देख अशोक सम्राट ने भी अपने मन में खादी पहनने की चाहत जगा ली थी. उस की इस हनक के पीछे राजनीतिक ताकत भी थी.

माना जाता है कि बिहार के एक तत्कालीन मंत्री और लालू प्रसाद यादव के करीबी रहे बृज बिहारी प्रसाद से अशोक सम्राट के काफी अच्छे रिश्ते थे. आनंद मोहन की पार्टी से उस का टिकट भी पक्का हो गया था. लेकिन उस का मंसूबा पूरा हो पाता, उस से पहले ही 1995 में हाजीपुर में पुलिस मुठभेड़ में वह मारा गया. उस के मारे जाने के बाद सूरजभान ने अपने कार्यक्षेत्र में विस्तार शुरू कर दिया.

बाहुबली सूरजभान का आपराधिक इतिहास अनेक संगीन अपराधों से भरा रहा, लेकिन कई गुनाह ऐसे थे, जो कभी साबित ही नहीं हो पाए. सूरजभान के ऊपर कई चर्चित आरोप दर्ज हैं.

पुरुलिया में मिली एके 47

पश्चिमी बंगाल के पुरुलिया में हथियारों की खेप गिराने की घटना दिसंबर, 1995 में हुई थी. इस दौरान बड़ी संख्या में गोलाबारूद व अनेक खतरनाक हथियार गिराए गए थे. बताया जाता है कि इन में एके47 सूरजभान के हाथ लगी थी. उसी दौर में सूरजभान को गोरखपुर के डौन श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे सरगना का साथ मिला.

1980 के दशक में जहां सूरजभान रंगदारी व वसूली तक ही सीमित था, वहीं 1990 का दशक आतेआते सूरजभान ने अपराध की ऐसीऐसी दूरियां तय की कि उस का नाम तत्कालीन बाहुबली दिलीप सिंह और श्याम सुंदर सिंह धीरज के साथ गिना जाने लगा. यही वो दोनों शख्स थे, जिन्होंने परदे के पीछे से सूरजभान को आगे बढ़ने में मदद की थी.

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श्याम सुंदर सिंह धीरज और दिलीप सिंह की छत्रछाया में सूरजभान अपराध की सीढि़यां तेजी से चढ़ने लगा. सूरजभान को अपने साथ रख कर दोनों ने गैंग बनाया था. इस समय तक कई संगीन जुर्मों से जुड़े दरजन भर मामलों में सूरजभान सिंह का नाम जुड़ गया था.

अपराध व राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता है. दरअसल, कभी श्याम सुंदर सिंह धीरज के लिए बूथ कब्जाने वाले बाहुबली दिलीप सिंह ने श्याम सुंदर को चुनावी रण में न सिर्फ चुनौती दी, बल्कि वह चुनाव भी जीता और लालू प्रसाद यादव की सरकार में मंत्री बन गया.

दिलीप सिंह को धीरज ने ही पालापोसा था. ऐसे में उस के ही आदमी ने उसे चुनावी मैदान में शिकस्त दे दी, इस बात से धीरज बौखला गया. इस दौरान उस की नजर दिलीप गैंग के ही एक अच्छी डीलडौल वाले लड़के सूरजभान पर पड़ी. उस समय उस लड़के पर जुर्म की दुनिया में छा जाने का भूत सवार था.

सूरजभान के चचेरे भाई मोती सिंह की कुख्यात नागा सिंह ने हत्या कर दी थी. इस घटना के बाद सूरजभान की मोकामा विधायक दिलीप सिंह से अदावत बढ़ गई. इस के बाद सूरजभान और दिलीप सिंह के रिश्ते में दरार आ गई. उस दौर में अपराधियों के राजनीतिकरण में सूरजभान जैसे एक और डौन का नाम जुड़ गया.

साल 1992 में बेगूसराय के मधुरापुर के निवासी रामी सिंह की 4 लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी. इस हत्याकांड में सूरजभान का भी नाम आया. इस मामले में मुख्य गवाह और यहां तक कि सरकारी वकील रामनरेश शर्मा की भी हत्या हो गई थी.

अन्य मामलों की तरह सूरजभान  इस केस में भी बरी हो जाता, लेकिन केस का एक गवाह, जो बेगूसराय के डौन रह चुके कामदेव सिंह के परिवार से था, नहीं टूटा. निचली अदालत में मुकदमा चला और उसे आजीवन कारावास की सजा मिली. अदालत से वह जमानत पर बाहर आ गया.

उधर श्याम सुंदर को भी एक बाहुबली की तलाश थी. श्याम सुंदर ने तब सूरजभान का हाथ पकड़ा और अपने पाले में कर लिया. श्याम सुंदर के लिए सूरजभान ने बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाओं को भी अंजाम दिया. लेकिन तब तक सूरजभान के सपने बड़े हो चुके थे. सूरजभान का नाम अपहरण, रंगदारी व मर्डर जैसे संगीन अपराधों से जुड़ता चला गया. उस पर 26 संगीन केस दर्ज हो चुके थे.

मंत्री की हत्या में आया नाम

जून का महीना था, बिहार में गरमी पूरे शवाब पर थी. राबड़ी देवी की सरकार में 13 जून, 1998 में साइंस एंड टेक्नोलौजी मंत्री बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड में भी सूरजभान का नाम आया था.

बृजबिहारी प्रसाद पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. राबड़ी देवी ने उस से इस्तीफा मांगा. उस को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया. वहां तबियत खराब होने पर उसे पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भरती कराया गया.

भरती के दौरान जब वह संस्थान के कंपाउंड में शाम के समय सुरक्षा गार्डों के साथ घूम रहा था, तभी लालबत्ती लगी एक एंबेसडर कार और एक बुलेट पर सवार कुछ लोग वहां पहुंचे. अस्पताल का कंपाउंड गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज गया. निशाना बने बृजबिहारी प्रसाद. उस की वहीं मौत हो गई. उस के साथ ही उस का एक बौडीगार्ड भी मारा गया.

इस हत्याकांड में गोरखपुर के नामी डौन श्रीप्रकाश शुक्ला के साथ सूरजभान को भी आरोपी बनाया गया था. मंत्री हत्याकांड की गूंज ने तब पूरे राज्य को दहला कर रख दिया था. डौन श्रीप्रकाश शुक्ला ने इस हत्याकांड में एके47 का प्रयोग किया था.

जेल में सूरजभान की हत्या की योजना हुई विफल

इस घटना से पहले सूरजभान सिंह बेऊर जेल में था. बताया जाता है कि जेल में ही उस की हत्या करा देने के लिए एक अन्य कैदी को तैयार किया गया. 20 लाख रुपए दिए गए थे. कहा गया था कि यदि गोली मारना संभव न हो सके तो उस के खाने में जहर मिला कर सूरजभान की हत्या कर दी जाए.

कहते हैं अपराध और वर्चस्व की लड़ाई में ऊंट कब किस करवट बैठेगा, कहा नहीं जा सकता. सूरजभान सिंह निशाना बनता, इस से पहले ही बृजबिहारी प्रसाद की हत्या कर दी गई.

बृजबिहारी प्रसाद आपराधिक प्रवृति का था और उस पर कई मामले दर्ज थे. उस ने अपनी आपराधिक छवि को आवरण देने की कोशिश की.

साल 2009 में निचली अदालत ने सूरजभान सहित सभी 8 आरोपियों को दोषी पाया था. इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी. निचली अदालत के इस फैसले को अभियुक्तों ने  हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. इस मामले में 9 आरोपी बनाए गए थे. मुकदमे के दौरान एक की मौत हो गई थी.

हाईकोर्ट ने अभियुक्तों और सीबीआई की दलीलों को सुनने के बाद जेल में बंद राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला व मंटू तिवारी को तुंरत रिहा करने का आदेश दिया. जबकि जमानत पर चल रहे सूरजभान सिंह, मुकेश सिंह, कैप्टन सुनील सिंह, ललन सिंह, राम निरंजन चौधरी को जमानत बांड से मुक्त कर दिया.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सीबीआई यह साबित नहीं कर पाई कि इन अभियुक्तों ने बृजबिहारी प्रसाद की हत्या की साजिश रची थी. वह ऐसा कोई साक्ष्य भी पेश नहीं कर पाई, जिस से यह साबित होता कि इन अभियुक्तों ने ही घटना को अंजाम दिया था.

2003 में मोकामा में पूर्व पार्षद उमेश यादव की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. सूरजभान के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई लेकिन सुनवाई में वह बरी हो गया.

बिहार में सूरजभान सिंह का खौफ एक समय ऐसा था कि उस के क्षेत्र में लोग उस के नाम से भी डरते थे. कहते हैं भाग्य कब पलट जाए, किसी को पता नहीं होता. कब रंक राजा और राजा रंक बन जाए कहा नहीं सकता. सूरजभान सिंह के साथ भी यही हुआ.

साल 2000 में सूरजभान ने मोकामा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में बिहार सरकार में मंत्री और अपने गुरु दिलीप सिंह के खिलाफ चुना लड़ा और जीत हुई. अब तक उन पर 30 मुकदमे दर्ज थे. संगीन जुर्मों का आरोपी सूरजभान माननीय यानी विधायक बन चुका था. विधायक बनते ही सूरजभान का रुतबा और बढ़ गया. इसके साथ ही दूसरे काम भी जारी रहे.

बताते हैं विधानसभा में दस्तक देने के बाद नीतीश कुमार की 8 दिनों की सरकार में सूरजभान के नेतृत्व में दबंग निर्दलीय विधायकों का एक मोर्चा बना. इस मोर्चे ने नीतीश को समर्थन दिया. लेकिन फिर भी सरकार गिर गई थी.

सूरजभान पर किस्मत मेहरबान थी. विधायक बनने के बाद साल 2004 में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर बिहार के बलिया संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ कर वह सांसद बन गया.

पत्नी वीणा को लड़ाया चुनाव

सजायाफ्ता होने के चलते सूरजभान पर चुनाव लड़ने से प्रतिबंध लग गया था. तब लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे सूरजभान ने अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अपनी पत्नी वीणा देवी को राजनीति में उतारा.

सूरजभान के दबदबे के चलते वीणा साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार की मुंगेर सीट से लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के टिकट से सांसद चुनी गई थीं. बाद में वह भारतीय जनता पार्टी में चली गईं.

साल 2018 में सूरजभान के बड़े बेटे आशुतोष सिंह की ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे पर एक सड़क हादसे में मौत हो गई. इस से सूरजभान व उस की पत्नी वीणा पूरी तरह टूट गए.

बिहार में कभी दहशत और राजनीति में एकछत्र राज करने वाला बाहुबली सूरजभान सिंह पिछले दिनों बीमार पड़ गया. बताया जाता है कि सूरजभान को सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही थी. चैकअप और बेहतर इलाज के लिए उसे नई दिल्ली के एक अस्पताल में भरती कराया गया.

पिछले दिनों उसे देखने के लिए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह अस्पताल पहुंचे थे. बताते चलें कि गिरिराज सिंह साल 2019 में बेगूसराय से भाजपा सांसद चुने गए हैं.

ये वो सूरजभान है, जिस की धमक गुनाह की दुनिया से ले कर सत्ता के गलियारे तक सुनाई दी. जरायम की दुनिया से आगे बढ़ कर वह सियासतदां बन गया.

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