3 सितंबर, 2021 का दिन उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में नौगवां नरोत्तम गांव के रहने वाले 25 वर्षीय आशीष सिंह के लिए बेहद खुशी का दिन था. इस की वजह यह थी कि आशीष अपने दूसरे बच्चे का पिता जो बना था. उस की पत्नी दीपा ने बेटी को जन्म दिया था, इस खुशी में वह फूला नहीं समा रहा था.
आशीष और दीपा का एक साल का बेटा रौनक भी था. लेकिन वह इस खुशी के पलों में अपने परिवार के साथ नहीं, बल्कि घर से दूर नोएडा में था. वह नोएडा में एक एलईडी बल्ब की फैक्ट्री में काम करता था.
उस ने जब अपने मालिक से इस मौके पर घर जाने के लिए कुछ दिनों की छुट्टी मांगी तो फैक्ट्री मालिक ने साफ मना कर दिया. फैक्ट्री नियमों के अनुसार किसी को भी छुट्टी लेने के लिए कम से कम 10 दिन पहले बताना पड़ता है. तो ऐसे में आशीष के पास 10 दिनों के इंतजार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था.
10 दिनों के बाद 14 सितंबर को आशीष नोएडा से अपने परिवार और बच्चों के लिए ढेर सारे खिलौने ले कर अपने गांव लौटा. अपनी बेटी को देख कर आशीष की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. गांव लौटने के बाद आशीष ने अपने पिता बनने की खुशी में पूरे गांव में मिठाई बांटी और अपने करीबियों को दावत दी.
मिठाई बांटते हुए वह अपने घर के पास उस घर में गया, जहां उस की जवानी की यादें जुड़ी हुई थीं. यह घर किशनपाल का था. दरअसल, किशनपाल की 22 वर्षीय बेटी बंटी से आशीष का प्रेम संबंध करीब 7 साल पुराना था. आशीष और बंटी के बीच संबंध को गांव में रहने वाला हर कोई जानता था.
किशनपाल और बंटी की मां को मिठाई दे कर वहां से निकल आया और सोचते हुए अपने घर की ओर चला गया. दरअसल, आशीष पिछले साल उत्तर प्रदेश में हुए प्रधानी के चुनावों में प्रत्याशी के तौर पर खड़ा हुआ था. लेकिन उसे बेहद बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. जिस के बाद उसे गांव में अन्य प्रधान प्रत्याशियों से जान से मारने की धमकी मिली थी.
मामला शांत और ठंडा करने के लिए आशीष के घर वालों ने उसे कुछ दिनों के लिए गांव से बाहर चले जाने की नसीहत दी. उसी दौरान वह नोएडा में एलईडी बल्ब की फैक्ट्री में काम करने लगा था.
कुछ दिन ऐसे ही बीत गए, लेकिन आशीष के दिलोदिमाग से बंटी हर समय छाई रही. अपनी शादी के 2 साल और 2 बच्चे हो जाने के बाद भी वह 7 साल के अपने प्यार को भुला नहीं पा रहा था. हालांकि आशीष और बंटी दोनों साथ में अपनी जिंदगी गुजारना चाहते थे. लेकिन उन के मांबाप और घर के बाकी सदस्यों को उन का ये संबंध मंजूर नहीं था.
मामला धर्म का नहीं था और न ही जाति का था. बल्कि दोनों एक ही गौत्र से थे, जिस की वजह से दोनों के घर वालों को उन का रिश्ता मंजूर नहीं था.
बंटी से मिल कर बात करने की ख्वाहिश आशीष के दिमाग में इतनी सवार हुई कि उस ने ऐसा करने के लिए सारी हदें पार करने का फैसला कर लिया.
16 सितंबर, 2021 की रात को बिस्तर पर लेटे हुए आशीष ने अपने दिमाग में बंटी से मिलने का प्लान बनाया. उस ने यह तय कर लिया कि वह अपनी बीवी दीपा और अपने बच्चों के साथ नहीं, बल्कि अपनी प्रेमिका बंटी के साथ बाकी की जिंदगी गुजारेगा.
रात के करीब एक बजे आशीष अपने बिस्तर से उठा और दबेपांव अपने घर से बिना किसी को बताए निकल गया. उस के घर से बंटी का घर मात्र 200 मीटर यानी सिर्फ 4-5 मिनट की दूरी पर था. आशीष गली से होते हुए बंटी के घर के नजदीक पहुंचा तो देखा कि उन के घर पर रोशनी फैली हुई थी.
उस ने रास्ता बदला और बंटी के घर के पीछे वाले रास्ते पर जा कर छलांग लगा कर घर के आंगन में जा घुसा. किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई कि घर में कोई घुस आया है.
छिपतेछिपाते सीढि़यों के सहारे दूसरी मंजिल में बंटी के कमरे में जा पहुंचा और दरवाजे के पीछे छिप कर बंटी का इंतजार करने लगा.
इधर बंटी नीचे अपनी मां के साथ रोटियां सेंक रही थी. उस के पिता किशनपाल जल्दी ही खाना खा कर सो गए थे. रात के करीब सवा बज रहे थे. बंटी खाने की प्लेट ले कर अपने कमरे की ओर चल पड़ी.
सीढि़यों से चढ़ते हुए बंटी दूसरी मंजिल पर अपने कमरे का दरवाजा खोल अंदर घुसी और लाइट जलाई तो अपनी आंखों पर उसे भरोसा नहीं हुआ. उस ने देखा कि बिस्तर पर आशीष बैठा हुआ था. लेकिन बंटी ने आशीष को देख कर शोर नहीं मचाया. वह चुप रही और अंदर से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया.
आशीष को अपने कमरे में देख आश्चर्यचकित हो कर बंटी धीमी आवाज में फुसफुसाई, ‘‘यहां क्या कर रहे हो तुम? जल्दी यहां से भागो. मेरी मां किसी भी समय यहां आती ही होगी. जल्दी निकलो.’’
बंटी की बात सुन आशीष अपने पंजों के सहारे उस की ओर बढ़ा और उस का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘नहीं, मैं यहां से नहीं जाऊंगा. मैं तुम्हें लेने आया हूं. मैं ने फैसला कर लिया है, मुझे तुम्हारे ही साथ अपनी आगे की पूरी जिंदगी काटनी है.’’
कहते हुए आशीष ने बंटी के हाथों को कस कर पकड़ लिया. बंटी आशीष के हाथों से अपने हाथों को झटके से छुड़ाते हुए बोली, ‘‘यह क्या मजाक है. तुम्हारी बीवी है. 2 बच्चे हैं. तुम इस बारे में अब सोच भी कैसे सकते हो.’’
बंटी की बात सुन कर आशीष कुछ पलों के लिए मौन हो गया. लेकिन अपनी चुप्पी तोड़ते हुए और अपने दोनों हाथों को बंटी के गाल पर लगाते हुए बोला, ‘‘तुम्हें उन के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम खुद सोचो, हम एकदूसरे से प्यार करते हैं. यह बात पूरे गांव वालों को मालूम है. लेकिन हम घर वालों की वजह से कभी एक नहीं हो पाए. सिर्फ कमबख्त एक गौत्र की वजह से हम दोनों का कभी मिलन नहीं हो पाया. इस बार मैं ने तय कर लिया है कि मैं तुम्हें यहां से अपने साथ ले कर ही जाऊंगा.’’
सुन कर बंटी ने खुद को आशीष से दूर किया और बोली, ‘‘बहुत देर हो चुकी है अब. यह खयाल अपने मन से निकाल दो. और तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए राजी हो जाऊंगी. वो भी तब जब तुम्हारी शादी हो गई, 2 बच्चे भी हो गए. अगर मुझ से प्यार था और ये हिम्मत पहले दिखाई होती तो मैं मान भी जाती.
‘‘हम साथ मिल कर दुनिया से लड़ लेते. अब मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए दीपा और तुम्हारे बच्चों की जिंदगी खराब नहीं कर सकती. मुझे माफ कर देना. वैसे भी तुम्हारी शादी के बाद मैं ने खुद को संभाल लिया है. अब मैं भी खुद की एक नई जिंदगी शुरू करना चाहती हूं. बेहतर होगा तुम मुझे भुला दो.’’
लेकिन बंटी के साफ इनकार करने के बाद वह अपने होशोहवास खो बैठा. किसी तरह खुद को संभालते हुए आशीष ने बंटी को समझाने की एक और कोशिश की. लेकिन वह नाकामयाब रहा.
सुबह के करीब 6 बजे नौगवां नरोत्तम गांव के लोग अपने बिस्तर से उठे ही थे और अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो ही रहे थे कि अचानक गांव वालों ने गांव के सब से बड़े पीपल के पेड़ के नीचे कुछ ऐसा देखा, जिस की उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी.
लोग उस पेड़ के नीचे सुबहसुबह पूजा करने के लिए जब पहुंचे तो उन्होंने वहां आशीष के शव को पड़ा देखा. आशीष के करीबी लोगों में से सुरेश ने भी आशीष के शव को जब देखा तो वह भाग कर उस के पिता सुखपाल सिंह को बुलाने पहुंचा.
सुबह के सवा 6 बजे सुखपाल सिंह खेतों की तरफ से घर की ओर आ ही रहे थे तो सुरेश हांफते हुए उन से बोला, ‘‘काका, पीपल के पेड़ पर. जल्दी चलो.’’
सुखपाल भीड़ को हुए आशीष के शव के सामने जा कर खड़े हो गए. आशीष की लाश जमीन पर चित्त पड़ी थी. उस के सीने में दिल की ओर गोली लगी थी. अपने जवान बेटे का शव जमीन पर पड़ा देख सुखपाल के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई थी. वह चीखचीख कर आशीष का नाम ले कर रोनेपीटने लगे.
इतने में पेड़ के पास किशनपाल के घर से भी रोने और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. गांव वालों को समझ नहीं आया कि आखिर हुआ तो हुआ क्या.
जब गांव के लोग किशनपाल के घर पता करने पहुंचे तो पता चला कि दूसरी मंजिल पर उस की बेटी बंटी की लाश उस के कमरे में पड़ी थी. बंटी के शरीर पर भी ठीक उसी जगह पर गोली लगी थी, जहां आशीष को लगी थी. सीने पर, दिल के पास.
दोनों मौतों की यह खबर पूरे गांव में तो क्या आसपास लगभग सभी गांवों में आग की तरह फैल गई कि फलां गांव में एक ही दिन में 2 लोगों को गोली लगी, वह भी एक ही जगह पर.
सुबह के साढ़े 7 बजे गडि़यारंगीन पुलिस मौकाएवारदात पर पहुंच गई. क्योंकि मामला बेहद संगीन था और इलाके में तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी, गडि़यारंगीन थानाप्रभारी सुंदरलाल ने आसपास के इलाकों की पुलिस टीम को सूचित कर जल्द से जल्द घटनास्थल पर बुला लिया.
सूचना मिलते ही जैतीपुर, कटरा और तिलहर पुलिस थाने से फोर्स जल्द से जल्द घटनास्थल पर पहुंच गई. देखते ही देखते घटनास्थल छावनी में बदल गया.
थानाप्रभारी सुंदरलाल, सीओ परमानंद पांडेय और एएसपी (ग्रामीण) संजीव कुमार वाजपेयी ने दोनों परिवारों से अलगअलग पूछताछ की.
एक तरफ आशीष के पिता सुखपाल ने अपने बेटे की मौत का जिम्मेदार किशनपाल और उस के घर वालों को बताया तो दूसरी तरफ किशनपाल ने अपनी बेटी की मौत का जिम्मेदार सुखपाल और उस के घर वालों को बताया.
एक तरफ आशीष और बंटी दोनों के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया तो वहीं फोरैंसिक टीम बारीकी से साक्ष्य जुटाने में व्यस्त हो गई.
आशीष के शव के पास से टीम ने गोली का एक खोखा और एक जीवित गोली भी बरामद की. लेकिन उन्हें कहीं भी पिस्तौल नहीं मिली.
टैक्निकल टीम ने आशीष के फोन की अंतिम लोकेशन का पता लगाया तो पुलिस को यह जान कर हैरानी हुई कि आशीष की अंतिम लोकेशन बंटी के घर की ही मिली थी. ऐसे में पुलिस के शक की सुई किशनपाल और उस के परिवार की ओर घूम गई.
जब दोनों के बारे में आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ हुई तो पता चला दोनों आशीष और बंटी एकदूसरे से प्यार करते थे और एक गौत्र से होने की वजह से उन की शादी नहीं हो पाई थी.
ऐसे में पुलिस को यह मामला औनर किलिंग का लगा. लेकिन पुलिस सभी साक्ष्य जुटाने के बाद और सभी एंगल से मामले की छानबीन कर किसी नतीजे पर पहुंचना चाहती थी. ऐसी स्थिति में पुलिस ने किशनपाल और सुखपाल दोनों ही परिवारों से सख्ती से पूछताछ की.
करीब एक हफ्ते की कमरतोड़ मेहनत के बाद पुलिस ने किशनपाल को हिरासत में लेते हुए सख्ती से पूछताछ की. उस ने पुलिस के सामने सारा सच उगल दिया.
उस ने बताया कि जिस रात आशीष उस की बेटी बंटी से मिलने के लिए उस के घर आया था, उस रात को बंटी की मां नीचे खाना खा रही थी. तभी करीब रात के 2 बजे बंटी की मां को ऊपर जोर से कुछ गिरने की आवाज आई. उसे ऐसा लगा जैसे बंटी ने ऊपर अपने कमरे में कुछ गिरा दिया हो.
अपना खाना खत्म कर के बंटी की मां दूसरी मंजिल पर बंटी के कमरे में पहुंची और दरवाजा खोला तो कमरे का नजारा देख उस के होश उड़ गए थे. कमरे में बंटी और आशीष की लाशें पड़ी थीं.
यह देख कर बंटी की मां दौड़ कर नीचे किशनपाल के पास भाग कर आई और रोतेकुलबुलाते हुए उस ने दूसरी मंजिल पर जाने के लिए कहा.
किशनपाल बिस्तर से उठ कर दूसरी मंजिल पर बंटी के कमरे में घुसा तो उस का भी वही हाल हुआ जो उस की पत्नी का हुआ था. किशनपाल अपनी बेटी का शव देख कर बुरी तरह से घबरा गया.
काफी देर तक अपने बेटी के शव के पास बैठे रह कर रोनेबिलखने के बाद उस ने अपना होश संभाला और इस मामले में वह और उस का परिवार न फंस जाए, इस डर से उस ने आशीष के शव को अपने कंधों पर उठा कर अपने घर से बाहर पीपल के पेड़ के नीचे डाल आया. और उसी दौरान किशनपाल ने आशीष के शव के पास पड़ी पिस्तौल भी उठा ली.
उस ने आशीष के शव को पेड़ के नीचे रखने के बाद अपना खून से पूरी तरह सना अपना कुरता और पिस्तौल अपने ही घर में दबा दिया ताकि कोई उसे ढूंढ न सके. वह गोली का एक खोखा और एक जीवित गोली लाश के पास ही डाल आया.
दरअसल, आशीष पूरी प्लानिंग के तहत उस रात बंटी को भगाने के उद्देश्य से उस के घर चुपके से पहुंचा था. अपने घर से निकलते समय वह अपने दोस्त से मिला और उस ने अपनी सुरक्षा के नाम पर उस की लोडेड पिस्तौल ले ली.
वह किसी और को इस काम में शामिल नहीं करना चाहता था, इसलिए वह अकेले ही बंटी के घर पर पहुंचा था. प्यार से समझानेबुझाने के बाद जब आशीष को यह यकीन हो गया कि उस की प्रेमिका उस के साथ नहीं रहना चाहती तो उस ने उसे एक और आखिरी मौका दिया.
वह बंटी से बोला, ‘‘बंटी, तुम्हें हमारे प्यार की कसम. तुम एक बार हां तो करो, फिर देखना हम पूरी दुनिया से लड़ जाएंगे. आखिरी बार सोच लो एक और बार.’’
इस पर बंटी ने उसे तुरंत जवाब दिया, ‘‘मैं ने सोच लिया है. मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाने वाली. तुम ने तो अपनी जिंदगी जी ली है. अपने बीवीबच्चों के साथ हंसीखुशी जी रहे हो. तुम्हारे साथ भाग कर मुझे किसी की बददुआ नहीं चाहिए. घर वालों से जब लड़ने का मौका था, तब तुम से कुछ हुआ नहीं. लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है. यही मेरा आखिरी फैसला है.’’
बंटी के ये सब कहने के बाद आशीष के मन को गहरा सदमा लगा. उस ने आव देखा न ताव, अपनी जेब में रखी पिस्तौल निकाली और बंटी के सीने पर गोली चला दी. इस से पहले कि बंटी को कुछ एहसास होता, गोली उस की छाती चीरते हुए उस के दिल को भेदते हुए अंदर दाखिल हो चुकी थी.
बंटी को गोली मारने के बाद आशीष को अचानक होश आया. उसे खुद पर बिलकुल यकीन ही नहीं हुआ, आखिर उस ने ये क्या कर दिया.
उस के बाद उस ने बिना कुछ सोचेसमझे ठीक जिस तरह से उस ने बंटी को मारी थी, खुद की छाती पर भी गोली चला दी.
ये हत्या तो थी ही साथ ही आत्महत्या भी थी. यदि दोनों के घर वाले उन के रिश्ते को मंजूरी दे देते तो शायद दोनों आज भी जिंदा होते और एक अच्छी जिंदगी गुजारते.
बंटी के पिता किशनपाल ने बेशक दोनों में से किसी की भी जान न ली हो लेकिन पुलिस ने किशनपाल को वास्तविकता छिपाने, मनगढ़ंत साक्ष्य पैदा करने, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने इत्यादि का आरोप लगाते हुए हिरासत में ले लिया.
किशनपाल को हिरासत में ले कर उस की निशानदेही पर पुलिस ने उसी के घर से रक्तरंजित कुरता और पिस्तौल भी बरामद कर ली. पुलिस ने किशनपाल को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.