लेकिन पुलिस को सीताराम, दीपिका और कैलाबाई में से ही हत्यारे को ढूंढना था. जब पुलिस ने…

शनिवार, 18 मई की आधी रात से ज्यादा बीत चुकी थी. कोटा के बोरखेड़ा इलाके की सरस्वती कालोनी में निस्तब्धता छाई थी जिसे रहरह कर भौंकते कुत्तों की आवाज भयावह बना रही थी. कालोनी की गली नंबर 4 गहरे अंधेरे में डूबी हुई थी. गली में स्ट्रीट लाइट्स थीं, लेकिन एक भी लाइट रोशन नहीं थी. गली के मोड़ पर स्थित मकान नंबर 17 पर लिखा था, शुभम कुंज. बरामदे से आ रही मैली रोशनी में नाम पढ़ पाना मुश्किल था.

इस दोमंजिले मकान में सामने प्रथम तल के हिस्से में पहले बरामदा था, जिस में मद्धिम सी लाइट जल रही थी. उस के बाद बेडरूम था, जिस में गहरा अंधेरा था.

बेडरूम में अलगअलग पलंग पर कैलाबाई, सीताराम और दीपिका सोए थे. दीपिका के पास उस का 5 महीने का बेटा शिवाय भी सोया था.

लगभग 3 बजे टौयलेट जाने के लिए उठे सीताराम ने लाइट जलाई तो उस का दिमाग झनझना कर रह गया. दीपिका की बगल में लेटा 5 महीने का बेटा शिवाय गायब था. जबकि दीपिका गहरी नींद में सो रही थी.

सीताराम को हैरानी हुई कि बच्चा गायब है और नींद में गाफिल दीपिका को पता तक नहीं कि बच्चा कहां है. सीताराम की समझ में नहीं आया कि 5 महीने का बच्चा कहां गया. उस ने चीखते हुए दीपिका और अपनी सास कैलाबाई को जगाया. दीपिका अलसाई सी उठी तो उस ने उसे झिंझोड़ते हुए पूछा, ‘‘शिवाय कहां है?’’

‘‘कहां है शिवाय?’’ दीपिका ने आंखें मलते हुए उसी का सवाल दोहराया तो सीताराम गुस्से से उबल पड़ा.

‘‘यही तो मैं तुम से पूछ रहा हूं. कहां है शिवाय?’’ सीताराम पत्नी पर बुरी तरह झल्लाया, ‘‘तुम उलटा मुझ से सवाल कर रही हो.’’

इधरउधर ताकती निरुत्तर दीपिका को सीताराम ने झिंझोड़ दिया, ‘‘अभी तक तुम्हारी खुमारी नहीं उतरी? मैं पूछ रहा हूं शिवाय कहां है? कहां है हमारा बच्चा?’’ इस के साथ ही सीताराम बिलख उठा.

इस के बाद दीपिका समझ गई कि बच्चा गायब है. उस ने रोतेरोते बिस्तर खंगाल लिया. जब शिवाय कहीं नजर नहीं आया तो उस की रुलाई फूट पड़ी, ‘‘मेरा लाल?’’

रात में चीखपुकार मची तो मकान में हड़कंप मच गया. मकान के पिछवाड़े रहने वाले किराएदार और निचले हिस्से में रहने वाले घर वाले भी ऊपर आ गए. जब उन लोगों को बात समझ में आई तो सभी हैरान रह गए कि 5 माह के बच्चे को कौन ले गया.

लोगों ने घर का कोनाकोना छान मारा तभी सीताराम को सास कैलाबाई की चीख सुनाई दी, ‘‘अरे बेटा, गजब हो गया.’’ आवाज छत से आई थी. सीताराम घर वालों के साथ छत पर गया. कैलाबाई बिलखती हुई पानी की टंकी तरफ इशारा कर रही थी, ‘‘अरे मुन्ना तो यहां पड़ा है.’’

बदहवास सीताराम पानी की टंकी की तरफ दौड़ा. टंकी का ढक्कन खुला हुआ था और शिवाय पानी में डूबा हुआ था. बच्चे को पानी में डूबा देख कर सीताराम के रोंगटे खड़े हो गए. गुस्से से पूरा बदन सुलग उठा.

सीताराम ने जल्दी से बच्चे को टंकी से निकाला और अपने घर वालों के साथ जेके लान अस्पताल की तरफ दौड़ा. डाक्टरों ने बच्चे का इलाज शुरू किया भी. लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका. नि:संदेह मामला हत्या का था. मैडिको लीगल केस होने की वजह से डाक्टरों ने इस की इत्तला पुलिस को दे दी.

बोरखेड़ा के थानाप्रभारी हरेंद्र सोढ़ा सूचना मिलते ही छानबीन के लिए अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों ने संदेह व्यक्त किया कि बच्चे को संभवत: गला दबाने के बाद पानी की टंकी में डाला गया होगा.

इंसपेक्टर सोढ़ा बच्चे के शव को देख कर हैरान रह गए. 5 माह के बच्चे के साथ यह क्रूरतम अपराध था. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजना चाहा तो घर वाले अड़ गए. लेकिन सीआई सोढ़ा ने उन्हें समझाया कि मामला हत्या का है, इसलिए पोस्टमार्टम जरूरी है.

आखिरकार परिजन मान गए. पुलिस ने मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने के बाद शव घर वालों को सौंप दिया. पुलिस ने बच्चे के पिता सीताराम की रिपोर्ट पर हत्या का केस दर्ज कर लिया.

थानाप्रभारी सोढ़ा ने वारदात की सूचना उच्च अधिकारियों को दे दी और सुबह 6 बजे अस्पताल से सरस्वती कालोनी पहुंच गए. तब तक एडिशनल एसपी राजेश मील और सीओ अमृता दुहन भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

सूचना मिलने पर एसपी दीपक भार्गव भी घटनाक्रम पर आ गए. क्राइम टीम और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया गया था. टीम के साथ आए फोटोग्राफर ने मृत बच्चे के विभिन्न कोणों से फोटो लिए.

प्रशिक्षित कुत्ते को शिवाय के कपड़े सुंघा कर छोड़ा गया तो वह ट्रेनर के साथ एक पलंग के चारों तरफ घूमा और कमरे से सीधा निकल कर छत पर जाने वाली सीढि़यों की तरफ दौड़ा. सीढि़यां चढ़ कर वह पानी की टंकी के पास पहुंच कर रुक गया.

फोरैंसिक टीम ने 11 जगह से फिंगरप्रिंट उठाए. सीताराम के पलंग के अलावा छत पर रखी टंकियों से भी फिंगर प्रिंट उठाए गए. मकान की छत पर 4 टंकियां थीं.

उन में 3 काले रंग की और एक सफेद रंग की थी. शिवाय को कमरे के ठीक ऊपर रखी सफेद रंग की टंकी में डुबोया गया था. साढ़े 5 सौ लीटर की यह टंकी 80 प्रतिशत भरी हुई थी.

पुलिस अधिकारियों ने मकान के बाहर और बरामदे में लगे 2 सीसीटीवी  कैमरों को भी देखा. लेकिन उस में कोई भी बाहरी शख्स दिखाई नहीं दिया. पुलिस इस मुददे पर संशय में ही रही कि कमरे की कुंडी भीतर से बंद थी या नहीं. बैडरूम का दरवाजा गैलरी की तरफ खुलता था. लगभग 4 फीट की गैलरी में बाथरूम और टौयलेट था.

पुलिस अधिकारियों ने झांक कर देखा, लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से यह आभास होता कि हत्यारा कहीं छिप कर बैठा रहा होगा. गैलरी से सीढि़यां नीचे भी जाती थीं और छत पर भी.

नीचे जाने वाली सीढि़यों पर उतरने के लिए दरवाजा खोलना पड़ता था. चूंकि कैमरों में कुछ नहीं मिला था, इस दरवाजे पर संदेह करना व्यर्थ था. छानबीन के दौरान पुलिस एक ही नतीजे पर पहुंची कि बैडरूम में दीपिका, सीताराम और कैलाबाई ही थे. यानी बाहर का कोई व्यक्ति नहीं आया था.

पुलिस ने मृत शिवाय की मौसी रत्ना गौड़ से पूछताछ की, जो ग्राउंड फ्लोर पर रहती थी. रत्ना गौड़ की बातों से कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. मसलन, शिवाय सीताराम दंपति का पहला बेटा नहीं था. उन के यहां शिवाय से पहले भी 2 संतानें हुई थीं, वह भी बेटे. रत्ना का कहना था पहले बेटे की मौत श्वास नली में दूध चले जाने से हुई और दूसरे बेटे के दिल में छेद था.

यही उस की मौत का कारण बना. रत्ना ने बताया कि 2 बच्चों की मौत के बाद दीपिका गुमसुम सी रहने लगी थी. रत्ना ने यह भी बताया कि उस का किसी से मिलनाजुलना भी नहीं के बराबर था.

सीताराम ने बताया कि उस की सास कैलाबाई गांव में रहती थीं. नाती को देखने और संभालने के लिए वह अकसर आती जाती रहती थीं. फिलहाल भी कैलाबाई इसीलिए आई हुई थीं. कैलाबाई भी उन के कमरे में भी सोई हुई थीं.

बातचीत करने के बाद पूरा परिवार 10 बजे सो गया था. रात 11 बजे उस की नींद खुली तो दीपिका बच्चे को दूध पिला रही थी. पत्नी को यह कह कर मैं फिर सो गया कि मुन्ने को डकार दिला कर सुलाना. लेकिन रात 3 बजे नींद खुली तो कहतेकहते… सीताराम की हिचकियां बंध गईं.

घटना के बाद से दीपिका रोरो कर बेहाल थी. ऐसी स्थिति में उस पर शक करना बेमानी था. ऐसे गमगीन माहौल में एडिशनल एसपी राजेश मील को पूछताछ करना उचित नहीं लगा.

कोटा के बोरखेड़ा थानांतर्गत एक कालोनी है- सरस्वती कालोनी. इस कालोनी की गली नंबर 4 में स्थित 17 नंबर का मकान ‘शुभम कुंज’ रविरत्न गौड़ का है. रविरत्न गौड़ अपनी पत्नी कैलाबाई के साथ अंता कस्बे में रहते हैं.

उन के इस मकान में 2 बेटियों के परिवार और 2 किराएदार यानी 4 परिवार रह रहे थे. रविरत्न गौड़ की छोटी बेटी दीपिका अपने पति सीताराम के साथ इस मकान की पहली मंजिल पर सामने के हिस्से में रहती थी. सीताराम शिक्षक था. उस की तैनाती ग्रामीण क्षेत्र में थी.

दीपिका कोटा के महाराव भीमसिंह अस्पताल में टेक्नीशियन के पद पर काम कर रही थी. मकान के ग्राउंड फ्लोर पर दीपिका की बहन रत्ना गौड़ अकेली रहती थी. रविरत्न गौड़ और उन की पत्नी कैलाबाई जब कोटा आते थे तो रत्ना वाले हिस्से में ठहरते थे.

यह संयोग ही था कि घटना वाली रात को कैलाबाई कोटा आई हुई थीं. रात में दीपिका और दामाद के साथ बातचीत करते हुए 10 बज गए तो वह उन्हीं के कमरे में सो गईं.

सीताराम और दीपिका का विवाह 16 साल पहले 2003 में हुआ था. इस बीच उन के 2 बच्चे हुए और काल कवलित हो गए. इस घटना के दौरान दीपिका मातृत्व अवकाश पर थी जो अब खत्म होने को था. उसे सोमवार 20 अगस्त को ड्यूटी जौइन करनी थी. दीपिका ने जिस तरह सोशल मीडिया पर बेटे शिवाय के फोटो शेयर किए थे, उस ने पुलिस को काफी प्रभावित किया.

पुलिस के लिए हैरानी की बात यह थी कि रविवार 19 मई को 5 माह के मासूम की हत्या की खबर सोशल मीडिया पर तो तेजी से फैली लेकिन कालोनी की गली नंबर 4 में किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगी थी.

पुलिस के संदेह के दायरे में 3 व्यक्ति थे- सीताराम, दीपिका और कैलाबाई. तीनों के मृतक शिवाय से रक्त संबंध थे. लेकिन तफ्तीश  के दौरान पुलिस को एक के बाद एक मिली जानकारियां दीपिका की तरफ इशारा कर रही थीं.

पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी सोढ़ा को सीताराम की एक बात कील की तरह चुभ रही थी कि पिछले एक महीने से दीपिका का व्यवहार अचानक बदल गया था.

पता नहीं क्यों वह इस बात की रट लगाए हुए थी कि मेरी छुट्टियां खत्म हो रही है. ड्यूटी पर जाऊंगी तो शिवाय को कैसे संभालूंगी. सीताराम के आश्वस्त करने के बाद भी वह फिर उसी ढर्रे पर आ जाती थी.

सीताराम के इस बयान से पुलिस के संदेह को बल तो मिला, लेकिन इस की पुष्टि एक निजी अस्पताल के रिकौर्ड से हुई. रिकौर्ड के मुताबिक करीब 20 दिन पहले भी दीपिका ने शिवाय का गला घोंटने का प्रयास किया था.

तब शिवाय निजी अस्पताल में करीब एक सप्ताह तक भरती रहा था. इस बीच पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. मैडिकल बोर्ड में शामिल डाक्टरों के मुताबिक दुपट्टे से बच्चे का गला घोंटने का प्रयास किया गया था. लेकिन इस से उस की मौत नहीं हुई थी.

बाद में उसे पानी की टंकी में डाला गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शिवाय के गले पर नीले निशान पाए गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने दीपिका के व्यवहार को ले कर महाराव भीम सिंह अस्पताल में उस के साथ काम करने वाले सहकर्मियों से भी बातचीत की. लगभग सभी की एक ही प्रतिक्रिया थी कि दीपिका न केवल व्यवहार कुशल थी बल्कि अपने काम के प्रति भी पूरी तरह समर्पित थी.

सहकर्मियों का यह भी कहना था कि उस के व्यवहार से ऐसा कभी नहीं लगा कि वह मानसिक रूप से परेशान थी. अलबत्ता उसे अस्पताल से घर ले जाने  और लाने वाले आटो चालक ने इतना जरूर कहा कि यह बेहद गुस्सैल थी.

गुस्सा आने पर वह कुछ भी भला बुरा कहने से नहीं चूकती थी. अलबत्ता कुल मिला कर वह ठीकठाक थी. सहकर्मियों से ले कर आटो चालक के उत्तर से पुलिस अधिकारी उलझन में पड़ गए. तभी एसपी दीपक भार्गव ने अपनी पैनी निगाहों से समस्या के समाधान के लिए जांच को नई दिशा दी.

भार्गव साहब ने जांचकर्ताओं से कहा कि दीपिका का मोबाइल खंगालो. मोबाइल में पता चलेगा कि वो क्या देखती थी, उस का रुझान किस तरफ था. एसपी भार्गव का कहना था कि किसी की मानसिक  स्थिति की जानकारी लेने के लिए मोबाइल सब से अच्छा साधन हो सकता है.

इस का नतीजा काम का साबित हुआ. दीपिका के मोबाइल से एक चौंकाने वाला रहस्योदघाटन हुआ. पता चला कि फुरसत के वक्त वह हौरर फिल्में देखती थीं. रात को सब के सो जाने के बाद हौरर फिल्म देखने के लिए उस की आंखें मोबाइल की स्क्रीन पर गड़ी रहती थीं. घटना की रात भी वह हौरर फिल्म देखने के बाद सोई थी.

एडिशनल एसपी राजेश मील ने जब यह बात एसपी साहब को बताई तो उन का कहना था यह भी एक तरह का नशा है. नशे की झोंक में अपराध का जुनून सवार होता है. तब आदमी वैसा ही कुछ करने को उतारू हो जाता है, जैसा देखता है. एसपी साहब ने कहा कि दीपिका से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ करने की कोशिश करो.

एडिशनल एसपी राजेश मील की देखरेख में पुलिस अधिकारियों अमृता दुलहन और हरेंद्र सोढ़ा ने दीपिका, उस के पति सीताराम और कैलाबाई को सामने बिठा कर दीपिका से पूछताछ शुरू की तो वह पहले ही सवाल पर उबल पड़ी. उस ने सवाल के बदले सवाल किया कि कोई मां अपने बेटे को कैसे मार सकती है?

गुस्से से उफनती हुई दीपिका पुलिस पर आरोप लगाने पर तुल गई, ‘‘आप मुझे बेवजह फंसाने की कोशिश कर रहे हैं.’’

उस का गुस्सा यही नहीं थमा, उस ने पति सीताराम को भी लपेटे में ले कर कहा, ‘‘यह सब तुम्हारी करनी है. याद रखना मुझे फंसाओगे तो तुम भी नहीं बचोगे.’’ सीताराम दीपिका के तानों से स्तब्ध रह गया. उस के मुंह से बोल तक नहीं फूटे.

सीओ अमृता दुहन जैसा चाहती थीं वैसा ही हुआ. दीपिका का गुस्सा बुरी तरह उफान पर था. अमृता दुहन ने मौका देख सवाल किया तो तीर निशाने पर लगा. उन्होंने पूछा, ‘‘20 दिन पहले शिवाय को क्या हुआ था, जो तुम ने उसे एक निजी अस्पताल में दाखिल कराया था?’’

गुस्से में उफनती दीपिका की जैसे घिग्घी बंध गई. लोहा गरम था, अमृता दुहन ने उसे फिर निशाने पर लिया, ‘‘तुम हौरर फिल्में देखती हो? घटना की रात तुम ने जो फिल्म देखी, उस में क्या बताया गया था.’’

गुस्से के मारे दीपिका का चेहरा सुर्ख हो गया. वह तड़प कर पुलिस अधिकारियों की तरफ मुड़ी और जहरीले लहजे में चिल्ला कर बोली, ‘‘हां, मैं ने ही मार दिया शिवाय को, नहीं है मुझे बच्चे पसंद… बच्चा चाहे किसी का भी हो मुझे किसी का बच्चा नहीं सुहाता…?’’

सीताराम और कैलाबाई के चेहरे सफेद पड़ चुके थे. जबकि पुलिस अधिकारियों के चेहरों पर मुसकराहट थी. पुलिस ने शनिवार एक जून को दीपिका को अदालत में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

पुलिस के अनुसार इस वारदात के बाद पहले 2 बच्चों की मौतें भी संदेह के दायरे में आ गई हैं. उन की जांच की जा रही है.

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019

 

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