उत्तर प्रदेश के शहर इलाहाबाद के थाना अतरसुइया के रहने वाले प्रेमप्रकाश श्रीवास्तव ने 19 जून, 2017 को अपनी बेटी अंजलि को फोन किया. अंजलि मुंबई में रह कर फिल्मों में काम करती थी. वह अंधेरी वेस्ट के जुहू लेन स्थित परिमल सोसाइटी की 5वीं मंजिल पर रहती थी. सन 2011 में वह अपने घर से एक्टिंग करने मुंबई गई थी. उस के पिता प्रेमप्रकाश श्रीवास्तव इलाहाबाद में अपना बिजनैस करते हैं और मां शीला हाउसवाइफ हैं. पतिपत्नी समयसमय पर अंजलि को फोन कर के उस की खैरखबर लेते रहते थे. वैसे वे नहीं चाहते थे कि अंजलि मुंबई जा कर रहे और एक्टिंग करे. लेकिन बेटी की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उन्हें उस की बात माननी पड़ी थी.
अंजलि को उस के मातापिता प्यार से ‘लवी’ कहते थे. मुंबई में अंजलि ने अपने बातव्यवहार से अपने काम के लोगों से अच्छे संपर्क बना लिए थे. कोशिश कर के उसे कुछ फिल्मों में काम भी मिल गया था. उन में सब से प्रमुख भोजपुरी फिल्म ‘कच्चे धागे’ थी. इस के बाद उस की कुछ और भी फिल्में आईं, जिन में ‘दम होई जेकरा में ओही गाड़ी खूंटा’, ‘लहू के दो रंग’, ‘दीवानगी हद से’, ‘केहू ता दिल में बा’, ‘अब होई बगावत’ और ‘ठोक देब’ प्रमुख थीं.
अंजलि ने हिंदी फिल्म ‘धानी का डीजे कैम’ में भी काम किया था. उस ने करीब आधा दरजन हिंदी फिल्मों में काम किया था, बावजूद इस के उस की ऐसी कोई पहचान नहीं बन पाई थी, जिस से उसे किसी अच्छे बैनर की फिल्म मिलती.
अंजलि इस कोशिश में थी कि उसे कोई लीड रोल वाली फिल्म मिल जाए, पर उसे ऐसी फिल्म नहीं मिल रही थी. ज्यादातर फिल्मों में उसे साइड रोल ही मिल रहे थे. घर वालों से मिलने वह 4-5 महीने में इलाहाबाद आती रहती थी.
फरवरी, 2017 में जब वह घर आई थी तो काफी खुश थी. उसे उम्मीद थी कि अब उस के घर वाले गर्व से कह सकेंगे कि उन की बेटी फिल्म एक्ट्रेस है. कुछ लोगों ने कई फिल्मों में अंजलि के काम को देखा तो उस की काफी तारीफ की. इस से उसे उम्मीद थी कि अब उसे बड़ी फिल्में मिल जाएंगी. कुछ दिन घर में रह कर वह मुंबई चली गई थी. जब भी उसे टाइम मिलता था, वह घर वालों से फोन पर बात कर लेती थी.
फिल्मों की दुनिया का ग्लैमर तो हर किसी को दिखता है, लेकिन परदे के पीछे का दर्द कम ही लोग जानते हैं. वह दर्द कई बार कलाकार को हताश और निराश कर देता है. उस हताशा और निराशा में कुछ कलाकार संयम से काम ले कर खुद को उबार लेते हैं तो कुछ उसी में उलझ कर दम तोड़ देते हैं. कहने को अपनी मौत का वह खुद ही जिम्मेदार होता है, पर असल में इस के लिए समाज की व्यवस्था जिम्मेदारी होती है.
भोजपुरी फिल्मों की दुनिया भी कुछ ऐसी ही रचीबसी है. छोटेछोटे शहरों के बहुत सारे युवा तरहतरह के सपने ले कर मुंबई पहुंचते हैं. वहां पहुंच कर कोई हीरो बनना चाहता है तो कोई हीरोइन, कोई विलेन बनना चाहता है तो कोई पुलिस वाला. किसी को गायक बनना होता है तो कोई डायरेक्टर बनने की कोशिश में रहता है.
लेकिन मुंबई आने वाले हर कलाकार की ख्वाहिशें पूरी नहीं हो पातीं. अगर हर साल बनने वाली फिल्मों की संख्या की बात करें तो यहां हर साल 100 से अधिक फिल्में बनती हैं. अपनी कहानी, गानों और द्विअर्थी संवादों के कारण ज्यादातर फिल्मों को ए-सर्टिफिकेट दिया जाता है.
वैसे भोजपुरी फिल्मों का सब से बड़ा बाजार बिहार, झारखंड ही है. अब उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और मुंबई में भी ये फिल्में चलने लगी हैं. मुंबई में हर साल हीरो और हीरोइन बनने वाले लड़केलड़कियों की लंबी कतार लगी होती है. फिल्में बनाने वाले ऐसे निर्मातानिर्देशक ज्यादा हैं, जो कम बजट की फिल्में बनाते हैं.
इन में अधिकांश फिल्में तो सिनेमाघरों तक पहुंच ही नहीं पातीं. ऐसे में इन फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों को बड़ी निराशा होती है. क्योंकि वह यही सोचते हैं कि उन की फिल्म रिलीज होगी तो लोग उन के काम को देखेंगे और पसंद करेंगे. इस के बाद उन्हें और फिल्मों में काम मिलेगा.
भोजपुरी फिल्मों पर आज भी पुरुष प्रधान समाज का कब्जा है. ज्यादातर गायक, जो फिल्मों में हीरो बनते हैं, वही कब्जा किए हुए हैं. ये लोग अपने साथ काम करने वालों की एक लौबी बनाए होते हैं, जिस से नए कलाकार के लिए काम करना मुश्किल हो जाता है.
अंजलि फेसबुक के जरिए अपने घर वालों से जुड़ी थी. उस की मां समयसमय पर मुंबई में उस के पास रहने के लिए जाती रहती थीं. अंजलि मां को घुमाने के लिए कभी बीच पर ले जाती थी तो कभी सिद्धिविनायक मंदिर. 6 जून को अंजलि के मातापिता की शादी की सालगिरह थी. उस ने फेसबुक पर अपनी यादों का एक एलबम शेयर करते हुए मम्मीपापा को बधाई दी थी.
29 साल की अंजलि की नई फिल्म ‘केहू ता दिल में बा’ रिलीज हो चुकी थी. वह अब नए प्रोजैक्ट की तैयारी में थी. 8 जून को अंजलि ने अपने फेसबुक पेज पर एक शेर लिखा था, ‘उस के साथ जीने का एक मौका दे दे खुदा, तेरे साथ तो मरने के बाद भी रह लेंगे.’
अंजलि की इस पोस्ट को उस समय दोस्तों ने ऐसे ही समझा था. कई ने पूछा भी था कि कौन है वह, जिस के लिए उस ने यह शेर लिखा है.
19 जून, 2017 की बात है. अंजलि के मोबाइल पर उस की मां शीला ने फोन किया. घंटी बजने के बाद भी अंजलि ने फोन रिसीव नहीं किया तो शीला ने कई बार फोन किया. हर बार उस के फोन की घंटी बजी, पर फोन नहीं उठा. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. जब कभी अंजलि व्यस्त होती थी तो फोन रिसीव कर के कह देती कि ‘मम्मी मैं अभी बिजी हूं. बाद में काल कर लूंगी.’
बेटी द्वारा फोन न उठाने से शीला परेशान हो गईं. उन्होंने उसी समय पति प्रेमप्रकाश श्रीवास्तव को पूरी बात बताई. प्रेमप्रकाश ने भी अंजलि को फोन किया. पूरी घंटी बजने के बाद भी फोन नहीं उठा तो परेशान हो कर उन्होंने उस की सोसाइटी के नंबर पर संपर्क किया.
सोसाइटी वालों ने डुप्लीकेट चाबी से अंजलि का कमरा खोला तो कमरे के अंदर अंजलि पंखे से लटकी मिली. सोसाइटी वालों ने यह जानकारी फोन द्वारा पुलिस को दी और अंजलि को लीला कपूर अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
अंजलि के घर वालों को जैसे ही यह खबर मिली, वे मुंबई पहुंचे. मुंबई पुलिस की एसीपी रश्मि कारदिंकर ने बताया कि मृतका के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. पुलिस को अपनी जांच में हत्या से संबंधित कोई सबूत नहीं मिला. ऐसे में इस मामले को आत्महत्या ही माना गया.
एक युवा अभिनेत्री, जो कुछ साल पहले बहुत सारे सपने ले कर मुंबई गई थी, उन सपनों का अंत हो चुका था. अंजलि के साथ काम करने वाले कई कलाकार इस घटना से बहुत आहत थे. वे कह रहे थे कि अंजलि बहुत ही मिलनसार और हंसमुख थी. उस में फिल्मनगरी वाली चालाकियां नहीं थीं. शायद यही वजह रही कि वह इस दुनिया की चालबाजियों को समझ नहीं पाई.
अंजलि को अपने काम और टैलेंट पर भरोसा था. वह इस उम्मीद में थी कि एक बार उसे अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिल जाए तो वह दुनिया को दिखा देगी कि उस में भी अभिनय क्षमता है. फिल्म जगत के कई लोगों ने उसे भरोसा दिलाया था कि वह उसे अपनी फिल्म में काम देंगे. जब अंजलि के भरोसे को ठेस लगी तो उस के सामने दुनिया के रंगमंच को अलविदा कहने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखा.
अंजलि के इस फैसले से भोजपुरी फिल्मों की दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ा. वहां हर काम अपनी गति से चल रहा है. प्रभाव पड़ा है तो अंजलि के परिवार, उस के मातापिता और भाईबहन पर. वह इस हादसे से टूट गए हैं. घटना के कई महीने बीत जाने के बाद भी वे अभी कुछ बोलनेसमझने की हालत में नहीं हैं. उन्हें आज भी अपनी प्यारी बेटी की याद आती है तो लगता है लवी अभी आने वाली है.
अंजलि के बिना मुंबई से वापस आते समय उस की मां ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा था, ‘मुंबई कभी दोबारा आना नहीं होगा’. बेटी की याद पूरे परिवार को बारबार सताती है. 13 जुलाई को अंजलि के जन्मदिन पर उस की मां ने फेसबुक पर बेटी को बधाई देते हुए पूछा था, ‘क्या अब तुझ को मेरी याद नहीं आती?’
मां के लिए बेटी बहुत बड़ा सहारा थी. बेटी ऐसे हार जाएगी, यह कभी उन्होंने सोचा भी नहीं था. यही वजह है कि मां को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा कि अंजलि अब इस दुनिया में नहीं है.