सब से पहले वह अपने लिए सुख वैभव के साधन तैयार करता है, फिर उसे देह सुख भी सामान्य लगने लगता है. स्वामी चिन्मयानंद के साथ भी ऐसा ही कुछ था, जिस की वजह से…

हाल ही में कानून की छात्रा कामिनी द्वारा स्वामी चिन्मयानंद पर लगाया गया यौनशोषण और बलात्कार का आरोप खूब चर्चाओं में रहा. छात्रा द्वारा निर्वस्त्र स्वामी की मसाज करने के वायरल वीडियो ने भी स्वामी की हकीकत खोल कर रख दी. यौनशोषण और बलात्कार की यह कहानी पूरी तरह से फिल्मी सैक्स, सस्पेंस और थ्रिल से भरी हुई है. शाहजहांपुर के सामान्य परिवार की कामिनी स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज से एलएलएम यानी मास्टर औफ ला की पढ़ाई कर रही थी.

हौस्टल में रहने के दौरान नहाते समय उस का एक वीडियो तैयार किया गया और उसी वीडियो को आधार बना कर उस का यौनशोषण शुरू हुआ. शोषण से मुक्ति पाने के लिए लड़की ने भी वीडियो का सहारा लिया. लेकिन इस प्रभावशाली संत और पूर्व केंद्रीय मंत्री को कटघरे में खड़ा करना आसान नहीं था. फिर भी लड़की ने हिम्मत से काम लिया और अंत में संत को विलेन साबित कर के ही दम लिया. यह संत थे स्वामी चिन्मयानंद.

अटल सरकार के बाद हाशिए पर चले गए स्वामी चिन्मयानंद 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रयासरत थे. वह राज्यसभा के जरिए संसद में पहुंचना चाहते थे. इस के पहले कि उन के संसद जाने का सफर पूरा होता, उन के ही कालेज में पढ़ने वाली लड़की कामिनी ने उन का चेहरा बेनकाब कर दिया.

कानून की पढ़ाई करने वाली 24 वर्षीया कामिनी ने जब मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ यौनशोषण और बलात्कार का आरोप लगाया तो पूरा देश सन्न रह गया.

एक लड़की के लिए ऐसे आरोप लगाना और साबित करना आसान काम नहीं था. इस का कारण यह था कि पूरा प्रशासन स्वामी चिन्मयानंद को बचाने में लगा था. इस के बावजूद पीडि़त लड़की और चिन्मयानंद के बीच शह और मात का खेल चलता रहा.

स्वामी चिन्मयानंद का रसूख लड़की पर भारी पड़ रहा था, जिस के चलते शोषण और बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की के खिलाफ 5 करोड़ की रंगदारी मांगने का मुकदमा कायम कर के उसे जेल भेज दिया गया.

लड़की को जेल में और आरोपी को एसी कमरे में रहने को सुख मिला. शोषण और बलात्कार के मुकदमे में हिरासत में लिए गए स्वामी चिन्मयानंद को जेल में 2 रात रखने के बाद सेहत की जांच को ले कर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पीजी अस्पताल भेज दिया गया था.

शह और मात के खेल में बाजी किस के हाथ लगेगी, यह तो अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा. लेकिन धर्म के नाम पर कैसेकैसे खेल खेले जाते हैं, यह समाज ने खुली आंखों से देखा. नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते वीडियो के सामने आने पर खुद स्वामी चिन्मयानंद ने जनता से कहा, ‘वह अपने इस कृत्य पर शर्मिंदा हैं.’

चिन्मयानंद से पहले सन 2015 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की ही रहने वाली एक लड़की ने भी आसाराम बापू के खिलाफ ऐसे ही आरोप लगाए थे. आसाराम और चिन्मयानंद में केवल इतना ही फर्क है कि आसाराम केवल संत थे, जबकि चिन्मयानंद संत के साथसाथ भाजपा के सांसद और मंत्री भी रह चुके हैं.

चिन्मयानंद के जेल जाने के समय भाजपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने कहा कि स्वामी चिन्मयानंद भाजपा के सदस्य नहीं हैं. वह इस बात का जवाब नहीं दे सके कि यदि वह सदस्य नहीं हैं तो उन्हें भाजपा की सदस्यता से कब निकाला गया था.

स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के सहारे अपनी राजनीति शुरू की थी. वह राममंदिर आंदोलन के दौरान देश के उन प्रमुख संतों में थे, जो मंदिर निर्माण की राजनीति कर रहे थे. भाजपा ने स्वामी चिन्मयानंद को 3 बार लोकसभा का टिकट दे कर सांसद बनाया और अटल सरकार में उन्हें मंत्री बनने का मौका भी दिया.

चिन्मयानंद भाजपा में उस समय के नेता हैं, जब संतों को राजनीति में शामिल कर के सत्ता का रास्ता तय किया गया था. उस समय लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, कल्याण सिंह, महंत अवैद्यनाथ जैसे संत और नेताओं का भाजपा में बोलबाला था.

ऐसे कद्दावर स्वामी चिन्मयानंद की सच्चाई तब खुली, जब 24 अगस्त, 2019 को उन के ही स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज में एलएलएम में पढ़ने वाली कामिनी ने उन के खिलाफ यौनशोषण और बलात्कार का आरोप लगाते हुए वीडियो जारी किया.

स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज मुमुक्षु आश्रम की शिक्षण संस्थाओं में से एक है. इस कालेज की स्थापना शाहजहांपुर और उस के आसपास के इलाकों के छात्रों को कानून की शिक्षा देने के लिए हुई थी.

पीडि़त कामिनी इसी कालेज में एलएलएम की पढ़ाई कर रही थी. वह यहीं के हौस्टल में रहती थी. हौस्टल में रहने के दौरान ही स्वामी चिन्मयानंद की उस पर निगाह पड़ी. फलस्वरूप पढ़ाई के साथसाथ उसे कालेज में ही नौकरी दे दी गई. कामिनी सामान्य कदकाठी वाली गोरे रंग की लड़की थी.

कालेज में पढ़ने वाली दूसरी लड़कियों की तरह उसे भी स्टाइल के साथ सजसंवर कर रहने की आदत थी. चिन्मयानंद ने उस के जन्मदिन की पार्टी में भी हिस्सा लिया और केक काटने में हिस्सेदारी की. वैसे कामिनी और चिन्मयानंद की नजदीकी बढ़ने की अपनी अलग कहानी है.

कामिनी का कहना है कि उसे योजना बना कर फंसाया गया. जब वह हौस्टल में रहने आई तो एक दिन नहाते समय चोरी से उस का वीडियो बना लिया गया. इस के बाद उस वीडियो को वायरल कर के उसे बदनाम करने की धमकी दी गई. फिर स्वामी चिन्मयानंद ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बलात्कार की भी उन्होंने वीडियो बनाई. इस के बाद उस के शोषण का सिलसिला चल निकला.

चिन्मयानंद को मसाज कराने का शौक था. मसाज के दौरान ही कभीकभी वह सैक्स भी करते थे. अपने शोषण से परेशान कामिनी ने स्वामी की तर्ज पर उन की मसाज और सैक्स के वीडियो बनाने शुरू कर दिए. वह जान गई थी कि स्वामी चिन्मयानंद के जाल से निकलने के लिए शोषण की कहानी को दुनिया के सामने लाना होगा.

पीडि़त कामिनी ने स्वामी चिन्मयानंद के तमाम वीडियो पुलिस को सौंपे हैं. इन में से 2 वीडियो वायरल भी हो गए. वायरल वीडियो में चिन्मयानंद नग्नावस्था में कामिनी से मसाज करा रहे थे. इस में वह कामिनी से आपसी संबंधों की बातें भी कर रहे थे. उन की आपसी बातचीत से ऐसा लग रहा था, जैसे दोनों के बीच यह सामान्य घटना हो.

इस दौरान कामिनी की तबीयत और नया मोबाइल खरीदने की बात भी हुई. कामिनी ने काले रंग की टीशर्ट पहनी थी. उस ने मसाज वाले दोनों वीडियो अपने चश्मे में लगे खुफिया कैमरे से तैयार किए थे. खुद को फ्रेम में रखने के लिए उस ने अपना चश्मा मेज पर उतार कर रख दिया था, जिस से स्वामी चिन्मयानंद के साथ वह भी कैमरे में दिख सके.

यह कैमरा कामिनी के नजर वाले चश्मे के फ्रेम में नाक के ठीक ऊपर इस तरह लगा था जैसे कोई चश्मे की डिजाइन हो. कामिनी ने यह चश्मा औनलाइन शौपिंग से मंगवाया था.

मसाज करने के बाद जब कामिनी हाथ धोने बाथरूम में गई तो शीशे में उस का अपना चेहरा भी कैमरे में कैद हो गया था. पूरी तैयारी के बाद उस ने स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लेकिन उस की तैयारी के मुकाबले स्वामी का प्रभाव भारी पड़ा.

खुद को फंसता देख स्वामी चिन्मयानंद ने कामिनी और उस के 3 दोस्तों पर 5 करोड़ की फिरौती मांगने का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस काम में स्वामी चिन्मयानंद का रसूख काम आया.

कामिनी की कोशिश के बावजूद स्वामी चिन्मयानंद पर उत्तर प्रदेश में मुकदमा दर्ज नहीं हो सका. लेकिन पुलिस ने कामिनी पर फिरौती मांगने का मुकदमा दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी. कामिनी अपने दोस्त के साथ राजस्थान के दौसा शहर चली गई थी. वहां उस ने सोशल मीडिया पर अपनी दास्तान सुनाई. जनता और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद उस का मुकदमा दिल्ली में दर्ज किया गया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने आननफानन में स्पैशल जांच टीम बना कर पूरा मामला उस के हवाले कर दिया. भारी दबाव के बाद आखिर चिन्मयानंद को 19 सितंबर, 2019 की सुबह करीब पौने 9 बजे एसआईटी ने गिरफ्तार कर लिया. जिस समय चिन्मयानंद को गिरफ्तार किया गया, उस समय वह अपने आश्रम में ही थे.

शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम को मोक्ष प्राप्त करने का स्थान बताया जाता है. शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश के पिछडे़ जिलों में गिना जाता है. करीब 30 लाख की आबादी वाले इस जिले की साक्षरता 59 प्रतिशत है. मुमुक्षु आश्रम भी यहां की धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता था.

शाहजहांपुर बरेली हाइवे पर स्थित यह आश्रम करीब 21 एकड़ जमीन पर बना है. इस के परिसर में ही इंटर कालेज से ले कर डिग्री कालेज तक 5 शिक्षण संस्थाएं हैं. मुमुक्षु आश्रम का दायरा शाहजहांपुर के बाहर दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश तक फैला है.

मुमुक्षु आश्रम की ताकत का लाभ ले कर वर्ष 1985 के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के साथसाथ अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाई. वह 3 बार सांसद और एक बार केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री बने. दूसरों को मोक्ष देने का दावा करने वाला मुमुक्षु आश्रम स्वामी चिन्मयानंद को मोक्ष की जगह जेल भेजने का जरिया बन गया.

मुमुक्षु आश्रम में संत के रूप में रहने आए चिन्मयानंद मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता बन गए थे. अधिष्ठाता बनने के बाद चिन्मयानंद खुद को भगवान समझने लगे. अहंकार का यही भाव उन के पतन का कारण बना.

श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने स्वामी चिन्मयानंद को अखाड़ा परिषद से बाहर कर दिया है. अखाड़ा सचिव महंत स्वामी रामसेवक गिरी ने कहा कि चिन्मयानंद के कारण संत समाज की छवि धूमिल हुई है.

मुमुक्षु आश्रम की स्थापना सन 1947 में स्वामी शुकदेवानंद ने की थी. शुकदेवानंद शाहजहांपुर के ही रहने वाले थे. उन की सोच हिंदूवादी थी. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में ‘गांधी फैज-ए-आजम’ नाम से कालेज की स्थापना हुई थी. शुकदेवानंद को यह कालेज मुसलिमपरस्त लगा.

शुकदेवानंद को लगा कि इस के जवाब में संस्कृत का प्रचार करने के लिए इसी तरह से दूसरे कालेज की स्थापना होनी चाहिए, जिस से हिंदू संस्कृति का प्रचारप्रसार किया जा सके. इस के बाद शुकदेवानंद ने 1947 में श्री दैवी संपदा इंटर कालेज और 1951 में दैवी संपदा संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की.

स्वामी शुकदेवानंद पोस्ट ग्रैजुएट कालेज की स्थापना सन 1964 में हुई. छात्रों की संस्कृत में विशेष रुचि न होने के कारण यहां पढ़ने वाले छात्रों की संख्या काफी कम थी. पोस्टग्रैजुएट कालेज खुल जाने के बाद यहां के इंटर कालेज और डिग्री कालेज के छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी, जिस से कालेज में पैसा आने लगा.

देखते ही देखते शुकदेवानंद का प्रभाव बढ़ने लगा. शाहजहांपुर के बाद दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश में शुकदेवानंद आश्रम बन गए. शुकदेवानंद के निधन के बाद उन के नाम पर शुकदेवानंद ट्रस्ट की स्थापना हुई. सभी कालेज और आश्रम इसी के आधीन आ गए.

शुकदेवानंद के निधन के बाद उन के आश्रम और बाकी काम की जिम्मेदारी स्वामी धर्मानंद ने संभाली. धर्मानंद स्वामी शुकदेवानंद के शिष्य थे और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले थे. स्वामी धर्मानंद ने भी अपने समय में शिक्षा के माध्यम से हिंदू संस्कृति को ले कर काम किया. बीमार रहने के कारण कुछ सालों बाद उन का भी देहांत हो गया. धर्मानंद के बाद चिन्मयानंद ने गद्दी संभाली.

चिन्मयानंद का जन्म सन 1947 में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में परसपुर क्षेत्र के त्योरासी गांव में हुआ था. उन का असल नाम कृष्णपाल सिंह है. 1967 में 20 साल की उम्र में संन्यास लेने के बाद वह हरिद्वार पहुंचे, जहां संत समाज ने उन का नाम चिन्मयानंद रखा.

चिन्मयानंद का परिचय भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी से था. राजनीतिक रुचि के कारण चिन्मयानंद उन के करीबी बन गए. इस के बाद चिन्मयानंद उत्तर प्रदेश में प्रमुख संत नेता के रूप में उभरने लगे. इसी के चलते वह विश्व हिंदू परिषद के संपर्क में आए.

यही वह समय था जब विश्व हिंदू परिषद राममंदिर को ले कर उत्तर प्रदेश में आंदोलन चला रहा था. उस के लिए मठ, मंदिर और आश्रम में रहने वाले संत मठाधीश बहुत खास हो गए थे.

विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल ने उत्तर प्रदेश में जिन आश्रम के लोगों को राममंदिर आंदोलन से जोड़ा, उन में गोरखपुर जिले के गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ, शाहजहांपुर के स्वामी चिन्मयानंद और अयोध्या से महंत परमहंस दास प्रमुख थे.

जब देश में हिंदुत्व की राजनीतिक लहर बनी, तब चिन्मयानंद विश्व हिंदू परिषद के साथसाथ भाजपा के भी कद्दावर नेता बन गए. विश्व हिंदू परिषद ने जब राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति का गठन किया तो स्वामी चिन्मयानंद को उस का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया. राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति का राष्ट्रीय संयोजक बनने के बाद

स्वामी चिन्मयानंद के नेतृत्व में संघर्ष समिति का दायरा बढ़ाने का काम किया गया. इस से उन की पहचान पूरे देश में प्रखर हिंदू वक्ता के रूप में स्थापित हुई.

हिंदुत्व के सहारे देश की सत्ता हासिल करने का सपना देख रही भाजपा ने साधुसंतों को संसद पहुंचाने की योजना बनाई. इसी के चलते चिन्मयानंद को लोकसभा का चुनाव लड़ाने की योजना बनी. सन 1990 में भाजपा ने केंद्र में वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले कर देश को मध्यावधि चुनाव में धकेल दिया तो 1991 में चिन्मयानंद को शरद यादव के खिलाफ बदायूं से टिकट दिया गया.

चुनाव में स्वामी चिन्मयानंद ने शरद यादव को 15 हजार वोटों से पटखनी दे दी. इस के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने 1998 में मछलीशहर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

इस के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म और सत्ता का तालमेल बैठा कर आगे बढ़ना शुरू किया. सन 1992 में जब बाबरी मसजिद ढहाई गई तब स्वामी चिन्मयानंद भी वहां मौजूद थे. लिब्रहान आयोग ने जिन लोगों को आरोपी माना था, उस में चिन्मयानंद का नाम भी शामिल था.

बाबरी मसजिद ढहाए जाने से 9 दिन पहले चिन्मयानंद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर एफिडेविट में बताया था कि 6 दिसंबर, 1992 को सिर्फ कार सेवा की जाएगी और अयोध्या में इस से कानूनव्यवस्था के लिए किसी तरह का खतरा नहीं होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने उन की बातों पर विश्वास भी किया, लेकिन बाबरी मसजिद ढहा दी गई. सन 2009 में लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट में

कहा था कि कार सेवा के बहाने मसजिद गिराने का प्लान पहले से तय था और इस की भूमिका में परमहंस रामचंद्र दास, अशोक सिंघल, विनय कटियार, चंपत राय, आचार्य गिरिराज, वी.पी. सिंघल, एस.सी. दीक्षित और चिन्मयानंद शामिल थे.

1990 के दशक में राजनीतिक रूप से स्वामी चिन्मयानंद अपना रसूख काफी मजबूत कर चुके थे. देश के हिंदुत्व के नायकों में से उन की गिनती होने लगी. 12वीं लोकसभा (1998) में उन्होंने अपने आप को सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता और धार्मिक गुरु बताया था. चिन्मयानंद 30 से अधिक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थाओं के साथ जुड़े थे.

चिन्मयानंद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच गहरा रिश्ता है. 1980 के दशक में राममंदिर आंदोलन के दौरान स्वामी चिन्मयानंद और योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ ने मंदिर निर्माण के लिए कंधे से कंधा मिला कर काम किया था. दोनों ने मिल कर राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति की स्थापना भी की थी. उन के बीच करीबी रिश्ता था.

अटल सरकार में मंत्री पद से हटने के बाद स्वामी चिन्मयानंद का राजनीतिक रसूख हाशिए पर सिमट गया था. 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो स्वामी चिन्मयानंद का रसूख फिर से बढ़ गया. उन का दरबार सजने लगा था. तमाम नेता और अफसर वहां शीश झुकाने जाने लगे. मुमुक्षु आश्रम का दरबार एक तरह से सत्ता का केंद्र बन गया था.

कामिनी के पिता की तरफ से चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 376सी, 354बी, 342, 306 के तहत मुकदमा लिखाया गया. दूसरी ओर स्वामी चिन्मयानंद के वकील की तरफ से कामिनी और उस के दोस्तों संजय सिंह, सचिन और विक्रम के खिलाफ भादंवि की धारा 385, 506, 201, 35 और आईटी ऐक्ट 67ए के तहत 5 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

दोनों ही मुकदमों में गिरफ्तारी हो चुकी है. जानकार लोगों का मानना है कि रंगदारी के मुकदमे के सहारे यौनशोषण और बलात्कार के मुकदमे को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है.

पुलिस द्वारा आरोप लगाने वाली कामिनी के ही खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे 24 सितंबर को पकड़ कर जेल भेज दिया गया. इस के बाद विरोधी दलों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर चिन्मयानंद को बचाने के आरोप लगाए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कामिनी नाम परिवर्तित है.

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

 

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