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हसनप्रीत सिंह लाइब्रेरी में अपने सामने अखबार फैलाए बैठा था. फिर भी उस का सारा ध्यान सीढि़यों की तरफ ही लगा हुआ था. सीढि़यों पर जैसे ही किसी के आने की आहट होती, वह चौकन्ना हो कर उधर देखने लगता. उसे पूरी उम्मीद थी कि रमनदीप कौर जरूर आएगी. दरअसल वह खुद ही तयशुदा वक्त से 15-20 मिनट पहले आ गया था.

कस्बे में उन दोनों की मुलाकातें न के बराबर ही हो पाती थीं. सारा दिन एकदूसरे के लिए तड़पते रहने के बावजूद वे 10-15 दिनों में एकाध बार, बस 3-4 मिनट के लिए ही मिल पाते थे. इस छोटी सी मुलाकात के दौरान भी आमतौर पर उन में आपस में कोई बात नहीं हो पाती थी.

उन की बातचीत का माध्यम वे पर्चियां ही रह गई थीं, जो एकदूसरे को लिखा करते थे. इन्हीं पर्चियों में वे अपनी सब भावनाएं, अपने सब दर्द उड़ेल दिया करते थे. इन्हीं पर्चियों में उन की अगली मुलाकात की जगह और उस का वक्त तय होता था.

दरअसल, खेमकरण जैसे छोटे से उस कस्बे में लड़केलड़की का आपस में बात करना इतना आसान नहीं था. फिर बात जब एक ही गांव और एक ही बिरादरी की हो तो और भी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं.

बात तो कहीं न कहीं की जा सकती थी, पर बात करने की खबर पूरे कस्बे में फैलते देर नहीं लगती थी. कम उम्र होने के बावजूद लड़केलड़की में इतनी समझ थी कि वे न तो अपनी और न अपने घर वालों की बदनामी होने देना चाहते थे.

इसलिए जब भी वे मिलते तो यही कोशिश करते कि बात न की जाए. हां, कभीकभार मौका मिल जाने पर एकाध वाक्य का आदानप्रदान हो जाया करता था. बावजूद इतनी सावधानी के आखिर एक दिन उन की चोरी पकड़ी गई और उस दिन दोनों के घर में जो तूफान उठा, वह बड़ा भयानक था. दरअसल, उन के मोहल्ले के किसी आदमी ने दोनों को एक साथ देख कर उन के घर शिकायत कर दी थी.

हसनप्रीत सिंह के पिता परविंदर सिंह भारतपाक सीमा पर बसे कस्बा खेमकरण सेक्टर के वार्ड-2 में रहते थे. परविंदर सिंह के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा अर्शदीप सिंह जो शादीशुदा था और छोटा बेटा 21 वर्षीय हसनप्रीत, जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता के साथ खेतीबाड़ी करता था.

जाट परिवार से संबंधित परविंदर सिंह के पास कई एकड़ उपजाऊ भूमि है और उन की गिनती बड़े किसानों में होती थी. उन के पास धनदौलत, ऐश्वर्य किसी चीज की कमी नहीं थी.

वहीं रमनदीप कौर के पिता जस्सा सिंह की गिनती भी बड़े किसानों में होती थी. उन के पास भी कई एकड़ उपजाऊ भूमि और सुखसुविधाओं का सभी सामान था. जस्सा सिंह का परिवार परविंदर के घर से कुछ दूरी पर वार्ड नंबर-2 में ही रहता था. दोनों परिवारों में अच्छा मेलमिलाप था पर वर्चस्व को ले कर कभीकभार कहासुनी हो जाती थी.

बहरहाल, हसनप्रीत अखबार सामने रखे अपने आसपास बैठे लोगों पर भी नजर रखे हुए था. यह ध्यान रखना बेहद जरूरी था कि उन लोगों में से कोई उस की जानपहचान का न हो. साथ ही इस बात का भी खयाल रखना जरूरी था कि वहां बैठे किसी आदमी को उस पर यह शक न हो जाए कि वह वहां अखबार पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि किसी और इरादे से आया है.

society

एक समस्या और भी थी. सामने के किताबों से भरी अलमारियों वाले कमरे में लाइब्रेरियन के अलावा कई लोग मौजूद थे. उस कमरे में लोगों का आनाजाना भी लगा रहता था.

हसन और रमनदीप की मुलाकात करीब 2 साल पहले एक शादी में हुई थी. 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद हसन एग्रीकल्चर का डिप्लोमा कर के पिता के साथ अपने खेतों में आधुनिक तरीके से खेती का काम करने लगा था.

रमनदीप कौर सामान्य कद की गोरी लेकिन साधारण सी लड़की थी. उस की यही साधारणता उस के आकर्षण का कारण थी, जिस पर हसनप्रीत पूरी तरह कुरबान था.

शहर में 2 लाइब्रेरियां थीं. एक तो बहुत छोटी थी, जिस में मात्र 4-6 लोग बड़ी मुश्किल से बैठ पाते थे. वहां मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था. हां, यह दूसरी लाइब्रेरी काफी बड़ी थी.

वे लोग इसी लाइब्रेरी में मिला करते थे. अब दोनों कोडवर्ड के जरिए मिलने की जगह, तारीख और समय तय कर लेते और इस तरह 10-15 दिनों में एक बार मिला करते.

इन्हीं मुलाकातों में वे भावनाओं से लबालब अपनीअपनी पर्चियां किसी न किसी तरीके से एकदूसरे को पकड़ा दिया करते थे. उस दिन उन का मिलना भी इसी तरह एक चिट्ठी के जरिए तय हुआ था.

हसनप्रीत की नजरें बारबार अपनी कलाई घड़ी से टकरातीं. तय वक्त से पूरे 7 मिनट ऊपर हो चुके थे. वह मायूस हो चुका था. उसे लगने लगा था कि अब रमन नहीं आएगी.

तभी हाथ में एक छोटा सा लिफाफा पकड़े रमन सीढि़यों पर नजर आई. बेंच पर संयोगवश हसनप्रीत के पास वाली जगह खाली थी, जहां आ कर रमन बैठ गई. आसपास इतने लोग बैठे थे कि बात करना बिलकुल असंभव लग रहा था. हसनप्रीत के दिल में तूफान सा मचल रहा था.

लाइब्रेरी में जमे तल्लीनता से अखबार पढ़ रहे लोगों के बीच पसरी चुप्पी के बावजूद बात करना कतई संभव नहीं लग रहा था. हसन ने कनखियों से रमन की ओर देखा. वह भी अखबार सामने रखे हुए उसे पढ़ने का नाटक करने लगी. इसी उधेड़बुन में कई मिनट बीत गए.

हसनप्रीत बड़ी बेचैनी सी महसूस कर रहा था. इस से पहले ऐसे कई मौके आए थे, जब वे इस तरह लाइब्रेरी में मिले थे और आपस में उन की कोई बात नहीं हो पाई थी. पर उन के लिए आज का दिन तो विशेष था.

रमन ने कोई खास बात करने के लिए हसन को बुलाया था. आखिर अपने चारों ओर देखने के बाद रमन ने चौकन्ने हो कर धीमे स्वर में कहा, ‘‘हसन, मेरे पिताजी किसी भी सूरत में हमारी शादी के लिए तैयार नहीं होंगे, इसलिए तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘अपने प्यार को भूलना क्या इतना आसान होता है? तुम भी पागलों जैसी बातें करती हो.’’ हसन ने रोआंसे हो कर कहा, ‘‘देखो मेरे पिता को देखो, वह मेरी खुशी की खातिर तुम्हें अपनी बहू बनाने को तैयार हो गए हैं. क्या तुम्हारे पिताजी मुझे अपना दामाद स्वीकार नहीं कर सकते?’’

‘‘यही तो विडंबना है मेरे भाग्य की. तुम्हारी जुदाई शायद मेरा नसीब है.’’

‘‘तुम भी बेकार की बातें करती हो. इंसान को अपनी कोशिश तब तक जारी रखनी चाहिए जब तक उस की समस्या का समाधान नहीं हो जाता.’’ हसनप्रीत ने रमन को हौसला बंधाते हुए कहा.

‘‘तुम पुरुष हो और तुम्हारे लिए ऐसी बातें करना सहज है, लेकिन मैं लड़की हूं. मैं इस समाज का और अपने परिवार का सामना नहीं कर सकती.’’

रमन के ये वाक्य उस के टूटे हृदय की वेदना और उस की हार की निशानी थे, जिसे हसनप्रीत ने स्पष्ट महसूस किया. इसलिए उस ने ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘एक काम करो, तुम सारी बातें उस वाहेगुरु पर छोड़ दो. अगर हमारा प्यार सच्चा है और इरादा पक्का है तो मुझे पूरा विश्वास है कि सच्चे पातशाह हमारी मदद जरूर करेंगे. वही कोई न कोई रास्ता निकालेंगे. बस तुम विश्वास रखना.’’

बातचीत के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए.

जस्सा सिंह और उस के भाइयों को जिस दिन से यह खबर लगी थी कि परविंदर का छोटा बेटा हसनप्रीत उन की बेटी रमनदीप में दिलचस्पी ले रहा है, उन्होंने उसी दिन से रमन पर नजर रखनी शुरू कर दी थी. यहां तक कि उसे किसी काम से अपने घर के सामने रहने वाले अपने चाचा के घर भी अकेले जाने की इजाजत नहीं थी.

ऐसे में हसन से मिलना तो बिलकुल संभव ही नहीं था, इसीलिए अपनी आखिरी मुलाकात में वह हसन को स्पष्ट कह आई थी कि शायद अब दोबारा मिलना कभी संभव न हो.

हसनप्रीत के कहने पर रमनदीप ने अपने जीवन की बागडोर वाहेगुरु के हाथों में सौंप दी थी और आने वाले समय का बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगी थी. हसन ने भी अपने आप को वाहेगुरु की मरजी के हवाले कर दिया था. अब उन की मुलाकातें लगभग समाप्त हो गई थीं.

दूसरी ओर जस्सा सिंह और उन के परिवार के दिमाग में यह फितूर अभी तक बना हुआ था. उन्हें हर समय यह संदेह घेरे रहता था कि हसन अब भी उन की लड़की से मिलताजुलता है. वह किसी न किसी बहाने से हसन और उस के परिवार को सबक सिखाने के लिए उतावले रहते थे.

13 मई, 2018 की बात है. शाम के लगभग 4 बजे का समय होगा. परविंदर ने अपने बेटे हसन से कहा कि वह बाड़े में जा कर पशुओं को चारा डाल आए. परविंदर के पास कई दुधारू पशु थे. उस ने पशुओं के लिए अपने घर के बाहर एक बाड़ा बना रखा था.

वह बाड़ा जस्सा सिंह के घर की तरफ था और पशुओं को प्रतिदिन चारा डालने की जिम्मेदारी हसन की थी. 13 तारीख रविवार की शाम 4 बजे भी वह रोज की तरह पशुओं को चारा डालने बाड़े में गया.

पशुओं को चारा डाल कर हसन लगभग 2 घंटे में लौट आता था, लेकिन उस दिन देर रात गए जब वह वापस नहीं लौटा तो परविंदर को उस की चिंता हुई. उन्होंने अपने बड़े बेटे अर्शदीप के साथ जा कर बाड़े में देखा तो हैरान रह गए. पशु चारे के बिना भूख से बिलबिला रहे थे.

इस का मतलब हसन बाड़े में आया ही नहीं था. परविंदर ने मन ही मन कुढ़ते हुए अर्शदीप से कहा, ‘‘बहुत लापरवाह लड़का है, भूखे पशुओं को छोड़ कर न जाने कहां आवारागर्दी कर रहा है. आज इस की खबर लेनी पड़ेगी.’’

इस के बाद दोनों बापबेटे ने मिल कर पशुओं को चारा खिलाया और हसन की तलाश शुरू कर दी. परविंदर के भाइयों को इस बात का पता चला तो वे भी हसन की तलाश में जुट गए.

सब को इस बात का आश्चर्य था कि आज से पहले हसन ने इस तरह की हरकत कभी नहीं की थी, फिर ऐसा क्या हुआ कि जो वह बिना कुछ बताए घर से लापता हो गया था. बहरहाल, रात भर हसन की तलाश की जाती रही पर उस की कहीं कोई खोजखबर नहीं मिली.

अगले दिन सुबह परविंदर सिंह को उन की रिश्तेदारी में लगते भाई दया सिंह ने आ कर बताया कि उस के लड़के हसन को जस्सा सिंह का परिवार पकड़ कर अपने घर ले गया है. उसे यह खबर किसी ने बताई थी. बताने वाले ने कहा था कि जिस समय हसन पशुओं को चारा डालने बाड़े की ओर जा रहा था तो उस ने देखा, जस्सा सिंह और उस के भाई हसन को अपने साथ अपने घर की ओर ले जा रहे थे.

यह पता चलते ही परविंदर, उस का बेटा अर्शदीप और उन के रिश्तेदार जस्सा सिंह के घर पहुंचे पर जस्सा सिंह ने हसन के वहां होने से साफ इनकार कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने परविंदर और उन के साथ आए लोगों की बेइज्जती कर के अपने घर से भगा दिया.

जस्सा सिंह के ऐसे व्यवहार से परविंदर सिंह का शक विश्वास में बदल गया. किसी अनहोनी के डर से उन का तनमन बुरी तरह कांप उठा. वह वहीं से सभी लोगों के साथ थाना खेमकरण पहुंचे और थानाप्रभारी बलविंदर सिंह को हसनप्रीत के लापता होने की पूरी घटना बता कर जस्सा सिंह और उस के परिवार पर संदेह जताया.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने परविंदर की पूरी शिकायत सुनने के बाद उन के लिखित बयान दर्ज किए और एएसआई चरण सिंह, दर्शन सिंह, हैडकांस्टेबल दिलबाग सिंह, बलविंदर सिंह, इंदरजीत सिंह, मेजर सिंह, तरलोक सिंह और दलविंदर सिंह को साथ ले कर जस्सा सिंह के घर जा पहुंचे.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह द्वारा हसन के बारे में पूछने पर जस्सा सिंह ने बताया कि उन्होंने तो कई दिनों से हसन को नहीं देखा. इस के बाद थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने रमनदीप कौर के बारे में पूछा तो जस्सा सिंह ने बताया कि वह रिश्तेदारी में गई हुई है.

कहां गई है, यह पूछने पर वह बगलें झांकने लगा. इस से थानाप्रभारी बलविंदर सिंह का संदेह गहरा गया. उन्होंने परिवार के हर सदस्य से जब अलगअलग पूछताछ की तो सब के बयान एकदूसरे से भिन्न थे.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने अब वहां ठहरना उचित नहीं समझा और पूछताछ के लिए सब को हिरासत में ले कर थाने आ गए. थाने पहुंच कर जब सब से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन लोगों ने मिल कर हसनप्रीत और रमनदीप कौर की हत्या कर के उन दोनों की लाशों को छिपा दिया है.

अपराध स्वीकृति के बाद थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने एसएसपी (तरनतारन) दर्शन सिंह मान को इस हत्याकांड की सूचना दे दी. उन के निर्देश पर जस्सा सिंह, उस की पत्नी मंजीत कौर और बेटा आकाश, उस के भाई हरपाल सिंह, शेर सिंह, मनप्रीत कौर, शेर सिंह के बेटे राणा और एक रिश्तेदार धुला सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

इन सभी के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 364, 201, 148, 149 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. हसनप्रीत सिंह और रमनदीप कौर की हत्या के अपराध में पुलिस ने इन सभी को सक्षम अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ के दौरान अभियुक्तों ने बताया कि दोनों की हत्या करने के बाद रमनदीप कौर का शव जस्सा सिंह के घर के सामने रहने वाले उस के भाई हरपाल सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपा दिया है, जबकि हसन की लाश को उन्होंने जस्सा सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपा दी ाि.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर एसएसपी दर्शन सिंह मान और पट्टी के एसडीएम सुरिंदर सिंह की मौजूदगी में दोनों घरों से हसन और रमनदीप की लाशें बरामद कर के उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह 2 प्रेमियों को जुदा करने की क्रूरता भरी दास्तां थी.

हसनप्रीत सिंह और रमनदीप कौर दोनों एकदूसरे से बेहद प्रेम करते थे और शादी करना चाहते थे. लेकिन जस्सा सिंह को यह बात किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं थी. उस ने अपनी बेटी पर पहरा बैठा दिया था. उस का घर से बाहर तक निकलना बंद करवा दिया गया था.

पर इस के बावजूद जस्सा के मन में यह बात कहीं घर कर गई थी कि एक न एक दिन हसन उस की बेटी को भगा ले जाएगा या उस की बेटी घर वालों को धोखा दे कर हसन के साथ भाग कर शादी कर लेगी.

जस्सा को अपनी मूंछों पर बड़ा गर्व था, वह नहीं चाहता था कि बेटी को ले कर कभी उसे अपनी मूंछें नीची करनी पड़ें. इसलिए वह इस किस्से को ही जड़ से खत्म करना चाहता था.

उस का सोचना था कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी, इसलिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. अपने भाइयों के साथ मिल कर हसन की हत्या की योजना वह बहुत पहले ही बना चुका था.

सो 13 मई की शाम जब हसन अपने पशुओं को चारा डालने बाड़े की ओर जा रहा था तो जस्सा सिंह और उस के भाई हरपाल ने उसे रास्ते में रोक लिया और कोई बात करने का बहाना बना कर अपने घर ले गए.

उन के घर पहुंचने पर घर की औरतों मंजीत कौर और मनप्रीत कौर ने घर का मुख्यद्वार बंद कर दिया और हसन से बिना कोई बात किए, बिना कोई मौका दिए ट्रैक्टर की लोहे की रौड उठा कर उस के सिर पर दे मारी.

अचानक हुए इस हमले से हसन चक्कर खा कर जमीन पर गिर गया. रमनदीप कौर अपने कमरे से यह सब देख रही थी. अपने प्रेमी की यह हालत देख वह उस का बचाव करने के लिए भागती हुई आई तो जस्सा सिंह ने उसी रौड का एक जोरदार वार उस के सिर पर भी कर दिया और चीखते हुए बोला, ‘‘अपने यार को बचाने आई है, अब तू भी मर.’’

इस के बाद सब ने मिल कर हसन और रमन पर रौड से तब तक प्रहार किए, जब तक उन के प्राण नहीं निकल गए.

2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद रमनदीप कौर का शव जस्सा सिंह के घर के सामने रहने वाले उस के भाई हरपाल सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपाया गया और हसन की लाश को जस्सा सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में.

पुलिस रिमांड के दौरान अभियुक्तों की निशानदेही पर वह लोहे की रौड भी बरामद कर ली गई, जिस से दोनों प्रेमियों की हत्या की गई थी. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड से जुड़े सभी आठों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जिला जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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