लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में 4 युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे.
यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था. उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास काफी पुश्तैनी संपत्ति थी. पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था.
इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी मंजिलों पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थी, जिस की शादी हो चुकी थी.
इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थे, उस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को खुले विचारों वाली माना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी. उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने देखी, सुनी थी.
पिता के सैलून चले जाने के बाद वह दिन भर घर में अकेली रहती थी. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद ‘हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते देते थे.
25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ 7 बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरे और सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए. सामने के मकान से देख रहे युवक ने जानबूझ कर इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया. जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया.
रात कोई सवा 9 बजे थकाहारा गोविंद दूध की थैली लिए घर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंच गया. इस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए.
जिस पड़ोसी ने उन्हें ऊपर जाते देखा था, संयोग से उस ने तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर उन युवकों को अपने घर में मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी.
तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश की, लेकिन संभवत: वे गलत चाबी ले आए थे. इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आया, जिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए.
26 नवंबर की सुबह के 8 बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही शुरू हो गई थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ गई.
दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती थी. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद थीं, इसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी थी.
ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा इस्तेमाल करती थीं. जब जिस को जरूरत होती, वही एक्टिवा ले जाती. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुई, चीखते हुए वापस बाहर आ गई.
उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार भी बाहर आ गए. उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंद, उस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी हैं. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.
कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दी.
कुछ ही देर में एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदार, एफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए.
तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गई, जिस से मौके पर जमा भारी भीड़ जमा हो गई. मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा था, जिस के सिर में गोली लगी थी. उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी.
इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी. गोविंद की लाश दरवाजे के पास पड़ी थी, इस का मतलब उस की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैरों में जूते थे और हाथ में दूध की थैली.
पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे 2 हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगे, लेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आए, जिस से उन की भी हत्या कर दी गई होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को 9 बजे घर आते देखा था. उस के बाद 3 लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि शारदा और दिव्या की हत्या 9 बजे के पहले की गई होगी. जबकि गोविंद की हत्या 9 बजे हुई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आई, उस से पुलिस को शक हुआ कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.
लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले 30 लाख रुपए में गांव की अपनी जमीन बेची थी.
दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थी, जो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगे, परिवार के परिचित रहे होंगे और उन्हें गाड़ी की चाबी रखने की जगह भी मालूम थी.
हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था.
मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी.
वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगाले, इस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की.
दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम ‘मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था. इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से भी पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
घटना वाले दिन से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थी, उन सभी से पुलिस ने पूछताछ की. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू की.
जिस में दोनों जगहों के फुटेज से 2 संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गई, जिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक दिव्या की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए.
जाहिर है हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएं, वे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैं, यह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था.
दरअसल, जब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी तभी देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने दिव्या की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा था, जिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था.
इस से एसपी को शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता है, जो आसपास ही रहता होगा. बात सही थी, वह अनुराग परमार उर्फ बौबी था, जो विनोबा नगर में रहता था.
इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा.
जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के 4 दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और वहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया. उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले है, जो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है.
यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगर, रतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया.
इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के मकान में रह रहा है. और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.
यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाई, जिस के चलते 2 दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं.
कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज 5 दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और 2 एसआई सहित 5 पुलिसकर्मी भी घायल हुए.
लौकडाउन में घर में सैलून चलाना महंगा पड़ा गोविंद को गोविंद सेन पिछले 22 साल से स्टेशन रोड पर सैलून चलाते थे. लौकडाउन के दौरान वह चोरीछिपे अपने घर बुला कर लोगों की कटिंग करते रहे. दिलीप भी उन से कटिंग करवाने घर जाया करता था. जहां उस ने गोविंद की अमीरी देख कर उन्हें शिकार बनाने की योजना बनाई थी.
दिलीप के साथियों ने बताया कि शारदा और दिव्या की हत्या करने की योजना तो वे पहले से ही बना कर आए थे. लेकिन अंतिम समय में गोविंद भी अपनी दुकान से लौट कर आ गए थे. इसलिए उन की भी हत्या करनी पड़ी. आरोपियों ने बताया कि उस के घर से उन्हें 30 लाख रुपए मिलने की उम्मीद थी. लेकिन उन्हें केवल 20 हजार नकद और कुछ जेवर ही मिले थे.
दिलीप अपने कारनामों का कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए लूट के दौरान सामने वाले की सीधे हत्या कर देता था.
दिलीप अब तक एक ही तरीके से 6 हत्याएं कर चुका था, इसलिए पुलिस उसे साइकोकिलर मानती थी. दिलीप के साथियों का कहना था कि पुलिस से बचने के लिए हत्या तो करनी ही पड़ेगी मर्डर इज मस्ट.