ऑडियो में सुनें पूरी कहानी
0:00
12:24

सदियों से अनचाही सी रवायत चली आ रही है कि धनदौलत और ताकत वाले अपने से कमतर लोगों को दबा कर रखते हैं और उन का मनमाना शोषण करते हैं. यह बात तब और घातक हो जाती है जब ऐसे लोग कमजोरों की बहूबेटियों पर नजरें जमाने लगते हैं. अमीर घर के आदित्य उर्फ प्रिंस द्वारा रागिनी की हत्या भी इसी सब की शृंखला थी. लेकिन कानून ने…

उस रोज सितंबर 2019 की 20 तारीख थी. बलिया के जिला एवं सत्र (विशेष) न्यायाधीश चंद्रभानु

सिंह को बलिया के बहुचर्चित रागिनी दूबे हत्याकांड में फैसला सुनाना था. दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें पूरी हो चुकी थीं. अभियुक्त कृपा शंकर तिवारी, आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस, नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव अदालत में मौजूद थे. उन के अलावा अदालत में फैसला सुनने वालों की भी भीड़ थी.

आखिरी दलीलों के बाद न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने फैसला लिख कर सुरक्षित रख लिया था. जब उन्होंने फैसले की फाइल उठा कर सामने रखी तो अदालत में सन्नाटा छा गया.

न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने अदालत में मौजूद पांचों अभियुक्तों पर उड़ती सी नजर डाल कर फैसला सुनाना शुरू किया, ‘अदालत में पेश किए गए तमाम सबूतों और 12 गवाहों की गवाहियों से पांचों अभियुक्त दोषी साबित हुए हैं. इसलिए यह अदालत दोषियों कृपाशंकर तिवारी, आदित्य तिवारी, नीरज तिवारी और सोनू तिवारी को उम्रकैद की सजा सुनाती है. उम्रकैद के साथसाथ इन चारों को 50-50 हजार का जुर्माना भी भरना होगा.’

एक पल रुक कर न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने आगे कहा, ‘एक अभियुक्त दीपू यादव जो किशोर है का मामला अभी बाल न्यायालय में विचाराधीन है. पांचों मुजरिम जमानत पर चल रहे थे. तत्काल प्रभाव से पांचों के जमानत बांड निरस्त किए जाते हैं. अदालत 4 मुजरिमों को जेल भेजने का आदेश देती है. जबकि पांचवें दोषी दीपू यादव को बाल कारागर भेजा जाएगा.’

अदालत के आदेश का तत्काल पालन हुआ. पुलिस ने पांचों दोषियों को गिरफ्त में ले लिया, जिन में से कृपाशंकर तिवारी, आदित्य तिवारी, नीरज तिवारी और सोनू तिवारी को जिला कारागर भेज दिया गया, जबकि दीपू यादव को बालगृह भेजा गया.

जिस केस में इन लोगों को सजा सुनाई गई थी, वह 2 साल पहले 8 अगस्त, 2017 को हुआ था. उस दिन नाबालिग रागिनी दूबे के साथ जो कुछ हुआ वह दिल दहला देने वाला था. धनदौलत और गुरूर में अंधे बजहां ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी के बेटे आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस ने एकतरफा प्यार में अपने दोस्तों के साथ मिल कर नाबालिग रागिनी दूबे के साथ जो हैवानियत भरा खेल खेला था, उस से इंसानियत भी शरमा गई थी.

8 अगस्त, 2017 की सुबह रागिनी दूबे तैयार हो कर अपनी बहन सिया के साथ स्कूल जाने के लिए घर से निकली थी. इन बहनों का घर बलिया जिले की बांसडीह रोड थाने के अंतरगत आने वाले बांसडीह गांव में था. रागिनी और सिया सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में पढ़ती थी. रागिनी 12वीं में थी और सिया 11वीं में.

दरअसल डर की वजह से रागिनी महीनों से स्कूल नहीं जा पाई थी. उसे बोर्ड की परीक्षा के फार्म के बारे में पता करना था कि फार्म कब भरा जाएगा. साथ ही गैरहाजिरी में छूटी पढ़ाई के बारे में भी जानना था. इसीलिए वह बहन के साथ स्कूल जा रही थी.

रागिनी और सिया अकसर पड़ोस के गांव बजहां के काली मंदिर के रास्ते से स्कूल जाती थीं. उस दिन भी वे बातें करती हुई उसी रास्ते स्कूल जा रही थीं. जब दोनों बहनें काली मंदिर के पास पहुंची, तो अचानक 2 बाइक आड़ेतिरछे उन के सामने आ कर खड़ी हो गईं. दोनों बाइकों पर 4 युवक सवार थे.

अचानक सामने आ कर रुकी बाइकों को देख रागिनी और सिया सकपका गईं, क्योंकि वे दोनों बाइकों से भिड़तेभिड़ते बची थीं.

उन युवकों की इस हरकत पर रागिनी को गुस्सा आया तो वह उन पर चिल्लाई, ‘‘दिखता नहीं है क्या तुम्हें? अंधे हो गए हो?’’

‘‘दिखता भी है और अंधा भी नहीं हूं. बोल, क्या कर लेगी?’’ गुरूर में डूबा युवक बाइक से उतरते हुए बोला, वह आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस था. उस ने आगे कहा, ‘‘जा तुझे जो करना है, कर लेना. मैं नहीं डरता. मैं यहां से नहीं हटूंगा.’’

‘‘देखो, शराफत से हमारा रास्ता छोड़ दो और हमें जाने दो.’’

‘‘अगर रास्ता नहीं छोड़ा तो क्या करोगी?’’ प्रिंस अकड़ते हुए बोला.

‘‘दीदी, क्यों बहस करती हो इन से. मां ने कहा था कि इन के मुंह मत लगना. इन के मुंह लगोगी तो कीचड़ के छींटे हम पर ही पड़ेंगे.’’ सिया ने रागिनी को समझाया.

‘‘देख, तेरी छोटी बहन कितनी समझदार है, कितनी समझदारी भरी बातें कर रही है.’’ प्रिंस ने रागिनी पर तंज कसा.

‘‘नहीं सिया नहीं, आज मैं रास्ता नहीं बदलूंगी और न ही इन कमीनों से डरूंगी. बहुत जी ली, इन चांडालों से डरडर के. इन कुत्तों ने मेरा जीना हराम कर रखा है. इन से जितना डरेंगे, ये हमें उतना ही डराएंगे. इन्हें इन की औकात दिखानी ही पड़ेगी.’’

‘‘ओ, झांसी की रानी.’’ प्रिंस गुर्राया, ‘‘किसे औकात दिखाएगी तू, मुझे. तुझे पता है किस से पंगा ले रही है. प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा हूं. प्रिंस नाम है मेरा. मिनटों में छठी का दूध याद दिला दूंगा. तेरी औकात क्या है कुतिया. मैं ने तुझे स्कूल जाने से मना किया था कि तू स्कूल नहीं जाएगी.’’

‘‘हां, तो.’’ रागिनी डरी नहीं बल्कि प्रिंस के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘तू होता कौन है, मुझे कहीं जाने से रोकने वाला?’’

‘‘दीदी, क्यों बेकार की बहस किए जा रही हो.’’ सिया बोली, ‘‘चलो यहां से.’’

‘‘नहीं सिया, तुम चुप रहो.’’ रागिनी ने सिया से कहा, ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी यहां से. रोजाना मरमर के जीने से तो अच्छा है एक बार मर जाएं. मैं जिल्लत की जिंदगी नहीं जीना चाहती. इन दुष्टों को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई.

‘‘तूने दुष्ट किसे कहा कमीनी? ’’

‘‘तुझे, और किसे.’’

धीरेधीरे दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. बात बढ़ती देख प्रिंस के दोस्त अपनी बाइक से नीचे उतर आए और उस के पास जा खड़े हुए, सिया रागिनी को समझाने में लगी थी कि लड़कों से पंगा मत लो, यहां से चलो. लेकिन उस ने सिया की एक न सुनी.

गुस्से से लाल हुए प्रिंस ने आव देखा न ताव, रागिनी को जोर से धक्का मारा. वह लड़खड़ा कर जमीन पर जा गिरी. रागिनी अभी संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि प्रिंस उस पर टूट पड़ा. प्रिंस को रागिनी से भिड़ता देख उस के तीनों साथी भी उस का साथ देने लगे.

सब ने मिल कर रागिनी को कब्जे में ले लिया. दोस्तों का साथ पा कर इंसान से हैवान बने प्रिंस ने कमर में खोंस कर रखे फलदार चाकू से रागिनी के गले पर ताबड़तोड़ वार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद चारों बाइक पर सवार हो कर भाग गए.

घटना इतनी अप्रत्याशित थी कि न तो रागिनी ही कुछ समझ पाई थी और न ही सिया. आंखों के सामने बहन की हत्या होते देख सिया के मुंह से दर्दनाक चींख निकल गई. उस की चीख इतनी तेज थी की गांव वाले घरों से बाहर निकल आए और उस ओर दौड़े, जिधर से चीखने की आवाज आई थी.

उन्होंने देखा एक लड़की खून से सनी जमीन पर मरी पड़ी थी. वहीं दूसरी लड़की उस के पास बैठी दहाड़ मार कर रो रही थी. गांव वालों को समझते देर नहीं लगी कि मृतका उस की बहन है.

दिन दहाड़े हुई इस लोमहर्षक घटना से लोग सन्न रह गए. उन्हें लगा कि वाकई बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि उन्होंने राह चलते बहूबेटियों का जीना हराम कर दिया है. गांव वालों ने इस घटना की सूचना बांसडीह रोड थाने के थानाप्रभारी बृजेश शुक्ल को दे दी.

गांव वाले जानते थे कि मृतका का नाम रागिनी दूबे है. जो पास के गांव बांसडीह निवासी जितेंद्र दूबे की बेटी है. उन्होंने यह खबर जितेंद्र दूबे को भी दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही दूबे परिवार में कोहराम मच गया.

जितेंद्र दूबे तुरंत घटना स्थल की ओर दौड़े. उन के पीछेपीछे उन की पत्नी वंदना और बड़ी बेटी नेहा भी थीं. शव के पास बैठी सिया दहाड़ मारमार कर रो रही थी. रागिनी की रक्तरंजित लाश देख जितेंद्र का गुस्सा फूट पड़ा. जैसेतैसे उन्होंने खुद पर काबू पाया और बेटी को टैंपो में लाद कर जिला अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

तभी जितेंद्र को बीते 2-3 दिन पहले की बात याद आ गई. कुछ शरारती तत्त्वों ने उन के घर आ कर धमकी दी थी कि अगर रागिनी स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. आखिरकार हत्यारे अपने मंसूबों में कामयाब हो ही गए थे.

अगले भाग में पढ़ें- तुम उन की बेटी को आतेजाते छेड़ते हो, तंग करते हो.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...