जितेंद्र दूबे बेटियों को बेटे से कम नहीं आंकते थे. बेटियों की शिक्षादीक्षा पर भी वह खर्च करने में पीछे नहीं रहते थे. बेटियां भी पिता के विश्वास पर खरा उतरने की कोशिश करती थीं.
तीनों बेटियों में नेहा बीए में थी, रागिनी 11वीं उत्तीर्ण कर के 12वीं में आई थी और सिया 10वीं पास कर के 11वीं में आई थी. रागिनी, नेहा और सिया दोनों से बिलकुल अलग स्वभाव की थी.
रागिनी पढ़ाईलिखाई से ले कर घर के कामकाज तक मन लगा कर करती थी. वह शर्मीली और भावुक लड़की थी. जरा सी डांट पर उस की आंखों से गंगायमुना बहने लगती थी, इसलिए घर वाले उसे बड़े लाड़प्यार से रखते थे.
बात 2015 के करीब की है. उस समय रागिनी और सिया दोनों सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग क्लास में पढ़ती थीं. रागिनी 10वीं में थी और सिया 9वीं में. दोनों बहनें रोजाना बजहां गांव से हो कर पैदल ही स्कूल आतीजाती थी. स्कूल जातेआते उन पर बजहां गांव के ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी के बेटे आदित्य उर्फ प्रिंस की नजर पड़ गई.
प्रिंस पहली ही नजर में रागिनी पर फिदा हो गया. रागिनी साधारण शक्लसूरत की थी लेकिन उस में गजब का आकर्षण था. रागिनी और सिया जब भी स्कूल जातीं, प्रिंस गांव के बाहर 2-3 दोस्तों के साथ उन के इंतजार में खड़ा मिलता. दोनों बहनें उन सब से किनारा कर के राह बदल कर निकल जाती थीं.
ऐसा नहीं था कि दोनों बहनें उन के इरादों से अनजान थीं, इसलिए वे उन से बचने की कोशिश करती थीं. रागिनी प्रिंस से जितनी दूर भागती थी, वह उतना ही उस के करीब आने की कोशिश करता था. वह रागिनी से एकतरफा मोहब्बत करने लगा था. प्रिंस को रागिनी को देखे बिना चैन नहीं मिलता था.
आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस उसी बजहां गांव का रहने वाला था, जहां से हो कर रागिनी और सिया स्कूल जाती थीं. उस के पिता कृपाशंकर तिवारी बजहां के ग्रामप्रधान थे. तिवारी की इलाके में तूती बोलती थी.
कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस बाप के नक्शेकदम पर चल रहा था. पिता की तरह ही वह अभिमानी हो गया था. दूसरों को वह तुच्छ और कीड़ेमकोड़ों से ज्यादा कुछ नहीं समझता था. जब भी वह घर से निकलता तो अकेला नहीं होता था. उस के साथ 5-6 लड़कों की टोली रहती थी. उन में उस के चचेरे भाई नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दोस्त दीपू यादव खास थे.
ये तीनों उस के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते थे. दोस्तों पर वह पैसा पानी की तरह बहाता था. जब से रागिनी प्रिंस के दिल में उतरी थी, तब से उस का दिन का चैन रातों की नींद उड़ गई थी. वह रागिनी से तथाकथित एकतरफा मोहब्बत करने लगा था.
उसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था. जबकि रागिनी उस से प्यार करना तो दूर की बात, उस से घृणा करना भी अपनी तौहीन समझती थी.
प्रिंस रागिनी के प्यार में इस कदर पागल था कि उस ने खुद को कमरे में कैद कर लिया था. न तो वह यारदोस्तों से पहले की तरह मिलता था और न ही उन से बातें करता था. प्रिंस की हालत देख कर उस के दोस्त नीरज, सोनू और दीपू तीनों परेशान थे.
यार की जिंदगी की सलामती की खातिर तीनों ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे सूली पर ही क्यों न चढ़ना पड़े, दोस्त के प्यार को उस के कदमों में ला कर डाल देंगे.
एक दिन की बात है नीरज, सोनू और दीपू ने मिल कर रागिनी और सिया को स्कूल जाते वक्त रास्ते में रोक लिया. तीनों के अचानक रास्ता रोकने से दोनों बहनें बुरी तरह डर गईं. उस के बाद नीरज और सोनू ने प्रिंस के प्रेम करने वाली बातें बता कर रागिनी पर दबाव बनाया कि वह प्रिंस के प्यार को स्वीकार ले. लेकिन रागिनी ने उन तीनों को दुत्कार दिया.
रागिनी की बातें सीधे नीरज के दिल पर छुरी की तरह लगी थीं. उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि रागिनी उसे ऐसा जवाब देगी. रागिनी की बातों से उसे धक्का लगा. चूंकि मामला भाई के प्यार से जुड़ा था, इसलिए वह रागिनी के अपमान को अमृत समझ कर पी गया.
उस समय तो नीरज और उस के दोस्तों ने रागिनी को कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन यह बात नीरज ने अपने तक ही सीमित नहीं रखी.
घर पहुंच कर उस ने यह बात प्रिंस को बता दी. भाई की बात सुन कर प्रिंस गुस्से से उबल पड़ा. उसे लगा कि रागिनी में इतनी हिम्मत कहां से आ गई जो उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया. वह उस के प्यार को ठुकरा सकती है तो वह भी उसे जीने नहीं देगा. अगर वह मेरी नहीं हो सकती तो मैं उसे किसी और की भी नहीं होने दूंगा.
नीरज और उस के दोस्तों ने प्रिंस के गुस्से को और हवा दे दी. रागिनी के प्यार में मर मिटने वाला जुनूनी आशिक प्रिंस रागिनी द्वारा प्रेम प्रस्ताव ठुकराए जाने पर एकदम फिल्मी खलनायक की तरह बन गया. उस दिन के बाद से रागिनी जब भी कहीं आतीजाती दिखती, प्रिंस चारों दोस्तों के साथ अश्लील शब्दों का प्रयोग कर के उसे छेड़ता रहता. वह अपने आवारा दोस्तों को ले कर उस के घर तक पहुंच जाता और घर वालों को धमकाता.
प्रिंस की आवारागर्दी और राह आतेजाते आए दिन छेड़छाड़ करने से रागिनी और उस के घर वाले परेशान हो गए थे. डर के मारे रागिनी ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था. वह स्कूल भी नहीं जा रही थी. प्रिंस का खौफ रागिनी के दिल में उतर गया था.
जब बात हद से आगे बढ़ गई तो रागिनी के पिता जितेंद्र दूबे ने बांसडीह थाने में प्रिंस और उस के दोस्तों के खिलाफ लिखित शिकायत दी. प्रधान कृपाशंकर की ऊंची पहुंच और दरोगा के हस्तक्षेप की वजह से मामला वहीं का वहीं रफादफा हो गया. इस के बाद प्रिंस और भी उग्र हो गया. उसे लग रहा था कि जितेंद्र दूबे की इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि उस के खिलाफ थाने में शिकायत करने पहुंच गया.
बात अप्रैल, 2017 की है. प्रिंस अपने तीनों दोस्तों नीरज, सोनू और दीपू यादव को ले कर दोबारा जितेंद्र दूबे के घर गया और उन्हें धमकाया कि आज के बाद तुम्हारी बेटी रागिनी अगर पढ़ने स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा.
प्रिंस की धमकी से रागिनी के घर वाले डर गए. उन्होंने उस दिन से रागिनी को स्कूल भेजना बंद कर दिया. प्रिंस की धमकी से डर कर रागिनी कई महीनों तक स्कूल नहीं गई.
उस साल रागिनी का इंटरमीडिएट था. स्कूल में परीक्षा फार्म भरे जा रहे थे. परीक्षा फार्म भरने के लिए वह 8 अगस्त, 2017 को छोटी बहन सिया के साथ स्कूल जा रही थी. पता नहीं कैसे प्रिंस को उस के जाने की खबर मिल गई और उस ने दोस्तों के साथ मिल कर उसे मार डाला.
पुलिस ने रागिनी हत्याकांड के नामजद 5 आरोपियों में से 2 आरोपियों प्रिंस और दीपू यादव को गोरखपुर भागते समय गिरफ्तार कर लिया था. बाकी के 3 आरोपी प्रधान कृपाशंकर, नीरज तिवारी और सोनू फरार थे.
एसपी सुजाता सिंह ने फरार आरोपियों को गिरफ्तार करने के सख्त आदेश दे दिए थे. आरोपियों को गिरफ्तार कराने के लिए मृतका की बड़ी बहन नेहा दूबे ने सैकड़ों छात्रछात्राओं के साथ कलेक्ट्रेट परिसर में धरनाप्रदर्शन किया. परिवार के सदस्यों को मिल रही धमकी के लिए नेहा ने पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया.
कांग्रेस के नेता सागर सिंह राहुल ने भी लापरवाही बरतने के लिए पुलिस प्रशासन को कोसा. पूरे बलिया के सभ्य नागरिक जितेंद्र दूबे के साथ थे. रागिनी को न्याय दिलाने के लिए रोज धरनाप्रदर्शन किए जा रहे थे.
पुलिस पर फरार आरोपियों को बचाने के आरोप लगने लगे थे. जब चारों ओर से पुलिस की आलोचना होने लगी, तब कहीं जा कर पुलिस सक्रिय हुई और फरार आरोपियों प्रधान कृपाशंकर तिवारी, सोनू तिवारी और नीरज तिवारी के ऊपर शिकंजा कसा तो एकएक कर के तीनों ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया.
रागिनी दूबे हत्याकांड के पांचों आरोपियों कृपाशंकर तिवारी, प्रिंस तिवारी, नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव जेल पहुंच गए थे.
पुलिस ने इस मुकदमे में भादंसं की धाराओं 147, 148, 149, 302, 354ए व 7/8 पोक्सो एक्ट के अंतर्गत पांचों आरोपियों के खिलाफ 26 अक्तूबर, 2017 को न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल कर दिया. इस के बाद यह मुकदमा न्यायालय में सवा 2 साल तक चलता रहा.
बाहुबली ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी ने मुकदमे को खत्म करने के लिए वादी जितेंद्र दूबे को खूब धमकाया. घटना की एकमात्र चश्मदीद गवाह सिया को गवाही न देने के लिए गुंडे भेज कर रागिनी जैसा अंजाम भुगतने की धमकियां दी गईं, लेकिन ऐसी धमकी का न तो जितेंद्र दूबे पर असर हुआ और न ही सिया पर.
बाहुबली कृपाशंकर तिवारी को कानून के अंतर्गत मुंहतोड़ जवाब देने के लिए जितेंद्र दूबे ने कमर कस ली थी. इस दौरान अभियोजन पक्ष के सरकारी वकील सुनील कुमार ने अदालत को घटना से संबंधित तमाम सबूत दिए, साथ ही 12 गवाहों की गवाहियां कराईं.
बचाव पक्ष के अधिवक्ता अशोक कुमार ने अपने मुवक्किलों को बचाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वे ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाए, जो उन्हें बचा पाता.
12 सितंबर, 2019 को दोनों अधिवक्ताओं की बहस पूरी हुई. न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने दोनों अधिवक्ताओं की बहस सुनी और अपना फैसला सुरक्षित रखा.
9 दिनों बाद यानी 20 सितंबर, 2019 को उन्होंने अपना फैसला सुनाया, जिस में पांचों अभियुक्त दोषी ठहराए गए. फैसला सुनाए जाने तक पांचों अभियुक्त जेल में ही बंद थे.
गवाहों के बयानों और सबूतों के आधार पर न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने रागिनी दूबे की हत्या के मामले में सही न्याय कर दिया था.