रात के तकरीबन 2 बजे थे. कल्पना ने अपना कई दिनों से खाली पड़ा घड़ा उठाया और उसे साड़ी के पल्लू से ढक कर दबे पैर घर से चल पड़ी. करीब 15 मकानों के बाद वह एक कोठी के सामने रुक गई.
कल्पना को कोठी की एक खिड़की अधखुली नजर आई. उस ने धीरे से पल्ला धकेला, तो खिड़की खुल गई. उस की आंखें खुशी से चमक उठीं. वह उस खिड़की को फांद कर कोठी में घुस गई. कोठी के अंदर पंखों व कूलरों की आवाजों के अलावा एकदम खामोशी थी. लोग गहरी नींद में सो रहे थे.
कल्पना एक कमरा पार कर के दूसरे कमरे में पहुंची. वहां अलमारी अधखुली थी, जिस में से नोटों की गड्डियां व सोने के गहने साफ दिखाई दे रहे थे. कल्पना उन्हें नजरअंदाज करती हुई आगे बढ़ गई और तीसरे कमरे में पहुंची. वहां कई टंकियों में पानी भरा हुआ था.
कल्पना ने अपना घड़ा एक टंकी में डुबोया और पानी भर कर जिस तरह से कोठी में दाखिल हुई थी, उसी तरह से पानी ले कर अपने घर लौट आई.
‘‘पानी ले आई कल्पना. जब मैं ने देखा कि घड़ा घर पर नहीं है, तो सोचा कि तू पानी लेने ही गई होगी,’’ कल्पना के अधेड़ पति शंकर ने कहा, जो 2 महीने से मलेरिया से पीडि़त हो कर चारपाई पर पड़ा था.
‘‘जी, पानी मिल गया. आप पानी पी कर अपनी प्यास बुझाएं. मैं दूसरा घड़ा भर कर लाती हूं. अजीत उठे, तो उसे भी पानी पिला दीजिएगा,’’ कल्पना ने पानी से भरा गिलास देते हुए कहा.
शंकर ने पानी पी कर अपनी प्यास बुझाई. 2 दिनों से इस घर के तीनों लोगों ने एक बूंद पानी भी नहीं पीया था. अजीत तो कल्पना का दूध पी लेता था, मगर कल्पना और शंकर प्यास से बेचैन हो गए थे.
कल्पना ने पानी से भरा हुआ दूसरा घड़ा भी ला कर रख दिया. जब वह तीसरा घड़ा उठा कर बाहर जाने लगी, तब शंकर ने पूछा, ‘‘आज भीड़ नहीं है क्या? तू ने पानी पीया? टैंकर कहां खड़ा है? क्या आज सरपंच ने टैंकर अपने घर में खाली नहीं किया?’’
‘‘आप आराम कीजिए, मैं अभी यह घड़ा भी भर कर लाती हूं,’’ कह कर कल्पना तीसरा घड़ा उठा कर चली गई.
इस बार भी कल्पना उसी तरह कोठी में दाखिल हुई और घड़ा टंकी में डुबोया. घड़े में पानी भरने की आवाज से अब की बार कोठी का कुत्ता जाग कर भूंकने लगा.
तभी कल्पना को बासी रोटी के टुकड़े एक थाली में पड़े दिखाई दिए. कल्पना ने रोटी का टुकड़ा उठा कर कुत्ते की ओर फेंका और घड़ा उठा कर तीर की मानिंद कोठी के बाहर हो गई.
तभी एक काले से आदमी ने वहां आ कर तेज आवाज में कल्पना से पूछा, ‘‘कौन हो?’’
कल्पना बिना कुछ कहे आगे बढ़ती गई. वह आवाज पहचान गई थी. वह सरपंच राम सिंह ठाकुर की आवाज थी.
सरपंच ने कल्पना का पीछा करते हुए कहा, ‘‘चोर कहीं की, पानी चोर. शर्म नहीं आती पानी चुराते हुए.’’
इतना कह कर सरपंच ने कल्पना को दबोच लिया. उस ने खुद को छुड़ाना चाहा, तो सरपंच बोला, ‘‘मैं अभी ‘पानी चोर’ कह कर शोर मचा कर सारे गांव वालों को जमा कर दूंगा. भलाई इसी में है कि तू वापस कोठी चल और मुझे खुश कर दे. मैं तेरी हर मुराद पूरी करूंगा.’’
‘‘चल हट,’’ हाथ छुड़ाते हुए कल्पना ने कहा.
सरपंच ने जब देखा कि कल्पना नहीं मान रही है, तो उस ने ‘चोरचोर, पानी चोर’ कह कर जोरजोर से आवाजें लगानी शुरू कर दीं.
आवाज सुन कर गांव वाले लाठी व फरसा ले कर कोठी के पास जमा हो गए. कुछ लोग लालटेनें ले कर आए.
मामला जानने के बाद कुछ लोग कल्पना से हमदर्दी जताते हुए कह रहे थे कि बेचारी क्या करती, 2 दिनों से उसे पानी नहीं मिला था. दूसरी ओर सरपंच के चमचे कह रहे थे कि इस पानी चोर को पुलिस के हवाले करो.
‘‘ऐसा मत करो, बेचारी गरीब है. छोड़ दो बेचारी को,’’ एक बूढ़ी औरत ने हमदर्दी जताते हुए कहा.
किसी ने कल्पना के पति शंकर को जा कर बताया कि कल्पना सरपंच के घर से पानी चुराते हुए पकड़ ली गई है और उसे थाना ले जा रहे हैं.
बीमार शंकर भागाभागा आया और सरपंच के पैरों पर गिर कर कल्पना की ओर से माफी मांगने लगा. मगर ठाकुर ने उसे पैरों की ठोकर मार दी और कल्पना को ले कर थाने की ओर चल पड़ा. बेचारा शंकर यह सदमा बरदाश्त न कर सका और वहीं हमेशा के लिए सो गया.
कल्पना को ले कर जब सरपंच और उस के चमचे थाने पहुंचे, तो थानेदार ने पूछा, ‘‘क्या हो गया? यह लड़की कौन है? इसे बांध कर क्यों लाए हो?’’
सरपंच ने थानेदार को नमस्ते करते हुए कहा, ‘‘जी, मैं गांव डोगरपुर का सरपंच ठाकुर राम सिंह हूं. इस औरत ने मेरी हवेली में घुस कर चोरी की है. मैं ने इसे रंगे हाथों पकड़ा है और आप के पास शिकायत करने आया हूं,’’ सरपंच ने कहा.
‘‘कितना माल यानी मेरा मतलब है कि कितना सोनाचांदी व रुपए चोरी किए हैं इस ने?’’ थानेदार ने पूछा.
‘‘जी, रुपए या सोनाचांदी नहीं, इस ने तो एक घड़ा पानी मेरे घर में घुस कर चुराया है.
‘‘समूचे इलाके के लोग बूंदबूंद पानी के लिए तरस रहे हैं, वे 15 किलोमीटर पैदल चल कर मुश्किल से एक घड़ा पानी ले कर लौटते हैं.
‘‘इस की हिम्मत तो देखिए साहब, खिड़की फांद कर पानी चुरा कर ले जा रही थी,’’ सरपंच ने बताया.
‘‘क्या चाहते हो तुम?’’
‘‘आप रिपोर्ट लिख कर इस औरत को जेल भेज दो,’’ सरपंच ने कहा.
‘‘जाओ मुंशीजी के पास रिपोर्ट लिखवा दो.’’
‘‘मुंशीजी, रिपोर्ट लिखाने से पहले सरपंच को अच्छी तरह समझा देना,’’ थानेदार ने मुंशीजी को आवाज लगा कर कहा.
मुंशीजी ने सरपंच को एक ओर ले जा कर उस के कान में कुछ कहा.
‘‘अरे हैड साहब, मैं कई सालों से सरपंच हूं. मैं यह अच्छी तरह जानता हूं कि बिना लिएदिए आजकल कोई काम नहीं होता है,’’ सरपंच ने जेब से नोटों की 2 गड्डियां निकाल कर मुंशीजी के हवाले कर दीं.
मुंशीजी ने सरपंच की एफआईआर दर्ज कर ली. कल्पना को थानेदार के सामने पेश किया, ‘‘श्रीमानजी, यह वही लड़की है, जिस ने मेरे घर से एक घड़ा पानी चुराया है.’’
थानेदार ने कल्पना को नीचे से ऊपर तक घूरा और बोला, ‘‘क्या तू ने चोरी की? चोरी करते वक्त तुझे शर्म नहीं आई?’’
कल्पना पत्ते की तरह कांप रही थी. उस के रोने से मुरझाए हुए चेहरे पर आंसुओं की लाइनें नजर आ रही थीं.
दूसरे दिन कल्पना को अदालत में पेश किया गया. वहां सरपंच के साथ उस के चमचे कल्पना के खिलाफ गवाही देने के लिए आए हुए थे.
पुलिस ने पानी से भरा हुआ वह घड़ा अदालत में पेश किया, जो कल्पना के पास से जब्त किया गया था.
जज ने सब से पहले कल्पना की ओर देखा, जो कठघरे में सिर नीचा किए खड़ी थी.
अदालत ने गवाहों के लिए पुकार लगवाई. सरपंच के चमचों ने अदालत को बताया कि कल्पना ने पानी चुराया, जिसे सरपंच ने रंग हाथों पकड़ लिया. मगर मौके पर कोई गवाह नहीं था. सभी गवाहों ने यही बताया कि सरपंच ने उन्हें बताया.
जज ने कल्पना से पूछा, ‘‘क्यों, क्या तुम ने एक घड़ा पानी सरपंच के घर से चुराया?’’
‘‘जी, एक घड़ा नहीं, बल्कि 3 घड़े पानी मैं सरपंच के घर से लाई. पर उसे चुराया नहीं, बल्कि अपने हिस्से का ले कर आई,’’ कल्पना ने बेधड़क हो कर बताया.
‘‘अपने हिस्से का… चुराया नहीं, लाई का क्या मतलब है?’’ जज ने पूछा.
‘‘इस भयंकर गरमी में गांव के सारे कुएं, हैंडपंप व तालाब सूख गए हैं. एकएक बूंद पानी के लिए गांव वाले तरस रहे हैं. प्यास से मर रहे हैं.
‘‘पंचायत ने गांव में पानी का इंतजाम किया है. हमारे गांव में पानी के लिए सिर्फ 2 टैंकरों का इंतजाम है, जिस में से एक टैंकर सरपंच अपने घर खाली करा लेता है, जिसे वह चोरी से बेचता है. दूसरे टैंकर का पानी गांव वाले छीनाझपटी कर के लेते हैं.
‘‘मैं वह अभागी औरत हूं, जिसे कई दिनों से एक बूंद पानी नहीं मिला. बीमार पति घर में हैं. मैं सरपंच के घर से अपने हिस्से का पानी ही लाई हूं.
‘‘मेरी बातों पर यकीन न हो, तो इन गांव वालों से पूछ लीजिए. मैं अदालत से गुजारिश करती हूं कि मैं पानी चोर नहीं हूं, बल्कि असली पानी चोर तो सरपंच है. सरपंच के घर की टंकियां पानी से भरी पड़ी हैं.’’
अदालत में गांव वालों ने भी कहा कि यह बात सच है. कल्पना सही कह रही है.
वह 50 रुपए प्रति घड़े की दर से पानी बेचता है. अभी इस वक्त भी सरपंच के घर पानी के लिए ग्राहकों की लंबी कतार लगी है.
सरपंच बगलें झांकने लगा. जज को सरपंच व पुलिस की जालसाजी की बू इस मुकदमे में आने लगी. कल्पना को अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया और असली चोर को पकड़ने के लिए जांच के आदेश जारी कर दिए गए.
कल्पना जब अपने गांव पहुंची, तो उसे पता चला कि किसी ने रात में ही उस के पति शंकर, जो सदमे से उसी दिन चल बसा था, की लाश फूंक दी थी.
जब कल्पना अपने घर पहुंची, तो उस का अबोध लड़का अजीत भी हमेशा के लिए सोया हुआ मिला. कल्पना ने जैसे ही अपने बेटे की लाश को देखा, तो उस की जोर से चीख निकल पड़ी.
‘‘अजीत… अजीत…’’ कह कर वह बेहोश हो गई. गांव वाले जो कल्पना के खिलाफ थे, अब सरपंच के खिलाफ नारेबाजी करने लगे, ‘पानी चोर… सरपंच पानी चोर… असली चोर सरपंच…’
कल्पना पागल हो चुकी थी. वह अपने बेटे की लाश को बता रही थी, ‘‘बेटे, मैं पानी चोर नहीं हूं, असली पानी चोर सरपंच है.’’ इतना कह कर कल्पना कभी हंसती, तो कभी रोने लगती थी.
पुलिस ने सरपंच के घर से लबालब भरी पानी की कई टंकियों को जब्त किया. जो पानी खरीदने आए थे, उन्हें गवाह बना कर ठाकुर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.