कोलकाता में पिछले दिनों नकली नोटों का एक बड़ा और अनोखा मामला सामने आया. गिरफ्तार चंद्रशेखर जायसवाल पुराने और सड़ेगले असली नोटों के ‘सिल्वर सिक्योरिटी थ्रेड’ को निकाल कर उस से नकली नोट तैयार करता था. एक और बड़ी बात यह कि चंद्रशेखर न केवल नकली भारतीय करेंसी तैयार करता था, बल्कि डौलर, यूरो समेत कई अन्य देशों की भी नकली करेंसियां उस के यहां से बरामद हुई हैं. यह तो थी एक खबर.
आइए, अब देखते हैं नकली नोटों का कारोबारी चंद्रशेखर जायसवाल अपना यह कारोबार किस तरह चला रहा था. मध्य कोलकाता के बऊबाजार में 2 लाख रुपए के नकली नोटों के साथ चंद्रशेखर जायसवाल नामक एक व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. इस के बाद कांकुड़गाछी स्थित उस के घर से 10 करोड़ रुपए के नकली नोट बरामद हुए. इस से पहले नकली नोटों के ऐसे कई मामले सामने आए हैं.
इन मामलों से पता चला है कि बरामद नकली नोट की छपाई पाकिस्तान व बंगलादेश में होती है और पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल की सीमा से हमारे देश में ये नकली नोट पहुंचाए जाते हैं. लेकिन चंद्रशेखर जायसवाल का मामला कई माने में अनोखा साबित हो रहा है. चूंकि यह मामला नकली विदेशी करेंसी से भी जुड़ा है, इसीलिए जांच एजेंसी की नजर में यह मामला देश की आंतरिक सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है.
गिरफ्तार चंद्रशेखर जायसवाल ने कबूल किया कि सिल्वर सिक्योरिटी थ्रेड उसे रिजर्व बैंक की पटना शाखा के एक ठेकेदार की मारफत मिला करते थे. हावड़ा जिले के डोमजुड़ में चंद्रशेखर जायसवाल बाकायदा नकली नोटों का एक बड़ा कारखाना चलाता था. स्पैशल टास्क फोर्स ने इसी कारखाने के गोदाम में छापेमारी कर के नकली नोट बनाने के तमाम सामान बरामद किए हैं.
टस्क फोर्स के अधिकारी अमित जावलगी के अनुसार, छापेमारी में सब से चौंकाने वाला जो सामान बरामद हुआ है वह पुराने खस्ताहाल, सड़ेगले असली पुराने नोटों की 20 बोरियां हैं. पूछताछ में चंद्रशेखर ने एजेंसी के अधिकारियों के सामने कबूल किया कि इस की आपूर्ति रिजर्व बैंक का एक ठेकेदार किया करता था. कारखाने से पुराने असली नोटों के अलावा नोट छापने वाले कागज, स्टैंप, स्याही के साथ 450 नकली नोटों की बोरियां भी बरामद हुई हैं. बरामद हुए नकली नोटों में केवल 500 और 1000 रुपए के नोट थे.
आयरन स्क्रैप के कारोबारी चंद्रशेखर का यह कारखाना स्थानीय रूप से लोहे की कील बनाने वाले कारखाने के रूप में जाना जाता था. स्थानीय लोगों को कारखाने की चारदीवारी के उस पार लोहे के स्क्रैप का ढेर दिखता था. स्थानीय रूप से प्रचारित यही किया गया था कि कारखाने में स्क्रैप को गला कर विभिन्न साइज की कीलें तैयार की जाती हैं. लेकिन इस कारखाने में पिछले 2 साल से नकली नोट छापे जा रहे थे.
मामले की जांच कर रही स्पैशल टास्क फोर्स की जांच से खुलासा हुआ कि गिरफ्तार चंद्रशेखर के नकली नोटों का कारोबार खास कोलकाता और डोमजुड़ के बीच फलफूल रहा था. छापेमारी में इस कारखाने से न केवल नकली भारतीय नोट बरामद हुए, बल्कि डौलर और यूरो समेत टर्की, जिम्बाब्वे व अन्य कई देशों की करेंसियों के भी नकली नोट बरामद हुए. जाहिर है इस कारखाने से चंद्रशेखर विदेश में भी अपना कारोबार चला रहा था. इसीलिए इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया गया.
रिजर्व बैंक की सुरक्षा में सेंध
नकली नोट में सिक्योरिटी थ्रेड का इस्तेमाल अपनेआप में एक अनोखा खुलासा था. चंद्रशेखर के कारखाने में तैयार नकली नोटों को ‘ग्रेड वन’ नकली नोट बताया गया. इस की वजह, नकली नोट में बाकायदा सिक्योरिटी थ्रेड का इस्तेमाल है. नकली नोट की जांच का काम जितना आगे बढ़ता गया, जांच अधिकारी के आगे एक से बढ़ कर एक चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. अब तक नकली नोट तैयार करने का जितना भी खुलासा हुआ है उस में असली नोट जैसे कागज का इस्तेमाल करने, वाटर मार्क की नकल और उम्दा स्याही के इस्तेमाल की बातें सामने आई थीं.
सिक्योरिटी थ्रेड का इस्तेमाल पहली बार हुआ है. इसीलिए यह रिजर्व बैंक की सुरक्षा में सेंध का मामला बन गया. टास्क फोर्स के अधिकारी बताते हैं कि नकली नोट छापने के लिए भी विशेष रूप से प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होती है. कारखाने में 20 कर्मचारी अत्याधुनिक मशीन पर नकली नोट छापते थे. चंद्रशेखर के पास ऐसे 3 प्रशिक्षित कर्मचारी थे, जिन्हें वह मुंबई से ले कर आया था.
चूंकि इस से पहले ऐसा कोई मामला टास्क फोर्स के सामने नहीं आया था इसीलिए टास्क फोर्स ने रिजर्व बैंक के नोट विशेषज्ञों से भी पत्र लिख कर जानना चाहा कि पुराने असली नोट के ‘सिल्वर सिक्योरिटी थ्रेड’ का इस्तेमाल नकली नोटों में कैसे किया जा सकता है? मजेदार बात यह कि रिजर्व बैंक के नोट विशेषज्ञों के लिए भी यह बड़ा चौंकाने वाला मामला था. रिजर्व बैंक के नोट विशेषज्ञों की राय में सिक्योरिटी थ्रेड को निकाल कर फिर से इस्तेमाल करना कोई नामुमकिन बात भी नहीं है.
दरअसल, यह सिक्योरिटी थ्रेड चांदी की पन्नी हुआ करती थी. नोट भले ही सड़ जाए, लेकिन चांदी की पन्नी को फिर भी निकाला जा सकता है. रिजर्व बैंक के अनुसार, पन्नी का फिर से इस्तेमाल पूरी तरह से भले ही नहीं किया जा सकता हो लेकिन आंशिक तौर पर किया ही जा सकता है. रिजर्व बैंक ने यह भी माना कि हर रोज कोलकाता के तमाम बैंकों से बड़े पैमाने पर नकली नोट पकड़े जा रहे हैं.
जांच में पता चला कि नकली नोट का कारोबार करने वालों में से अब तक किसी ने सिक्योरिटी थे्रड का इस्तेमाल नहीं किया है. नकली नोटों में असली सिक्योरिटी थे्रड का इस्तेमाल इतनी सफाई से किया गया था कि नकली नोटों की शिनाख्त लगभग नामुमकिन ही थी.
कोलकाता पुलिस के इतिहास में नकली नोट का इतना बड़ा कारोबार इस से पहले कभी नहीं पकड़ा गया था. जब इस मामले का खुलासा हुआ तो सब से पहले मध्य कोलकाता के बड़ा बाजार में आतंक का माहौल देखा गया. रुपए का लेनदेन मुश्किल हो गया. गौरतलब है कि बड़ाबाजार के थोक कारोबार का एक बड़ा हिस्सा नकदी में चलता है. जांच कर रही टास्क फोर्स का कहना है कि बैंकों के जरिए नकली नोट कोे लंबे समय तक चलाते जाना इतना भी सहज नहीं है. नकली नोट का कारोबार थोक बाजार में अधिक होता है, क्योंकि थोक बाजार से ये नोट आसानी से बैंकों तक पहुंच जाते हैं.
पुराने नोट का निबटारा
रिजर्व बैंक के एक अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि पहले रिजर्व बैंक द्वारा पुराने, फटे, सड़ेगले नोटों को एक तय समय के बाद जला कर नष्ट कर दिया जाता था. इस के बाद कुछ वर्ष पहले पुराने नोटों को नीलाम करने का चलन शुरू हुआ. इस के लिए पहले पेपर कटर मशीन में डाल कर उस के टुकड़ेटुकड़े करना जरूरी है. इस के बाद ही इन्हें नीलाम किया जा सकता है.
नियमानुसार इन स्क्रैप नोटों को कटर मशीन में डाल कर इन में रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर समेत नोटों में वाटर मार्क और सिक्योरिटी थ्रेड वाले हिस्से कुछ इस तरह नष्ट करना जरूरी है, ताकि उन का फिर से इस्तेमाल न किया जा सके.
टास्क फोर्स अधिकारी अमित जावलगी ने बताया कि रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर, वाटर मार्क और सिक्योरिटी थ्रेड नष्ट करने के बाद ही सड़ेगले, पुराने नोटों की नीलामी होती है. नीलामी में रिजर्व बैंक में पंजीकृत कंपनी ही भाग ले सकती है. पंजीकृत कंपनी ही रिजर्व बैंक का ठेकेदार कहलाती है.
ठेकेदार कंपनी इन सड़ेगले नोटों का व्यवहार अपने तरीके से कर सकती है. पर पुराने नोट का ठेकेदार कंपनी कुछ भी करे, उस का पूरा दायित्व ठेकेदार कंपनी का होता है. लेकिन नियमानुसार रिजर्व बैंक से प्राप्त सड़ेगले नोट ठेकेदार कंपनी के मारफत किसी भी सूरत में बाहरी लोगों के हाथों तक पहुंचना गैरकानूनी है.
रिजर्व बैंक के ऐसे ही एक ठेकेदार की मारफत चंद्रशेखर असली नोट का सिक्योरिटी थे्रड हासिल किया करता था. नीलामी से प्राप्त असली नोट से सिक्योरिटी थे्रड को निकाल कर उस का इस्तेमाल बड़ी सफाई से नकली नोटों में किया जाता था. यही कारण है कि कभीकभी असलीनकली नोट की परखने वाली मशीन भी गच्चा खा जाया करती है.
बहरहाल, ठेकेदार की शिनाख्त हो चुकी है और उस से पूछताछ में पता चला कि सिक्योरिटी थे्रड प्राप्त करने के लिए चंद्रशेखर पुराने नोट खरीदने में उस के मूल्य से दोगुना पैसा खर्च किया करता था. 50 हजार रुपए से भी कम कीमत के सड़ेगले खस्ताहाल नोटों को चंद्रशेखर 1 लाख रुपए में खरीद लेता था. कारखाने में नकली नोटों पर यह सिल्वर थ्रेड बिठा दिया जाता था.
टास्क फोर्स के अधिकारी का कहना है कि इस से पहले पश्चिम बंगाल में जो भी नकली नोट बरामद हुए हैं, उन में से ज्यादातर पाकिस्तान व बंगलादेश में छपे थे. पाकिस्तान में छपे नोट असली नोट के काफी करीब हुआ करते हैं. डोमजुड़ से बरामद हुए नकली नोट असली भारतीय नोट के करीब तो नहीं, लेकिन पाकिस्तान में तैयार किए गए भारतीय नोट के ज्यादा करीब थे.
छोटे नोटों की किल्लत
जांच में जो तथ्य निकल कर सामने आया है वह यह कि छोटे नोटों की किल्लत के बीच नकली बड़े नोटों का बाजार चलता है. गौरतलब है कि कोई भी राज्य क्यों न हो, हर राज्य के बड़े शहरों से ले कर गांवदेहात और कसबे में 20 और 50 रुपए के नोटों की किल्लत आम है. वहीं, ज्यादातर एटीएम में 100, 500 और 1000 रुपए के ही नोट मिलते हैं. दरअसल, बड़े नोटों का छुट्टा 50-100 रुपए की खरीदारी में आसानी से हो जाता है. ये नोट दुकानदार की मारफत हाथोंहाथ हर जगह पहुंच जाते हैं.
जहां तक छोटे नोटों की किल्लत का सवाल है, राष्ट्रीयकृत बैंक सारा दोष यह कह कर रिजर्व बैंक के मत्थे मढ़ देते हैं कि वहां से पर्याप्त मात्रा में छोटे नोट नहीं आते. एक अधिकारी का कहना है कि शालबनी, देवास और नासिक से नोट रिजर्व बैंक की विभिन्न शाखाओं में पहुंचते हैं. नोट का शालबनी कारखाना रिजर्व बैंक के अधीन है, लेकिन देवास और नासिक के कारखानों पर मालिकाना हक केंद्रीय वित्त मंत्रालय का है.
रिजर्व बैंक की किसी शाखा को किस डिनौमिनेशन यानी किस मूल्य का कितना नोट भेजा जाए, वित्त वर्ष की शुरुआत में ही यह मुंबई स्थित रिजर्व बैंक के मुख्यालय में तय हो जाता है.
अब इस बारे में रिजर्व बैंक के एक सूत्र का कहना है कि 50 और 20 रुपए के नोट की किल्लत के कई कारण हैं. इन का आवंटन 10 रुपए, 100 रुपए, 500 रुपए और 1000 रुपए के नोट की तुलना में महज 10 से 20 प्रतिशत होने के कारण इन की किल्लत बनी रहती है.
साल के दौरान समयसमय पर 20 और 50 रुपए का संकट बना रहता है. लेकिन इस तरह की किल्लत की समस्या हर वित्त वर्ष के अंत में अधिक देखी जाती है. इस की वजह यह है कि जिस तरह के कागज में 20 और 50 रुपए के नोटों की छपाई होती है, उस के आयात में कभीकभी दिक्कत पेश आती है.
वहीं एटीएम में 100 रुपए का नोट न मिलने के बारे में आईसीआईसीआई बैंक के एक अधिकारी का कहना है कि किसी एटीएम में रुपए स्टोर करने की जो जगह है उस में एक बार में अधिकतम 50 लाख रुपए से अधिक नहीं डाले जा सकते.
अब अगर मशीन में 100 रुपए के नोट डाले जाएं तो 50 लाख रुपए से कम राशि ही डाली जा सकेगी. यही कारण है कि ज्यादातर एटीएम में 500 और 1000 रुपए के ही नोट डाले जाते हैं. 100 रुपए के नोट भी एटीएम में डाले जाते हैं लेकिन कम संख्या में. साफ है, इन्हीं स्थितियों का लाभ उठा कर नकली नोटों का कारोबार फलताफूलता है.