बुधवार 2 मई की रात के लगभग 9 बजे कोटा के पुलिस अधिकारियों की बैठक चल रही थी. मुख्य मुद्दा था मार्बल व्यवसाई परिवार के बेटे विशाल मेवाड़ा के अपहरण और फिरौती का. कोटा में नित नए अपराधों से सकपकाई पुलिस के लिए यह गंभीर चुनौती थी.
दरअसल, वाकया कुछ ऐसा था जो ढाई साल पहले घटित रुद्राक्ष हांडा कांड के अंदेशों को बल दे रहा था, जिस में फिरौती के लिए किए गए अपहरण में बच्चे की हत्या भी कर दी गई थी. पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया ने एक पल अपने अधीनस्थ अफसरों पर सरसरी नजर दौड़ाने के बाद कहना शुरू किया, ‘‘आप के सामने फिर एक नया इम्तिहान है. हमें एकएक कदम बहुत सोचसमझ कर उठाना होगा.’’
बुधवार 2 मई की शाम करीब 7 बजे बोरखेड़ा के थानाप्रभारी महावीर सिंह जिस समय अपने थाने में बैठे थे, तभी लगभग 45-46 साल की रुआंसी औरत कमरे में दाखिल हुई. कुलीन और संपन्न परिवार की लगने वाली उस महिला के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. महावीर सिंह ने उसे सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, आप कौन हैं और इस तरह परेशान और घबराई हुई क्यों हैं?’’
‘‘परेशानी की तो बात यह है थानेदार साहब, मेरा बेटा गायब है, उस का अपहरण कर लिया गया है.’’ महिला ने अपनी बात सिलसिलेवार बतानी शुरू की, ‘‘साहब, मेरा नाम भूलीबाई है. मैं मार्बल कारोबारी बनवारी लाल मेवाड़ा की पत्नी हूं. मेरा 19 साल का बेटा विशाल मेवाड़ा कोटा के योगीराज पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. वह वहां से गायब हो गया.’’
महावीर सिंह ने उन्हें पानी का गिलास थमाते हुए कहा, ‘‘आप निश्चिंत हो कर पूरी बात बताइए.’’
एक ही बार में पानी का गिलास खाली कर के महिला ने कहना शुरू किया, ‘‘हम खैराबाद कस्बे में रहते हैं. मेरा बेटा विशाल कोटा में रह कर पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. पति बनवारीलाल कारोबार के सिलसिले में सूरत गए हुए हैं. अपहर्त्ताओं ने मंगलवार पहली मई को मेरे पति को मोबाइल पर फोन कर के 15 लाख की फिरौती मांगी है.’’
पलभर रुकने के बाद भूलीबाई ने कहना शुरू किया, ‘‘पति को मोबाइल पर पहला फोन दोपहर बाद 4 बजे आया, जिस में एक आदमी ने विशाल के अपहरण करने की इत्तिला देते हुए 15 लाख की रकम का इंतजाम करने को कहा और इस के साथ ही फोन काट दिया. करीब 15 मिनट बाद फिर उसी आवाज में धमकी भरा फोन आया कि पुलिस को खबर की तो विशाल को जान से मार दिया जाएगा. इस के साथ ही फोन बंद हो गया.’’
‘‘फिर उस के बाद कोई फोन आया?’’ थानाप्रभारी महावीर सिंह के स्वर में हैरानी का भाव स्पष्ट था.
‘‘रात 11 सवा 11 बजे मेरे पति का फोन आया. उन्होंने बताया कि 11 बज कर 1 मिनट पर उन के पास आए फोन काल में कहा गया था कि रकम कहां ले कर आना है, इस बाबत अगले दिन शाम 4 बजे बताएंगे और इस के साथ ही फोन बंद कर दिया.’’
‘‘आप के पति ने उन्हें क्या जवाब दिया?’’
‘‘क्या कहते,’’ भूलीबाई ने सुबकते हुए कहा, ‘‘मेरे पति ने तो बड़ी आजिजी के साथ कहा कि तुम को जो रकम चाहिए, हम देंगे. बस हमारे बेटे को कुछ नहीं होना चाहिए.’’
लेकिन अगले ही पल भूलीबाई ने जो कहा, वह चौंकाने वाला था. उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पति इस बात को ले कर हैरान थे कि फोन करने वाला जो कोई भी था, हमारे बेटे के मोबाइल से ही फोन कर रहा था.’’ इस के साथ ही भूलीबाई फूटफूट कर रोने लगी.
गहरी सांस लेते हुए महावीर सिंह ने कहा, ‘‘कोई और बात जो आप कहना चाहें.’’
‘‘हां साहब,’’ भूलीबाई ने जैसे याद करते हुए कहा, ‘‘साहब, मुझे फोन करने से पहले मेरे पति ने विशाल के मामा को फोन कर के विशाल के अपहरण की खबर देने के साथ उस के कमरे पर जा कर उसे तलाश करने को कहा था. उस का मामा दिनेश कोटा में ही रहता है. दिनेश ने विशाल के कमरे पर जा कर देखा तो वह वहां नहीं मिला. दिनेश ने मेरे पति को तो यह बात बताई ही, मुझे भी फोन कर के कोटा आने को कहा.’’
बोरखेड़ा थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज करने के साथ ही फौरन इस घटना और घटनाक्रम के बारे में पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया को जानकारी दी. इस के बाद तत्काल पुलिस सक्रिय हो गई. आननफानन में पुलिस अधिकारियों की बुलाई गई बैठक की वजह यही थी.
भोमिया साहब को मालूम था कि इतने संपन्न परिवार के बेटे के अपहरण की बाबत जब लोगों को पता चलेगा तो लोग पुलिस को आड़े हाथों लेने से पीछे नहीं हटेंगे.
अपहरण के इस मामले में किसी बड़े गिरोह का हाथ हो सकता है, यह सोच कर पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया ने क्षेत्राधिकारी नरसीलाल मीणा और राजेश मेश्राम के अलावा सर्किल इंसपेक्टर श्रीचंद सिंह, महावीर सिंह, आनंद यादव, मुनींद्र सिंह, लोकेंद्र पालीवाल, विजय शंकर शर्मा और एसआई महेश कुमार, एएसआई दिनेश त्यागी, कमल सिंह और प्रताप सिंह के नेतृत्व में 7 टीमों का गठन किया और विशाल के अपहर्त्ताओं का पता लगाने की जिम्मेदारी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार को सौंप दी.
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ ने बड़ी संख्या में लोगों से गहनता से पूछताछ की. करीब 100 से अधिक टीवी फुटेज निकाले, लेकिन कोई काम की बात मालूम नहीं हो सकी.
पुलिस को तब हैरानी हुई, जब विशाल के कुछ दोस्तों ने बताया कि उन के पास विशाल का फोन आया था. उस ने हम से 2-3 सौ रुपए की जरूरत बताते हुए पैसों की मांग की थी. लेकिन इस से पहले कि उस से इतनी छोटी रकम मांगने की वजह पूछते, उस का फोन संपर्क टूट गया.
पुलिस ने अंडरवर्ल्ड को भी खंगाला लेकिन लाख सिर पटकने के बावजूद पुलिस ऐसे किसी शातिर गिरोह का पता नहीं लगा सकी, जिस से इस मामले में कोई जानकारी मिल पाती. इस मामले में पुलिस ने फिरौती के लिए कुख्यात गिरोहों का पुलिस रिकौर्ड भी टटोला.
तमाम पुलिस रिकौर्ड जांचने के बाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार इस नतीजे पर पहुंचे कि विशाल के अपहरण में कम से कम किसी नामी गिरोह का हाथ नहीं है.
पौलीटेक्निक की पढ़ाई करते हुए विशाल बोरखेड़ा के इलाके की आकाश नगर कालोनी में उसी कालेज में पढ़ने वाले मनोज मीणा के साथ किराए के कमरे में रहता था. पुलिस ने मनोज की गतिविधियों को पूरी तरह टटोला, लेकिन कहीं कोई संदिग्ध बात नजर नहीं आई.
जिस समय पुलिस विशाल के रूम पार्टनर मनोज मीणा समेत अन्य दोस्तों से गहनता से पूछताछ कर रही थी, तभी इस बात का पता चला कि विशाल के दोस्ताना रिश्ते विक्रांत उर्फ हिमांशु, प्रदीप और विजेंद्र भाटी उर्फ लकी से कुछ ज्यादा ही गहरे थे.
विशाल के मकान मालिक के मुताबिक इन तीनों लड़कों का विशाल के पास वक्तबेवक्त कुछ ज्यादा ही आनाजाना था. यह सूचना मिलते ही पुलिस ने उन्हें पूछताछ के घेरे में ले लिया, लेकिन हर सवाल पर तीनों पुलिस को छकाते रहे. पुलिस को लगा भी कि कहीं यह उस का भ्रम तो नहीं, फिर भी पुलिस ने अपनी जांच की दिशा नहीं बदली.
अब तक विशाल के पिता बनवारी लाल मेवाड़ा सूरत से कोटा लौट आए थे. उन्होंने पुलिस की जानकारी में इजाफा करते हुए बताया कि उन्हें मंगलवार को दोपहर बाद 4 बजे, फिर सवा 4 बजे तथा बाद में रात को 11 बज कर एक मिनट पर फोन आए थे.
रात को आने वाले फोन काल में अपहर्त्ताओं का कहना था कि फिरौती की रकम ले कर उन्हें दरा के निकट रेलवे क्रौसिंग पर पहुंचना होगा. कब, यह बाद में बताएंगे. अपहर्त्ता का यह भी कहना था कि रकम मिलने के एक घंटे बाद ही विशाल को छोड़ दिया जाएगा.
बनवारी लाल ने यह सब बताते हुए पुलिस से यह शंका भी जाहिर की कि फोन काल जब विशाल के मोबाइल से की जा रही थीं तो क्या उसे सुरक्षित मान लिया जाना चाहिए.
गुरुवार 3 मई की सुबह जब पुलिस इसी मुद्दे पर मंथन कर रही थी, तभी एक ग्रामीण की सूचना ने अधिकारियों को स्तब्ध कर दिया. सूचना बोरखेड़ा से करीब 20 किलोमीटर दूर नोताड़ा और मानस गांव के वन क्षेत्र के बीच बहने वाली नदी की कराइयों में एक लाश पड़ी होने की थी.
हजार अंदेशों में घिरी पुलिस के लिए यह सूचना चौंकाने वाली थी. पुलिस टीम तुरंत वहां के लिए रवाना हो गई. पुलिस के साथ विशाल के पिता बनवारीलाल भी थे. चंद्रलोई नदी का यह तटीय क्षेत्र हालांकि कुदरती रूप से मनोहारी था, जहां शहरी कोलाहल से ऊबे लोगों या फिर सैलानियों का आनाजाना था.
क्षेत्राधिकारी राजेश मेश्राम चंद्रलोई नदी की कराइयों के पास जीप रुकवा कर अपनी टीम के साथ नीचे उतर गए. तभी उन की नजर 3-4 फुट ऊंची झाडि़यों की कतार की तरफ चली गई. वहां पर एक युवक औंधा पड़ा नजर आया.
पुलिस के जवानों ने शव को सीधा किया तो बनवारीलाल वहीं पछाड़ खा कर गिर गए. शव विशाल का ही था. उस का चेहरा कुचल दिया गया था. लाश नमक की परत में लिपटी हुई थी. राजेश मेश्राम लाश पड़ी होने की स्थिति देख कर एक पल में ही भांप गए कि हत्या कहीं और की गई थी, लेकिन पुलिस को भटकाने के लिए लाश को यहां ला कर फेंका गया होगा.
विशाल की हत्या बहुत ही निर्ममतापूर्वक की गई थी. उस की गरदन किसी तेजधार हथियार से रेती गई थी. संघर्ष का कोई चिह्न नहीं था. घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद राजेश मेश्राम ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के पिता को सौंप दी गई.
यह अजीब इत्तफाक था कि अभी शव के पंचनामे की काररवाई हो ही रही थी कि राजेश मेश्राम को एएसपी से सूचना मिली कि पूछताछ में अपराधी टूट गए हैं और उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया है.
अपराध का यह तानाबाना 3 सनकी और खुराफाती लड़कों ने बुना था. आईटीआई डिप्लोमा कर चुका विक्रांत उर्फ हिमांशु बोरखेड़ा का ही रहने वाला था. आईटीआई में डिप्लोमा कर चुका विक्रांत इस हद तक सनकी था कि सनक में वह अपनी कलाइयों में ब्लेड मार कर खुद ही कई जगह अपने हाथों को जख्मी कर चुका था.
बृजेंद्र सिंह भाटी उर्फ लकी कोटा के नजदीकी कस्बे कैथून का रहने वाला था. वह औटोमोबाइल से जुड़ी एक कंपनी में काम करता था और बोरखेड़ा में ही किराए पर कमरा ले कर रह रहा था.
तीसरा साथी प्रदीप उर्फ बिन्नी रोजीरोजगार के लिए गोलगप्पों का ठेला लगाता था. बिन्नी भिंड का बाशिंदा था और कोटा की मन्ना कालोनी में रह रहा था. सनक में तीनों एक से बढ़ कर एक थे. तीनों लगभग 18 से 20 साल की उम्र के थे.
पूछताछ में पता चला कि तीनों की हसरतों के पखेरू आसमानी उड़ान भरते रहे, नतीजतन मौजमस्ती और अय्याशी के शौक के लिए जितना भी कमाते थे, पूरा नहीं पड़ता था. तीनों की इस मंडली में विशाल शामिल हुआ तो बोरखेड़ा में ही रहने वाले विक्रांत उर्फ हिमांशु की बदौलत.
दारूबाजी के महंगे शौक में संपन्न बाप का बेटा विशाल उन के लिए काफी काम का था. विक्रांत, बृजेंद्र और प्रदीप की साझा ख्वाहिश थी तो एक ही कि कोई ऐसा शख्स हाथ चढ़ जाए, जिस से इतना पैसा मिल सके कि मौजममस्ती के लिए तरसना न पड़े.
नशे के सुरूर में एक दिन विशाल का काल ही उस की जुबान पर बैठ गया और वह कह बैठा, ‘‘आज की पार्टी मेरी तरफ से.’’
‘‘किस खुशी में?’’ पूछने पर विशाल ने कह दिया, ‘‘आज ही मेरे पिता को एक बड़े सौदे में भारीभरकम रकम मिली है. इसलिए जश्न होना चाहिए.’’
फिर क्या था, तीनों की आंखों में लालच चमक उठा. पार्टी खत्म होने के बाद तीनों सनकी सिर जोड़ कर बैठे तो बदनीयती जुबान पर आ गई. तीनों की जुबान पर एक ही बात थी, ‘अगर यह बड़ी रकम हमारे हाथ आ जाए तो मजे ही मजे हैं.’ लेकिन सवाल था कि कैसे?
कैसे का आइडिया भी अनायास ही मिल गया. उन के लिए संयोग था और विशाल के लिए दुर्भाग्य कि इत्तफाक से तीनों आपराधिक घटना पर आधारित क्राइम पैट्रोल सीरियल देखते थे. एक कहानी ऐसी ही एक घटना पर आधारित थी, जिस में पैसों की खातिर 3 सिरफिरे अपने दोस्त से ही दगा करते हैं और उस की हत्या कर देते हैं.
फिरौती की घटना पर बुनी गई इस कहानी ने इन तीन तिलंगों को भी दगाबाजी की राह दिखा दी. योजना बनाई गई कि शराब की पार्टी में विशाल को इतनी पिला दी जाए कि वह होश खो बैठे. फिर उसे काबू में कर के उस के पिता से 15 लाख की फिरौती मांगी जाए.
तीनों का मानना था कि एकलौती औलाद के लिए एक दौलतमंद बाप 15 लाख क्या 15 करोड़ भी दे सकता है.
सवाल था कि विशाल बुलाने पर तयशुदा ठिकाने पर आ भी जाए और अपना मोबाइल भी इस्तेमाल न करना पड़े. यह योजना मंगलवार को कामयाब भी हो गई. इन लोगों ने सुबह 10 बजे बोरखेड़ा पहुंच कर एक सब्जी वाले के मोबाइल से फोन कर के विशाल को बुलाया और वहां से उसे बृजेंद्र के रामराजपुरा स्थित खेत पर ले गए.
सब्जी वाले को यह कह कर विश्वास में लिया कि भैया, हमारे मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई है, इसलिए एक जरूरी फोन कर लेने दो. सब्जी वाला झांसे में आ गया. दोपहर 12 बजे रामराजपुरा पहुंच कर दारू का दौर चला तो विशाल को जम कर दारू पिलाई गई, ताकि वह होश खो बैठे. ऐसा ही हुआ भी.
नशे में बेसुध विशाल के मोबाइल से बृजेंद्र ने पहले विशाल को अपने कब्जे में होने की बात की, फिर 15 लाख की मांग करते हुए धमकी दी कि पुलिस को इत्तला दी तो बेटा जिंदा नहीं बचेगा. असहाय पिता बनवारीलाल ने सहमति जता दी तो उसे पैसे पहुंचाने का निर्धारित स्थान भी बता दिया गया.
एसपी भोमिया साहब ने पूछा, ‘‘जब बाप ने फिरौती की रकम देने का भरोसा दे दिया था तो बेटे को क्यों मारा?’’
एसपी ने आंखें तरेरते हुए हड़काया तो विक्रांत ने उगल दिया, ‘‘हमें डर था कि रकम देने के बाद विशाल हमारा भेद खोलने से नहीं चूकेगा. इसलिए उसे मारना पड़ा.’’
‘‘कैसे और कब?’’ एसपी ने पूछा, ‘‘दरिंदे बन गए तुम लोग? कैसे मारा?’’
‘‘हत्या तो हम ने चाकुओं से कर दी थी. बाद में पहचान मिटाने के लिए उस पर नमक भी लपेट दिया. लेकिन…’’ उस ने बिन्नी और लक्की की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘ये दोनों संतुष्ट नहीं थे, इसलिए लोहे की रौड से उस के चेहरे पर इतने वार किए कि लाश पहचान में न आ सके. साहब, विशाल की हत्या तो हम ने 2 बजे ही कर दी थी.’’
‘‘फिर?’’
‘‘फिर…’’ अटकते हुए विक्रांत ने बताया, ‘‘इस के बाद लाश को बोरे में भरा और बाइक पर लाद कर नार्दर्न बाईपास के पास चंद्रलोई नदी की कराइयों में डाल आए और घर आ कर सो गए.’’
‘‘नींद आ गई तुम्हें?’’ एसपी भोमिया उन्हें नफरत भरी नजर से देखते हुए बुरी तरह बरस पड़े, ‘‘तुम ने तो शैतान को भी मात दे दी. लानत है तुम पर.’’
एसपी भोमिया ने मामले का रहस्योद्घाटन करते हुए मीडिया से कहा, ‘‘कैसी विचित्र बात है, ऐसे सीरियल से लोग जागरूक कम होते हैं लेकिन अपराधियों को अपराध के नए तरीके सीखने का मौका मिल जाता है.’’
कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी न्यायिक अभिरक्षा में थे.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित