ऐसा लग रहा है यह कोई अपराध नहीं, बल्कि फिल्मी कहानी है. अगर कोई निर्माता इस पर फिल्म बनाने का निर्णय ले ले तो हैरानी भी नहीं होनी चाहिए. घटना की शुरुआत या अंत कुछ भी कह लें, जबलपुर के थाना कैंट के बिलहरी मोहल्ले से हुई, जो मंडला रोड पर स्थित है. यहां अनुसूचित जाति के लोग ज्यादा रहते हैं. ज्यादा नहीं, अब से कुछ साल पहले तक बिलहरी एक गांव हुआ करता था. लेकिन धीरेधीरे यहां लोग बसने लगे तो यह जबलपुर के कैंट इलाके का प्रमुख मोहल्ला इस लिहाज से हो गया, क्योंकि यहां आसपास के गांव वालों के अलावा दूसरे शहरों और राज्यों के भी लोग आ कर बसने लगे थे.
कुछ लोगों को छोड़ दें तो बिलहरी में रह रहे ज्यादातर लोग मेहनतमजदूरी कर रोज कमानेखाने वाले हैं और कच्चे मकानों या झुग्गियों में रहते हैं. रोजाना कई लोग आ कर इस इलाके में बसते हैं और फिर धीरेधीरे यहीं के हो कर जबलपुरिया कहलाने लगते हैं.
रोजगार की तलाश में ऐसा ही एक जोड़ा अप्रैल, 2015 में जबलपुर आया तो बिलहरी में किराए का मकान ले कर रहने लगा. पति का नाम मयूर मलिक था और पत्नी का रिंकी शर्मा. रहने का ठिकाना मिल गया तो मयूर इधरउधर काम करने लगा. कुछ दिनों बाद उसे एक दुकान में नौकरी मिल गई. जल्दी ही उन के यहां एक बेटा भी हो गया.
रिंकी हालांकि हंसमुख और मिलनसार स्वभाग की थी, लेकिन अड़ोसपड़ोस में उस का कम ही उठनाबैठना था. रोज होने वाली बातचीत में उस ने पड़ोसियों से अपने बारे में बताया था कि वह और मयूर बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के एक गांव के रहने वाले हैं.
शादी के बाद रोजगार की तलाश में दोनों जबलपुर आ गए हैं. आमतौर पर वहां रहने वालों में बाहर से आए परिवारों की औरतें भी घरगृहस्थी चलाने के लिए मजदूरी या घरों में झाड़ूपोंछा, बरतन आदि का काम करती थीं, पर रिंकी ने ऐसा कुछ नहीं किया तो इस की एक खास वजह थी.
उस खास वजह का पता 9 मई, 2017 को तब पता चला, जब थाना कैंट के थानाप्रभारी मनजीत सिंह दलबल के साथ उस के घर पहुंचे. पुलिस को देख कर स्वाभाविक रूप से हलचल मचनी ही थी. मोहल्ले वाले सवालिया नजरों से एकदूसरे को देखने लगे कि आखिर हुआ क्या है? रिंकी और मयूर मलिक तो किसी झगड़ेफसाद में भी नहीं पड़ते थे.
किसी को अंदाजा नहीं था कि सीधेसादे दिखने और लगने वाले रिंकी और मयूर एक हैरतंगेज फसाद खड़ा कर यहां रह रहे थे, जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. इसलिए जिस ने भी सुना, आंखें फाड़े हैरानी से यही कहा कि ‘हे भगवान! इतना बड़ा धोखा और जुर्म. कैसे लोग हैं ये?’
रिंकी और मयूर को थाना कैंट लाया गया. उन के गुनाह से परदा उठ चुका था. उन का गुनाह ऐसा था, जिस के बारे में मनजीत सिंह तो दूर, आला अफसरों ने भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी होता है. सचमुच उन दोनों ने जो किया था, हैरान करने वाला था.
थाने में सिर झुकाए बैठी बेबस और थकीहारी रिंकी ने जो कहानी बताई, वह वाकई रहस्य और रोमांच से भरपूर थी, जिसे सुन कर हर किसी को उस आदमी पर तरस आया था, जिस का नाम मनोज शर्मा था. रिंकी की शादी बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के गांव सरैया के रहने वाले मनोज शर्मा से फरवरी, 2015 में हुई थी. सरैया गांव थाना गुरका में आता है.
ससुराल में कुछ दिनों तक रहने के बाद एक दिन रहस्यमय तरीके से रिंकी गायब हो गई. उस की गुमशुदगी की खबर जब उस के पिता चंद्रशेखर शर्मा और मां बबीता को लगी तो उन्होंने थाने में रिपोर्ट लिखाई कि उन के दामाद मनोज और उस के घर वालों ने दहेज के लालच में उन की बेटी की हत्या कर दी है. यही नहीं, उन्होंने रिंकी की लाश भी पुलिस के सामने पेश कर दी थी, जो पूरी तरह से पहचान में नहीं आ रही थी.
पुलिस ने इस मामले में यकीन शायद इसलिए कर लिया था, क्योंकि खुद लड़की के मांबाप ने लाश की पहचान की थी. लिहाजा दहेज मांगने और हत्या के जुर्म में मनोज को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, जिस की सुनवाई अदालत में चल रही थी.
मनोज की मां ललिता देवी को यकीन नहीं हो रहा था कि उन का सीधासादा बेटा अपनी पत्नी की हत्या कर सकता है. वह पुलिस वालों के सामने खूब रोईंगिड़गिड़ाईं, पर सब बेकार गया. तजुर्बेकार ललिता को बहू की हरकतें पहले दिन से ही संदिग्ध लग रही थीं. पर बेटा जेल में था और उस पर हत्या का आरोप था, इसलिए उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बेटे की बेगुनाही कैसे साबित करें.
मां का दिल मां का होता है. उस की ममता और हिम्मत किसी सबूत की मोहताज नहीं होती. अपनी औलाद को खतरे में पड़ी देख कर उस की हिम्मत और बढ़ जाती है. ललिता ने ठान लिया था कि जैसे भी हो, बेटे की बेगुनाही साबित कर उसे जेल और हत्या के कलंक से मुक्त कराएंगी.
कानून की निगाहों में रिंकी मर चुकी थी. उस का अंतिम संस्कार भी हो चुका था. उस का हत्यारा पति अपने किए की सजा भुगत रहा था. जबकि ललिता का दिल बारबार यही कह रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. पुलिस वालों को धोखा हुआ है. यही बात जब जानपहचान और नातेरिश्तेदार दोहराते तो उन का दिल डूबने लगता.
उन की समझ में एक बात यह नहीं आ रही थी कि अगर रिंकी मरी नहीं है तो वह लाश किस की थी, जिसे रिंकी समझ कर अंतिम संस्कार किया गया था. कम पढ़ीलिखी ललिता का दिमाग अब जासूसों सरीखा सोचने लगा था कि मुमकिन है कि इस साजिश में समधीसमधन के साथ रिंकी भी शामिल रही हो. लेकिन वे ऐसा क्यों करेंगे, यह सवाल भी अकसर मुंह बाए उस के सामने खड़ा रहता था.
आखिर तर्कों पर ममता भारी पड़ी और ललिता ने रिंकी का इतिहास यानी शादी के पहले की जिंदगी के बारे में खंगालना शुरू किया. उन्हें पहली बार में ही चौंकाने वाली बात यह पता चली कि रिंकी मयूर मलिक नाम के युवक को चाहती थी और यह बात हर कोई जानता था. उम्मीद की पहली किरण जागी तो दूसरी भी जल्द ही मिल गई. पता चला कि मयूर मलिक तभी से गायब है, जब से रिंकी की हत्या की बात कही गई थी. वह कहां है, यह किसी को नहीं मालूम था.
अब ललिता ने अपना पूरा ध्यान बहू के प्रेमी पर लगा दिया कि वह कहीं तो होगा और कभी न कभी तो अपने घर वालों से या फिर चंद्रशेखर और बबीता से संपर्क करेगा.
शक सच निकला. आखिरकार मई के पहले हफ्ते में ललिता को कहीं से पता चल गया कि मयूर मलिक उन की बहू रिंकी के साथ जबलपुर के बिलहरी इलाके में रह रहा है. देर न करते हुए उन्होंने यह जानकारी थाना सरैया पुलिस को दे दी.
पहली बार पुलिस ने ललिता की बात को गंभीरता से लिया और थानाप्रभारी ने तुरंत एएसआई शत्रुघ्न शर्मा की अगुवाई में एक टीम बना कर जबलपुर रवाना कर दिया. जबलपुर पहुंच कर शत्रुघ्न शर्मा ने थाना कैंट पहुंच कर थानाप्रभारी मनजीत सिंह को सारी बात बताई तो वह भी हैरान रह गए.
वह सोच कर रोमांचित थे कि अगर ऐसा है तो यह एक विरला मामला है. फौरन तैयारी कर के जब वह बिलहरी स्थित रिंकी के घर पहुंचे तो वाकई उन का सामना उस जिंदा लाश या औरत रिंकी शर्मा से हुआ, जो दुनिया और कानून की निगाह में 2 साल पहले मर चुकी थी. मयूर मलिक को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
रिंकी ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि वह मनोज से शादी होने से पहले मयूर से प्यार करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी. लेकिन घर वालों ने उस की शादी जबरदस्ती मनोज से कर दी थी. मनोज को वह मन से अपना पति नहीं स्वीकार पाई, जिस से ससुराल में उस का मन नहीं लगा.
यहां तक बात कतई हैरानी की या नई नहीं थी कि शादी के बाद लड़कियां अपने प्यार को भूल नहीं पातीं. ऐसे में वे भाग जाती हैं या फिर राज खुलने पर पति की निगाह में पत्नी का सम्मान और प्यार हासिल नहीं कर पातीं.
यही रिंकी के साथ हुआ. एक दिन मौका पा कर वह मयूर के साथ भाग गई और जबलपुर जा कर रहने लगी. अपनी नईनवेली पत्नी की गुमशुदगी के बारे में मनोज कुछ कर पाता, उस के पहले ही सासससुर ने उस पर परिवार सहित दहेज मांगने का आरोप लगा कर हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने भी उसे जेल भेज दिया. जेल में वह यही सोचता रहा कि आखिरकार उस का गुनाह क्या है?
इधर चंद्रशेखर शर्मा और बबीता ने बेटी की गलती को ढंकने के लिए एक लाश का इंतजाम किया और रोरो कर पुलिस वालों को यकीन दिला दिया कि लाश उन की बेटी रिंकी की है. साफ दिख रहा है कि पुलिस ने इस मामले में घोर लापरवाही बरती, जिस का खामियाजा निर्दोष मनोज को भगुतना पड़ा.
अभी इस मामले में एक अहम राज खुलना बाकी है. चंद्रशेखर और बबीता ने जिस लाश को रिंकी की लाश बताया था, उस की व्यवस्था उन्होंने कहां से की थी? कथा लिखे जाने तक दोनों फरार थे, इसलिए इस का पता नहीं चल सका था. अब उन की गिरफ्तारी के बाद ही पूरी तसवीर साफ होगी.
बात वाकई हैरान करने वाली है कि मनोज अपनी उस पत्नी की हत्या के आरोप में 2 साल जेल में रहा, जिस की हत्या हुई ही नहीं थी. अगर यह रहस्य न खुलता तो उस की हत्या के जुर्म में उसे मुमकिन है उम्रकैद या फांसी की सजा हो जाती. अगर ललिता देवी भागदौड़ कर के उसे नहीं बचातीं तो जरूर मनोज अंधे कानून की बेरहमी का शिकार हो जाता.
इस घटना ने अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘अंधा कानून’ के उस दृश्य की याद दिला दी, जिस में अमिताभ बच्चन भरी अदालत में खलनायक अमरीश पुरी की हत्या कर देता है और अदालत उसे सजा नहीं दे पाती, क्योंकि वह उसी खलनायक की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा पहले ही भुगत चुका था.
हालांकि अब यह कहने में भी हर्ज नहीं है कि इंसाफ की चौखट पर देर है, अंधेर नहीं.