लखनऊ के सिकंदरबाग चौराहे पर निशातगंज की तरफ जाने वाली सड़क पर बैटरी से चलने वाले 5-7 रिक्शे खड़े थे, जिन की वजह से काफी भीड़ थी. चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस भी थी, वहां से लगभग 500 कदम दूर 25 साल की लड़की खड़ी थी.
तभी एक कार आ कर रुकी. उस कार से भगवा कपड़े पहने 40-45 साल का एक आदमी उतरा, जो वहां खड़ी लड़की के पास पहुंच कर उस से झगड़ने लगा. झगड़ा बढ़ा तो लड़की वहीं पास में फुटपाथ पर सब्जी बेचने वाले की तरफ बढ़ने लगी. उन की बातचीत से ऐसा लग रहा था, जैसे दोनों पहले से परिचित हों.
उस लड़की की आवाज सुन कर तमाम लोग वहां आ गए. लोगों ने लड़की से बात कर पुलिस को फोन करने को कहा तो उस ने मना कर दिया.
भगवाधारी रणजीत श्रीवास्तव बच्चन था जो गोरखपुर के अहरौली गांव का रहने वाला था. 2 फरवरी, 2020 को ग्लोब पार्क के सामने रणजीत श्रीवास्तव की लाश मिली तो लोगों को उस दिन का झगड़ा याद आ गया.
करीब 20 साल पहले रणजीत के पिता तारालाल अपने परिवार के साथ अहरौली गांव से गोरखपुर के भेडि़याघाट रहने आए थे. इस के बाद तारालाल ने पतरका गांव में जमीन खरीदी. रणजीत खुद गोरखपुर में रहता था.
रणजीत श्रीवारुतव को एक्टिंग का शौक था. इसी शौक के चलते उस ने अपना नाम रणजीत श्रीवास्तव से बदल कर रणजीत बच्चन कर लिया था. वह फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन से बहुत प्रभावित था. उस ने अमिताभ बच्चन की तरह से कपडे़ पहनने और उन के जैसा ही हेयरस्टाइल रखना शुरू कर दिया.
अमिताभ बच्चन की नकल करने से कोई उन के जैसा नहीं बन जाता, यह बात रणजीत की समझ में आ गई. तब उस ने गांव की अपनी जमीन पर टीन शेड के नीचे नए लोगों को अभिनय का प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया. रंगमंच से जुड़े होने के बाद भी जब वह सफल नहीं हो पाया तो उस ने राजनीति और समाजसेवा को अपना रास्ता बनाया.
रणजीत को सुर्खियों में रहने का शौक था. इस के लिए उस ने कई सामाजिक संस्थाएं बनाईं. सुर्खियों में रहने के लिए उस ने पत्रकार संगठन और जातीय संगठन भी बनाए.
इस बहाने वह खुद को राजनीति से जोड़े रखना चाहता था. ऐसे में उस ने गोरखपुर से दूर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपना काम शुरू करने का फैसला किया. रणजीत के तमाम लड़कियों से संबंध थे. उन्हें ले कर वह चर्चा में रहता था.
कालिंदी सन 2002 से रणजीत के संपर्क में थी, वह कुशीनगर के नेअुबा नौगरियां क्षेत्र के बरई पट्टी गांव की रहने वाली थी. उस के पिता गोरखपुर नगर निगम में नौकरी करते थे. कालिंदी अच्छी एथलीट थी. रणजीत के साथ मिल कर उस ने देश भर में साइकिल यात्रा की थी.
बाद में कालिंदी और रणजीत पतिपत्नी की तरह रहने लगे. 2014 में रणजीत ने कालिंदी से गोरखपुर के कुसम्ही जंगल स्थित बुढि़यामाई के मंदिर में शादी कर ली. इस बीच रणजीत का राजनीतिक रसूख बढ़ता रहा. जिस के आधार पर सन 2009 में रणजीत को लखनऊ की ओसीआर बिल्डिंग में सरकारी आवास मिल गया.
महिलाओं को ले कर रणजीत का व्यवहार बहुत अच्छा नहीं था. सन 2017 में रणजीत की साली ने शाहपुर थाने में उस के खिलाफ छेड़खानी, मारपीट और बलात्कार का मामला दर्ज कराया था. पुलिस की मिलीभगत से रणजीत कागजों पर फरार चल रहा था. पुलिस ने खानापूर्ति के लिए रणजीत के पतरका गांव स्थित टीन शेड वाले घर पर कुर्की का आदेश चस्पा कर के अदालत में उसे कागजों में फरार दिखा दिया.
इस के बाद रणजीत ने ससुराल से अपने संबंध खत्म कर लिए थे. रणजीत की पत्नी कालिंदी भी अपनी बहन पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रही थी.
साल 2014 की बात है. रणजीत की लखनऊ के विकास नगर की रहने वाली स्मृति नामक महिला से मुलाकात हुई. उस के पिता की मौत हो चुकी थी. स्मृति अपने पिता की जगह पर नौकरी कर रही थी.
बातचीत में रणजीत को पता चला कि स्मृति पिता की पेंशन को ले कर परेशान है. ऐसे में रणजीत ने उसे मदद करने का भरोसा दिया. राजनीतिक रसूख के चलते उस ने स्मृति की मदद की भी. तभी से दोनों के दोस्ताना रिश्ते और मजबूत हो गए.
यही दोस्ती आगे चल कर प्यार में बदल गई. 18 जनवरी, 2015 को रणजीत और स्मृति की शादी हो गई. जब स्मृति गर्भवती हुई तो उसे पहली बार पता चला कि रणजीत पहले से शादीशुदा है. इस के बाद दोनों के बीच विवाद होने लगा.
रणजीत की पहली पत्नी कालिंदी को भी रणजीत और स्मृति के रिश्ते की जानकारी हो गई थी. स्मृति से रिश्तों का विरोध करने पर कालिंदी और रणजीत की लड़ाई होती रहती थी. तब कालिंदी ने पति के खिलाफ महिला थाने में शिकायत भी दर्ज करा दी.
काफी समय तक रणजीत ने कालिंदी और स्मृति को एक ही घर में रखे रखा. बाद में वह दोनों से झगड़ा तो करता ही था, उन्हें प्रताडि़त भी करता था. रणजीत ने बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी से अपने रिश्ते मधुर बना लिए थे, जिस से उसे राजनीतिक संरक्षण मिल सके. बसपा के बजाय उसे समाजवादी पार्टी से लाभ हुआ. प्रभाव बढ़ने पर पुलिस भी उसे संरक्षण देने लगी थी.
समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार के समय रणजीत ने साइकिल से पूरे भारत भ्रमण का कार्यक्रम बनाया. जब भारत भूटान साइकिल यात्रा निकली तो दल के नायक के रूप में रणजीत ने ही अगुवाई की थी. इस के बाद रणजीत का नाम लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स में जुड़ गया था.
जब से अखिलेश सरकार सत्ता से हटी तो उसे नए आसरे की तलाश करनी पड़ी. गोरखपुर शहर के रहने वाले महंत योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. ऐसे में रणजीत ने भी समाजवादी रूप छोड़ कर योगी आदित्यनाथ की तरह हिंदूवादी रूप बनाने का काम शुरू किया.
प्रदेश में हिंदुत्व की राजनीति चमकाने के लिए रणजीत ने हिंदूवादी नेता की छवि बनानी शुरू कर दी. ऐसे में उस ने विश्व हिंदू महासभा के अंतरराष्ट्रीय प्रमुख के रूप में खुद को प्रस्तुत करना शुरू किया. वह अखिलेश सरकार के समय में दिए गए ओसीआर के सरकारी आवास में रहता था.
यहीं पर उस ने पहली फरवरी, 2020 को अपने जन्मदिन की पार्टी भी की. कई लोग उसे बधाई देने भी पहुंचे थे. 2 फरवरी को सुबह करीब साढ़े 5 बजे रणजीत अपने ओसीआर स्थित आवास से बाहर मौर्निंग वाक के लिए निकला.
रणजीत के साथ पत्नी कालिंदी और रिश्तेदार आदित्य भी था. पत्नी कालिंदी ओसीआर से विधानसभा मार्ग स्थित भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय से होते हुए लालबाग ग्राउंड की तरफ मुड़ गई, जहां वह जौगिंग करती थी. रणजीत और आदित्य आगे बढ़ गए और हजरतगंज चौराहे से परिवर्तन चौक होते हुए ग्लोब पार्क पहुंच गए.
ग्लोब पार्क के पास शाल लपेटे एक युवक रणजीत के पास पहुंचा और उस ने दोनों पर पिस्टल तान दी. उस ने रणजीत और आदित्य के मोबाइल फोन छीन लिए. इस के बाद रणजीत के सिर पर पिस्टल सटा कर गोली मार दी. हमलावर ने आदित्य पर भी गोली चलाई, जो उस के हाथ में लगी. फिर हमलावर वहां से भाग गया.
आदित्य के शोर मचाने पर राहगीरों ने पुलिस को खबर दी. पुलिस हत्या की जानकारी देने रणजीत के आवास पर पहुंची तो गोरखपुर से रणजीत के साथ आए अभिषेक की पत्नी ज्योति घर पर मिली. ज्योति ने फोन कर के रणजीत की पत्नी कालिंदी को हत्या की सूचना दी.
पति की हत्या का पता चलते ही कालिंदी सिविल अस्पताल पहुंच गई. वहां से पुलिस कालिंदी को अपने साथ ले गई, जिसे बाद में पूछताछ के बाद चिनहट निवासी चचेरे भाई के साथ भेज दिया. हिंदूवादी नेता की हत्या से पूरी राजधानी सकते में आ गई. कुछ महीने पहले कमलेश तिवारी नामक एक और हिंदूवादी नेता की हत्या हो चुकी थी.
इस के बाद मार्निंग वाक के समय रणजीत की हत्या ने लखनऊ पुलिस और नए कमिश्नरी सिस्टम को कठघरे में खड़ा कर दिया. रणजीत की हत्या के बाद आननफानन में जौइंट कमिश्नर नवीन अरोड़ा, एसीपी हजरतगंज अभय कुमार मिश्रा, एसीपी कैसरबाग संजीव कांत सिन्हा सहित कई अफसर मामले की छानबीन में लग गए.
पुलिस पर सब से बड़ा सवाल इसलिए भी है कि हुसैनगंज स्थित ओसीआर से ले कर ग्लोब पार्क के बीच 6 पुलिस चौकियां हैं, इस के बाद भी हत्यारों को पकड़ा नहीं जा सका. पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने इस मामले में 4 पुलिसकर्मियों संदीप तिवारी, अनिल गुप्ता, अरविंद और आशीष को सस्पेंड कर दिया.
रणजीत की हत्या को ले कर उस की पत्नी कालिंदी का कहना था कि रणजीत कुछ दिनों से प्रखर हिंदुत्व को ले कर बहस कर रहा था. नागरिकता कानून का भी समर्थन कर रहा था. ऐसे में हिंदू विरोधी लोग उस के दुश्मन बने हुए थे. कालिंदी ने 50 लाख रुपए का मुआवजा, मकान और सरकारी नौकरी की मांग सरकार के सामने रखी.
डीसीपी (मध्य) दिनेश सिंह के जरिए यह मांग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजी गई. पुलिस हत्या की पड़ताल में पारिवारिक बातों को ले कर छानबीन कर रही है.
पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने इस मामले की जांच के लिए 8 टीमें बनाई थीं. पुलिस ने 87 लोगों के मोबाइल फोनों की काल डिटेल्स खंगाली. कुछ होटलों के 72 सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले. पुलिस के लिए सब से पहले यह जानना जरूरी था कि हत्या की वजह क्या हो सकती है.
इस में नौकरी दिलाने के नाम पर रुपए का लेनदेन, पारिवारिक विवाद, जमीन से जुड़ा विवाद, पतिपत्नी के बीच संबंधों का विवाद, रणजीत के रिश्ते का विवाद और आतंकी हमले जैसे विवाद प्रमुख थे.
पुलिस को सब से चौंकाने वाले तथ्य दोनों पत्नियों की जानकारी होने पर मिले. पुलिस ने जब रणजीत की दूसरी पत्नी स्मृति को कुछ फोटो दिखाए जिन में से एक फोटो को उस ने पहचान लिया.
पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो उसे दीपेंद्र के बारे में पता चला. दीपेंद्र रणजीत की दूसरी पत्नी स्मृति का करीबी था. दोनों की मुलाकात सन 2019 में हुई थी. इस के बाद दोनों करीब आ गए और शादी कर के घर बसाने चक्कर में थे. दीपेंद्र स्मृति से मिलने विकास नगर आता था.
यहां दोनों एक होटल में रुकते भी थे. इस बात की जानकारी जब रणजीत को हुई तो उस ने स्मृति से झगड़ा किया. सिकंदरबाग चौराहे पर रणजीत ने ही स्मृति को थप्पड़ मारा था.
यह बात दीपेंद्र को पता चली तो उस ने रणजीत को ही रास्ते से हटाने का प्लान तैयार करना शुरू कर दिया. दीपेंद्र ने अपने प्लान को सफल बनाने के लिए 11 दिन तक रणजीत की रेकी की.
इन लोगों को यह जानकारी मिली कि रणजीत ओसीआर स्थित अपने फ्लैट नंबर 604 से सुबह मार्निंग वाक के लिए निकलता है. उस के साथ पत्नी कालिंदी और एकदो लोग भी होते हैं.
2 फरवरी को जब रणजीत मार्निंग वाक पर निकला तो योजना के मुताबिक दीपेंद्र ने ग्लोब पार्क के पास रणजीत को गोली मार दी. उस का मोबाइल भैंसाकुंड के पास फेंक कर वह हैदरगढ़ होते हुए रायबरेली चला गया. वहां से दीपेंद्र मुंबई चला गया. पुलिस ने दीपेंद्र के साथ ही साथ संजीत और जितेंद्र को भी पकड़ लिया. पुलिस ने स्मृति के खिलाफ भी साजिश रचने का मुकदमा दर्ज हुआ.
रणजीत हत्याकांड का खुलासा करने में जौइंट सीपी नवीन अरोड़ा, नीलाब्जा चौधरी, डीसीपी (मध्य) दिनेश सिंह, एडीशनल डीसीपी चिरंजीव नाथ सिन्हा, एडीशनल डीसीपी (क्राइम) दिनेश पुरी, एसीपी (हजरतगंज) अभय कुमार मिश्रा, आलोक कुमार सिंह के साथ पुलिस की सर्विलांस सेल और साइबर सेल ने अहम भूमिका अदा की.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित