भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बीमा पौलिसी कराना आम बात है. अपनी अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से ज्यादातर लोग बीमा पौलिसी खरीदते हैं. इसके लिए सरकारी, गैरसरकारी कंपनियां और बैंक अपने नियमों के हिसाब से पौलिसी करते हैं. उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के पल्लवपुरम निवासी अंबरीश गुप्ता ने भी एक नामी प्राइवेट बैंक से 14 बीमा पौलिसी करा रखी थीं, जिन की कीमत 54 लाख रुपए थी.

16 सितंबर, 2016 की एक शाम अंबरीश घर पर ही थे. अचानक उन के मोबाइल पर एक अंजान नंबर से फोन आया. उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से एक व्यक्ति की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो गुड इवनिंग सर, आप अंबरीशजी बोल रहे हैं न?’’

‘‘जी हां, आप कौन?’’

‘‘सर, मैं आईसीआईसीआई के फंड डिपार्टमैंट से औफीसर राहुल बात कर रहा हूं.’’ फोनकर्ता ने अपना परिचय दिया तो वह थोड़ा सतर्क हो गए, क्योंकि उन की बीमा पौलिसी इसी कंपनी में थी. उन्होंने जिज्ञासावश पूछा, ‘‘बताइए, राहुलजी.’’

‘‘सर, आप को बताना चाहता हूं कि आप की पौलिसी की कीमत अब 75 लाख रुपए हो गई है. अब आप को पूरे 21 लाख रुपए का मुनाफा होगा.’’ उस ने गर्मजोशी से बताया तो अंबरीश के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव उभर आए.

‘‘धन्यवाद, यह तो मेरे लिए बहुत खुशी की बात है.’’

‘‘लेकिन एक प्रौब्लम है सर.’’

‘‘कैसी प्रौब्लम?’’ अंबरीश को एकाएक झटका सा लगा.

‘‘दरअसल सर, हमें आज रात शेयर मार्केट में गिरावट आने के संकेत मिले हैं. अगर ऐसा हुआ तो पौलिसी की वैल्यू 75 लाख से गिर कर केवल 43 लाख रह जाएगी. आप समझ सकते हैं कि शेयर बाजार का उतारचढ़ाव किसी के हाथ में नहीं होता.’’

‘‘यह तो वाकई परेशानी की बात है.’’

‘‘बिलकुल सर, लेकिन आप हमारे रौयल कस्टमर हैं. आप को सूचना देना हम ने अपना फर्ज समझा. हम चाहते हैं, आप को पौलिसी से भरपूर फायदा हो. आप अपनी पौलिसी को तत्काल बंद करने की अनुमति दें तो इस नुकसान से बच सकते हैं. 3 महीने के अंदर कंपनी आप को पूरे 75 लाख रुपए देगी.’’

उस की बात सुन कर अंबरीश ने तेजी से दिमाग दौड़ाया. इस में कोई बुराई नहीं थी. उन्हें 54 लाख के बदले 75 लाख रुपए मिल जाने थे. यानी उन्हें शुद्ध 21 लाख रुपए का फायदा हो रहा था. कुछ पल की खामोशी के बाद वह बोले, ‘‘पैसा तो मुझे मिल जाएगा, लेकिन मैं पौलिसी भी जारी रखना चाहता हूं.’’

‘‘आप इस की फिक्र न करें सर, हम आप को नई पौलिसी दे देंगे. बैंक से आप को कल फोन आ जाएगा.’’

‘‘ओके.’’ अंबरीश ने फोन रख दिया.

बैंक के औफीसर ने खुद काल की थी, जिस से यह बात साफ थी कि बैंक उन का हित चाहता था. वह सोच कर मन ही मन खुश हुए कि घाटे से बच गए. वाकई यह खुशी की ही बात थी.

अगले दिन बैंक से एक लड़की का फोन आया तो उस ने उन्हें कुछ आकर्षक लाभ वाली पौलिसियों के बारे में समझाया. साथ ही यह भी बताया कि उन्हें 21 लाख का जो मुनाफा होने जा रहा है, उतने रुपए उन्हें जमा कराने होंगे. यह रकम बैंक द्वारा उन्हें 3 महीनों में लौटा दी जाएगी. इस के बाद कई दिनों तक बातों का सिलसिला चलता रहा. मुनाफे के लालच में अंबरीश मोटी रकम का ख्वाब देख रहे थे. उन्होंने न केवल 21 लाख रुपए फोनकर्ताओं द्वारा बताए गए खातों में जमा किए बल्कि नई पौलिसी के रुपए भी जमा कर दिए.

अलगअलग समय पर कभी इनकम टैक्स, कभी सिक्योरिटी मनी तो कभी पौलिसी के नाम पर अंबरीश ने करीब 80 लाख रुपए जमा करा दिए. 2 महीने बाद दिसंबर में रकम वापसी की बात आई तो फोनकर्ता आश्वासन देने वाला अंदाज अपनाने लगे. जिन लोगों के फोन उन के पास आते रहे थे, उन्होंने धीरेधीरे उन से संपर्क करना छोड़ दिया. दिसंबर के अंतिम सप्ताह में अंबरीश ने कई लोगों से विचारविमर्श किया. जिस के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि उन्हें ठगा गया है.

इस बात का अहसास होते ही उन की रातों की नींद उड़ गई. मामला मोटी रकम का था. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इस तरह ठगी का शिकार हो जाएंगे. उन्होंने इस बारे में एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ से मुलाकात कर के शिकायत की.

मामला साइबर अपराध से जुड़ा हुआ था. निस्संदेह वह किसी पेशेवर रैकेट का शिकार हुए थे. यह भी तय था कि अंबरीश जैसे न जाने कितने लोग इस तरह ठगी का शिकार हुए होंगे. मामला गंभीर था, लिहाजा उन्होंने मुकदमा दर्ज कर के तत्काल काररवाई करने के निर्देश दिए. एसएसपी के निर्देश पर अंबरीश की तरफ से पल्लवपुरम थाने में ठगी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. अंबरीश ने जिन खातों में पैसा जमा किया था उन की और उन मोबाइल नंबरों की डिटेल्स थानाप्रभारी सतेंद्र प्रकाश को उपलब्ध करा दी, जिन पर उन की बात होती रही थी.

मामला चूंकि साइबर क्राइम का था लिहाजा एसपी (सिटी) आलोक प्रियदर्शी व सीओ (क्राइम) ज्ञानवती देवी के निर्देश पर यह केस साइबर सेल को स्थानांतरित कर दिया गया. साइबर सेल के प्रभारी कर्मवीर सिंह ने अपने साथी पुलिसकर्मियों सोनू कुमार, उमेश वर्मा, कपिल कुमार, विजय कुमार व केस के जांच अधिकारी विनोद कुमार त्रिपाठी के साथ मामले की जांच शुरू कर दी.

पुलिस बैंक खातों के जरिए धोखाधड़ी करने वालों तक आसानी से पहुंच सकती थी, लिहाजा इसी दिशा में जांच आगे बढ़ाई गई. जिन खातों के जरिए पैसे लिए गए थे, उन में एक खाता गाजियाबाद जिले की बैंक शाखा में किसी हरलीन कौर के नाम पर था.

पुलिस टीम गाजियाबाद पहुंची और हरलीन का पता हासिल करने के साथ ही खाते की डिटेल्स भी प्राप्त कर ली. हरलीन के खाते में लाखों के लेनदेन का ब्यौरा दर्ज था. इस से यह बात साफ हो गई कि यह रैकेट बड़े पैमाने पर लोगों को अपना शिकार बना रहा था.

पुलिस ने उन सभी मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स और पते हासिल कर लिए जिन से अंबरीश को फोन किए जाते थे. हालांकि ऐसे सभी नंबर बंद हो चुके थे. ये सभी नंबर फरजी आईडी पर लिए गए थे, लेकिन जिन मोबाइल हैंडसेट में वे नंबर इस्तेमाल हुए थे, उन पर अब दूसरे नंबर चल रहे थे. सर्विलांस की मदद से पुलिस ने ऐसे सभी नंबरों का इस्तेमाल करने वालों का ब्यौरा हासिल कर लिया.

6 जनवरी, 2017 को पुलिस टीम गाजियाबाद जा पहुंची. सादे कपड़ों में कुछ पुलिसकर्मी राजनगर स्थित एक औफिस में पहुंचे. वहां कई युवक व एक युवती काम कर रहे थे. उन के अंदर दाखिल होते ही कुरसी पर बैठे एक युवक ने पूछा, ‘‘कहिए?’’

‘‘हमें आप के बौस से मिलना है?’’ एक पुलिस अफसर ने कहा.

‘‘क्या काम है?’’

‘‘काम बड़ा है, इसलिए हम उन्हें ही बताएंगे. वैसे क्या नाम है आप के बौस का?’’

‘‘जी, शमशेर सर.’’

कुछ ही देर में उस युवक ने उन लोगों को एक केबिन में भेज दिया. अंदर बैठे एक युवक ने रिवौल्विंग चेयर पर झूलते हुए पूछा, ‘‘बताइए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

‘‘हमें अपने रुपए वापस चाहिए.’’

‘‘मतलब?’’ वह चौंका.

‘‘हम मेरठ से आए हैं और अंबरीश के रिश्तेदार हैं. बीमा पौलिसी का रुपया है, इतना तो आप समझ ही गए होंगे.’’ यह सुन कर उस युवक को बिजली जैसा झटका लगा. वह उन्हें अर्थपूर्ण नजरों से देखने लगा. उस के चेहरे का रंग उड़ा हुआ सा नजर आ रहा था.

‘‘मैं कुछ समझा नहीं…’’ उस ने अंजान बनने का नाटक किया.

‘‘हमारे साथ चलिए, हम सब समझा देंगे.’’ कहने के साथ ही पुलिस ने उसे और वहां मौजूद उस के साथियों को हिरासत में ले लिया. इस बीच वर्दीधारी पुलिसकर्मी भी वहां आ गए थे.

औपचारिक पूछताछ में पुलिस ने सभी के नामपते मालूम किए. उन की बातों से यह साफ हो गया था कि वे लोग ठगी की कंपनी चला रहे थे. गिरफ्तार लोगों में शमशेर उर्फ बबलू, पंकज धरेजा, राज सिंघानिया, सुधांशु उर्फ रोहित, अजय शर्मा व हरलीन कौर शामिल थे. इन में शमशेर दिल्ली के मालवीय नगर, पंकज फरीदाबाद, हरियाणा और अन्य सभी गाजियाबाद के रहने वाले थे. पुलिस ने मौके से कई लैपटौप, 7 मोबाइल फोन, बैंकों की पासबुक, चैकबुक, कई एटीएम कार्ड और अन्य कई दस्तावेज बरामद किए.

पुलिस सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर के मेरठ ले आई और उन से विस्तार से पूछताछ की. पूछताछ में एक ऐसे गिरोह की कहानी निकल कर सामने आई जो बीमा कराने वाले लोगों को सपने दिखा कर ठगी का गोरखधंधा कर रहा था. एक दसवीं पास युवक ने अपने साथियों के साथ मिल कर सपनों का ऐसा जाल बुना कि उस में कई लोग फंस गए.

दरअसल, शमशेर उर्फ बबलू महज 10वीं पास युवक था. समाज में ऐसे युवाओं की कोई कमी नहीं है, जो आधुनिकता की चकाचौंध से प्रभावित हो कर सोचने लगते हैं कि वे थोड़ी कोशिश करें तो बहुत कम समय में सफलताओं की इमारत खड़ी कर सकते हैं. उन की चाहत होती है कि उन के पास सभी भौतिक सुविधाएं और ढेर सारी दौलत हो. महत्त्वाकांक्षाओं की हवाएं जब दिलोदिमाग में सनसनाती हैं तो सोच खुदबखुद बदल जाती है. सोच की यह चाहत उन्हें इसलिए बुरी नहीं लगती, क्योंकि इसी के चलते उन्हें ख्वाबों में कल्पनाओं के खूबसूरत महल नजर आने लगते हैं.

शमशेर भी कुछ ऐसी ही सोच का शिकार था. उस का ख्वाब था कि किसी भी तरह उस के पास इतनी दौलत हो कि जिंदगी ऐशोआराम से बीते. वक्त के दरिया में तैराकी करते हुए उस ने दिनरात बहुत दिमाग दौड़ाया. यह अलग बात थी कि उसे कुछ समझ नहीं आया. नौकरी के लिए भी उस ने कई जगह हाथपैर मारे.

जब उसे मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक फाइनैंस कंपनी में बतौर क्लर्क नौकरी शुरू कर दी. यह कंपनी लोगों को बैंकों से लोन दिलाने का काम करती थी. इस के बदले वह उन लोगों से तयशुदा कमीशन लेती थी, जिन का लोन पास कराया जाता था. दरअसल, यह कंपनी लोगों को सपने दिखा कर ठगती थी. कुछ समय शमशेर ने एक बीमा कंपनी में भी नौकरी की.

शमशेर को ठगी की राह आसान लगी. उस ने कुछ ऐसा ही करने की ठान ली और नौकरी छोड़ दी. इंसान जैसा होता है, उसे वैसे ही लोग भी मिल जाते हैं. शमशेर ने इस मुद्दे पर कुछ दोस्तों से बात की तो उन लोगों ने बीमा पौलिसी कराने वाले लोगों को ठगने की योजना बनाई.

उस ने अपने साथी आशीष, सुमित, दिनेश, संजू चौहान के साथ मिल कर बीमा एजेंटों को लालच दे कर कुछ बीमा पौलिसी धारकों का ब्यौरा हासिल किया. इस के बाद वे उन्हें फोन कर के लालच के जाल में फंसाते और अपने खातों में पैसा जमा करा लेते. उन्हें कामयाबी मिली तो उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

बाद में उन्होंने अपने साथी राज सिंघानिया, पंकज धरेजा, सुधांशु, अजय व हरलीन कौर को भी अपने साथ जोड़ लिया. सभी महत्त्वाकांक्षी थे और करोड़पति बनने का सपना संजोए हुए थे. इन में पंकज ने बीकौम व हरलीन ने बीटेक की शिक्षा हासिल की हुई थी. जबकि बाकी सभी 10वीं या 12वीं तक पढ़े थे. राज सिंघानिया खुद भी बीमा एजेंट था.

खास बात यह भी थी कि सुमित व दिनेश एक ऐसी कंपनी में नौकरी कर चुके थे, जिस के पास एक दरजन से ज्यादा पौलिसी करने वाली कंपनियां जुड़ी हुई थीं. इन लोगों ने शातिराना अंदाज में वहां से डाटा चोरी कर लिया.

शुरुआत में गिरोह की ठगी का शिकार हुए लोगों ने ठगी की शिकायत पुलिस से नहीं की तो उन के हौसले बढ़ गए. उन्हें लगा कि देश में लोगों को लालच दे कर ठगने का काम सब से आसान है. उन्होंने गाजियाबाद में अपना औफिस बना लिया. साथ ही फरजी पतों पर कई मोबाइल नंबर हासिल कर लिए. फिर वे फोन कर के अपने शिकार से बेहद लुभावनी बातें करते और उन्हें दिन में ही उन के ही पैसे से  जिंदगी को जन्नत बनाने के सुनहरे ख्वाब दिखाते. स्वार्थसिद्धि के लिए उन की बातें व योजनाएं इतनी लच्छेदार होती थीं कि अच्छेभले आदमी की सोच कुंद हो जाए.

उन का ठगी का धंधा चल निकला. उन का शिकार हुआ जो व्यक्ति अपनी रकम वापस पाने के लिए फोन कर के परेशान करता था, उस नंबर को वे हमेशा के लिए बंद कर देते थे. ऐसा कर के उन्हें मोबाइल नंबरों से पकड़े जाने का डर नहीं रहता था. कई बीमा पौलिसी धारक ऐसे भी होते थे जो 2 नंबर की रकम से मोटी पौलिसी खरीदते थे. भेद खुलने के डर से वे ठगी का शिकार हो कर भी चुप रह जाते थे. गिरोह के निशाने पर ऐसे लोग ही ज्यादा होते थे, जिन की पौलिसी लाखों में होती थी. इन ठगों ने खूब कमाई की. सभी लोग लग्जरी लाइफ जीते थे.

राज सिंघानिया जिस फ्लैट में रहता था, उस का किराया ही 20 हजार रुपए महीना था. इतना ही नहीं, वह अपने नौकर को 8 हजार रुपए महीना वेतन देता था. उस ने गाजियाबाद के पौश एरिया में अपना साइबर कैफे भी खोल लिया. दूसरी ओर शमशेर ने दिल्ली में भी अपना औफिस बना लिया. वह शानदार जिंदगी जीता था. शिकार बने लोगों का पैसा हरलीन के खाते में जमा कराया जाता था.

हरलीन कुल जमा रकम का 35 फीसदी कमीशन लेती थी. ठगी के खेल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज सिंघानिया के खाते में करीब एक साल में 4 करोड़ रुपए का ट्रांजैक्शन हुआ था. इन लोगों का धंधा अनवरत चलता रहता, लेकिन अंबरीश ने शिकायत की तो इन की करतूतों का भंडाफोड़ हो गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने लिखापढ़ी कर के सभी आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस शेष आरोपियों की तलाश कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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