कोई भी अनहोनी या परेशानी बता कर नहीं आती. जिस तरह उजाले को शाम का अंधेरा अपने आगोश में समेटता है, वैसा ही कुछ हाल अनहोनी और परेशानी का भी होता है. नोएडा के वीआईपी इलाके सैक्टर ओमेगा वन स्थित ग्रीनवुड सोसायटी के रहने वाले कारोबारी अशोक गुप्ता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.
13 जनवरी, 2017 की दोपहर उनकी आलीशान कोठी में अजीब सी हलचल थी. ऐसी हलचल, जिसे पहले कभी महसूस नहीं किया गया था. दरअसल उस दिन अशोक गुप्ता की पत्नी और बेटा विपुल काफी परेशान थे. मृदुभाषी अशोक का बैटरी बनाने का बड़ा कारोबार था, जिसे वह अपने 2 बेटों की मदद से चला रहे थे.
यूं तो अशोक गुप्ता खुशियों भरी जिंदगी जी रहे थे, लेकिन उस दिन जैसे उन के परिवार की खुशियों को किसी की नजर लग गई थी. दरअसल ढाई बजे के करीब उन के बेटे विपुल के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. नंबर चूंकि पिता का था, इसलिए उन्होंने तत्काल फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘हैलो पापा.’’
विपुल को झटका तब लगा, जब दूसरी ओर से किसी अनजान आदमी की आवाज आई, ‘‘पापा, नहीं मैं बोल रहा हूं.’’
‘‘आप कौन ’’ विपुल ने पूछा.
‘‘यह भी बता देंगे, फिलहाल इतना जान लो कि तुम्हारे पापा हमारे कब्जे में हैं. अगर उन की जान की सलामती चाहते हो तो जल्दी से 3 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो, वरना अच्छा नहीं होगा.’’ फोन करने वाले ने सख्त लहजे में कहा.
उस की बात सुन कर विपुल के पैरों तले से जमीन खिसक गई. विपुल ने पूछना चाहा कि वह कौन बोल रहा है तो उस ने डांटने वाले अंदाज में कहा, ‘‘ज्यादा सवाल नहीं, जितना कहा है, सिर्फ उतना करो.’’
इतना कह कर फोन करने वाले ने फोन काट दिया. इस के बाद गुप्ता परिवार सकते में आ गया. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि अशोक गुप्ता का अपहरण हो चुका है. वह बदमाशों के चंगुल में हैं. उन्हें छोड़ने के लिए बदमाश फिरौती मांग रहे हैं.
अशोक गुप्ता घर में बाजार जाने की बात कह कर अपनी कोरोला कार से ड्राइवर पवन के साथ निकले थे. उसी बीच उन का अपहरण हो गया था. उन का तो अपहरण हो गया, ड्राइवर पवन कहां गया, उस का कुछ पता नहीं था. घर वाले उसी के बारे में सोच रहे थे कि घबराया हुआ पवन घर में दाखिल हुआ. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह काफी डरा हुआ था.
उस के आते ही विपुल ने पूछा, ‘‘पवन, पापा को क्या हुआ ’’
‘‘वे मेरी आंखों के सामने से उन्हें ले गए और मैं कुछ नहीं कर पाया.’’ कह कर पवन जोरजोर से रोने लगा.
‘‘क्या हुआ, पूरी बात ठीक से बताओ.’’ विपुल ने पूछा.
‘‘भैयाजी, मैं साहब को ले कर सैक्टर पी-3 गोलचक्कर के पास जा रहा था, तभी एक मारुति वैन ने हमारी कार को ओवरटेक कर के रोक लिया. 3 बदमाशों ने हथियारों के बल पर साहब को निकाल कर अपनी कार में बैठाया और देखतेदेखते ले कर चले गए. मैं ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्होंने मुझे धक्का दे कर गिरा दिया.’’ डरे हुए अंदाज में पवन ने कहा.
पवन अपनी बात कह ही रहा था कि अपहर्त्ता का फिर फोन आ गया. विपुल ने जल्दी से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘पैसों का इंतजाम हो गया’’
‘‘इतनी बड़ी रकम का इंतजाम इतनी जल्दी कैसे हो सकता है ’’
‘‘गुप्ताजी को जिंदा देखना चाहते हो तो फिरौती तो देनी ही होगी.’’
‘‘आप लोग मेरी बात समझने की कोशिश कीजिए, रकम बहुत ज्यादा है. हम कोशिश कर के भी इतनी बड़ी रकम का इंतजाम नहीं कर सकते. हमारे पास जो नकदी और गहने हैं, वह सब हम देने को तैयार हैं. लेकिन मेरे पापा को कुछ नहीं होना चाहिए.’’
‘‘उस की फिक्र तुम मत करो, हम अपने वादे के पक्के हैं. तुम पैसा तैयार करो, हम दोबारा फोन करते हैं. और हां, गलती से भी पुलिस को खबर की तो मजबूरन हमें अपने हाथ खून से रंगने पड़ेंगे.’’ अपहर्त्ता ने कहा और फोन काट दिया. इस तरह अपहर्त्ता लगातार विपुल के संपर्क में बने थे.
नातेरिश्तेदारों से सलाहमशविरा कर के विपुल ने पिता के अपहरण की सूचना पुलिस को दे दी. कारोबारी के अपहरण की सूचना मिलते ही सीओ डा. अरुण कुमार और स्थानीय थाना कासना के थानाप्रभारी सुधीर त्यागी अशोक गुप्ता की कोठी पर पहुंच गए.
मामला सीधे अपहरण का था. अब तक मिली जानकारी से पुलिस को पूरा विश्वास था कि अपहर्त्ता जरूर किसी न किसी रूप में अशोक गुप्ता के जानकार थे. उन्होंने उन की हैसियत देख कर ही फिरौती की मांग की थी.
उन के ड्राइवर पवन के सामने उन का अपहरण हुआ था, इसलिए पुलिस ने उस से पूछताछ की. उस ने वहीं बातें पुलिस को भी बताईं, जो विपुल को बताई थीं. पुलिस ने जब उस से पूछा कि उस ने वहां शोर क्यों नहीं मचाया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं बहुत डर गया था.’’
एसएसपी धर्मेंद्र सिंह ने एसपी सुजाता सिंह से सलाह की. वह अपहृत कारोबारी अशोक गुप्ता की जल्द से जल्द बरामदगी चाहते थे, इसलिए उन के निर्देश पर एसपी सुजाता सिंह ने सर्विलांस टीम को सक्रिय कर दिया. पुलिस ने अपराध क्रमांक 33/2017 पर धारा 364ए/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी, साथ ही विपुल से अपहर्त्ताओं से संपर्क बनाए रखने को कहा.
अपहर्त्ता का फोन आया तो विपुल ने बात 15 लाख रुपए नकद और आभूषणों में तय कर ली. लेकिन अपहर्त्ताओं की एक बात ने विपुल को न सिर्फ चौंका दिया, बल्कि वह सोचने पर भी मजबूर हो गए. अपहर्त्ता ने कहा था, ‘‘हम यह फिरौती एक शर्त पर लेंगे.’’
‘‘क्या ’’
‘‘आप को रकम अपने ड्राइवर के हाथों भेजनी होगी, क्योंकि हम उसे पहचानते हैं. इस में कोई चालाकी नहीं होनी चाहिए. फिरौती ले कर कहां आना है, यह हम थोड़ी देर में बता देंगे.’’
अपहर्त्ता ने जैसे ही फोन रखा, विपुल ने पुलिस अधिकारियों से कहा, ‘‘सर, अपहर्त्ता कौन है, मुझे पता चल गया है.’’
‘‘क्या ’’ पुलिस ने पूछा.
‘‘जी सर, मैं ने उस की आवाज पहचान ली है. वह कोई और नहीं, हमारा पुराना ड्राइवर सनेश है. मेरा शक उस पर इसलिए और बढ़ गया है, क्योंकि उस ने फिरौती की रकम पहुंचाने के लिए पवन को भेजने की शर्त रखी है. पवन को डेढ़ महीने पहले उसी ने हमारे यहां नौकरी पर रखवाया था.’’ विपुल ने बताया.
विपुल ने यह बात बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कही थी, इसलिए पुलिस के शक की सुई पवन पर ठहर गई. उस की भूमिका पुलिस की नजर में पहले से ही संदिग्ध थी, क्योंकि उस ने पुलिस को फोन न कर के और शोर न मचा कर घर आ कर अपहरण की बात बताई थी.
जबकि अपहरण के मामलों में ऐसा होता नहीं है कि अपहर्त्ता किसी ड्राइवर के जरिए फिरौती मंगवाएं. असलियत जानने के लिए पुलिस की सर्विलांस टीम ने पवन, अशोक गुप्ता और सनेश की काल डिटेल्स निकलवाई तो घटना के समय की तीनों की लोकेशन एक साथ की पाई गई. यही नहीं, पवन और सनेश की लगातार बातें भी हो रही थीं.
पुलिस को अपहर्त्ताओं तक पहुंचने की राह मिल गई थी. पवन से पूछताछ की गई तो पहले वह अपना हाथ होने से इनकार करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि अपहरण की साजिश में वह खुद भी शामिल है.
सपी सुजाता सिंह जानती थीं कि अपहर्त्ताओं को जरा भी शक हुआ तो अशोक गुप्ता की जान को खतरा हो सकता है, इसलिए उन्होंने पवन के जरिए अपहर्त्ताओं तक पहुंचने और अशोक गुप्ता को सकुशल बरामद करने की योजना बनाई. इस मामले में खास बात यह थी कि पवन को पता था कि अशोक गुप्ता को कहां रखा गया है.
विपुल ने अपहर्त्ताओं को फोन कर के बता दिया था कि उन्होंने पवन को रकम दे कर भेज दिया है. जबकि पुलिस टीम ने पवन को कार में अपने साथ बैठा रखा था. 10 मिनट बाद ही पवन के साथी का फोन उस के मोबाइल पर आ गया. पवन ने पुलिस के इशारे पर उसे विश्वास दिला दिया कि किसी तरह का कोई खतरा नहीं है और वह फिरौती का माल ले कर उन के पास पहुंच रहा है.
अब तक रात हो चुकी थी. हथियारों से लैस पुलिस टीम पवन को साथ ले कर रात करीब 12 बजे बुलंदशहर जनपद के थाना सिकंदराबाद के गांव सनौटा के जंगल में पहुंची. थोड़ी कोशिश कर के पुलिस ने ईंख के एक खेत में बंधक बनाए गए अशोक गुप्ता को सकुशल अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त करा लिया.
पुलिस ने घेराबंदी कर के सनेश और उस के साथी राबिन को गिरफ्तार कर लिया, जबकि इन के 2 साथी पुलिस को चकमा दे कर भाग निकले. पुलिस को इन के कब्जे से 315 बोर के 2 तमंचे मिले. अशोक गुप्ता काफी डरेसहमे थे. पुलिस सभी को ले कर नोएडा आ गई. पुलिस के लिए यह बड़ी सफलता थी.
एसपी सुजाता सिंह ने आरोपियों से पूछताछ की. इस पूछताछ में राह से भटके एक शातिर महत्त्वाकांक्षी नौजवान की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—
एक साल पहले अशोक गुप्ता ने सनेश को अपने यहां ड्राइवर रखा था. वह नोएडा से ही लगे जिला बुलंदशहर के गांव खगावली का रहने वाला था. निम्नवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाला बीए पास सनेश काफी महत्त्वाकांक्षी था और बचपन से ही अमीर बनने के सपने देखता आया था.
यह बात अलग थी कि उस के सपने पूरे नहीं हो सके थे और वह ड्राइवर बन कर रह गया था. अपने काम से सनेश जरा भी खुश नहीं था. अपने सपने के बारे में वह अकसर अशोक गुप्ता से भी जिक्र करता रहता था कि एक दिन उसे भी बड़ा आदमी बनना है. अशोक गुप्ता उस की बातें सुन कर मुसकरा देते थे.
अमीर बनने के सपने ने सनेश को कुंठित कर दिया था. अक्तूबर, 2016 के अंत में नौकरी छोड़ कर उस ने कोई दूसरा काम करने का विचार किया. जबकि अशोक गुप्ता नहीं चाहते थे कि वह नौकरी छोड़ कर जाए. उन्हें परेशानी हुई तो उन्होंने उस से कोई दूसरा ड्राइवर दिलाने को कहा.
अशोक गुप्ता के कहने पर उस ने अपने रिश्तेदार पवन को उन के यहां नौकरी पर रखवा दिया. पवन का बड़ा भाई सनेश का जीजा था. पवन उसी के पड़ोस के गांव शरीकपुर का रहने वाला था. यहां अशोक गुप्ता की लापरवाही ही कही जाएगी कि उन्होंने दोनों ड्राइवरों का पुलिस वैरिफिकेशन कराना जरूरी नहीं समझा.
सनेश ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन काफी भटकने के बाद भी उसे न कोई दूसरी नौकरी मिली और न ही वह कोई दूसरा काम कर सका. हर समय वह किसी भी तरह रुपए कमाने के बारे में सोचा करता था. दिमाग में जब एक ही बात बैठ जाए तो आदमी अच्छाबुरा भी नहीं देखता.
ऐसे में ही सनेश के दिमाग में गलत तरीके से पैसे कमाने की बात आई तो उस ने अपने पुराने मालिक का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूलने का मन बना लिया. क्योंकि वह अशोक गुप्ता की आर्थिक स्थिति और स्वभाव को जानता था.
उस ने सोचा कि अगर अशोक गुप्ता का अपहरण कर लिया जाए तो उन से आसानी से मोटी रकम फिरौती में मिल सकती है. चूंकि उस का रिश्तेदार पवन उन के यहां ड्राइवर था, इसलिए उस के जरिए बिना किसी खतरे के अशोक गुप्ता का अपहरण किया जा सकता था. पूरी योजना बना कर सनेश ने इस मुद्दे पर पवन से कहा, ‘‘पवन मेरा बचपन से करोड़पति बनने का सपना है. अगर तू मदद कर दे तो मैं एक ही झटके में करोड़पति बन सकता हूं, साथ ही तुझे भी करोड़पति बना सकता हूं.’’
‘‘इस के लिए मुझे क्या करना होगा ’’ पवन ने पूछा.
‘‘अपने लालाजी का अपहरण कराना होगा.’’
‘‘क…क…क्या ’’ पवन चौंका.
‘‘देख, सीधे रास्ते से तो करोड़पति बनने से रहे. भाई इस के लिए कुछ ऐसा ही करना होगा. लेकिन इस में तुझे घबराने की जरूरत नहीं है. मैं सब संभाल लूंगा. किसी को हम पर शक भी नहीं होगा.’’ सनेश ने पवन को समझाया तो अमीर बनने का उस का भी सपना जाग गया.
सनेश का ही एक दोस्त था राबिन, जो मेरठ जिले के थाना भावनपुर के गांव किनानगर का रहने वाला था. अपना इरादा उस ने राबिन और अन्य 2 साथियों विपिन और ललित को बताया तो पैसों के लालच में वे भी साथ देने को राजी हो गए. इस के बाद एक दिन सभी ने बैठ कर पूरी योजना तैयार की.
सनेश शातिर दिमाग था. वह पूरी सफाई के साथ अशोक गुप्ता का अपहरण कर फिरौती वसूलना चाहता था. उन की योजना थी कि फिरौती वसूल कर को वे अशोक गुप्ता की हत्या कर देंगे, क्योंकि वह उन्हें पहचानते थे. अगर उन्हें जिंदा छोड़ दिया जाता तो बाद में सभी पकड़े जाते. इसलिए वे फिरौती मिलने तक ही उन्हें जिंदा रखना चाहते थे. इस तरह अपहरण की फूलप्रूफ योजना तैयार कर ली गई.
योजना के मुताबिक, 13 जनवरी को पवन अशोक गुप्ता को ले कर निकला. उन्हें रामपुर बाजार जाना था. वापसी में पवन ने कार सेक्टर पी 3 गोलचक्कर के पास अचानक सर्विस रोड की ओर घुमा दी. अशोक गुप्ता को उधर नहीं जाना था, इसलिए
उन्होंने पूछा, ‘‘पवन, इधर कार कहां ले जा रहे हो ’’
‘‘अभी पता चल जाएगा.’’ पवन ने जवाब में कहा.
अशोक गुप्ता कुछ समझ पाते, उस के पहले ही पवन ने कार को किनारे कर के रोक दी. कार के रुकते ही पहले से ही मोटरसाइकिल से पीछा कर रहे सनेश और उस के साथियों ने कार को घेर लिया. इस के बाद सनेश और उस के अन्य साथी कार में दाखिल हो कर अशोक गुप्ता पर तमंचे तान दिए. अचानक घटी इस घटना से अशोक गुप्ता घबरा गए.
सनेश और उस के साथी राबिन ने अशोक को कब्जे में कर लिया. पवन ने कार बढ़ा दी तो बाकी 2 साथी मोटरसाइकिल से उन के पीछेपीछे चल पड़े. अशोक गुप्ता ने चीखने की कोशिश की तो उन्होंने उन के साथ मारपीट कर के और उन्हें जान से मारने की धमकी दे कर चुप करा दिया. इस में उन की स्वेटर भी फट गई.
कार पवन ही चला रहा था. योजना के मुताबिक वे उन्हें जंगल में ले गए और ईंख के खेत में बंधक बना लिया. इस के बाद पवन ने घर जा कर अपहरण की मनगढ़ंत कहानी सुना दी, जबकि सनेश आवाज बदल कर विपुल को फोन करता रहा. वे अपनी योजना में सफल भी हो जाते, लेकिन बुरे कामों का अंजाम कभी अच्छा नहीं होता. विपुल ने आवाज पहचान ली, जिस से अपहर्त्ताओं की पोल खुल गई.
पूछताछ के बाद पुलिस ने सनेश, पवन और राबिन को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. बाकी बचे उन के साथियों ललित और विपिन की पुलिस तलाश कर रही थी. सनेश ने अपने बेलगाम सपनों को काबू में रखा होता तो ऐसी नौबत कभी न आती.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित