साल 1989 में आई सलमान खान और भाग्यश्री की सुपरहिट फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ का एक गाना ‘कबूतर जाजाजा, कबूतर जा…’ बहुत मशहूर हुआ था, जिस में भाग्यश्री अपना लव लैटर एक खूबसूरत सफेद कबूतर की मारफत दूर गए सलमान खान तक भिजवाती है. वह समझदार कबूतर सलमान खान तक चिट्ठी पहुंचा कर कर अपना फर्ज निभाता है.

पर कुछ कबूतर समझदार नहीं, बल्कि शातिर होते हैं. उन की सरपरस्ती करने वाले कबूतरबाज तो और भी चालबाज. यहां कबूतर कोई पक्षी नहीं, बल्कि वे लालची लोग होते हैं जो पौंड, डौलर में कमाई करने की खातिर गैरकानूनी तरीके से विदेशों की धरती पर पैर रखते ही वहां ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग. लोगों को इस तरह एक देश से दूसरे देश में भेजने को ‘कबूतरबाजी’ का नाम दिया गया है.

साल 2003 में पंजाबी गायक दलेर मेहंदी कबूतरबाजी के मामले में फंसे थे. तब उन पर और उन के बड़े भाई शमशेर सिंह पर आरोप लगा था कि वे प्रशासन को धोखे में रख कर कुछ लोगों को अपनी सिंगिंग टीम का हिस्सा बता कर विदेश ले गए थे और उन्हें वहीं छोड़ दिया था. इस के एवज में उन्होंने काफी मोटी रकम भी वसूली थी.

मामला कुछ यों है कि साल 1998 और 1999 में दलेर मेहंदी 2 बार अमेरिका गए थे. इस दौरान वे 10 ऐसे लोगों को भी अपने साथ ले गए थे, जो लौटे ही नहीं.

साल 2003 में बख्शीश सिंह नाम के एक शख्स ने दलेर मेहंदी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. पंजाब की पटियाला पुलिस ने जानकारी के आधार पर दलेर मेहंदी के भाई शमशेर मेहंदी को गिरफ्तार किया था. पर तब पूरी पुलिस टीम का ही तबादला कर दिया गया था. ऐसा माना जाता है कि किसी भारी दबाव के चलते ऐसा फैसला लिया गया था.

लेकिन अब 15 साल के बाद पटियाला कोर्ट ने दलेर मेहंदी को गैरकानूनी तरीके से लोगों को विदेश ले जाने के मामले में कुसूरवार बताया है. दलेर मेहंदी को 2 साल की सजा सुनाई गई है. साथ ही, उन पर 2 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है.

हालांकि, दलेर मेहंदी को फौरन जमानत भी मिल गई और उन के वकील ने कहा कि वे निचली अदालत के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे.

चूंकि यह हाईप्रोफाइल मामला पंजाबी गायक दलेर मेहंदी से जुड़ा हुआ है, इसलिए जल्दी ही सुर्खियों में आ गया, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में भी मानव तस्करी के नाम पर कबूतरबाजी का खेल खेलने का सिलसिला बेरोकटोक जारी है.

नवंबर, 2017 में मुंबई की सहार इलाके की पुलिस ने 40 साल के बल्लू कानू भाई को गुजरात से गिरफ्तार किया था. उस पर जाली पासपोर्ट के जरीए लोगों को अमेरिका और कनाडा भेजने का आरोप लगा था. पुलिस के मुताबिक यह आरोपी अब तक फर्जी तरीके से 53 लोगों को विदेश भेज चुका था.

कबूतरबाजी के सिलसिले में पुलिस की यह धरपकड़ मई महीने से ही शुरू हो गई थी. तब सहार पुलिस ने लोगों को जाली पासपोर्ट के आधार पर अमेरिका और कनाडा भेजने वाले एक कबूतरबाज गैंग का परदाफाश किया था. उस समय कुल 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने इस गोरखधंधे से जुड़े 3 इमिग्रेशन अफसरों को भी पकड़ा था.

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पुलिस की पूछताछ में बल्लू कानू भाई ने बताया कि साल 2015 से साल 2017 के दौरान उस ने कुल 53 लोगों को गलत तरीके से विदेश भेजा था. इस के एवज में हर शख्स से 50 लाख से 60 लाख रुपए लिए गए थे. इस काम में उस का पूरा गिरोह मदद करता था. लोगों से लिए गए पैसे में गैंग के हर सदस्य की हिस्सेदारी बंधी होती थी.

अगस्त, 2016 में दिल्ली पुलिस ने कबूतरबाजी के ऐसे गिरोह का परदाफाश किया था जो दुबई में अच्छी नौकरी दिलाने के नाम पर लोगों से ठगी करता था. यह गिरोह पौश एरिया में आलीशान दफ्तर खोल कर कबूतरबाजी के काले कारोबार को अंजाम दे रहा था.

इस गिरोह के सदस्य ऐसे बेरोजगार नौजवानों को ठगते थे जिन को नौकरी की तलाश होती थी. वे उन्हें दुबई समेत कई दूसरे देशों में नौकरी दिलाने का लालच दे कर उन से लाखों रुपए की रकम ऐंठ लेते थे.

ऐसा ही एक मामला दिल्ली से सटे राज्य उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले का भी था. वहां कैला भट्टा इलाके का रहने वाला फुरकान कविनगर में एक शख्स से मिला था. उस ने दुबई के एक होटल में नौकरी लगवाने का झांसा दे कर उस से 50 हजार रुपए ऐंठ लिए थे. इस के एवज में फुरकान को जो वीजा दिया गया था वह फर्जी निकला.

उस शख्स ने फुरकान के साथसाथ 4 नेपाली लोगों से भी इसी काम के नाम पर 50-50 हजार रुपए हड़प लिए थे. केरल का वह धोखेबाज इस करतूत को अंजाम दे कर फरार हो गया था.

कुछ लोगों के साथ तो इस से भी ज्यादा बुरा होता है. मध्य प्रदेश के भिंड इलाके का रहने वाला नरेंद्र सिंह विदेश में नौकरी कर के अपने घर की माली हालत सुधारना चाहता था. इस सिलसिले में उस की मुलाकात धर्मेंद्र सिंह से हुई जिस ने उस से सऊदी अरब में नौकरी दिलाने का वादा किया और उस से तकरीबन पौने 2 लाख रुपए ले लिए.

इस के बाद एक फर्जी पासपोर्ट बनवा कर नरेंद्र सिंह को किसी तरह सऊदी अरब भेज दिया गया. अभी एक साल भी नहीं बीता था कि नरेंद्र सिंह ने अपने परिवार वालों को फोन कर के बताया कि उसे भूखा रखा जाता है और तय की गई तनख्वाह भी नहीं दी जाती है.

तब नरेंद्र सिंह के परिवार वालों ने धर्मेंद्र सिंह से उसे वापस लाने को कहा तो उस ने उन से दोबारा ढाई लाख रुपए ले लिए, पर नरेंद्र सिंह वापस नहीं लौटा. पुलिस की मदद से धर्मेंद्र सिंह को पकड़ लिया गया और उस से की गई पूछताछ में पता चला कि वह एक कबूतरबाज गिरोह से जुड़ा था जिस ने 12 से ज्यादा लोगों को विदेश भेज कर लाखों रुपए की ठगी की थी. विदेश भेजे गए लोग नरेंद्र सिंह की तरह नरक की सी जिंदगी जी रहे थे.

ऐसा बहुत से मामलों में होता है कि यूरोप या दूसरे अमीर देशों में भेजने के नाम पर लोगों को अफ्रीका के गरीब देशों में भेज दिया जाता है. कई लोग पकड़े जाते हैं तो वे जिंदगीभर जेलों में सड़ते रहते हैं. बहुतों को तो ढंग से अंगरेजी भी नहीं बोलनी आती है जिस से वे अपनी बात विदेशी अफसरों से कह सकें. लिहाजा, वे न तो इधर के रहते हैं और न ही उधर के.

सवाल उठता है कि काबिल न होने के बाद भी बेरोजगारों में विदेश जाने का चसका क्यों लगता है? दरअसल, किसी परिवार से अगर कोई शख्स विदेश जा कर अच्छी कमाई करता है तो उस के परिवार के दूसरे सदस्य भी वहां जा कर पैसा बनाने का ख्वाब देखने लगते हैं. जब कानूनी तौर पर वे विदेश जा कर वहां रहने या रोजगार करने के लायक नहीं होते हैं तो वे किसी भी तरह अपना सपना पूरा करने की जुगत भिड़ाने लगते हैं.

पंजाब जैसे राज्यों में तो बहुत से नौजवान अपनी बेशकीमती जमीन बेच कर विदेश जाने की योजनाएं बनाते हैं, चाहे वहां जा कर उन्हें होटलों में बरतन ही क्यों न मांजने पड़ें. इस के लिए कानूनी नहीं तो गैरकानूनी तरीका ही उन्हें आसान लगता है, जिस का फायदा कबूतरबाज उठाते हैं.

गलीमहल्ले में बैठे ऐसे क्लियरिंग एजेंट बेरोजगारों से बहुत सी बातें छिपा जाते हैं. वे आसान तरीके से विदेश में घुसने के सब्जबाग दिखा कर लोगों को बरगलाते हैं ताकि उन्हें अपने जाल में फंसा कर पैसे ऐंठ सकें.

छोटी नौकरियों से जुड़े सरकारी नियमों की बात करें तो प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय के तहत प्रोटैक्टर जनरल औफ इमिग्रैंट्स के पास बिना कोई भी एजेंसी या विदेशी ऐंप्लौयर भारतीय श्रमिकों की सेवाएं नहीं ले सकता. इस औफिस द्वारा वैलिड परमिट जारी किए जाने के बाद ही एजेंट या विदेशी ऐंप्लौयर भारतीय श्रमिकों से काम ले सकता है.

आप का एजेंट फर्जी तो नहीं है, इस के लिए आप नजदीकी प्रोटैक्टर के औफिस में मिल कर तसल्ली कर सकते हैं. बिना पढ़े किसी भी एग्रीमैंट पर दस्तखत न करें. खुद कोई बात समझ न आए तो किसी पढ़ेलिखे से समझ लें. एजेंट को दिए जाने वाले पैसों की रसीद लें. अगर आप विदेश पहुंच जाएं तो अपने ऐंप्लौयर से किसी तरह के नए एग्रीमैंट पर दस्तखत न करें.

विदेश जा कर पैसा कमाने में कोई बुराई नहीं है पर वहां किसी गैरकानूनी तरीके से जाना बहुत बड़ा जुर्म है, जिस की सजा में पूरी उम्र तक जेल में गुजर सकती है.

बरतें ये सावधानियां

विदेश जा कर पैसा कमाने का ख्वाब देखना बुरा नहीं है, लेकिन किसी पर भी अंधा विश्वास कर के अपनी गाढ़ी कमाई उसे सौंप देना किसी लिहाज से ठीक बात नहीं है. ऐसा करने से पहले इन बातों पर जरूर ध्यान दें :

* विदेश जाने से पहले उस देश की एंबैसी से बात जरूर कर लें.

* अगर कोई आप को विदेश में पढ़ाईलिखाई से जुड़ा कोई कोर्स कराने के नाम पर वहां भेजने की बात करता है तो उस कोर्स के संबंध में कंप्यूटर वगैरह पर पूरी जानकारी ले लें.

* जो शख्स या एजेंसी आप को विदेश भेजना चाहती है उस की पूरी तहकीकात कर लें. ज्यादा जरूरी हो तो उन लोगों से भी बातचीत कर लें जो उस शख्स या एजेंसी की सेवाएं ले चुके हैं.

* अपनी तसल्ली करने के बाद ही पैसा दें.

* जरा सी भी भनक लगे, तो उन लोगों से फौरन दूर हो जाएं.

क्रिकेटर निकला कबूतरबाज

भारत की ओर से 10 इंटरनैशनल वनडे मैच खेलने वाले क्रिकेटर जैकब मार्टिन को साल 2011 में कबूतरबाजी के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. वह वडोदरा रणजी टीम का कप्तान रह चुका था और 138 रणजी मैच भी खेल चुका था.

जैकब मार्टिन को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उस पर आरोप था कि वह युवा खिलाडि़यों को विदेशी टीमों की ओर से क्रिकेट मैच खिलाने के नाम पर उन्हें दूसरे देशों में ले जाता था और कई खिलाडि़यों को वहीं छोड़ देता था. इस के लिए वह फर्जी क्रिकेट टीम बनाता था. एक ऐसे ही फर्जी क्रिकेटर की गिरफ्तारी के बाद इस मामले का खुलासा हुआ था.

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