‘‘नमस्ते, मम्मीजी. कल रात क्या आप सब लोग कहीं बाहर गए हुए थे?’’ अपनी आवाज में जरा सी मिठास लाते हुए निशा बोली.

‘‘हां, कविता के बेटे मोहित का जन्मदिन था इसलिए हम सब वहां गए थे. लौटने में देर हो गई थी.’’

कविता उस की बड़ी ननद थी. मोहित के जन्मदिन की पार्टी में उसे बुलाया ही नहीं गया, इस विचार ने उस के मूड को और भी ज्यादा खराब कर दिया.

‘‘मम्मी, रवि से बात करा दीजिए,’’ निशा ने जानबूझ कर रूखापन दिखाते हुए पार्टी के बारे में कुछ भी नहीं पूछा और अपने पति रवि से बात करने की इच्छा जाहिर की.

‘‘रवि तो बाजार गया है. उस से कुछ कहना हो तो बता दो.’’

‘‘मुझे आफिस में फोन करने को कहिएगा. अच्छा मम्मी, मैं फोन रखती हूं, नमस्ते.’’

‘‘सुखी रहो, बहू,’’ सुमित्रा का आशीर्वाद सुन कर निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और फोन रख दिया.

‘बुढि़या ने यह भी नहीं पूछा कि मैं कैसी हूं…’ गुस्से में बड़बड़ाती निशा अपना पर्स उठाने के लिए बेडरूम की तरफ चल पड़ी.

कैरियर के हिसाब से आज का दिन निशा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण व खुशी से भरा था. वह टीम लीडर बन गई है. यह समाचार उसे कल आफिस बंद होने से कुछ ही मिनट पहले मिला था. इसलिए इस खुशी को वह अपने सहकर्मियों के साथ बांट नहीं सकी थी.

आफिस में निशा के कदम रखते ही उसे मुबारकबाद देने वालों की भीड़ लग गई. अपने नए केबिन में टीम लीडर की कुरसी पर बैठते हुए निशा खुशी से फूली नहीं समाई.

रवि का फोन उस के पास 11 बजे के करीब आया. उस समय वह अपने काम में बहुत ज्यादा व्यस्त थी.

‘‘रवि, तुम्हें एक बढि़या खबर सुनाती हूं,’’ निशा ने उत्साही अंदाज में बात शुरू की.

‘‘तुम्हारा प्रमोशन हो गया है न?’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ निशा हैरान हो उठी.

‘‘तुम्हारी आवाज की खुशी से मैं ने अंदाजा लगाया, निशा.’’

‘‘मैं टीम लीडर बन गई हूं, रवि. अब मेरी तनख्वाह 35 हजार रुपए हो गई है.’’

‘‘गाड़ी भी मिल गई है. अब तो पार्टी हो जाए.’’

‘‘श्योर, पार्टी कहां लोगे?’’

‘‘कहीं बाहर नहीं. तुम शाम को घर आ जाओ. मम्मी और सीमा तुम्हारी मनपसंद चीजें बना कर रखेंगी.’’

रवि का प्रस्ताव सुन कर निशा का उत्साह ठंडा पड़ गया और उस ने नाराज लहजे में कहा, ‘‘घर में पार्टी का माहौल कभी नहीं बन सकता, रवि. तुम मिलो न शाम को मुझ से.’’

‘‘हमारा मिलना तो शनिवारइतवार को ही होता है, निशा.’’

‘‘मेरी खुशी की खातिर क्या तुम आज नहीं आ सकते हो?’’

‘‘नाराज हो कर निशा तुम अपना मूड खराब मत करो. शनिवार को 3 दिन बाद मिल ही रहे हैं. तब बढि़या सी पार्टी ले लूंगा.’’

‘‘तुम भी रवि, कैसे भुलक्कड़ हो, शनिवार को मैं मेरठ जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी व्यस्त महिला को अपने भाई की शादी याद है, यह वाकई कमाल की बात है.’’

‘‘मुझे ताना मार रहे हो?’’ निशा चिढ़ कर बोली.

‘‘सौरी, मैं ने तो मजाक किया था.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि मेरठ रविवार की सुबह तक पहुंच जाओगे न?’’

‘‘आप हुक्म करें, साले साहब के लिए जान भी हाजिर है, मैडम.’’

‘‘घर से और कौनकौन आएगा?’’

‘‘तुम जिसे कहो, ले आएंगे. जिसे कहो, छोड़ आएंगे. वैसे तुम शनिवार की रात को पहुंचोगी, इस बात से नवीन या तुम्हारे मम्मीडैडी नाराज तो नहीं होंगे?’’‘मुझे अपने जूनियर्स को टे्रनिंग देनी है. मैं चाह कर भी पहले नहीं निकल सकती हूं.’’

‘‘सही कह रही हो तुम, भाई की शादी के चक्कर में इनसान को अपनी ड्यूटी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘तुम कभी मेरी भावनाओं को नहीं समझ सके,’’ निशा फिर चिढ़ उठी, ‘‘मैं अपने कैरियर को बड़ी गंभीरता से लेती हूं, रवि.’’

‘‘निशा, मैं फोन रखता हूं. आज तुम मेरे मजाक को सहन करने के मूड में नहीं हो. ओके, बाय.’’

रवि और निशा ने एम.बी.ए. साथसाथ एक ही कालिज से किया था. दोनों के बीच प्यार का बीज भी उन्हीं दिनों में अंकुरित हुआ.

रवि ने बैंक में पी.ओ. की परीक्षा पास कर के नौकरी पा ली और निशा ने बहुराष्ट्रीय कंपनी में. करीब 2 साल पहले दोनों ने घर वालों की रजामंदी से प्रेम विवाह कर लिया.

दुलहन बन कर निशा रवि के परिवार में आ गई. वहां के अनुशासन भरे माहौल में उस का मन शुरू से नहीं लगा. टोकाटाकी के अलावा उसे एक बात और खलती थी. दोनों अच्छा कमाते हुए भी भविष्य के लिए कुछ बचा नहीं पाते थे.

उन दोनों की ज्यादा कमाई होने के कारण हर जिम्मेदारी निभाने का आर्थिक बोझ उन के ही कंधों पर था. निशा इन बातों को ले कर चिढ़ती तो रवि उसे प्यार से समझाता, ‘हम दोनों बड़े भैया व पिताजी से ज्यादा समर्थ हैं, इसलिए इन जिम्मेदारियों को हमें बोझ नहीं समझना चाहिए. अगर हम सब की खुशियों और घर की समृद्धि को बढ़ा नहीं सकते हैं तो हमारे ज्यादा कमाने का फायदा क्या हुआ? मैडम, पैसा उपयोग करने के लिए होता है, सिर्फ जोड़ने के लिए नहीं. एकसाथ मिलजुल कर हंसीखुशी से रहने में ही फायदा है, निशा. सब से अलगथलग हो कर अमीर बनने में कोई मजा नहीं है.’

निशा कभी भी रवि के इस नजरिये से सहमत नहीं हुई. ससुराल में उसे अपना दम घुटता सा लगता. किसी का व्यवहार उस के प्रति खराब नहीं था पर वह उस घर में असंतोष व शिकायत के भाव से रहती. उस का व रवि का शोषण हो रहा है, यह विचार उसे तनावग्रस्त बनाए रखता.

निशा को जब कंपनी से 2 बेडरूम वाला फ्लैट मिलने की सुविधा मिली तो उस ने ससुराल छोड़ कर वहां जाने को फौरन ‘हां’ कर दी. अपना फैसला लेने से पहले उस ने रवि से विचारविमर्श भी नहीं किया क्योंकि उसे पति के मना कर देने का डर था.

फ्लैट में अलग जा कर रहने के लिए रवि बिलकुल तैयार नहीं हुआ. वह बारबार निशा से यही सवाल पूछता कि घर से अलग होने का हमारे पास कोई खास कारण नहीं है. फिर हम ऐसा क्यों करें?

‘मुझे रोजरोज दिल्ली से गुड़गांव जाने में परेशानी होती है. इस के अलावा सीनियर होने के नाते मुझे आफिस में ज्यादा समय देना चाहिए और ज्यादा समय मैं गुड़गांव में रह कर ही दे सकती हूं.’

निशा की ऐसी दलीलों का रवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था.

अंतत: निशा ने अपनी जिद पूरी की और कंपनी के फ्लैट में रहने चली गई. उस के इस कदम का विरोध मायके और ससुराल दोनों जगह हुआ पर उस ने किसी की बात नहीं सुनी.

रवि की नाराजगी, उदासी को अनदेखा कर निशा गुड़गांव रहने चली गई.

रवि सप्ताह में 2 दिन उस के साथ गुजारता. निशा कभीकभार अपनी ससुराल वालों से मिलने आती. सच तो यह था कि अपना कैरियर बेहतर बनाने के चक्कर में उसे कहीं ज्यादा आनेजाने का समय ही नहीं मिलता.

अच्छा कैरियर बनाने के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों को निशा ने कभी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया. अपने छोटे भाई नवीन की शादी में वह सिर्फ एक रात पहले पहुंचेगी, इस बात का भी उसे कोई खास अफसोस नहीं था. अपने मातापिता व भाई की शिकायत को उस ने फोन पर ऊंची आवाज में झगड़ कर नजरअंदाज कर दिया.

‘‘शादी में हमारे मेरठ पहुंचने की चिंता मत करो, निशा. आफिस के किसी काम में अटक कर तुम और ज्यादा देर से मत पहुंचना,’’ रवि के मोबाइल पर उस ने जब भी फोन किया, रवि से उसे ऐसा ही जवाब सुनने को मिला.

शनिवार की शाम निशा ने टैक्सी की और 8 बजे तक मेरठ अपने मायके पहुंच गई. अब तक छिपा कर रखी गई प्रमोशन की खबर सब को सुनाने के लिए वह बेताब थी. अपने साथ बढि़या मिठाई का डब्बा वह सब का मुंह मीठा कराने के लिए लाई थी. उस के पर्स में प्रमोशन का पत्र पड़ा था जिसे वह सब को दिखा कर उन की वाहवाही लूटने को उत्सुक थी.

टैक्सी का किराया चुका कर निशा ने अपनी छोटी अटैची खुद उठाई और गेट खोल कर अंदर घुस गई.

घर में बड़े आकार वाले ड्राइंगरूम को खाली कर के संगीत और नृत्य का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. तेज गति के धमाकेदार संगीत के साथ कई लोगों के हंसनेबोलने की आवाजें भी निशा के कानों तक पहुंचीं.

निशा ने मुसकराते हुए हाल में कदम रखा और फिर हैरानी के मारे ठिठक गई. वहां का दृश्य देख कर उस का मुंह खुला का खुला रह गया.

निशा ने देखा मां बड़े जोश के साथ ढोलक बजा रही थीं. तबले पर ताल बजाने का काम उस की सास कर रही थीं.

रवि मंजीरे बजा रहा था और भाई नवीन ने चिमटा संभाल रखा था. किसी बात पर दोनों हंसी के मारे ऐसे लोटपोट हुए जा रहे थे कि उन की ताल बिलकुल बिगड़ गई थी.

उस की छोटी ननद सीमा मस्ती से नाच रही थी और महल्ले की औरतें तालियां बजा रही थीं. उन में उस की जेठानी अर्चना भी शामिल थी. अचानक ही रवि की 5 वर्षीय भतीजी नेहा उठ कर अपनी सीमा बूआ के साथ नाचने लगी. एक तरफ अपने ससुर, जेठ व पिता को एकसाथ बैठ कर गपशप करते देखा. अपनी ससुराल के हर एक सदस्य को वहां पहले से उपस्थित देख निशा हैरान रह गई.

उन के पड़ोस में रहने वाली शीला आंटी की नजर निशा पर सब से पहले पड़ी. उन्होंने ऊंची आवाज में सब को उस के पहुंचने की सूचना दी तो कुछ देर के लिए संगीत व नृत्य बंद कर दिया गया.

लगभग हर व्यक्ति से निशा को देर से आने का उलाहना सुनने को मिला.

मौका मिलते ही निशा ने रवि से धीमी आवाज में पूछा, ‘‘आप सब लोग यहां कब पहुंचे?’’

‘‘हम तो परसों सुबह ही यहां आ गए थे,’’ रवि ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

निशा ने माथे पर बल डालते हुए पूछा, ‘‘इतनी जल्दी क्यों आए? मुझे बताया क्यों नहीं?’’

रवि ने सहज भाव से बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हारी मम्मी ने 3 दिन पहले मुझ से फोन पर बात की थी. उन की बातों से मुझे लगा कि वह बहुत उदास हैं. उन्हें बेटे के ब्याह के घर में कोई रौनक नजर नहीं आ रही थी. तुम्हारे जल्दी न आ सकने की शिकायत को दूर करने के लिए ही मैं ने उन से सब के साथ यहां आने का वादा कर लिया और परसों से यहीं जम कर खूब मौजमस्ती कर रहे हैं.’’

‘‘सब को यहां लाना मुझे अजीब सा लग रहा है,’’ निशा की चिढ़ अपनी जगह बनी रही.

‘‘ऐसा करने के लिए तुम्हारे मम्मीपापा व भाई ने बहुत जोर दिया था.’’

निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और मां से अपनी शिकायत करने रसोई की तरफ चल पड़ी.

मां बेटी की शिकायत सुनते ही उत्तेजित लहजे में बोलीं, ‘‘तेरी ससुराल वालों के कारण ही यह घर शादी का घर लग रहा है. तू तो अपने काम की दीवानी बन कर रह गई है. हमें वह सभी बड़े पसंद हैं और उन्हें यहां बुलाने का तुम्हें भी कोई विरोध नहीं करना चाहिए.’’

‘‘जो लोग तुम्हारी बेटी को प्यार व मानसम्मान नहीं देते, तुम सब उन से…’’

बेटी की बात को बीच में काट कर मां बोलीं, ‘‘निशा, तुम ने जैसा बोया है वैसा ही तो काटोगी. अब बेकार के मुद्दे उठा कर घर के हंसीखुशी के माहौल को खराब मत करो. तुम से कहीं ज्यादा इस शादी में तुम्हारी ससुराल वाले हमारा हाथ बंटा रहे हैं और इस के लिए हम दिल से उन के आभारी हैं.’’

मां की इन बातों से निशा ने खुद को अपमानित महसूस किया. उस की पलकें गीली होने लगीं तो वह रसोई से निकल कर पीछे के बरामदे में आ गई.

कुछ समय बाद रवि भी वहां आ गया और पत्नी को इस तरह चुपचाप आंसू बहाते देख उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा तो निशा उस के सीने से लग कर फफक पड़ी.

रवि ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘तुम अपने भाई की शादी का पूरा लुत्फ उठाओ, निशा. व्यर्थ की बातों पर ध्यान देने की क्या जरूरत है तुम्हें.’’

‘‘मेरी खुशी की फिक्र न मेरे मायके वालों को है न ससुराल वालों को. सभी मुझ से जलते हैं… मुझे अलगथलग रख कर नीचा दिखाते हैं. मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा है,’’ निशा ने सुबकते हुए सवाल किया.

‘‘तुम क्या सचमुच अपने सवाल का जवाब सुनना चाहोगी?’’ रवि गंभीर हो गया.

निशा ने गरदन हिला कर ‘हां’ में जवाब दिया.

‘‘देखो निशा, अपने कैरियर को तुम बहुत महत्त्वपूर्ण मानती हो. तुम्हारे लक्ष्य बहुत ऊंचाइयों को छूने वाले हैं. आपसी रिश्ते तुम्हारे लिए ज्यादा माने नहीं रखते. तुम्हारी सारी ऊर्जा कैरियर की राह पर बहुत तेजी से दौड़ने में लग रही है…तुम इतना तेज दौड़ रही हो… इतनी आगे निकलती जा रही हो कि अकेली हो गई हो… दौड़ में सब से आगे, पर अकेली,’’ रवि की आवाज कुछ उदास हो गई.

‘‘अच्छा कैरियर बनाने का और कोई रास्ता नहीं है, रवि,’’ निशा ने दलील दी.

‘‘निशा, कैरियर जीवन का एक हिस्सा है और उस से मिलने वाली खुशी अन्य क्षेत्रों से मिलने वाली खुशियों के महत्त्व को कम नहीं कर सकती. हमारे जीवन का सर्वांगीण विकास न हो तो अकेलापन, तनाव, निराशा, दुख और अशांति से हम कभी छुटकारा नहीं पा सकते हैं.’’

‘‘मुझे क्या करना चाहिए? अपने अंदर क्या बदलाव लाना होगा?’’ निशा ने बेबस अंदाज में पूछा.

‘‘जो पैर कैरियर बनाने के लिए तेज दौड़ सकते हैं वे सब के साथ मिल कर नाच भी सकते हैं…किसी के हमदर्द भी बन सकते हैं. जरूरत है बस, अपना नजरिया बदलने की…अपने दिमाग के साथसाथ अपने दिल को भी सक्रिय कर लोगों का दिल जीतने की,’’ अपनी सलाह दे कर रवि ने उसे अपनी छाती से लगा लिया.

निशा ने पति की बांहों के घेरे में बड़ी शांति महसूस की. रवि का कहा उस के दिल में कहीं बड़ी गहराई तक उतर गया. अपने नजदीकी लोगों से अपने संबंध सुधारने की इच्छा उस के मन में पलपल बलवती होती जा रही थी.

‘‘मैं बहुत दिनों से मस्त हो कर नाची नहीं हूं. आज कर दूं जबरदस्त धूमधड़ाका यहां?’’ निशा की मुसकराहट रवि को बहुत ताजा व आकर्षक लगी.

रवि ने प्यार से उस का माथा चूमा और हाथ पकड़ कर हाल की तरफ चल दिया. उसे साफ लगा कि पिछले चंद मिनटों में निशा के अंदर जो जबरदस्त बदलाव आया है वह उन दोनों के सुखद भविष्य की तरफ इशारा कर रहा था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...