बरेली के प्रेमनगर थाना क्षेत्र के भूड़ पड़रिया मोहल्ले में रहने वाला योगेश सक्सेना उर्फ मुन्नू नाथ मंदिर के पास रेडीमेड कपड़ों की एक दुकान में सेल्समैन की नौकरी करता था. पहली मार्च, 2020 की रात वह दुकान से घर नहीं लौटा तो परिजनों को चिंता हुई. योगेश का बड़ा भाई अंशू भी घर के बाहर था. उसे फोन कर के बताया गया तो उस ने योगेश जिस दुकान पर काम करता था, उस के मालिक जितेंद्र से पता किया तो उस ने बताया कि योगेश तबीयत खराब होने की बात कह कर जल्दी दुकान से घर जाने के लिए निकल गया था. जब वह दुकान से जल्दी निकल गया तो गया कहां, यह प्रश्न योगेश के परिजनों के सामने मुंह बाए खड़ा था. उस की काफी तलाश की लेकिन कोई पता नहीं चला.

2 मार्च की सुबह बरेली थाना कोतवाली और कुमार टाकीज के बीच में खाली पड़े मैदान में एक पेड़ के नीचे एक अज्ञात युवक की अधजली लाश पड़ी मिली. किसी ने लाश की सूचना थाना कोतवाली को दे दी.

सूचना पा कर सीओ (प्रथम) अशोक कुमार और कोतवाली इंसपेक्टर गीतेश कपिल पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र यही कोई 30 से 35 वर्ष रही होगी.

मृतक के गले व चेहरे पर धारदार हथियार के 4 गहरे घाव दिखाई दे रहे थे. मारने के बाद उस की पहचान छिपाने के लिए उस की लाश को जलाया गया था, जो कि पूरी तरह से नहीं जल पाई  थी. पास में ही मृतक का मोबाइल भी जला हुआ बरामद हुआ.

लाश की शिनाख्त के लिए आसपास के दुकानदारों को बुलाया गया. उन में जितेंद्र नाम का एक दुकानदार भी था. उस ने लाश देखी तो वह लाश पहचान गया. क्योंकि वह लाश उस के शोरूम के सेल्समैन योगेश सक्सेना की थी. उस ने तुरंत योगेश के भाई अंशू सक्सेना को योगेश की लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पर योगेश की मां मुन्नी देवी व भाई अंशू मौके पर पहुंच गए और लाश की शिनाख्त कर दी. शिनाख्त होने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी गई. इंसपेक्टर गीतेश कपिल ने अंशू से पूछताछ की तो उस ने बताया कि योगेश अपने दोस्त की बहन उमा से फोन पर बात करता रहता था. अपनी कमाई भी उसी पर लुटाता था. कई बार उसे समझाया लेकिन वह मानता ही नहीं था.

कोतवाली आ कर इंसपेक्टर गीतेश की तरफ से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर गीतेश ने जांच शुरू की. पुलिस ने योगेश के फोन नंबर की काल डिटेल्स की जांच की. योगेश के नंबर पर अंतिम काल जिस नंबर से की गई थी, उस नंबर से रोज योगेश की बात होने का प्रमाण मिला. घटना की रात उस नंबर से काल आने के बाद ही योगेश दुकान से निकला था. वह नंबर उस की प्रेमिका उमा शुक्ला का था जोकि योगेश के मकान से कुछ दूर भूड़ पट्टी में रहती थी.

इस के बाद 3 मार्च को इंसपेक्टर गीतेश कपिल ने उमा शुक्ला को घर से हिरासत में ले कर कोतवाली में महिला कांस्टेबल की मौजूदगी में कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

पूछताछ में उमा ने बताया कि योगेश की हत्या उस ने अपने दूसरे प्रेमी सुनील शर्मा से कराई थी. उस के बाद सुनील शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया गया. इन दोनों से पूछताछ के बाद जो कहानी निकल कर सामने आई, कुछ इस तरह थी—

उत्तर प्रदेश के महानगर बरेली के प्रेमनगर थाना क्षेत्र के भूड़ पड़रिया मोहल्ले में अशोक सक्सेना सपरिवार रहते थे. वह एक प्राइवेट बस औपरेटर के यहां कंडक्टर थे.

परिवार में पत्नी मुन्नी देवी के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. अशोक सक्सेना ने अपनी बड़ी बेटी शालिनी का विवाह कर दिया. इस से पहले कि वह अन्य बच्चों की शादी की जिम्मेदारी से मुक्त होते, 3 साल पहले उन की मृत्यु हो गई.

बड़ा बेटा अंशू शादीबारातों में बैंड बाजा बजाने का काम करने लगा. हाईस्कूल पास योगेश नाथ मंदिर के पास स्थित रेडीमेड कपड़ों की एक दुकान में सेल्समैन की नौकरी कर रहा था. वह इस दुकान पिछले 5 सालों से काम कर रहा था.

योगेश के मकान से कुछ दूरी पर भूड़ पट्टी में महेशचंद्र शुक्ला रहते थे. वह प्राइवेट जौब करते थे. परिवार में उन की पत्नी जानकी और एक बेटी उमा और बेटा अमर उर्फ गुरु था.

20 जुलाई 1990 को जन्मी उमा काफी खुबसूरत और महत्त्वाकांक्षी युवती थी. उस ने बरेली यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन की थी. बरेली जैसे महानगर में पलीबढ़ी होने के कारण उस के वातावरण का असर भी उस पर पड़ा था.

उमा का भाई अमर और योगेश एक ही मार्केट में अलगअलग रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर काम करते थे. इसी वजह से योगेश और अमर में दोस्ती हो गई. दोनों एकदूसरे के घर भी आते जाते थे. इसी आने जाने में योगेश और उमा एकदूसरे को जानने लगे. दोनों का दिन में कईकई बार आमनासामना हो जाता था.

दोनों की निगाहें आपस में टकराती थीं तो उमा लजा कर अपनी निगाहें नीची कर लेती थी. योगेश की आंखों की गहराई वह ज्यादा देर बरदाश्त नहीं कर पाती थी. शर्म से पलकें झुक जातीं और होंठों पर हल्की मुसकान भी अपना घर बना लेती थी. उमा की इस अदा पर योगेश का दिल बेचैन हो उठता था.

उमा को योगेश अच्छा लगता था. वह उसे दिल ही दिल में चाहने लगी थी. उस की चाहत की तपिश योगेश तक पहुंचने लगी थी. योगेश को तो उमा पहले से ही पसंद थी. इस वजह से योगेश भी अपने कदम बढ़ने से रोक न सका. वह भी उमा को अपनी बांहों में भर कर उस की आंखों की गहराइयों में उतर जाने को आतुर हो उठा.

एक दिन योगेश उमा के कमरे से निकल कर बाहर की ओर जाने लगा कि अचानक वह फिसल गया. इस से उस के दाएं हाथ के अंगूठे में काफी चोट लग गई और अंगूठे से खून निकलने लगा. वहीं आंगन में खड़ी उमा ने देखा तो दौड़ीदौड़ी आई. खून निकलता देख कर वह तुरंत अपने रुमाल को पानी में भिगो कर उस के अंगूठे में बांधने लगी. उसके द्वारा ऐसा करते समय योगेश उस की तरफ प्यार भरी नजरों से देखता रहा.

उमा रुमाल बांधने के बाद बोली, ‘‘जरा संभल कर चला करो. अगर आप इस तरह गिरोगे तो जिंदगी की राह पर कैसे संभल कर चलोगे?’’

‘‘जिंदगी की डगर पर अगर मैं गिरा भी तो जिंदगी भर साथ देने वाले हाथ मुझे संभालने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे. ये हाथ किस के होंगे और कौन जिंदगी भर साथ निभाने के लिए मेरे साथ होगा, यह तो अभी मुझे भी नहीं पता.’’ योगेश ने उमा की निगाहों में निगाहें डालते हुए कहा.

योगेश की इस शरारत से उस की नजरें शर्म से थोड़ी देर के लिए झुक गईं. फिर वह बोली, ‘‘छोड़ो इस बात को. आप रुमाल को थोड़ीथोड़ी देर बाद पानी से गीला जरूर कर लेना. इस से आप के अंगूठे का जख्म जल्दी ठीक हो जाएगा.’’

‘‘अंगूठे का जख्म तो ठीक हो जाएगा लेकिन दिल का जख्म…’’ इतना कह कर योगेश तेजी से दरवाजे से बाहर निकल गया.

रूहानी तौर पर एकदूसरे से बंधे होने के बावजूद खुल कर अभी तक न तो योगेश ने प्यार का इजहार किया था और न ही उमा ने. लगन की आग दोनों ओर लगी थी, बस देर थी तो आग को शब्दों की जुबां दे कर बयां करने की.

योगेश जब घर में आता तो उमा का मन अधिक से अधिक उस के पास रहने को करता था. जब भी दोनों मिलते, इधरउधर की बातें करते रहते थे. इस से धीरेधीरे दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए और उन में काफी निकटता आ गई. उमा मिलने व बात करने के उद्देश्य से योगेश के पास पहले से अधिक जाने जाने लगी. एक दिन योगेश घर में अपने कमरे में बैठा कुछ पढ़ रहा था. उमा भी उस से मिलने वहां पहुंच गई.

उमा को देख कर योगेश खुश होते हुए बोला, ‘‘आओ उमा, बहुत देर लगा दी. मैं काफी देर से तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था.’’

‘‘घर का काम निपटाने में मम्मी की मदद करने लगी थी, इसीलिए देर हो गई.’’ वह बोली.

‘‘ठीक है, तुम थोड़ी देर बैठो. मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाता हूं.’’ कह कर योगेश चाय बनाने चला गया.

उमा वहीं मेज पर रखी पत्रिका उठा कर उस के पन्ने पलटने लगी. थोड़ी ही देर में योगेश चाय बना कर ले आया. मेज पर चाय रखते हुए योगेश बोला, ‘‘उमा, क्या पढ़ रही हो?’’

योगेश की बात सुन कर उमा ने सिर उठाया और योगेश की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘ इस पत्रिका में एक बहुत ही अच्छी कहानी छपी है, वही पढ़ने लगी थी.’’

यह सुन कर योगेश भी उमा के पास बैठ कर चाय पीते हुए उसी पत्रिका को पढ़ने में तल्लीन हो गया. पूरी कहानी पढ़ने के बाद ही योगेश ने पत्रिका के सामने से सिर हटाया और उमा की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘सही कहा था तुम ने. काफी दिल को छू लेने वाली प्रेम कहानी है. दोनों में कितना प्यार था? अच्छा उमा यह बताओ कि आज के समय में भी इतना पवित्र प्यार करने वाले लोग मिलते हैं?’’

योगेश की बात सुन कर उमा भावुक होते हुए बोली, ‘‘वे बड़ी किस्मत वाले होते हैं, जिन्हें किसी का प्यार मिलता है.’’

उमा की बात बीच में ही काटते हुए योगेश बोला, ‘‘कुछ मेरी तरह बदनसीब होते हैं. जिन्हें प्यार के नाम पर सिर्फ जमाने की ठोकरें मिलती हैं.’’ यह कह कर योगेश के आंसू छलक आए. योगेश की आंखों में आंसू देख उमा तड़प उठी.

योगेश का हाथ अपने हाथों में ले कर वह बोली, ‘‘तुम ऐसा क्यों सोचते हो? तुम तो इतने अच्छे हो कि तुम्हें हर कोई प्यार करना चाहेगा. मैं तुम से कई दिनों से एक बात करना चाहती थी लेकिन इस डर से चुप रही कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम कहो तो कह दूं.’’

योगेश ने जब उस की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो वह बोली, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. लेकिन तुम से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी. दिल की बात आज जुबां पर आ ही गई.’’

उमा की बात पर योगेश को विश्वास नहीं हो रहा था. वह उमा की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘क्यों तुम मेरा मजाक उड़ा रही हो. अगर मैं मान भी लूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो तो क्या समाज के ठेकेदार हम दोनों को एक होने देंगे क्योंकि हम एक जाति के नहीं हैं.’’

‘‘जब हम प्यार करते हैं, तो इस जमाने से भी टक्कर ले लेंगे. प्यार तो प्यार होता है. इसे धर्म और जाति के तराजुओं में नही तोला जा सकता है. प्यार तो दो दिलों के मिलन का नाम है.’’

उमा की बात सुन कर योगेश की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े. फिर उस ने उमा को बांहों में भर कर सीने से लगा लिया. उमा भी उस के शरीर से लिपट गई. दोनों एकदूसरे का साथ पा कर काफी खुश थे. दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा.

दोनों के परिवारों को भी इस बात का पता चल गया. योगेश की बहनों और भाई ने योगेश को काफी समझाया कि वह उमा के चक्कर में न पड़े, लेकिन योगेश नहीं माना. दूसरी ओर उमा के पिता ने भी उस के लिए रिश्ता तलाशना शुरू कर दिया. जल्द ही बुलंदशहर के रमेश (परिवर्तित नाम) से उमा का रिश्ता पक्का कर दिया. उमा और योगेश कुछ न कर सके, सिर्फ हाथ मलते रह गए. प्रेमिका की शादी किसी और से तय होने पर योगेश पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. वह दिन रात उमा की यादों में खोया रहता और उस की कही गई बातें याद करता.

27 नवंबर, 2014 को उमा का विवाह रमेश से हो गया. उमा बेमन से अपनी ससुराल चली गई. लेकिन विवाह के बाद उस का पति से मनमुटाव होने लगा. फिर एक वर्ष बीततेबीतते उमा पति का घर हमेशा के लिए छोड़ कर अपने मायके आ गई. इसी बीच उमा ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने सौम्या रखा.

उमा अब पति रमेश से हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहती थी, लिहाजा उस ने अपने तलाक का मुकदमा भी दायर कर दिया.

एक बार फिर से उमा व योगेश एकदूसरे से मिलने लगे. अब योगेश उमा को अपने से दूर जाने नहीं देना चाहता था, किस्मत ने उसे फिर से उमा का साथ पाने के लिए उसे उमा से मिला दिया था. योगेश उस पर अब अपने से विवाह करने का दबाव बनाने लगा.

उमा मायके आई तो वह अपना खर्च उठाने के लिए गंगाचरण अस्पताल के पास पास स्थित एक कैफे में काम करने लगी. इसी बीच उमा की दोस्ती भूड़ पट्टी में रहने वाले सुनील शर्मा से हो गई.

32 वर्षीय सुनील शर्मा अविवाहित था और बरेली के इज्जतनगर में स्थित इंडियन वेटिनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईवीआरआई) में संविदा पर स्टोर कीपर के पद पर तैनात था. दोनों की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई. उमा और सुनील एक ही जाति के थे और सुनील अच्छी नौकरी करता था. इसलिए उमा उस से शादी करना चाहती थी. योगेश उस की जाति का भी नहीं था और सेल्समैन की छोटी सी नौकरी करता था.

उमा ने योगेश को समझाया कि वह उस से शादी नहीं कर सकती लेकिन योगेश मान ही नहीं रहा था. उमा भले ही बदल गई हो और योगेश के प्यार को भुला बैठी हो, लेकिन वह तो उमा को दिलोजान से अभी भी चाहता था. वह उमा को हर हाल में पाना चाहता था.

जब योगेश किसी तरह से मानने को तैयार नहीं हुआ तो योगेश से पीछा छुड़ाने के लिए उमा ने सुनील से बात की तो वह योगेश को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गया. इस के बाद दोनों ने उस की हत्या की योजना बना ली.

योजनानुसार पहली मार्च को उमा अपने औफिस में थी. योजना के अनुसार, रात साढे़ 8 बजे उमा ने योगेश को मिलने के लिए कुमार टाकीज के पीछे खाली पड़े मैदान में बुलाया. योगेश उस समय दुकान पर था. वह अपने मालिक जितेंद्र से तबीयत खराब होने का बहाना बना कर दुकान से निकल आया और कुमार टाकीज के पीछे मैदान में पहुंच गया.

वहां सुनील शर्मा पहले से मौजूद था. योगेश नजदीक आया तो सुनील ने उस की आंखों में लाल मिर्च का पाउडर फेंक दिया, जिस से योगेश बिलबिला उठा. इस के बाद सुनील ने साथ लाए चाकू से योगेश के गले, चेहरे व शरीर पर 4 प्रहार किए, जिस से योगेश जमीन पर गिर कर तड़पने लगा.

कुछ ही पलों में उस की मौत हो गई. सुनील ने पास ही पड़े पत्थर से उस के चेहरे को कुचला. उस के बाद वह साथ लाई टीवीएस अपाचे बाइक से उमा के पास गया. उसे पूरी बात बता दी. इस के बाद उमा रात 9 बजे उस के साथ बाइक पर बैठ कर घटनास्थल पर आई.

उमा ने सुनील से कहा कि वह बाइक से पैट्रोल निकाल कर योगेश की लाश जला दे, जिस से उस की पहचान न हो सके. इस पर सुनील ने बाइक से पैट्रोल निकाल कर योगेश की लाश पर डाल दिया और आग लगा दी. इस के बाद दोनों वहां से चले गए. लेकिन पुलिस आसानी से उन दोनों तक पहुंच ही गई.

सुनील की निशानदेही पर इंसपेक्टर गीतेश कपिल ने हत्या में प्रयुक्त चाकू, लाश जलाने में प्रयुक्त माचिस की डब्बी, रक्तरंजित कपड़े और सुनील की अपाचे बाइक नंबर यूपी25सी एम3263 बरामद कर ली.

फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों को सीजेएम की कोर्ट में पेश किया गया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधरित

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