सारी गली सुनसान थी. शाम अंधेरे में बदल गई थी. पहाड़ी इलाका था. यहां साल भर सर्दी का ही मौसम रहता था. गरमियों में सर्दी कम हो जाती. सर्दियों में तो रातें सर्द ही रहतीं. जिन को सर्दी की आदत थी उन को कम या ज्यादा सर्दी से क्या फर्क पड़ता था. हाथ में पकड़ी ए.के. 47 राइफल की नोक से अरबाज खान ने अधखुले दरवाजे को खटखटाया. कोई जवाब नहीं मिला. फिर वह थोड़ी धीमी आवाज में चिल्लाया, ‘‘कोई है?’’
उत्तर में कोई जवाब नहीं. उस के पीछे खड़े उस के 7 साथियों के चेहरों पर गुस्से के भाव उभर आए. आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था. जिस किसी भी गांव में दिन या रात में कदम रखा था, उन के खौफ से वहां के लोग थरथर कांपते हुए उन की किसी बादशाह या सुलतान के समान आवभगत करते थे. मगर यहां अभी तक कोई बाहर नहीं आया था.
‘‘मार डालो इन को. कोई भी जिंदा न बच पाए,’’ सभी ए.के. 47 राइफल व हैंडगे्रनेडधारी जनों के नेता सुलतान ने अपने आदमियों से कहा तो उन के चेहरों के भावों ने एकदूसरे को कहा, ‘मगर पहले कोई सामने तो आए.’ दरवाजा आधा खुला था. पल्ला जोर पड़ते ही एक तरफ हो गया. ट्रिगर पर उंगली सख्त किए सभी अंदर प्रवेश कर गए. उन का गुस्सा माथे पर था. सामने जो भी आया गोली खाएगा. मगर सामने कोई आए तो सही. सारा मकान खाली था. खाने का सामान तो दूर की बात थी वहां तो पानी का मटका भी खाली था. सब कहां गए? शायद कहीं बाहर गए थे?
मगर दूसरा मकान भी पहले की तरह खाली. तीसरा, चौथा मकान भी खाली. तनी हुई मशीनगनें ढीली पड़ एक तरफ कंधे पर लटक गईं. चढ़ा हुआ गुस्सा उतरने लगा. गरमी या जोश भी ढीला पड़ने लगा. एक ही कतार में, सारे मकान खाली थे. अंधेरा बढ़ रहा था. ऐसा कैसे हो सकता था? क्या कोई साजिश थी? सेना या खुफिया विभाग वालों की साजिश भी हो सकती है.
क्या पता एकदम से चारों तरफ से घेर कर सब पर गोलियों की बरसात कर दें…सभी के चेहरों पर डर और दहशत उभर आई. पिछले माह जब वे आए थे, तब इन्हीं 4-5 मकानों में रहने वालों ने किस तरह डर कर उन की अगवानी की थी. बकरे का मांस पेश किया था. काजूसेब से बनी शराब पेश की थी. रात को जब सब ने उन की जवान बहुओं और कुंआरी बेटियों को लपक लिया था तब किसी ने विरोध नहीं किया था.
मगर आज इन्हीं मकानों में कोई नहीं था. इनसान तो क्या कोई परिंदा भी नहीं था. पशु नहीं था. इनसान कहीं बाहर किसी काम से जा सकते थे. मगर क्या परिंदे और जानवर भी जा सकते थे? जरूर कोई साजिश थी. अंधेरा कभी उन को सुरक्षा और हिम्मत देता था. आज वही अंधेरा उन्हें डरा रहा था. दूसरों पर बिना बात गोली चलाने वाले अब इस सोच से डर रहे थे कि कहीं एकदम किसी ओर से कोई फौजी सामने आ कर गोली न चला दे या आसपास के मकानों से उन सब पर गोलियों की बौछार न हो जाए.
जिस दबंगता, अकड़ और जोश से वे सब गांव में प्रवेश करते समय भरे हुए थे वह अब एक अनजाने डर, दहशत में बदल गया था. सभी के चेहरों पर अब मातम छा गया था. प्यास से सब के गले सूख रहे थे. मगर किसी मकान के मटके में पानी नहीं था. प्यास से गला सूख रहा था. शाम आधी रात में बदल गई थी. मगर अभी तक खाना नहीं मिला था. कहां तो सोचा था कि मुरगेबकरे का मांस, गरमागरम तंदूरी रोटियां, मिस्सी रोटियां मिलेंगी, शराब मिलेगी. रात को साथ सोने के लिए अनछुई जवान महिला मिलेगी…मगर आज सब सुनसान था. कोई भी नहीं था. खाली मकान थे. सब खालीखाली था.
‘‘अब क्या करें?’’ एक साथी ने सरदार से कहा.
सरदार चुप रहा. क्या जवाब दे? वापस चलें? मगर कहां? सामने के पहाड़ों पर बर्फ पड़ रही थी. आसमान साफ था. मगर इस सुनसान आधी रात में जाएं कहां? सारे मकान खाली थे. सारा गांव खाली था. सभी थक चुके थे. धीरेधीरे चलते गांव के बाहर चले आए. एक मकान पत्थरों से घिरी चारदीवारी के अंदर बना हुआ था. चारदीवारी में शायद सब्जियां बो रखी थीं. खाने को कच्ची सब्जियां तो मिल जाएंगी, सभी यह सोच कर वहां प्रवेश कर गए.
एक आतंकवादी ने हिम्मत कर टौर्च जलाई. सचमुच सब्जियां थीं मगर कच्चा घीया, बैगन और तोरी, कौन और कैसे खाता? शायद मकान मेें ईंधन और चूल्हा है. सभी मकान की तरफ बढ़े तभी उन के कानों में किसी के धीमेधीमे सुबकनेकी आवाज आई. मकान में कोई था. टौर्च जलाने वाला आगे बढ़ा. एक लंबे आयताकार कमरे के भीतर खूंटे में रस्सी से बंधी एक बकरी खोली में रखी घास चर रही थी.
समीप एक 2 साल का मासूम बच्चा सुबक रहा था. गांव में इस अकेले मकान में 2 प्राणी थे. थोड़ीबहुत शराब थी. दालान के कोने में एक मटका पानी से भरा था. थोड़ाबहुत राशन भी वहां मौजूद था. पानी देख कर सब की निगाहों में चमक आ गई. एक आतंकी रसोई में गया मगर वहां कोई गिलास नहीं था. हाथों को चुल्लू बना सब ने बारीबारी से पानी पिया. सब बकरी और बच्चे वाले कमरे में चले आए.
बच्चा अभी भी सुबक रहा था. वह भूखा था. एक खाट दीवार से लगी सीधी खड़ी थी. सब उस को बिछा कर उस पर बैठ गए.
‘‘रहमत, देखो, क्या बकरी के थनों में दूध है?’’ सरदार के कहने पर एक आतंकी उठा और बकरी के समीप गया. थन दूध से भारी थे. मुट्ठी में थन पकड़ उसे भींचा, दूध की पतली धार एक फुहार के समान बाहर निकल आई. रहमत ने आसपास देखा तो कोई बरतन नहीं था. वह भाग कर रसोई मेें गया. वहां भी बरतन नहीं था. दालान में एक तरफ मिट्टी से बनी एक खाली सिगड़ी थी. इस में शायद आग जला कर भट्ठी का काम लिया जाता था. उस को उठा कर झाड़ा. मटके से पानी ले, उसे धो लाया.
दूध भरपूर था. सारी सिगड़ी भर गई. दूध ले कर वह बच्चे के समीप गया. दूध देखते ही बच्चा मचल पड़ा. रहमत ने सिगड़ी उस के मुंह से लगा दी. बच्चा दूध पी गया. आधी सिगड़ी खाली हो गई. थनों में अभी काफी दूध था. बकरी शायद पिछले कई दिन से दुही नहीं गई थी. सिगड़ी फिर भर गई. सिगड़ी उठा कर रहमत दल के सरदार के समीप पहुंचा.
‘‘आप भी दूध पी लीजिए.’’
‘‘दूध तो बच्चे के लिए है.’’
‘‘बच्चे को मैं ने दूध पिला दिया है. बकरी के थनों में अभी काफी दूध है.’’ सरदार ने सिगड़ी को मुंह से लगाने में संकोच किया. फिर हाथों की केतली बना जैसे पानी पी रहा हो, थोड़ा सा दूध पी लिया और सिगड़ी एक साथी की तरफ बढ़ा दी. सभी ने थोड़ाथोड़ा दूध पी लिया. बच्चा अब तक जमीन पर लेटा सो गया था. बकरी भी बैठ गई थी. ‘‘बच्चे को खाट पर लिटा दो,’’ सरदार ने कहा. 2 साथी उठ कर जमीन पर बैठे. फिर रहमत ने बच्चे को उठा कर खाट पर लिटा दिया. सरदार ने अपना ओढ़ा कंबल उतार कर उस को ओढ़ा दिया. गरमाई मिलते ही बच्चा मीठी नींद सो गया.
बकरी का थोड़ाथोड़ा दूध पीते ही अंतडि़यां राहत पा गई थीं. जैसे चोट पर मरहम लग गया हो. सभी भूखे दीवार से लगेलगे सो गए. सुबह की चमकती धूप की किरणों ने उन के चेहरों पर गरमी की, तब सब की नींद खुली. बच्चा अभी भी सो रहा था. बकरी उठ कर खड़ी हो में…में करने लगी थी. उस के थन फिर से दूध से भारी हो गए थे.
सब उठ कर नित्यक्रिया को निकल गए थे. रहमत और परवेज समीप की पहाड़ी के झरने से मटके में पानी भर लाए थे. अरबाज खान और मुश्ताक अली खाली पड़े मकानों में खाली बरतन ढूंढ़ने निकल पड़े. किसी घर में 1-2 गिलास, किसी में थालीकटोरी किसी से गड़वा, परात मिल गई. आटा गूंध कर टिक्कड़ सेंक सब ने पेट भरा. बच्चा भी रोटी देख कर चिल्लाया. रहमत ने उस को नमक डाल कर एक टिक्कड़ सेंक कर थमा दिया.
‘‘अब क्या करें?’’ सरदार ने कहा.
‘‘ठिकाने पर वापस चलते हैं. अगले गांव में तो सुरक्षा बलों का बड़ा नाका है. इस बार फौज की चौकसी काफी बढ़ गई है,’’ मुश्ताक अली ने कहा. ‘‘यह सारा गांव खाली क्यों है?’’ रहमत अली ने कहा. हालांकि वह जानता था कि इस सवाल का जवाब सब को मालूम था. उन्हीं की दहशत की वजह से सब निवासी गांव छोड़ कर चले गए थे. हर समय दहशत के साए में कौन जीता? कब किस को बिना वजह गोली मार दें. कब किसी के घर में घुस कर बहूबेटी की इज्जत लूट लें. अभी तक घाटी से हिंदू, सिख ही गए थे, मगर अब अपने मुसलमान भी पलायन कर रहे थे…वह भी सारे के सारे एकसाथ. अगर सारी घाटी खाली हो जाए तो?
‘‘अभी वापस चलते हैं… आगे जो होगा देखेंगे,’’ सब उठ खड़े हुए.
‘‘इस बच्चे का क्या करें?’’ अरबाज खान ने पूछा.
सब सोचने लगे. क्या इसे गोली मार दें? अभी तक कभी किसी ने किसी मासूम बच्चे को नहीं मारा. बड़ी उम्र के आदमी और औरतों पर ही गोली चलाई थी. किसी का हाथ स्टेनगन की तरफ नहीं गया. ‘‘क्या बच्चे को यहीं छोड़ दें,’’ सब सोच रहे थे. मगर इस सुनसान खाली पड़े मकान में अकेला मासूम बच्चा कैसे रहेगा? जैसे हालात थे, उन में इस के परिवार या मांबाप का आना मुश्किल था. जाने की जल्दी में वह बच्चा छूट गया था. बच्चे को वापस लेने आने वाला अकेला शायद ही आए. सुरक्षा बल या फौजी दस्ता साथ आ सकता है. इसलिए उन का यहां ज्यादा देर तक ठहरना भी खतरनाक था. सरदार ने कुछ देर सोचा.
‘‘बच्चे को और बकरी को भी साथ ले चलो,’’ सरदार का हुक्म सुन सब ने एकदूसरे की तरफ देखा.
‘‘सरदार, बच्चे का हम क्या करेंगे?’’ मुश्ताक अली ने कहा.
‘‘यहां अकेला भूखाप्यासा बच्चा मर जाएगा.’’
‘‘हमारे साथ भी इसे कुछ हो सकता है.’’
‘‘बाद में देखेंगे. अभी इसे साथ ले चलो.’’ आंखों पर शक्तिशाली दूरबीन चढ़ाए ऊंचे टावर पर बैठे फौजियों ने सामने की पहाड़ी पर बनी पगडंडी पर कुछ आतंकवादियों को चढ़ते देखा. सब सचेत हो गए. ऐसा कभीकभी ही होता था. अधिकतर दहशतगर्द रात के अंधेरे में ही निकलते थे. उस ने दूरबीन का फोकस और करीब किया. बुदबुदाया, ‘अरे, यह तो अरबाज खान है. इस ने अपनी बांहों में एक बच्चा उठा रखा है. इस के पीछे चल रहे व्यक्ति ने एक बकरी के गले में बंधी रस्सी थाम रखी है.’
‘वाकीटाकी’ औन कर फौजी ने अपने कमांडर को खबर दी.
‘‘इस बच्चे के बारे में हमारे पास कल शाम खबर आई थी. गांव छोड़ते समय अफरातफरी में इस के मांबाप बच्चा वहीं छोड़ आए थे,’’ कमांडर ने कहा.
‘‘सर, क्या करें? सब रेंज में हैं. गोली चलाऊं?’’
‘‘उन्हें जाने दो. बच्चा उन के हाथ में है, उसे गोली लग सकती है.’’ सभी पहाड़ी पार कर अपने ठिकाने पर सुरक्षित पहुंच गए. अरबाज खान जानता था कि दिन में घाटी के किसी इलाके में निकलना खतरे से खाली नहीं था. किसी भी वक्त सुरक्षा बलों की गोली लग सकती थी. इसलिए आड़ बनाने के लिए बच्चा अपने साथ लाया था. ठिकाने पर सब नहानेधोने, खाना बनाने में लग गए. बच्चा भी जाग गया था.
‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ अरबाज खान ने पूछा.
‘‘उमर अली.’’
‘‘तुम्हारे अम्मीअब्बा का क्या नाम है?’’
‘‘अहमद अली व फरजाना खातून.’’
‘‘सब कहां गए हैं?’’
‘‘पता नहीं.’’
सब खाना खा कर सो गए. उमर अली भी एक चपाती और दूध पी कर सो गया. रात हो गई. हर रात को किसी न किसी गांव में इन दहशतगर्दों का दल जाता था. कहीं कत्ल तो कहीं लूटमार का खेल खेला जाता था. मगर आज कोई कहीं नहीं गया था. कल रात जैसा वाकया पहले कभी नहीं हुआ था कि सारा गांव खाली हो जाए. आज किसी दूसरे गांव में जाएं, वहां भी अगर वैसा ही हो गया तब? ऊपर से सुरक्षाबल के जवान घात लगाए बैठे हों.
अचानक सब पर हमला हो जाए. इतनी सारी संभावनाएं कभी दिमाग में नहीं आई थीं. मगर कल के हालात ने उन को खुद के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया था. लगभग 1 साल तक लुटेरों ने कश्मीर के विभिन्न इलाकों में स्थापित ट्रेनिंग कैंपों में इन सब को तरहतरह के हथियार चलाने व गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दे कर सीमा पार करा दी थी. एकमुश्त मोटी रकम हर एक को अपने परिवार को देने के लिए थमा दी गई थी.
साथ ही, एक बंधीबंधाई रकम हर माह इन के परिवारों को देने का वादा भी किया था. इस जंग को अल्लाह के नाम पर जेहाद का नाम दिया गया था. काफिरों के खत्म होने पर ही पाक हुकूमत कायम होगी, जिस में कुछ भी नापाक नहीं होगा. यह सब जेहादियों के दिमाग में भरा गया था.
सब इस सचाई से वाकिफ थे कि उन्हें मरने के बाद कफन भी नहीं मिलेगा. मगर जेहाद के नाम पर दिमाग बंद था. अब कल के हालात ने सब को सोचने पर मजबूर कर दिया था. क्या थे वे सब? क्या भविष्य था उन का? घाटी में अब काफिर कहां थे? सारे हिंदू, जिन्हें काफिर कहा जाता था, चले गए थे. फिर अब किस बात पर जेहाद था? साथ में जो बच्चा आया था उस ने भी उन के दिमाग में हलचल मचा दी थी. सब को अपनाअपना परिवार, बच्चे याद आ रहे थे. यह जेहाद तो पता नहीं कब खत्म होगा? घर कब जाएंगे? किसी के बेटे का नाम फिरोज था, कोई अशरफ था, कोई सलीम था, कोई अशफाक था. कैसे होंगे वे?
दूसरा दिन भी हो गया. उमर अली सब के साथ हिलमिल गया. सब को उस में अपनेअपने बच्चों का अक्स दिख रहा था.
‘‘मैं भी बंदूक चलाऊंगा.’’
‘‘कमांडर पूछता है सब कहीं जाते क्यों नहीं? 4 दिन से कुछ नहीं हुआ?’’
‘‘अभी हालात खराब हैं. जब काबू में हो जाएंगे तब जाएंगे.’’ 8 दिन बीत गए. दिमाग में भारी हलचल थी.
हरकारा फिर आया. इस बार चेतावनी दे गया. ‘ड्यूटी’ करो या नतीजा भुगतो. नतीजा यानी वापस लौटे तो खत्म कर सुपुर्देखाक. ड्यूटी पर जाते हैं तो कभी न कभी सुरक्षा बलों की गोली का शिकार बनना ही था. सुपुर्देखाक इधर भी था उधर भी था. क्या करें? जेहाद का जनून उतर चुका था. एक मासूम बच्चे ने उन्हें अपने बच्चों, परिवार आदि की याद दिला कर उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया था.
10 दिन बाद सुबह एक सफेद झंडा, जो सफेद कमीज फाड़ कर बनाया गया था, लिए 8 दहशतगर्दों का दल एक मासूम बच्चे की अगुआई में साथ में एक बकरी लिए आत्मसमर्पण के लिए सुरक्षा बलों के सामने हाजिर हुआ. स्टेनगन, हथगोले व अन्य हथियार पटाखों के समान एक ढेर में एक तरफ पड़े थे. उमर अली अपने अम्मीअब्बा की गोद में पहुंच गया. सभी दहशतगर्द इस नन्हे बच्चे को मोहब्बत से देख रहे थे जिस ने उन के दिमागों से जेहाद का जनून उतार दिया था.