भारत के कुछ खौफनाक सीरियल किलर्स के अपराधों के तौर तरीके और उन के द्वारा अंजाम दी गई वारदातों के बारे में सुन कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उन्होंने अपने शैतानी दिमाग से डर की जो दहशत फैलाई थी, उस से न केवल सामान्य लोगों की जिंदगी आतंक और भय से गुजरने लगी थी, बल्कि पुलिस महकमा भी सकते में आ गया था.
वैसे अपराधियों को कानूनी शिकस्त मिली, वे सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए. बावजूद इस के नए सिरे से अपराध की घटनाएं होती रहीं. वैसे खूंखार अपराधियों की बात करें तो उन में रमन राघव, चार्ल्स शोभराज, साइनाइड मोहन, देवेंद्र शर्मा, मोहिंदर सिंह पंढेर, एम. जयशंकर, डाक्टर डेथ और संतोष पोल के नाम प्रमुख हैं.
इन में से कई अपराधियों पर फीचर फिल्में और टीवी सीरियल भी बन चुके हैं. जबकि एक सच्चाई तो यह भी है कि फिल्मों में उन के कुकर्मों और अपराधों को जितनी शिद्दत के साथ फिल्माया गया, वे उस से कहीं अधिक खूंखार और खौफनाक थे.
वैसे अपराधी देश के विभिन्न हिस्सों के रहे हैं. महानगर से ले कर छोटेमोटे कस्बाई इलाकों तक में उन का खौफ बना रहा है. उन में अधिकतर के अपराध सैक्स, हत्या और रेप जैसी वारदातों के रहे हैं.
रमन राघव : एक साइको किलर
मुंबई में 1960 के दशक का दौर था. तब बंबई नाम के इस महानगर में देश के कोनेकोने से लोग रोजगार की तलाश के लिए लगातार आ रहे थे. उन का वहां कोई ठौरठिकाना नहीं था, फिर भी उन के आने का सिलसिला बना हुआ था.
वे महानगर में जहांतहां किसी तरह से रहने की जगह बनाते जा रहे थे, जहां सिर्फ सिर छिपाने की जगह थी. दैनिक क्रिया के लिए सार्वजनिक शौचालय थे. नहानेधोने के लिए भी वैसी खुले में कोई जगह थी. सोने के लिए सड़कों का फुटपाथ भी उन के लिए कम पड़ने लगा था.
रोजगार का इंतजाम हो जाने के बाद लोग जैसेतैसे चकाचौंध की जिंदगी में किसी तरह से गुजारा कर ले रहे थे.
उन में अधिकतर गरीब और मजदूर किस्म के लोगों के छोटेछोटे परिवार थे. उन के नसीब में घरेलू परदा और सुरक्षा नाम मात्र की थी. वे कब किसी घटना या दुर्घटना के शिकार हो जाएं, कहना मुश्किल था. उन में या फिर उन से बाहर अपराधी किस्म के लोग भी थे, जिन की नजर भोलीभाली लड़कियों और अकेली औरतों पर रहती थी. ऐसा ही एक व्यक्ति रमन राघव था.
उस के बारे में बहुत अधिक रिकौर्ड तो नहीं है, सिवाय इस के कि उस ने कई जघन्य अपराध किए. हालांकि तब यह माना गया था कि वह दक्षिण भारत का रहने वाला था.
1965-66 के समय में मुंबई में फुटपाथ पर सोने वाले लोगों की हत्याओं की खबरों ने मुंबई पुलिस की नाक में दम कर रखा था. गरीब बस्तियों में उस के नाम का भय बना हुआ था. उस के ताबड़तोड़ अपराध ने सभी को सन्न कर दिया था. पुलिस उस के हुलिए तक से अनजान थी.
रात के अंधेरे में जब किसी बेसहारे की मौत हो जाती थी, तब पुलिस मरने वाले की शिनाख्त तो कर लेती थी, लेकिन उस हत्यारे तक नहीं पहुंच पाती थी. पुलिस को सभी कत्ल में एक जैसे तरीके के अलावा और कुछ नहीं मालूम हो पाया था. वह तरीका था लोगों के सिर पर किसी भारी चीज से हमला किया जाना. हत्यारा एक ही वार में व्यक्ति को मौत की नींद सुला देता था.
सिर्फ एक साल के अंदर ही करीब डेढ़ दरजन लोगों पर इस तरह के जानलेवा हमले हुए थे, जिन में 9 लोग मारे गए थे. इस अनजान हमलावर को पकड़ने में मुंबई पुलिस पूरी तरह से नाकाम थी. लोग शाम होते ही अपनेअपने घरों की ओर लौटने लगे थे.
स्थिति यहां तक आ गई थी कि लोग अपनी सुरक्षा के लिए साथ में लकड़ी या डंडा रखने लगे थे. उस के बाद कुछ समय तक वारदातें नहीं हुईं.
पुलिस जांच में जुटी थी और कई घायलों की मदद से इस हमलावर का स्केच बनवाया गया, जिस के आधार पर मुंबई क्राइम ब्रांच पुलिस के 27 अगस्त, 1968 को इस खूंखार हत्यारे रमन राघव को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.
पुलिस पूछताछ में उस ने बताया कि 3 साल के अपने आपराधिक जीवन में करीब 40 लोगों को मौत के घाट उतार चुका था. जबकि पुलिस का मानना था कि यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है. पुलिस ने पूछताछ में यह भी पाया कि रमन ने फुटपाथ पर सोए बुजुर्ग महिला, पुरुष, युवा और बच्चों सभी को अपना शिकार बनाया.
पूछताछ के दौरान पुलिस ने जब उस की मैडिकल जांच करवाई, तब डाक्टरों के पैनल ने उसे मानसिक रूप से विकृत बताया. फिर निचली अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद उसे मौत की सजा सुना दी. इस सब के बीच रमन राघव ने सजा के खिलाफ कोई अपील भी नहीं की. हाईकोर्ट ने 3 मनोवैज्ञानिकों के पैनल से उस के मानसिक स्तर की फिर से जांच कराई.
मनोचिकित्सकों के पैनल द्वारा किए गए कई घंटों के इंटरव्यू के बाद निष्कर्ष निकला कि वह दिमागी रूप से बीमार है. ऐसे में उस की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया. इस के बाद उसे पुणे की यरवदा जेल में भेज दिया गया, जहां कई सालों तक उस का इलाज भी चला. साल 1995 में साइको किलर रमन राघव की किडनी की बीमारी के चलते सस्सून अस्पताल में मौत हो गई.
साल 2016 में उस की जीवनी पर एक हिंदी फिल्म ‘रमर 2.0’ भी बनी थी, जिस में मुख्य भूमिका रघुवीर यादव ने निभाई थी. फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी एक अहम किरदार में थे.
डा. देवेंद्र शर्मा : बेरहमी से 100 जानें लेने वाला हैवान
सीरियल किलर डा. देवेंद्र शर्मा की हैवानियत को दिल्ली, गुड़गांव, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोग 2 दशक बाद भी याद कर सिहर जाते हैं. उस के खौफनाक किस्सों में किडनी रैकेट, फरजी गैस एजेंसी और कारों की चोरी के कारनामे आज भी सब की जुबान पर हैं.
लोगों का कहना है कि उस ने 100 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया था, जिन में कैब ड्राइवर और दूसरी गाडि़यों के ड्राइवर थे. उन की लाशों को यूपी की मगरमच्छों वाली नहर में फेंक दिया था.
साल 2002 और 2004 के बीच उस के कारनामे ज्यादा चर्चित हुए. वह कारें और दूसरे वाहनों को चुराया करता था. उस ने करीब 40 ड्राइवरों को मौत के घाट उतार दिया था. हैरानी की बात यह थी कि वह एक आयुर्वेदिक चिकित्सक था. अपने पेशे से अलग लगातार आय के अन्य साधनों पर नजर रखे हुए था.
हत्याओं में से 50 को कुबूल करने के बाद उसे 2008 में मौत की सजा सुना दी गई थी. वह ऐसा सीरियल किलर था, जो 50 कत्ल करने के बाद उस की गिनती भूल गया था. बाद में उस ने माना कि वह 100 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है.
वह 2004 में पकड़ा गया था. फिर जेल में अच्छे बर्ताव के कारण उसे जनवरी 2020 में 20 दिन की पैरोल मिली थी. पैरोल खत्म होने के बाद भी वह जेल नहीं पहुंचा बल्कि वह दिल्ली के मोहन गार्डन में छिप कर रहने लगा. यहां वह एक बिजनसमैन को चूना लगाने वाला था, लेकिन पुलिस को उस के यहां होने की भनक लगी और आखिर में उसे पकड़ लिया गया. दिल्ली में पकड़े गए देवेंद्र को किडनी मामले का अपराधी करार दिया गया था.
देवेंद्र शर्मा डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजस्थान में निजी प्रैक्टिस करता था. उस में उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी, जितने कि वह उम्मीद किए हुए था. साल 1984 में देवेंद्र शर्मा ने आयुर्वेदिक मेडिसिन में अपनी ग्रैजुएशन पूरी कर के राजस्थान में क्लीनिक खोला था. फिर 1994 में उस ने गैस एजेंसी के लिए एक कंपनी में 11 लाख रुपए का निवेश किया था. लेकिन कंपनी अचानक गायब हो गई, फिर नुकसान के बाद उस ने 1995 में फरजी गैस एजेंसी खोल ली.
उस के बाद शर्मा ने एक गैंग बनाया, जो एलपीजी सिलेंडर ले कर जाते ट्रकों को लूट लेता था. इस के लिए वे लोग ड्राइवर को मार देते और ट्रक को भी कहीं ठिकाने लगा देते. इस दौरान उस ने गैंग के साथ मिल कर करीब 24 मर्डर किए.
वह अपने पेशे से ही जुड़ कर पैसा कमाने का काम करने लगा. उस के पास उन मरीजों की संख्या अच्छीखासी थी, जिन की किडनी खराब हो चुकी थी. उन्हें वह आयुर्वेदिक दवाइयां दिया करता था. उस ने उपचार करते हुए देखा कि बहुतों की दोनों किडनियां खराब हैं, जिसे ट्रांसप्लांट करने की जरूरत है.
फिर क्या था, देवेंद्र शर्मा किडनी ट्रांसप्लांट गिरोह में शामिल हो गया. वह किडनी डोनर का इंतजाम करने लगा. कार के ड्राइवर को इस का निशाना बनाया और उन्हें मार कर जरूरतमंदों को उस की किडनी बेच कर मोटा पैसा बनाने लगा. इस काम में उसे दोहरा लाभ हुआ.
किडनी बेचने के साथसाथ देवेंद्र शर्मा ने लूटी हुई कारों से भी पैसे कमाए. उस ने 7 लाख रुपए प्रति ट्रांसप्लांट के हिसाब से 125 ट्रांसप्लांट करवाए. ड्राइवर की बौडी को नहर में फेंकने के बाद कैब को यूज्ड कार बता कर बेच देता.
वह फरजी गैस एजेंसी भी चलाने लगा. अपनी फरजी गैस एजेंसी के लिए जब उसे सिलेंडर चाहिए होते तो वह गैस डिलिवरी ट्रक को लूट लेता था और उस के ड्राइवर को मार देता था.
देवेंद्र ने पूरी गैंग तैयार कर रखी थी. वे गाडि़यों की लूट से ले कर लाश को ठिकाने लगाने के लिए उसे उत्तर प्रदेश में कासगंज स्थित हजारा नहर में फेंक दिया करता था. इस नहर में बड़ी संख्या में मगरमच्छ रहते हैं.
साइनाइड किलर मोहन : 20 महिलाओं की हत्या
सीरियल किलर मोहन कुमार को साइनाइड किलर के नाम से भी जाना जाता है. मोहन कुमार को 20 महिलाओं की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था. उन महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाने
के बाद, वह उन्हें गर्भनिरोधक गोलियां खिलाता था.
दरअसल, वे गर्भनिरोधक गोलियां नहीं, बल्कि साइनाइड की गोलियां हुआ करती थीं. उस ने ये जुर्म साल 2005 से 2009 के बीच किए थे. उस के बारे में कहा जाता है कि वह कई बैंक धोखाधड़ी और वित्तीय घोटालों में भी शामिल था. उसे दिसंबर 2013 में मौत की सजा सुनाई गई थी.
मोहिंदर सिंह पंढेर : निठारी हत्याकांड
साल 2005 और 2006 के बीच दिल्ली के नोएडा इलाके में निठारी हत्याकांड काफी चर्चा में रहा था. इस खौफनाक घटना की पूरे देश में बहुत चर्चा हुई. मोहिंदर सिंह पंढेर और सुरिंदर कोली दोनों पर निठारी में 16 से अधिक बच्चों की हत्या और बलात्कार का आरोप था.
मोहिंदर सिंह पंढेर दिल्ली के नोएडा का एक धनी व्यापारी था. 2005 से 2006 के बीच निठारी गांव के 16 लापता बच्चों की खोपड़ी उस के घर के पीछे एक नाले में मिली थी. उस इलाके के सभी लापता बच्चों की लाशें पंढेर के घर के पास ही मिली थीं.
पुलिस ने पंढेर और उस के नौकर सुरिंदर कोली को गिरफ्तार कर लिया. दोनों पर रेप, नरभक्षण और मानव अंगों की तस्करी का आरोप लगाया गया था. कुछ आरोप सही थे तो कई अफवाहें भी थीं. कोली और पंढेर दोनों को 2017 में मौत की सजा सुनाई गई थी.
एम. जयशंकर : रेप और मर्डर
एम. जयशंकर पर 30 महिलाओं से रेप और 15 महिलाओं की हत्या का आरोप था. उस ने 2008 से 2011 के बीच रेप और हत्या की घटनाओं को अंजाम दिया था. उस ने तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 30 बलात्कार, 15 हत्याएं और कई डकैती की घटनाओं को अंजाम दिया था.
गिरफ्तारी के बाद उसे बंगलुरु की एक जेल में बंद कर दिया गया था. हालांकि उसे मानसिक रूप से बीमार भी बताया गया था. बाद में जेल से भागने के कई असफल प्रयासों के बाद एम. जयशंकर ने 2018 में आत्महत्या कर ली थी.
डाक्टर डेथ : महिलाओं को जिंदा दफनाने वाला
वैसे दुनिया भर में डाक्टर को प्राणरक्षक माना जाता है, लेकिन महाराष्ट्र के सातारा में एक ऐसा डाक्टर सामने आया, जिसे ‘डाक्टर डेथ’ का नाम दिया गया. इस डाक्टर की कहानी इतनी खौफनाक थी कि उस के कारनामे उजागर होते ही सभी चौंक पड़े थे.
डाक्टर ने पुलिस को बताया कि उस ने 5 औरतों को जिंदा दफना दिया था उन की कब्रों के ऊपर नारियल के पेड़ भी लगा दिए थे.
डाक्टर डेथ के इस सनकी रवैए का खुलासा 2016 में तब हुआ, जब उसे पुलिस ने एक कत्ल के मामले में गिरफ्तार किया था. महाराष्ट्र के पुणे से करीब 120 किलोमीटर दूर सातारा में रहने वाले इस कातिल डाक्टर की पहचान संतोष पोल के रूप में की गई थी.
कातिल डाक्टर ने पुलिस को अपने कुबूलनामे में बताया कि वह साल 2003 से ऐसी वारदातों को अंजाम देता आया है.
संतोष पोल पेशे से एलेक्ट्रोपैथ डाक्टर था और उस के पास बैचलर औफ इलैक्ट्रोहोमियोपैथी मैडिसिन एंड सर्जरी (बीईएमएस) की डिग्री थी. इस के अलावा उस ने मुंबई के घोटवडेकर अस्पताल में 8 साल तक नौकरी भी की थी.
वहां काम करने वाले वरिष्ठ डाक्टरों का मानना था कि वह मैडिकली सर्टिफाइड नहीं था. संतोष खुद को डाक्टर बताने के साथसाथ समाजसेवी और आरटीआई एक्टिविस्ट भी बताता था.
साल 2016 में वेलम गांव की आंगनबाड़ी कार्यकत्री मंगला जेधे लापता हो गई. उस के परिजनों ने इस का आरोप संतोष पर लगा दिया था. शिकायत में नामजद होने के बाद पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए बुलाया, लेकिन सबूत नहीं होने की वजह से उसे छोड़ दिया गया.
मामले की चल रही जांच में सामने आया कि मंगला के फोन की आखिरी लोकेशन संतोष पोल के फार्महाउस के पास दिखी और मंगला का फोन ज्योति नाम की नर्स के पास से बरामद किया गया.
इस के बाद पूछताछ में ज्योति ने बताया कि संतोष पोल ने ही मंगला जेधे की हत्या की और उस के शव को दफना दिया. उधर संतोष को जैसे ही यह सब पता चला तो वह मुंबई भाग गया. ज्योति के द्वारा बताई गई जगह पर खुदाई की गई, तो एक कंकाल बरामद हुआ और लैब रिपोर्ट्स में साबित हो गया कि वह कंकाल मंगला जेधे का ही था.
गिरफ्तारी के बाद संतोष ने बताया कि उस ने 13 सालों में 5 महिलाओं और एक पुरुष की हत्या की है. इस के बाद पुलिस के जरिए चारों महिलाओं के कंकाल बरामद कर लिए गए, लेकिन एक पुरुष का कंकाल बरामद नहीं हुआ.
संतोष ने उस की लाश नदी में फेंक दी थी. उस ने बताया कि वह महिलाओं को नशे का इंजेक्शन देता था, फिर नशे की हालत में रहने के दौरान ही उन्हें फार्महाउस में दफना देता था. साथ ही लाशों के सड़ने की गंध छिपाने के लिए उस ने कुछ मुर्गियां भी पाल रखी थीं. पुलिस ने इस ‘डाक्टर डेथ’ के घर से नशीली दवाएं, इंजेक्शन, ईसीजी मशीन और आरटीआई से जुड़े कुछ दस्तावेज बरामद किए थे.
संतोष ने बताया था कि वह हर हत्या के बाद एक जेसीबी बुलाता था और नारियल के पेड़ों को लगाने के लिए गड्ढे खुदवाता था, लेकिन इन गड्ढों में लाशें दफना कर उन के ऊपर नारियल के पेड़ लगा दिया करता था. द्य