50 वर्षीय इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे महानगर मुंबई के उपनगर सांताकु्रज (पूर्व) की प्रभात कालोनी की ए.जी. पार्क इमारत की तीसरी मंजिल पर स्थित फ्लैट नंबर 303 में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी दीपाली के अलावा 20 साल का बेटा सिद्धांत गणोरे था. इस समय वह मुंबई उपनगर के थाना खार में तैनात थे.
थाना खार में तैनाती होते ही उन्हें महानगर मुंबई के हाईप्रोफाइल शीना बोरा हत्याकांड जैसे मामले की जांच से जूझना पड़ा था. इस मामले की सूचना सब से पहले उन्हें ही मिली थी. इस के बाद थानाप्रभारी दिनेश कदम के साथ मिल कर उन्होंने इस हत्याकांड की तह तक पहुंच कर शीना बोरा के गुनहगार पीटर मुखर्जी और उन की पत्नी इंद्राणी मुखर्जी के साथ उन के ड्राइवर को सलाखों के पीछे पहुंचाया था. इस के बाद इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी.
यही इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे 16 मई, 2017 की सुबह 11 बजे पत्नी दीपाली और बेटे सिद्धांत के साथ नाश्ता कर के अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. दरअसल, उन्हें एक अतिमहत्त्वपूर्ण केस की तैयारी करनी थी. उस दिन वह काफी व्यस्त रहे. शाम 6 बजे के करीब घर का हालचाल लेने के लिए उन्होंने फोन किया तो फोन बेटे सिद्धांत ने उठाया. उन्होंने पत्नी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मां सिनेमा देखने गई हैं, देर रात तक लौटेंगी. मैं भी अपने दोस्त के यहां जा रहा हूं.’’
घर का हालचाल ले कर ज्ञानेश्वर गणोरे फिर उसी केस की फाइलों में व्यस्त हो गए थे. सारा काम निपटा कर रात 11 बजे के करीब वह घर पहुंचे तो घर का दरवाजा बंद था. कई बार डोरबेल बजाने और दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो उन्होंने पत्नी और बेटे को फोन किया. लेकिन दोनों का फोन बंद होने से बात नहीं हो सकी.
फोन बंद होने से ज्ञानेश्वर गणोरे को चिंता हुई. उन्होंने पड़ोसियों से पूछा कि बाहर जाते समय सिद्धांत घर की चाबी तो नहीं दे गया? लेकिन वह किसी को चाबी नहीं दे गया था, इसलिए अब उन के पास इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था. वह इंतजार करने लगे. रात के एक बज गए, अब तक न उन की पत्नी आईं और न ही बेटा. उन का कोई फोन भी नहीं आया.
ज्ञानेश्वर गणोरे को चिंता हुई. उन के मन में तरहतरह के बुरे खयाल आने लगे. चिंता बेचैनी में बदली तो वह पुलिसिया अंदाज में फ्लैट की चाबी ढूंढने लगे. काफी मेहनत के बाद आखिर उन्हें चप्पलों की रैक में फ्लैट की चाबी मिल गई. फ्लैट का दरवाजा खोल कर वह अंदर पहुंचे तो जिस बात को ले कर उन्हें बुरे खयाल आ रहे थे, वही हुआ था.
उन की आंखों के सामने जो मंजर था, उस ने उन के होश उड़ा दिए थे. सामने ही हाल के फर्श पर उन की पत्नी दीपाली का लहूलुहान शव पड़ा था. लाश के आसपास फर्श पर खून ही खून फैला था.
कुछ समय तक तो वह पत्नी का शव देखते रहे. उस के बाद एक अनुभवी पुलिस अधिकारी होने के नाते उन्होंने खुद को संभाला और सावधानीपूर्वक फ्लैट का जायजा लिया. पत्नी की हत्या हो चुकी थी और बेटा गायब था. मामला काफी गंभीर था, इसलिए उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम और थाना वाकोला पुलिस को दे दी.
सूचना मिलते ही थाना वाकोला के थानाप्रभारी महादेव बावले ने तुरंत डायरी बनवाई और 10-15 मिनट में ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. इस बीच यह खबर सोसायटी में फैल गई थी, जिस से रात 2 बजे भी इमारत के कंपाउंड में काफी लोगों की भीड़ जमा हो गई थी.
पुलिस टीम भीड़ के बीच से होते हुए लिफ्ट द्वारा फ्लैट नंबर 303 के सामने पहुंची तो फ्लैट के बाहर ही गैलरी में इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे खड़े मिल गए. पड़ोसी उन्हें धीरज बंधा रहे थे. महादेव बावले उन से औपचारिक बातचीत कर सहायकों के साथ फ्लैट में दाखिल हुए तो उन के साथ ज्ञानेश्वर गणोरे भी अंदर आ गए.
फ्लैट के अंदर का दृश्य काफी मार्मिक था. इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे की पत्नी दीपाली की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. हत्या जिस चाकू से की गई थी, वह लाश के पास ही पड़ा था. मृतका के शरीर पर 10-11 घाव थे, जो काफी गहरे थे. इस से लग रहा था कि हत्यारे ने पूरी ताकत से वार किए थे.
इस के अलावा पुलिस को जो खास बात देखने को मिली, वह मृतका के खून से दीवार पर लिखा एक संदेश था. संदेश के नीचे एक स्माइली भी बना था. निश्चित ही वह हत्यारे का लिखा था. संदेश में लिखा था, ‘टायर्ड औफ हर. कैच मी एंड हैंग मी’ यानी इस से थक गया था. मुझे पकड़ो और फांसी पर लटका दो. यह संदेश सभी को अटपटा और रहस्यमय लगा.
महादेव बावले सहायकों के साथ घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि मुंबई के सीपी दत्तात्रय पड़सलगीकर, जौइंट सीपी देवेन भारती, एसीपी चेरिंग दोरजे, एडीशनल सीपी अनिल कुंभारे भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम और फोरैंसिक टीम भी आई थी.
फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. इस के बाद थानाप्रभारी महादेव बावले तथा क्राइम ब्रांच की टीम को दिशानिर्देश दे कर सभी अधिकारी चले गए.
अधिकारियों के जाने के बाद महादेव बावले और क्राइम ब्रांच पुलिस ने घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के चाकू, मृतका दीपाली तथा सिद्धांत का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए विलेपार्ले कूपर अस्पताल भिजवा कर थाने आ गए.
घटनास्थल की स्थिति से स्पष्ट था कि मामला सीधासादा बिलकुल नहीं था. एक पुलिस अधिकारी की पत्नी की हत्या हो चुकी थी और बेटा गायब था. इस से यह भी अंदाजा लगाया जा रहा था कि किसी ने इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे से बदला तो नहीं लिया?
क्योंकि पुलिस अधिकारी होने के नाते उन का ऐसे तमाम अपराधियों से वास्ता पड़ा होगा, जो काफी शातिर रहे होंगे. यह काम कोई ऐसा अपराधी कर सकता था, जो उन से काफी नाराज रहा हो. उन्हें सबक सिखाने के लिए उस ने उन की पत्नी की हत्या कर बेटे का अपहरण कर लिया हो और दीवार पर संदेश लिख कर उन्हें चुनौती दी हो?
लेकिन दीवार पर लिखे संदेश के एकएक शब्द और वह स्माइली पर गंभीरता से विचार किया गया तो इस का कुछ अलग ही अर्थ निकल रहा था. यह बच्चों जैसा संदेश किसी शातिर अपराधी के दिमाग की उपज नहीं हो सकती थी. एक ओर जांच अधिकारी आपस में इस मामले को ले कर उलझे हुए थे, वहीं इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे भी अपने घर में घटी इस घटना पर गंभीरता से विचार कर रहे थे.
काफी सोचनेविचारने के बाद ज्ञानेश्वर गणोरे को अपने ही खून पर संदेह होने लगा. उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी थानाप्रभारी महादेव बावले को दे दी, क्योंकि वह अपने बेटे सिद्धांत की लिखावट से अच्छी तरह परिचित थे.
ज्ञानेश्वर गणोरे के संदेह के बाद राइटिंग एक्सपर्ट से उस संदेश की जांच कराई गई तो रिपोर्ट के अनुसार ज्ञानेश्वर गणोरे की बात सही निकली. उस के बाद सिद्धांत की तलाश शुरू हुई. इमारत और आसपास लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी निकलवा कर देखी गई. इस के बाद तो साफ हो गया कि दीपाली की हत्या किसी और ने नहीं, सिद्धांत ने ही की है. फिर तो पुलिस उस की तलाश में जीजान से जुट गई.
पुलिस को अपने सूत्रों से पता चला कि वह सूरत गया था, ज उसे राजस्थान के जोधपुर जाने वाली गाड़ी में बैठते देखा गया है. वह कहां जा रहा था, इस बात का अंदाजा नहीं लग रहा था.
पुलिस इस कोशिश में जुट गई कि वह जोधपुर से आगे न जा सके. इस के लिए वाट्सऐप द्वारा सिद्धांत का फोटो भेज कर जोधपुर के पुलिस कमिश्नर से बात की गई. उन्होंने इस मामले को जोधपुर रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित थाना उदयमंदिर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर मदनलाल नवीवाल को सौंप दिया.
मदनलाल नवीवाल ने तुरंत एक टीम गठित की, जिस में एएसआई पूनाराम, जय सिंह, सिपाही पुनीत त्यागी और विनोद शर्मा को शामिल किया. अपनी इस टीम के साथ वह सिद्धांत की गिरफ्तारी के लिए स्टेशन के आसपास लग गए.
दूसरी ओर मुंबई पुलिस भी खामोश नहीं बैठी थी. वह भी मामले पर नजर गड़ाए हुए थी. इस का नतीजा यह निकला कि मुंबई पुलिस ने सिद्धांत के ईमेल को ट्रैस कर लिया और इस बात की जानकारी थाना उदयमंदिर पुलिस को दे दी. उदयमंदिर पुलिस ने तुरंत रेलवे स्टेशन के पास स्थित होटल धूम में छापा मार कर सिद्धांत गणोरे को गिरफ्तार कर लिया.
दरअसल, सिद्धांत गणोरे जोधपुर पहुंचतेपहुंचते काफी थक चुका था. वह आराम करने के लिए धूम होटल में कमरा लेने पहुंचा तो वहां उसे आईडी की जरूरत पड़ी. इस के लिए उस ने एक नया मोबाइल फोन खरीदा और जब उस में अपना मेल लौगिन किया तो मुंबई पुलिस को उस के जोधपुर में होने की जानकारी मिल गई.
इस बात की सूचना उदयमंदिर पुलिस को दी गई तो उन्होंने उसे गिरफ्तार कर लिया. इंसपेक्टर मदनलाल नवीवाल ने सिद्धांत गणोरे से पूछताछ कर उसे थाना वाकोला पुलिस के हवाले कर दिया. थाना वाकोला पुलिस सिद्धांत गणोरे को मुंबई ले आई और उस से पूछताछ की तो दीपाली गणोरे की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.
यह सच है कि मांबाप कभी भी अपने बच्चों से न तो ईर्ष्या करते हैं और न दुर्व्यवहार. उन के डांटफटकार और मारपीट में भी उन का कोई स्वार्थ नहीं होता. वह मारतेपीटते भी हैं तो बच्चे की भलाई के लिए ही. क्योंकि वे हमेशा अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं. लेकिन अब समय काफी बदल गया है. बच्चे इलैक्ट्रौनिक युग में जी रहे हैं. वे वैसा ही सोचते हैं, जैसा घर का माहौल होता है. घर के वातावरण का बच्चों के दिमाग पर गहरा असर पड़ता है. ऐसा ही सिद्धांत गणोरे के साथ भी हुआ.
इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे महाराष्ट्र के देवलाली कैंप के जनपद भगूर के रहने वाले थे. उन के पिता खेतीकिसानी करते थे. वह गांव में ही रह कर पढ़ेलिखे. लेकिन उन के मन में कुछ करने की तमन्ना थी, यही वजह थी कि पढ़ाई पूरी होते ही वह सबइंसपेक्टर के रूप में पुलिस विभाग में भरती हो गए. वह मेहनती तो थे ही, ईमानदार भी थे, इसलिए आज वह मुंबई पुलिस में इंसपेक्टर हैं.
पुलिस की नौकरी में आने के बाद उन की शादी दीपाली से हुई थी. दीपाली एलएलबी किए थी. पति की तरह वह भी महत्त्वाकांक्षी थी. वह एक प्रतिष्ठित वकील बनना चाहती थी. इस के लिए ज्ञानेश्वर गणोरे ने बेटे सिद्धांत के जन्म के बाद उसे एलएलएम की पढ़ाई के लिए लंदन भेज दिया था. यह अलग बात है कि लंदन से लौटने के बाद दीपाली ने कुछ दिनों ही वकालत की थी.
ज्ञानेश्वर गणोरे का बेटा सिद्धांत पहले तो पढ़ने में ठीक था, लेकिन हाईस्कूल के बाद उस का दाखिला मुंबई में करवाया गया तो पता नहीं क्या हुआ कि यहां उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा. इंटर तो उस ने किसी तरह कर लिया, लेकिन कालेज के दूसरे साल में वह फेल हो गया. इस की वजह थी, घर का माहौल.
दरअसल, घर में अकसर मातापिता में लड़ाईझगड़ा होता रहता था. दीपाली को शक था कि उस के पति का किसी महिला से अफेयर है. सिद्धांत को यह पसंद नहीं था. वह मांबाप के रोजरोज के लड़ाईझगड़े से ऊब चुका था.
लेकिन मांबाप सिद्धांत को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाना चाहते थे. पर उन का यह सपना पूरा नहीं हो सका. मांबाप के प्यार से वंचित सिद्धांत की दोस्ती कालेज के कुछ आवारा युवकों से हो गई थी, जिन के साथ रह कर वह ड्रग्स लेने लगा था.
इस बात की जानकारी दीपाली और ज्ञानेश्वर गणोरे को हुई तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. दोनों सिद्धांत पर नजर रखने लगे. उस के फोन और लैपटौप के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई. इस से सिद्धांत परेशान रहने लगा.
दीपाली ने कोशिश कर के सिद्धांत का दाखिला बांद्रा के नेशनल कालेज में बीएससी में करवा दिया. वह खुद सिद्धांत को कालेज छोड़ने जाती थीं, लेकिन उन के वापस आते ही सिद्धांत अपने आवारा और नशेड़ी दोस्तों के साथ निकल जाता. घर में दीपाली उस के साथ मां की तरह नहीं, तानाशाह जैसा व्यवहार करती थीं. उस की किताबें, नोटबुक और लैपटौप चेक करती थीं.
काम पूरा न होने पर उस से तरहतरह के सवाल करतीं और ताना मारतीं. अगर ज्ञानेश्वर गणोरे बेटे का पक्ष लेते तो वह उन से भी उलझ जातीं. यह सब सिद्धांत को अच्छा नहीं लगता था.
घटना वाले दिन सिद्धांत ने मां से कुछ पैसे मांगे. दीपाली ने पैसे देने से साफ मना कर दिया. मांबेटे के बीच कहासुनी होने लगी तो ज्ञानेश्वर गणोरे दोनों को समझाबुझा कर अपनी ड्यूटी पर चले गए, लेकिन दीपाली शांत नहीं हुईं. वह सिद्धांत को अपनी मार्कशीट दिखाने को कह रही थीं, लेकिन सिद्धांत मार्कशीट दिखाता कैसे, उस ने तो परीक्षा ही नहीं दी थी. यह जान कर दीपाली को गुस्सा आ गया.
सिद्धांत को आड़ेहाथों लेते हुए उन्होंने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. दीपाली की बातें सिद्धांत के बरदाश्त से बाहर होती जा रही थीं. जब उस की सहनशक्ति समाप्त हो गई तो उस का मानसिक संतुलन बिगड़ गया. पहले तो उस ने अपने हाथों की नसें काट कर आत्महत्या करनी चाही. लेकिन अचानक उस का विचार बदल गया. आत्महत्या करने के बजाय उसे अपनी मां दीपाली की हत्या करना उचित लगा.
वह किचन में गया और सब्जी काटने वाला चाकू उठा लाया. दीपाली हाल में बैठी टीवी देख रही थीं. वह उन के पास पहुंचा और उन पर हमला कर दिया. अचानक हुए हमले से दीपाली संभल नहीं सकीं और फर्श पर लुढ़क गईं. वह चीखतीचिल्लाती रहीं, पर सिद्धांत को उस पर जरा भी दया नहीं आई. आखिर उस ने उन्हें मौत के घाट उतार कर ही दम लिया.
अपनी जन्म देने वाली मां की हत्या कर के सिद्धांत खड़ा ही हुआ था कि पिता का फोन आ गया. उस ने फोन रिसीव कर के बड़ी ही शांति से कहा कि मां फिल्म देखने गई हैं. वह देर रात तक आएंगी. वह भी बाहर जा रहा है. पिता से बात करने के बाद सिद्धांत ने चाकू मां की लाश के पास फेंका और भड़ास निकालने के लिए उस ने मां के खून से दीवार पर संदेश लिख कर उस के नीचे स्माइली बना दिया.
इस के बाद उस ने बैडरूम में रखी अलमारी में रखे 2 लाख रुपए निकाले और अपने तथा मां के फोन को बंद कर के सिम निकाल कर अपने पास रख लिया. पुलिस अधिकारी का बेटा होने के नाते उसे पता था कि मोबाइल रखना खतरे से खाली नहीं है. उस ने सोचा तो ठीक था, लेकिन पकड़ा मोबाइल फोन से ही गया.
अब तक रात के 8 बज चुके थे. उस के पिता कभी भी आ सकते थे, इसलिए अब वह वहां से निकल जाना चाहता था. घर से बाहर आ कर वह सांताकु्रज लोकल स्टेशन पहुंचा, जहां से बोरीवली गया. वहां से गुजरात एक्सप्रैस पकड़ कर सूरत और वहां से जोधपुर एक्सप्रैस से जोधपुर चला गया. जोधपुर से कहीं और जाता, उस के पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.
पूछताछ के बाद थानाप्रभारी महादेव बावले ने सिद्धांत के खिलाफ मां की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश किया, जहां से उसे आर्थर रोड जेल भेज दिया गया. सिद्धांत अपनी ही मां की हत्या के आरोप में जेल में बंद है. लेकिन उसे मां की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं है. सोचने वाली बात यह है कि अगर बेटे इस तरह क्रूर हो जाएंगे तो मांबाप की ममता का क्या होगा.