पुरानी दिल्ली स्थित जामा मसजिद के पास सड़क के किनारे दाहिनी ओर कई मध्यम दर्जे के होटल हैं, जिन में दूरदराज से जामा मसजिद देखने आए लोग ठहरते हैं. इन्हीं होटलों में एक है अलदानिश, जिस के मैनेजर सोहेल अहमद हैं. 19 नवंबर, 2016 को वह होटल के रिसेप्शन पर बैठे अपनी ड्यूटी कर रहे थे, तभी साढ़े 11 बजे एक लड़का एक लड़की के साथ उन के पास आया. दोनों काफी खुश लग रहे थे.
लड़के ने साथ आई लड़की को अपनी पत्नी बताते हुए कहा कि वह जामा मसजिद देखने आया है. उसे एक दिन के लिए एक कमरा चाहिए. सोहेल ने लड़के का नामपता पूछ कर रजिस्टर में नोट किया. उस के बाद आईडी मांगी तो उस ने जेब से अपना आधार कार्ड निकाल कर उन के सामने काउंटर पर रख दिया. आधार कार्ड उसी का था.
उस का नाम आजम और पता राजीव बस्ती, कैप्टननगर, पानीपत, हरियाणा था. इस के बाद सोहेल ने सर्विस बौय मोहम्मद मिनहाज को बुला कर आजम को कमरा नंबर 203 देखने के लिए भेज दिया.
थोड़ी देर बाद अकेले ही वापस आ कर आजम ने कहा कि कमरा उसे पसंद है. इस के बाद अन्य औपचारिकताएं पूरी कर के सोहेल ने कमरा नंबर-203 उस के नाम से बुक कर दिया. कमरे का किराया 12 सौ रुपए जमा कर के आजम वापस कमरे में चला गया. सोहेल ने रुपए और आधार कार्ड अपनी दराज में रख लिया.
करीब 2 घंटे बाद आजम मैनेजर सोहेल के पास आया और अपना आधार कार्ड मांगते हुए कहा कि उसे उस की फोटो कौपी करानी है. सोहेल ने आधार कार्ड दे दिया तो वह तेजी से बाहर निकल गया. उस के जाने के थोड़ी देर बाद मोहम्मद मिनहाज किसी काम से कमरा नंबर 203 में गया तो उस ने वहां जो देखा, सन्न रह गया.
मिनहाज भाग कर नीचे आया और मैनेजर सोहेल अहमद के पास जा कर बोला, ‘‘कमरा नंबर 203 के बाथरूम में लड़की की लाश पड़ी है. शायद उस के साथ जो आदमी आया था, उस ने उसे मार दिया है.’’ यह सुन कर सोहेल परेशान हो उठा.
उस ने तुरंत होटल के मालिक इसलामुद्दीन के बेटे दानिश को फोन कर के सारी बात बताई. दानिश होटल आने के बजाय सीधे थोड़ी दूर स्थित जामा मसजिद पुलिस चौकी पर पहुंचा और चौकीइंचार्ज मोहम्मद इनाम को सारी बात बता दी. चौकीइंचार्ज इनाम चौकी में मौजूद सिपाहियों को ले कर होटल जा पहुंचे. लाश का सरसरी तौर पर निरीक्षण करने के बाद उन्होंने हत्याकांड की सूचना थाना जामा मसजिद के थानाप्रभारी अनिल बेरीवाल को दे दी.
सूचना मिलते ही अनिल बेरीवाल पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल से ही उन्होंने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी थी. अतिरिक्त थानाप्रभारी धन सिंह सांगवान भी सूचना पा कर होटल पहुंच गए थे. थोड़ी देर में सैंट्रल डिस्ट्रिक की क्राइम टीम तथा एफएसएल टीम भी पहुंच गई थी. लाश का सिर बाथरूम में टौयलेट पौट के ऊपर तथा पैर दरवाजे की तरफ थे. गरदन पर चोट के निशान थे.
लगता था हत्या गला दबा कर की गई थी. एफएसएल टीम ने अपना काम निपटा लिया तो अनिल बेरीवाल ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जयप्रकाश नारायण अस्पताल भिजवा दिया. होटल से लौट कर पुलिस टीम ने अपराध संख्या 135/2016 पर हत्या के इस मुकदमे को अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर मामले की जांच अतिरिक्त थानाप्रभारी धन सिंह सांगवान को सौंप दी गई.
धन सिंह सांगवान ने होटल के मैनेजर सोहेल अहमद को थाने बुला कर पूछताछ की तो उस ने हत्या का शक मृतका के शौहर आजम पर जताया. आजम अपना आधार कार्ड भले ही साथ ले गया था, लेकिन उस में दर्ज उस का पता मैनेजर ने अपने रजिस्टर में लिख लिया था. उस का मोबाइल नंबर भी लिखा हुआ था.
आजम का पता धन सिंह को मिल ही गया था. उन्होंने उसे गिरफ्तार करने के लिए एक पुलिस टीम गठित की, जिस में एसआई धर्मवीर, हैडकांस्टेबल नीरज तथा कुछ अन्य लोगों को शामिल किया. अगले दिन सुबह 8 बजे वह अपनी टीम के साथ होटल के रजिस्टर में लिखे पते पर पहुंचे तो पता चला कि आजम पहले वहां एक कमरा किराए पर ले कर रहता था. लेकिन अब वह अपनी अम्मी समीना, अब्बा मोहम्मद सलीम के साथ राजीव कालोनी के मकान नंबर-1109/10 (गंदा नाला के निकट) रहता है. इस के बाद धन सिंह वहां पहुंचे तो वह घर में सोता हुआ मिल गया.
उसे जगाया गया तो दिल्ली पुलिस को देख कर उस के हाथपांव फूल गए. पुलिस पहचान के लिए अलदानिश होटल के सर्विस बौय मिनहाज को साथ ले कर आई थी. आजम को देखते ही उस ने कहा, ‘‘साहब, यही आदमी उस औरत के साथ होटल में आया था.’’ मुजरिम के पकड़े जाने से धन सिंह सांगवान ने राहत की सांस ली. आजम ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.
उस ने मृतका का नाम शबनम बताया. वह कभी उस के पड़ोस में रहने वाले अलादिया की पत्नी थी. लेकिन इस समय वह दिल्ली में रहता था. धन सिंह ने आजम से अलादिया का फोन नंबर ले कर उसे फोन किया कि उस की पत्नी दुर्घटना में घायल हो गई है, वह दिल्ली के थाना जामा मसजिद पहुंच जाए. धन सिंह आजम को ले कर दिल्ली आ गए. वह थाने पहुंचे तो मृतका का शौहर अलादिया उन का इंतजार कर रहा था. उसे जयप्रकाश नारायण अस्पताल ले जाया गया तो उस ने मृतका की लाश की शिनाख्त अपनी पत्नी शबनम के रूप में कर दी.
अगले दिन शबनम की लाश का पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि उस की मौत दम घुटने से हुई थी. आजम को अगले दिन तीसहजारी कोर्ट में पेश कर के पूछताछ के लिए एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड अवधि के दौरान आजम ने शबनम का मोबाइल (बिना सिम का), अपना मोबाइल और श्मशान घर की छत पर फेंका गया शबनम का पर्स बरामद करा दिया. पूछताछ में उस ने शबनम की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—
सोनिया उर्फ शबनम जिला शामली के गांव कुडाना के रहने वाले रामनरेश की बेटी थी. 2 बेटों पर एकलौती होने की वजह से सोनिया को कुछ ज्यादा ही लाडप्यार मिला, जिस से वह स्वच्छंद हो गई. लेकिन उस के कदम बहकते, उस के पहले ही रामनरेश ने सन 2009 में उस की शादी उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के लोनी के रहने वाले करण के साथ कर दी.
शुरूशुरू में तो सब ठीक रहा, लेकिन जब घरगृहस्थी का बोझ सोनिया पर पड़ा तो वह परेशान रहने लगी. करण की आमदनी उतनी नहीं थी, जितने उस के खर्चे थे. करण उस की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाता था. सोनिया ने देखा कि करण उस के मन की मुरादें पूरी नहीं कर पा रहा है तो जल्दी ही उस का मन उस से भर गया.
करण और सोनिया के बीच मनमुटाव रहने लगा. कोई न कोई बहाना बना कर सोनिया अकसर कुडाना आ जाती. उसी बीच बस से आनेजाने में उस की मुलाकात बस कंडक्टर अलादिया से हुई. वह गाजियाबाद का रहने वाला था. वह सोनिया की सुंदरता पर मर मिटा. उसे खुश करने के लिए अलादिया उस की हर मांग पूरी करने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि एक दिन सोनिया अलादिया के साथ भाग गई.
अलादिया सोनिया को ले कर सोनीपत पहुंचा और वहां कैप्टननगर में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. कुछ दिनों बाद अलादिया ने सोनिया के साथ निकाह कर लिया और उस का नाम शबनम रख दिया. सोनिया की इस हरकत से नाराज हो कर ससुराल वालों ने ही नहीं, मायके वालों ने भी उस से रिश्ता खत्म कर लिया.
सोनिया उर्फ शबनम अलादिया के साथ खुश थी. उसे खुश रखने के लिए अलादिया उस की हर बात मानता था और उस के सारे नाजनखरे उठाता था. चूंकि अलादिया बस कंडक्टर था, इसलिए वह सुबह घर से निकलता तो देर रात को ही घर वापस आता था. दिन भर शबनम अकेली रहती थी. उस के पड़ोस में आजम भी अकेला ही रहता था. उस के अम्मीअब्बू राजीव कालोनी में गंदा नाला के निकट रहते थे.
वह शबनम का हमउम्र था. शबनम उसे बहुत अच्छी लगती थी, इसलिए कोई न कोई बहाना बना कर वह उस से बातें करने की कोशिश करता था. वह एक कबाड़ी के यहां काम करता था, जहां से उसे 9 हजार रुपए वेतन मिलता था.
चूंकि आजम अकेला ही रहता था. इसलिए सारे पैसे खुद पर खर्च करता था. लेकिन इधर शबनम पर दिल आया तो वह उस के लिए खानेपीने की चीजें ही नहीं, गिफ्ट भी लाने लगा. फिर तो जल्दी ही दोनों के बीच अवैधसंबंध बन गए. चूंकि अलादिया दिन भर घर से बाहर रहता था, इसलिए आजम को शबनम से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी.
लेकिन इस तरह की बातें कहां छिपी रहती हैं. शबनम और आजम के संबंधों की जानकारी अलादिया को हो गई. उस ने इस बारे में शबनम से पूछा तो उस ने कहा कि कभीकभार आजम उस से मिलने घर आ जाता है, लेकिन उस से उस के संबंध ऐसे नहीं हैं, जिसे गलत कहा जा सके.
अलादिया समझ गया कि शबनम आजम से अपने अवैध संबंधों को स्वीकार तो करेगी नहीं, इसलिए उसे दोनों को चोरीछिपे पकड़ना होगा. कुछ दिनों बाद एक दिन अलादिया काम पर जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन काम पर गया नहीं. 3-4 घंटे इधरउधर समय गुजार कर वह दोपहर को अचानक घर पहुंचा तो देखा कि घर का दरवाजा अंदर से बंद है. उस ने शबनम को आवाज लगाई तो थोड़ी देर में शबनम ने दरवाजा खोला. उस समय उस के कपड़े तो अस्तव्यस्त थे ही, चेहरे का भी रंग उड़ा हुआ था.
शबनम की हालत देख कर अलादिया को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि अंदर क्या हो रहा था. वह उसी बारे में सोच रहा था कि अंदर से सिर झुकाए आजम निकला. अलादिया ने उसे रोक कर खूब खरीखोटी सुनाई और अपने घर आने पर सख्त पाबंदी लगा दी. कुछ कहे बगैर आजम चुपचाप चला गया.
उस के जाने के बाद अलादिया ने शबनम की जम कर खबर ली. शबनम ने माफी मांगते हुए फिर कभी आजम से न मिलने की कसम खाई. इस के बाद कुछ दिनों तक तो शबनम आजम से दूरी बनाए रही, लेकिन जब उस ने देखा कि अलादिया को उस पर विश्वास हो गया है तो वह फिर लोगों की नजरें बचा कर आजम से घर से बाहर मिलने लगी.
आजम शबनम को फोन कर के कहीं बाहर बुला लेता और वहीं दोनों तन की प्यास बुझा कर घर वापस लौट आते. शबनम को खुश करने के लिए आजम उस की हर मांग पूरी करता था. आजम और शबनम भले ही चोरीछिपे घर से बाहर मिलते थे, लेकिन अलादिया को उन की मुलाकातों का पता चल ही जाता था.
परेशान हो कर अलादिया शबनम के साथ पानीपत छोड़ कर दिल्ली आ गया और बदरपुर में किराए क कमरा ले कर रहने लगा. उस का सोचना था कि इतनी दूर आ कर शबनम और आजम का मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा. लेकिन उन के बीच संबंध उसी तरह बने रहे. मोबाइल द्वारा दोनों के बीच बातचीत होती ही रहती थी.
मौका मिलते ही शबनम आजम को फोन कर देती थी और जहां दोनों को मिलना होता था, आजम वहां आ जाता था. इस के बाद किसी होटल में कमरा ले कर दोनों मिल लेते थे. शबनम जब भी आजम से मिलने आती थी, वह उस के लिए कोई न कोई गिफ्ट ले कर आता था, उसे नकद रुपए भी देता था.
19 नवंबर को शबनम ने फोन कर के आजम को दिल्ली के महाराणा प्रताप बसअड्डे पर बुलाया. आजम पानीपत से चल कर करीब 10 बजे बसअड्डे पर पहुंचा तो शबनम उसे वहां इंतजार करती मिली. वहां से दोनों जामा मस्जिद के पास स्थित होटल अलदानिश पहुंचे और मौजमस्ती के लिए किराए पर कमरा ले लिया. पहले दोनों ने जी भरकर मौजमस्ती की. उस के बाद दोनों बातें करने लगे.
शबनम ने आजम से 10 हजार रुपए मांगे. आजम ने कहा कि इस समय उस के पास इतने रुपए नहीं हैं तो शबनम को गुस्सा आ गया और उस ने आव देखा न ताव, एक करारा थप्पड़ आजम के गाल पर जड़ दिया. शबनम के हाथ से थप्पड़ खा कर आजम को भी गुस्सा आ गया. शबनम की इस हरकत का बदला लेने के लिए आगेपीछे की सोचे बगैर आजम कूद कर उस के सीने पर सवार हो गया और दोनों हाथों से गला पकड़ कर दबा दिया. पलभर में ही शबनम ने दम तोड़ दिया.
शबनम की हत्या करने के बाद आजम ने लाश को उठाया और उसे बाथरूम की फर्श पर लिटा कर उस का पर्स और मोबाइल फोन ले कर होटल के रिसैप्शन पर पहुंचा. वहां बैठे होटल के मैनेजर सोहेल अहमद से अपना आधार कार्ड फोटोस्टेट कराने के बहाने ले कर वह फरार हो गया.
बसअड्डे से उस ने पानीपत जाने वाली बस पकड़ी और अपने घर पहुंच गया. थोड़ी देर बाद उस ने शबनम का खाली पर्स कालोनी में बने श्मशान घर की छत पर फेंक दिया. शबनम के मोबाइल फोन से उस का सिम निकाल कर बाहर फेंक दिया और मोबाइल फोन अपने पास रख लिया. उस ने सोचा था कि पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी, लेकिन घटना के अगले ही दिन दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
23 नवंबर को रिमांड की अवधि समाप्त होने पर उसे फिर से तीसहजारी कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित