प्राणों की प्यारी अब प्राणों की प्यासी हो चली हैं. शादी के बाद बहुत सी लड़कियां घरेलू हिंसा डीवी ऐक्ट 2005 के ब्रह्मास्त्र से लैस हो कर अपनी ससुराल पहुंचने लगी हैं. 498 की धारा का गुणगान आज तकरीबन हर लड़की वाला करता है और लड़के वाले चुप रहते हैं, उदास भी.
जहां वर पक्ष सीधासरल होता है, लड़के वाले शरीफ होते हैं, वहां लड़के के सीधेपन को तेज लड़की कई तरह से अस्त्र बना कर हालात को अपने हक में मोड़ लेती है.
कुछ लड़कियां जिन के मायके में अफेयर होते हैं, वे ससुराल में एक पल भी नहीं रहना चाहती हैं और बिना वजह ससुराल वालों को घरेलू हिंसा व दहेज को ले कर सताने का इलजाम लगा कर अपने मायके की राह पकड़ लेती हैं.
कुछ लड़कियों को मां के बिना रहना नहीं भाता. मां के संग सोने वाली लड़कियां हर चौथे दिन मायके चली जाती हैं. वे हनीमून मना कर मायके लौटे जाती हैं. उन का शादी के प्रति इतना ही शौक होता है जो 1-2 बार ससुराल आ कर पूरा हो जाता है.
बहुत सी लड़कियां अपने मायके के पड़ोस से इतनी रमी होती हैं कि ससुराल का माहौल उन्हें अकेलापन ही देता है. वे किसी भी हालात में मायके की ओर दौड़ लगाती हैं. उन्हें ससुराल या पति से कभी कोई मोह नहीं होता.
कुसुम शादी ही नहीं करना चाहती थी. वजह, उसे अपने भाई के बेटे रिंकू से लगाव था. शादी में देरी हो चुकी थी और कुसुम पूरी तरह से भतीजे की मां बन गई थी.
भाई ने कुसुम के इसी सम्मोहन का फायदा उठा कर उसे उस के पति के खिलाफ कर के हमेशा के लिए उस की गृहस्थी तोड़ दी.
महज 7 महीने के छोटे से वैवाहिक जीवन में कुसुम ने 14-15 बार मायके की ओर दौड़ लगाई थी. जब वह ससुराल में होती थी तो उस की मां रातदिन अपने नाती रिंकू के रोने की बात फोन पर बता कर उस को ससुराल में नहीं रहने देती थी. कुसुम को उस की मां हमेशा अपनी तबीयत का दुखड़ा बता कर बुलाती थी. कुसुम की गोद में रिंकू को डाल कर वह उस का भावनात्मक शोषण करती थी.
इस तरह से मां ने एक पल भी कुसुम को ससुराल में चैन से अपने पति विनीत के साथ नहीं रहने दिया. इस से विनीत डिप्रैशन में चले गया तो मां ने नई चाल चली. वह कुसुम को सिखाने लगी कि तेरा आदमी नामर्द है, उसे छोड़ दे.
इसी बीच विनीत की मां ने कुसुम की मां को उस का घर मरम्मत कराने के लिए कुछ पैसा दे दिया. रिश्तों के बीच पैसा आते ही नए रिश्ते में खटास आ गई.
कुसुम का भाई विमल जुआ खेलता था. वह हर महीने विनीत के सीधेपन का फायदा उठा कर उस की मां से पैसे की मांग करता था. वैसे तो लड़के वाले मांग करते हैं, पर यहां विनीत की मां से कुसुम का भाई पैसे की डिमांड करने लगा था.
आखिर में हार कर विनीत की मां ने पैसे की डिमांड बाबत विमल के खिलाफ शिकायत कर दी तो विमल ने कुसुम को मायके बुला लिया और विनीत व उस के मांबाप पर फर्जी डीवी ऐक्ट लगा कर उन का जीना दूभर कर दिया.
खुद ही पैसा दे कर अपने ऊपर लगाए गए इस झूठे इलजाम का तोड़ विनीत की मां इसलिए नहीं ढूंढ़ पा रही थीं कि बिना लिखापढ़ी किए उन्होंने बहू के मायके वालों को रुपए दे दिए थे. अब वे घरेलू हिंसा के फर्जी मामले में फंसी हैं. कोर्ट हमेशा लड़की की बात सुनती है. लड़के वालों को कुसूरवार समझा जाता है. इन्हीं बातों व कानून का फायदा उठा कर कुसुम का जुआरी भाई अब ठहाके लगा रहा है.
इस तरह की बातों से आज कितने ही परिवार बस नहीं पा रहे हैं. लड़की के लालची भाइयों की नजर अब बहन की ससुराल की जायदाद पर टिकी होती है. जो सीधेसादे ससुराल वाले होते हैं उन को लड़की के भाई ब्लैकमेल कर लेते हैं.
इसी तरह ग्वालियर का एक परिवार भी तब सांसत में आ गया था जब बहू ने अपने पति से कहा कि वह सासससुर से अलग रहेगी. बेचारा मनीष मांबाप पर ही निर्भर था और उन का लाड़ला भी था.
नई बीवी ने मनीष पर जब ज्यादा दबाव बनाया तो वह कुछ भी नहीं कर सका. बीवी मायके जा कर रहने लगी और पति व सासससुर पर दहेज के नाम पर सताने का मामला दायर कर दिया.
बेचारे मांबाप की जान सांसत में देख कर मनीष ने एक सुसाइड नोट लिखा और अपनी जान दे दी. वह खुदकुशी कर के अपनी छोटी सी वैवाहिक जिंदगी का अंत कर गया. उसे लगा कि उस की पत्नी को उस में या उस के मातापिता में कोई दिलचस्पी नहीं है. वे लोग कब तक उस की पत्नी को मनाएंगे.
एक तरफ तो मातापिता का प्यार, दूसरी तरफ नई बीवी का हठ, तीसरी तरफ 498 की हिटलरशाही धारा, जिस से निकलने की राह सीधेसादे मनीष को नहीं सूझी और उस ने अपनी जिंदगी खत्म कर के ऐसी शादी व कानूनी आतंक को विराम दे दिया जिस में फंसने के बाद बाहर निकलने की राह उस मासूम लड़के के पास नहीं थी.