15 जून, 2017 की रात 10 बजे रिटायर्ड एएसआई मदनलाल अपने घर वालों से यह कह कर मोटरसाइकिल ले निकले थे कि दरवाजा बंद कर लें, वह थोड़ी देर में वापस आ रहे हैं. लेकिन वह गए तो लौट कर नहीं आए. उन के वापस न आने से घर वालों को चिंता हुई. 65 वर्षीय मदनलाल पंजाब के जिला होशियारपुर राज्यमार्ग पर शामचौरासी-पंडोरी लिंक रोड पर स्थित थाना बुल्लेवाल के गांव लंबेकाने के रहने वाले थे.
मदनलाल सीआईएसएफ से लगभग 5 साल पहले रिटायर हुए थे. उन्हें पेंशन के रूप में एक मोटी रकम तो मिलती ही थी, इस के अलावा उन के 3 बेटे विदेश में रह कर कमा रहे थे. इसलिए उन की गिनती गांव के संपन्न लोगों में होती थी. उन के पास खेती की भी 8 किल्ला जमीन थी.
मदनलाल के परिवार में पत्नी निर्मल कौर के अलावा 3 बेटे दीपक सिंह उर्फ राजू, प्रिंसपाल सिंह, संदीप सिंह और एक बेटी थी, जो बीए फाइनल ईयर में पढ़ रही थी. दीपक और प्रिंसपाल कुवैत में रहते थे, जबकि संदीप ग्रीस में रहता था. उन के चारों बच्चों में से अभी एक की भी शादी नहीं हुई थी. बेटे कमा ही रहे थे, इसलिए मदनलाल को अब जरा भी चिंता नहीं थी.
मदनलाल सुबह जल्दी और रात में अपने खेतों का चक्कर जरूर लगाते थे. उस दिन भी 10 बजे वह अपने खेतों का चक्कर लगाने गए थे, लेकिन लौट कर नहीं आए थे. उन का बेटा दीपक एक सप्ताह पहले ही 8 जून को एक महीने की छुट्टी ले कर घर आया था.
सुबह जब दीपक को पिता के रात को घर न लौटने की जानकारी हुई तो वह मां निर्मल कौर के साथ उन की तलाश में खेतों पर पहुंचा. दरअसल उन्हें चिंता इस बात की थी कि रात में पिता कहीं मोटरसाइकिल से गिर न गए हों और उठ न पाने की वजह से वहीं पड़े हों.
खेतों पर काम करने वाले मजदूरों ने जब बताया कि वह रात को खेतों पर आए ही नहीं थे तो मांबेटे परेशान हो गए. वे सोचने लगे कि अगर मदनलाल खेतों पर नहीं गए तो फिर गए कहां निर्मल कौर कुछ ज्यादा ही परेशान थीं. दीपक ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘मां, तुम बेकार ही परेशान हो रही हो. तुम्हें तो पता ही है कि वह अपनी मरजी के मालिक हैं. हो सकता है, किसी दोस्त के यहां या फिर बगल वाले गांव में चाचाजी के यहां चले गए हों ’’
जबकि सच्चाई यह थी कि दीपक खुद भी पिता के लिए परेशान था. जब खेतों पर मदनलाल के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वह मां के साथ घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में उसे बगल के गांव में रहने वाले चाचा ओंकार सिंह और हरदीप मिल गए. उन के मिलने से पता चला कि मदनलाल उन के यहां भी नहीं गए थे. सभी मदनलाल के बारे में पता करते हुए शामचौरासी-पंडोरी फांगुडि़या लिंक रोड के पास पहुंचे तो वहां उन्होंने एक जगह भीड़ लगी देखी. सभी सोच रहे थे कि आखिर वहां क्यों लगी है, तभी किसी ने आ कर बताया कि वहां सड़क पर मदनलाल की लाश पड़ी है. यह पता चलते ही सभी भाग कर वहां पहुंचे. सचमुच वहां खून से लथपथ मदनलाल की लाश पड़ी थी. लाश देख कर सभी सन्न रह गए. मदनलाल के सिर, गरदन, दोनों टांगों और बाजू पर तेजधार हथियार के गहरे घाव थे.
इस घटना की सूचना तुरंत थाना बुल्लेवाल पुलिस को दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुखविंदर सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. भीड़ को किनारे कर के उन्होंने लाश का मुआयना किया. इस के बाद अधिकारियों को घटना की सूचना दे कर क्राइम टीम और एंबुलेंस बुलवा ली. उन्हीं की सूचना पर डीएसपी स्पैशल ब्रांच हरजिंदर सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे.
मामला एक रिटायर एएसआई की हत्या का था, इसलिए एसपी अमरीक सिंह भी आ पहुंचे थे. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर दिशानिर्देश दे कर पुलिस अधिकारी चले गए. मृतक मदनलाल का परिवार मौके पर मौजूद था, इसलिए सुखविंदर सिंह ने उन की पत्नी निर्मल कौर और बेटे दीपक से पूछताछ की. इस के बाद निर्मल कौर के बयान के आधार पर मदनलाल की हत्या का मुकदमा अपराध संख्या 80/2017 पर अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.
मृतक मदनलाल की पत्नी और बेटे दीपक ने शुरुआती पूछताछ में जो बताया था, उस से हत्यारों तक बिलकुल नहीं पहुंचा जा सकता था. पूछताछ में पता चला था कि मदनलाल की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. गांव वाले उन का काफी सम्मान करते थे. इस की वजह यह थी कि वह हर किसी की परेशानी में खड़े रहते थे. अब तक मिली जानकारी में पुलिस को कोई ऐसी वजह नजर नहीं आ रही थी कि कोई उन की हत्या करता.
इस मामले में लूट की भी कोई संभावना नहीं थी. वह घर में पहनने वाले कपड़ों में थे और मोटरसाइकिल भी लाश के पास ही पड़ी मिली थी. गांव वालों से भी पूछताछ में सुखविंदर सिंह के हाथ कोई सुराग नहीं लगा. घर वालों ने जो बता दिया था, उस से अधिक कुछ बताने को तैयार नहीं थे.
चूंकि यह एक पुलिस वाले की हत्या का मामला था, इसलिए इस मामले पर एसएसपी हरचरण सिंह की भी नजर थी. 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब कोई नतीजा सामने नहीं आया तो उन्होंने डीएसपी हरजिंदर सिंह के नेतृत्व में एक स्पैशल टीम का गठन कर दिया, जिस में थानाप्रभारी सुखविंदर सिंह के अलावा सीआईए स्टाफ इंचार्ज सतनाम सिंह को भी शामिल किया था.
टीम ने नए एंगल से जांच शुरू की. सुखविंदर सिंह ने अपने मुखबिरों को मदनलाल के घरपरिवार के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया था. इस के अलावा मदनलाल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, तलवार जैसे किसी हथियार से गले पर लगे घाव की वजह से सांस नली कट गई थी, जिस से उन की मौत हो गई थी. इस के अलावा शरीर पर 8 अन्य गंभीर घाव थे. पोस्टमार्टम के बाद लाश मिलते ही घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया था.
मुखबिरों से सुखविंदर सिंह को जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. मुखबिरों के बताए अनुसार, मृतक के घर में हर समय क्लेश रहता था. घरपरिवार में जैसा माहौल होना चाहिए था, मृतक के घरपरिवार में बिलकुल नहीं था. ऐसा एक भी दिन नहीं होता था, जिस दिन पतिपत्नी में मारपीट न होती रही हो. मदनलाल पत्नी ही नहीं, जवान बेटी को भी लगभग रोज मारतापीटता था.
सुखविंदर सिंह ने सारी बातें एसएसपी और एसपी को बता कर आगे के लिए दिशानिर्देश मांगे. अधिकारियों के ही निर्देश पर सुखविंदर सिंह और सीआईए स्टाफ इंचार्ज सतनाम सिंह ने गांव जा कर मृतक के घर वालों से एक बार फिर अलगअलग पूछताछ की. घर वालों ने इन बातों को झूठा बता कर ऐसेऐसे किस्से सुनाए कि पूछताछ करने गए सुखविंदर सिंह और सतनाम सिंह को यही लगा कि शायद मुखबिर को ही झूठी खबर मिली है.
लेकिन मदनलाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स आई तो निराश हो चुकी पुलिस को आशा की एक किरण दिखाई दी. काल डिटेल्स के अनुसार, 15 जून की रात पौने 10 बजे मदनलाल को उन के बेटे दीपक ने फोन किया था. जबकि दीपक ने पूछताछ में ऐसी कोई बात नहीं बताई थी. इस का मतलब था कि घर वालों ने झूठ बोला था और वे कोई बात छिपाने की कोशिश कर रहे थे.
एसएसपी और एसपी से निर्देश ले कर सुखविंदर सिंह और सतनाम सिंह ने डीएसपी हरजिंदर सिंह की उपस्थिति में मदनलाल के पूरे परिवार को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. तीनों से अलगअलग पूछताछ शुरू हुई. दीपक से जब पिता को फोन करने के बारे में पूछा गया तो उस ने साफ मना करते हुए कहा, ‘‘सर, आप लोगों को गलतफहमी हो रही है. उस रात मैं घर पर ही नहीं था. एक जरूरी काम से मैं होशियारपुर गया हुआ था. अगर मैं गांव में होता तो पापा को खेतों पर जाने ही न देता.’’
‘‘हम वह सब नहीं पूछ रहे हैं, जो तुम हमें बता रहे हो. मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम ने उस रात अपने पिता को फोन किया था या नहीं ’’ सुखविंदर सिंह ने पूछा.
‘‘आप भी कमाल करते हैं साहब, मेरे पापा की हत्या हुई है और आप कातिलों को पकड़ने के बजाय हमें ही थाने बुला कर परेशान कर रहे हैं.’’ दीपक ने खड़े होते हुए कहा, ‘‘अब मैं आप के किसी भी सवाल का जवाब देना उचित नहीं समझता. मैं अपनी मां और बहन को ले कर घर जा रहा हूं. कल मैं आप लोगों की शिकायत एसपी साहब से करूंगा. आप ने मुझे समझ क्या रखा है. मैं भी एक पुलिस अधिकारी का बेटा और एनआरआई हूं.’’
दीपक की धमकी सुन कर एकबारगी तो पुलिस अधिकारी खामोश रह गए. लेकिन डीएसपी साहब ने इशारा किया तो दीपक को अलग ले जा कर थोड़ी सख्ती से पूछताछ की गई. फिर तो उस ने जो बताया, सुन कर पुलिस अधिकारी हैरान रह गए. पता चला, घर वालों ने ही सुपारी दे कर मदनलाल की हत्या करवाई थी, जिस में मदनलाल की निर्मल कौर ही नहीं, विदेश में रह रहे उस के दोनों बेटे भी शामिल थे. इस तरह 72 घंटे में इस केस का खुलासा हो गया.
पुलिस ने दीपक और उस की मां निर्मल कौर को हिरासत में ले लिया. अगले दिन दोनों को अदालत में पेश कर के विस्तार से पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान सब से पहले दीपक की निशानदेही पर इस हत्याकांड में शामिल 2 अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए छापा मारा गया.
इस छापेमारी में अहिराना कला-मोहितयाना निवासी सतपाल के बेटे सुखदीप को तो गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन दूसरा अभियुक्त सोहनलाल का बेटा रछपाल फरार हो गया. तीनों अभियुक्तों से पूछताछ में मदनलाल की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—
यह बात सही थी कि मदनलाल का परिवार रुपएपैसे से काफी सुखी था, लेकिन यह बात भी सही है कि रुपएपैसे से इंसान को वह सुख नहीं मिलता, जिस के लिए वह जीवन भर भागता रहता है. ऐसा ही कुछ मदनलाल के घर भी था. 5 साल पहले रिटायर हो कर वह अपने घर आए तो 2 साल तो बहुत अच्छे से गुजरे. घर का माहौल भी काफी अच्छा रहा.
लेकिन अचानक न जाने क्या हुआ कि मदनलाल डिप्रेशन में रहने लगे. धीरेधीरे उन की यह बीमारी बढ़ती गई. फिर एक समय ऐसा आ गया, जब छोटीछोटी बातों पर वह उत्तेजित हो उठते और आपे से बाहर हो कर घर वालों से मारपीट करने लगते. इस में हैरानी वाली बात यह थी कि मदनलाल का यह व्यवहार केवल घर वालों तक ही सीमित था. बाहर वालों के साथ उन का व्यवहार सामान्य रहता था.
बेटे जब भी छुट्टी पर आते, पिता को समझाते. उन के रहने तक तो वह ठीक रहते, उन के जाते ही वह पहले की ही तरह व्यवहार करने लगते. मदनलाल लगभग रोज ही पत्नी और बेटी के साथ मारपीट तो करते ही थे, इस से भी ज्यादा परेशानी की बात यह थी कि वह उन्हें घर से भी निकाल देते थे. ऐसे में निर्मल कौर अपनी जवान बेटी को ले कर डरीसहमी रात में किसी के घर छिपी रहती थीं.
अपनी परेशानी निर्मल कौर फोन द्वारा बेटों को बताती रहती थीं. पिता के इस व्यवहार से विदेश में रह रहे बेटे भी परेशान रहते थे. कभीकभी की बात होती तो बरदाश्त भी की जा सकती थी, लेकिन लगभग 3 सालों से यही सिलसिला चला रहा था.
पिता सुधर जाएंगे, तीनों बेटे इस बात का इंतजार करते रहे. लेकिन सुधरने के बजाय वह दिनोंदिन बिगड़ते ही जा रहे थे. घर से हजारों मील दूर बैठे बेटे हर समय मां और बहन के लिए परेशान रहते थे. आखिर जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो तीनों भाइयों ने मिल कर एक खतरनाक योजना बना डाली. यह योजना थी पिता के वजूद को ही खत्म करने की.
इस योजना में निर्मल कौर भी शामिल थी. हां, बेटी जरूर मना करती रही थी, पर उसे सभी ने यह कह कर चुप करा दिया कि वह पराया धन है, उसे आज नहीं तो कल इस घर से चली जाना है. वे सब कब तक इस तरह घुटघुट कर जीते रहेंगे कल शादियां होने पर उन की पत्नियां आएंगी, तब वे क्या करेंगे.
भाइयों का भी कहना अपनी जगह ठीक था, इसलिए बहन खामोश रह गई. अब जो करना था, दीपक और निर्मल कौर को करना था. योजना के अनुसार, 9 जून, 2017 को दीपक कुवैत से घर आ गया. घर आते ही वह अपने दोस्तों सुखदीप सिंह और रछपाल से मिला और उन्हें पिता को रास्ते से हटाने की सुपारी 2 लाख रुपए में दे दी, साथ ही यह भी वादा किया कि वह उन्हें कुवैत में सैटल करा देगा.
इस के बाद दीपक के भाई प्रिंसपाल ने कुवैत से दीपक के खाते में डेढ़ लाख रुपए भेज दिए, जिस में से दीपक ने 1 लाख रुपए सुखदीप और रछपाल को दे दिए. बाकी पैसा उस ने काम होने के बाद देने को कहा.
दीपक के दोस्तों में सुखदीप तो सीधासादा युवक था, लेकिन रछपाल पेशेवर अपराधी था. उस पर सन 2011 से दोहरे हत्याकांड का केस चल रहा है. वह इन दिनों पैरोल पर जेल से बाहर आया हुआ था.
योजना के अनुसार, 15 जून की रात 9 बजे दीपक, सुखदीप और रछपाल शामचौरासी-पंडोरी रोड पर इकट्ठा हुए. वहीं से दीपक ने मदनलाल को फोन किया, ‘‘पापाजी, मेरी गाड़ी पंडोरी के पास खराब हो गई है. आप अपनी मोटरसाइकिल ले कर आ जाइए तो मैं आप के साथ आराम से चला चलूं.’’
मदनलाल किसी समस्या की वजह से मानसिक बीमारी से जरूर परेशान थे, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं था या वह अपना भलाबुरा नहीं समझते था. वह सिर्फ निर्मल कौर को ही देख कर उत्तेजित होते थे. वह ऐसा क्यों करते थे, इस बात को जानने की कभी किसी ने कोशिश नहीं की.
बहरहाल, दीपक का फोन आने के बाद मदनलाल ने कहा कि वह चिंता न करे, मोटरसाइकिल ले कर वह पहुंच रहे हैं. जबकि उस दिन उन की तबीयत ठीक नहीं थी और वह खेतों पर भी नहीं जाना चाहते थे. पर बेटे की परेशानी सुन कर उन्होंने मोटरसाइकिल उठाई और दीपक की बताई जगह पर पहुंच गए.
दीपक, रछपाल और सुखदीप तलवारें लिए वहां छिपे बैठे थे. मदनलाल के पहुंचते ही तीनों उन पर इस तरह टूट पड़े कि उन्हें संभलने का मौका ही नहीं मिला. पलभर में ही मदनलाल सड़क पर गिर कर हमेशा के लिए शांत हो गए. इस तरह बेटे के हाथों मानसिक रूप से बीमार पिता का अंत हो गया.
मदनलाल की हत्या कर सभी अपनेअपने घर चले गए. अगले दिन दीपक ने मां के साथ मिल कर पिता को खोजने का नाटक शुरू किया. लेकिन उस का यह नाटक जल्दी ही पुलिस ने पकड़ लिया.
पुलिस ने दीपक और सुखदीप की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तलवारें बरामद कर ली थीं. निर्मल कौर और उस के कुवैत में रहने वाले बेटे प्रिंसपाल सिंह पर भी पुलिस ने धारा 120 लगाई है. रिमांड खत्म होने पर पुलिस ने निर्मल कौर, दीपक तथा सुखदीप को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. तीसरा अभियुक्त रछपाल सिंह अभी पुलिस की पहुंच से दूर है. पुलिस उस की तलाश कर रही है.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित