अजमेर छावनी बोर्ड के पार्षद रह चुके 70 वर्षीय सवाई सिंह अपने बेटे की शादी का निमंत्रण देने के लिए 7 जनवरी, 2023 को बंसेली गांव स्थित युवराज फोर्ट रिजार्ट गए थे. उस समय दिन का करीब एक बज चुका था. वहां उन के दोस्त राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ के पूर्व अध्यक्ष दिनेश तिवाड़ी (68) और खलील पुष्कर मौजूद थे.
तीनों एकदूसरे का हालसमाचार लेते हुए शादी के बारे में बातें कर रहे थे. सवाई सिंह के बेटे की 16 जनवरी को शादी थी. उस वक्त सब कुछ सामान्य था. चारों हलकेफुलके माहौल में परिवार समाज के साथसाथ प्रदेश, देश की राजनीति की भी चर्चा कर रहे थे. कुछ समय में ही अचानक कुछ बदमाश रिजार्ट में घुस आए और उन पर दनादन फायरिंग शुरू कर दी.
उन के निशाने पर कौन थे, कौन नहीं समझना मुश्किल था. तभी एक गोली सवाई सिंह के सिर में जा धंसी और वह वहीं गिर गए. उस धुआंधार फायरिंग में दिनेश तिवाड़ी को भी गोली लग गई. गोली चलने की आवाज सुन कर रिजार्ट के कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी दौड़ते हुए उस ओर आ गए.
हमलावर उन्हें देख कर भागने लगे. वे 3 की संख्या में थे. उन में से 2 भागने में सफल हो गए, जबकि एक मौके पर ही दबोच लिया गया.
संयोग से खलील को गोली नहीं लगी थी, जबकि सवाई सिंह पूरी तरह से बेसुध जमीन पर गिरे हुए थे. उन के सिर से काफी खून रिस कर जमीन पर फैल गया था. तिवाड़ी भी पेट पकड़े वहीं जमीन पर गिरे हुए थे, किंतु वह होश में थे. सभी घायलों को तुरंत जेएलएन अस्पताल ले जाया गया.
साथ ही दिनदहाड़े हुई इस वारदात की सूचना भी पुष्कर थाने को दे दी गई. एसएचओ डा. रवीश सामरिया सूचना पाते ही दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां दबोचे गए एक आरोपी सूर्य प्रताप सिंह को हिरासत में ले लिया और आगे की तहकीकात के लिए एसएचओ अस्पताल जा पहुंचे.
तब तक घायलों में सवाई सिंह को डाक्टर मृत घोषित कर चुके थे, जबकि दिनेश तिवाड़ी का इलाज चल रहा था. वह होश में थे. गोली उन के पेट में लगी थी. उन के बयानों के आधार पर सूर्य प्रताप सिंह, धर्म प्रताप सिंह और अन्य एक अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.
पूर्व पार्षद सवाई सिंह की मौत की खबर कुछ मिनटों में ही पूरे शहर में फैल गई. स्थानीय नेता और उन के परिवार के लोग भागेभागे अस्पताल पहुंच गए. इस वारदात के बारे में सीओ छवि शर्मा, अजमेर के एसपी चूनाराम जाट, एएसपी वैभव शर्मा, प्रशिक्षु आईपीएस सुमित मेहरड़ा समेत गंज के एसएचओ महावीर प्रसाद ने भी घटनास्थल और अस्पताल आ कर मामले का जायजा लिया. पुलिस को शुरुआती जानकारी घायल दिनेश तिवाड़ी से मिल गई थी.
घटनास्थल पर मौजूद खलील ने भी हमले से संबंधित कई जानकारियां दीं. उन्होंने बताया कि सभी रिजार्ट के स्विमिंग पूल के पास बैठे चाय पी रहे थे. तभी 3 युवक हथियार ले कर अचानक वहां आ धमके थे. उन से कोई पूछताछ होती, इस का उन्होंने मौका ही नहीं दिया.
उन के बयान लेने के बाद सवाई सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उसी रोज पोस्टमार्टम हो जाने के बाद शव परिजनों को भी सौंप दिया गया.
इस घटना में मारे गए सवाई सिंह इलाके के एक बहुचर्चित शख्स थे. वह 1990 के दशक में अजमेर छावनी बोर्ड के पार्षद थे. अपने दोस्त दिनेश तिवाड़ी को बेटे की शादी का कार्ड देने के लिए पुष्कर गए हुए थे. वहीं उन पर जानलेवा हमला हुआ था और उन की मौत हो गई थी.
वारदात की जांचपड़ताल के दरम्यान पुलिस को अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी, क्योंकि तीनों हमलावार पकड़े जा चुके थे, जिन में एक व्यक्ति हमले के बाद चिल्लाने लगा था, ‘‘मैं ने पिता की मौत का बदला ले लिया… आज मेरी कसम पूरी हुई.’’
जांच अधिकारी के सामने हमलावर सूर्यप्रताप सिंह खुद सब कुछ बताने को तैयार था कि उस ने सवाई सिंह को गोली क्यों मारी.
दरअसल, उस ने 30 साल पहले अपने पिता की हत्या का बदला लिया था. उस के पिता मदन सिंह एक स्थानीय पत्रकार थे, जिन की हत्या कर दी गई थी, उस वक्त वह बच्चा था.
इस तरह पुराने हत्याकांड की उलझी हुई गुत्थी भी इस से जुड़ गई थी, जिस के मुख्य आरोपी सवाई सिंह थे, किंतु वह दूसरे आरोपियों की तरह बरी कर दिए गए थे. उस हत्याकांड की कहानी से जुड़ी इस वारदात की कहानी इस प्रकार सामने आई—
बात अप्रैल-मई 1992 के महीने की है. उन दिनों अजमेर शहर में एक सैक्स स्कैंडल की चर्चा लोगों की जुबान पर थी. इस स्कैंडल में 100 से अधिक छात्राओं के साथ ब्लैकमेलिंग की चर्चा अखबारों की सुर्खियां बन गई थीं. वे अजमेर के एक नामी गर्ल्स हौस्टल की छात्राएं थीं, जो राजस्थान और दूसरे पड़ोसी प्रदेशों के विभिन्न इलाकों से आई थीं.
यौन शोषण की शिकार कुछ लड़कियां अपनी आपबीती पुलिस को भी सुना चुकी थीं. उस स्कैंडल में लिप्त लोगों के गिरेबान तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच पा रहे थे. इस मामले पर कुछ स्थानीय पत्रकार और अखबार भी नजर गड़ाए हुए थे. उन्हीं में एक पत्रकार मदन सिंह भी थे. वह एक स्थानीय अखबार ‘लहरों की बरखा’ के संपादक थे.
मदन सिंह ने इस अखबार में छात्राओं के सैक्स स्कैंडल की सीरीज छापनी शुरू कर दी थी. हर सीरीज में पुलिस, प्रशासन और दूसरे सफेदपोश राजनेताओं के इस में शामिल होने का खुलासा किया जाने लगा था. इस तरह की सीरीज 2-4 ही नहीं, बल्कि सितंबर 1992 के पहले सप्ताह तक कुल 76 सीरीज छापी गई थीं.
यह आखिरी सीरीज साबित हुई. कारण 4 सितंबर, 1992 को संपादक मदन सिंह पर रात के 10 बजे हमलावरों ने गोलियों की बौछार कर दी थी. उस वक्त वह अपने स्कूटर में पैट्रोल भरवाने घर से निकले ही थे. हमलावर श्रीनगर रोड पर अंबेसडर कार में सवार थे. हमले से घायल होने पर मदन सिंह ने बचाव के लिए पास के नाले में छलांग लगा दी थी, हमलावर उन्हें मरा समझ फरार हो गए थे. उन्हें जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में भरती करवाया गया.
मदन सिंह को बचा लिया गया था. कई दिनों तक उन का इलाज चलता रहा. वे धीरेधीरे स्वस्थ हो रहे थे. तभी 11 सितंबर को अस्पताल के वार्ड में ही रात के अंधेरे में मौका देख कर हथियारों से लैस 4-5 हमलावर फिर आ धमके. वे कंबल से अपना चेहरा ढंके हुए थे.
आते ही उन्होंने सो रहे मदन सिंह पर फायरिंग कर दी और फरार हो गए. इस हमले में उन्हें 5 गोलियां लगी थीं. तब उन्हें बचाया नहीं जा सका. उन की 3 दिन बाद ही मौत हो गई.
इस हमले की एकमात्र चश्मदीद उन की मां घीसी कंवर थीं. उन की रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस के पूर्व विधायक डा. राजकुमार जायसवाल, पूर्व पार्षद सवाई सिंह, नरेंद्र सिंह समेत अन्य लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया गया था.
मामला एक पत्रकार की हत्या का था, इस कारण पुलिस और प्रशासन पर काफी दबाव था. फिर भी आरोपी पकड़े जाने के बावजूद तुरंत जमानत पर छूटते रहे. जिन की अदालत में पेशी हुई और सबूत के अभाव में वे बरी होते चले गए.
मदन सिंह के परिवार में उन की पत्नी और 2 बेटे धर्मप्रताप 8 साल का और सूर्यप्रताप 7 साल के थे. उन्होंने अपने पिता पर हमला भले ही नहीं देखा था, लेकिन उन की अस्पताल में दर्दनाक मौत को जरूर महसूस किया था. तभी से उन के मन में बदले की भावना भर गई थी.
दूसरी तरफ पुलिस की लापरवाही और गवाहों के लगातार बदलने से आरोपियों पर कानूनी शिकंजा कमजोर पड़ गया था. समय बीतने के साथ सूर्यप्रताप किशोरावस्था पार कर 18 साल का नवयुवक बन गया था. इसी के साथ उस के मन में दबी पिता के हत्यारे से बदले की भावना भी मजबूत हो गई थी.
गर्म खून के जोश में आ कर उस ने अपने मन की बात एक साल छोटे भाई को बताई. उस ने बड़े भाई की इच्छा के साथ अपनी सहमति जता दी. उन्हें एक दिन मौका भी मिल गया और उन्होंने एक आरोपी शिवहरे को घात लगा कर दबोच लिया. उस की लातघूंसे से जम कर पिटाई कर दी. उस के हाथपैर तोड़ डाले.
इस हमले से शिवहरे बुरी तरह से घायल हो गया था. उस का अस्पताल में इलाज चला जरूर, लेकिन वह बच नहीं पाया. तब बात आईगई हो गई. इस से दोनों भाइयों के कलेजे में थोड़ी ठंडक महसूस हुई, फिर भी बदले की चिंगारी सुलगती रही.
दोनों ने पूरे 10 साल तक अपने सीने में सुलगती चिंगारी को दबाए रखा. इस बीच वे मुख्य आरोपियों में डा. राजकुमार जायसवाल और सवाई सिंह को निशाना बनाए रहे. आखिरकार एक दिन उन्हें मौका मिल ही गया.
अजमेर के रीजनल कालेज के सामने एक रेस्टोरेंट में उन नेताओं पर दोनों भाइयों ने ठीक उसी तरह से हमला कर दिया, जिस तरह से उस के पिता पर हुआ था.
इस बार दोनों भाइयों की किस्मत ने साथ नहीं दिया. जायसवाल और सिंह का इस हमले में बाल भी बांका नहीं हुआ, उल्टे दोनों भाई जानलेवा हमले के आरोप में गिरफ्तार कर लिए गए. हालांकि वे जल्द ही जमानत पर छूट भी गए.
जहां तक मदन सिंह की हत्या की बात है तो उस मामले में कई तरह ही अड़चनें थीं. उस हत्याकांड से जुड़े वकील अजय प्रताप वर्मा के अनुसार मदन सिंह पर 2 बार जानलेवा हमले हुए थे. पहली बार बाजार के हमले की रिपोर्ट अलवर गेट थाने में दर्ज हुई थी, जबकि दूसरी बार उन पर हमला अस्पताल में हुआ था. उस की रिपोर्ट सदर कोतवाली (अब कोतवाली) में दर्ज की गई थी. बाद में दोनों मामलों को जोड़ कर जांच की गई थी.
मदन सिंह के अस्पताल में इलाज चलने संबंधी बातें और उन की मां के बयानों के आधार जांच की प्रक्रिया बहुत आगे तक नहीं बढ़ पाई थी. अदालत में उसे ले कर कई विरोधाभास पैदा हो गए थे.
मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा था, लेकिन उस के द्वारा वारदात को रीक्रिएट करने के बाद तैयार की गई रिपोर्ट से चश्मदीद गवाहों के बयान मेल नहीं खाने के कारण आरोपी 2004 में बरी हो गए थे. उस दौरान सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में की गई थी. हालांकि बरी होने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जा चुकी है, जो लिखे जाने तक लंबित थी.
सवाई सिंह और दूसरे रसूख वाले आरोपी यह मान कर चल रहे थे कि उन्हें मदन सिंह हत्याकांड से छुटकारा मिल गया है. सवाई सिंह के बेटे सूर्यदेव सिंह तंवर की 15 जनवरी, 2023 को शादी होनी थी, जिस का उन्होंने स्नेह भोज 16 जनवरी को रखा था.
सवाई सिंह की मौत से दिवंगत पत्रकार मदन सिंह के बेटे खुश हैं कि उन्होंने अपने पिता के हत्यारे को मौत के घाट उतार दिया. यहां तक कि उस की पत्नी नीमा शेखावत ने भी मीडिया के सामने इस बाबत खुशी जताई.
पुलिस जांच के बाद अजमेर एसपी चूनाराम जाट ने बताया कि सवाई सिंह से बदला लेने के लिए सूर्यप्रताप ने इलाके के नामी बदमाश आकाश सोनी से शूटर्स मांगे थे.
उस के बाद उन्होंने अपनी योजना में भरतपुर के शूटर कपिल और विकास को शामिल कर लिया था. सूर्यप्रताप ने उन्हें अजमेर में ठहराया था. उस के बाद उस ने अपने भाई धर्मप्रताप और विनय प्रताप सिंह के साथ मिल कर सवाई सिंह के बारे में जानकारी दी. उस की तसवीरें दिखा कर पहचान करवाई. पूरी तैयारी के बाद सूर्यप्रताप, धर्मप्रताप और विनय प्रताप ने दोनों शूटर्स को रिजार्ट में ले जा कर हमला बोल दिया.
इस तरह से इस हमले में 5 लोगों को आरोपी बनाया गया है. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपियों के खिलाफ काररवाई पूरी नहीं हो पाई थी. द्य