Bollywood news : सत्येंद्रपाल से एक गलती हो गई थी, जिस से डर कर वह मुंबई भाग गए थे. उन्हें क्या पता था कि यह गलती उन की जिंदगी का टर्निंग पौइंट साबित होगी और एक दिन वह अमिताभ बच्चन के साथ हेराफेरी, नमकहलाल और शराबी जैसी सुपरहिट फिल्में बनाएंगे.
समय के प्रवाह से जीवनधारा का तालमेल बिठाना आसान नहीं होता. तब तो बिलकुल भी नहीं जब रास्ते टेढ़ेमेढ़े और ऊबड़खाबड़ हों. कदमदरकदम चुनौती बन कर खड़े अभाव जीवन के संघर्ष को तिधारे के उस कांटे की तरह बना देते हैं जिस की तीखी चुभन दिमाग तक को सुन्न कर देती है. साधारण मनोवृत्ति के लोग भले ही कंटीली राहों पर उलझ कर रह जाएं, लेकिन दृढ़ मनोबल वाले हार नहीं मानते. वे दुरुह स्थितियों का डट कर मुकाबला करते हैं ताकि उन्हें अपने मनोनुकूल बना सकें. निस्संदेह इस में कामयाब होने वाले ही बुलंदियों को छूते हैं.
ऐसे लोगों का शून्य से शिखर तक का सफर बंजर पथरीली जमीन में अनायास उग आए उस नन्हें अंकुर की तरह होता है जो वजूद को झुलसाने वाली तेज गरमी, अस्तित्व को लीलने को आतुर रहने वाली तीखी सर्दी और जड़ों को उखाड़ फेंकने की कोशिश करने वाली मूसलाधार बरसात से लड़ते हुए विशाल वृक्ष बनता है.
ऐसे ही लोगों में हैं, 70-80 के दशक की बौलीवुड की नामचीन हस्तियों में शामिल रहे फिल्म निर्माता सत्येंद्रपाल चौधरी, जिन्होंने सन 1968 में अपने मित्र प्रकाश मेहरा के साथ शशि कपूर, बबीता अभिनीत फिल्म ‘हसीना मान जाएगी’ से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की और बाद में ‘हेराफेरी’, ‘शराबी’, और ‘नमकहलाल’ जैसी ब्लौकबस्टर फिल्में बनाईं. सत्येंद्रपाल चौधरी ने अपना फिल्मी सफर शून्य से शुरू किया था, जो बरसों के संघर्ष और तमाम उतारचढ़ावों के बाद सफलता के उस पायदान तक पहुंचा, जहां पहुंचने के लोग महज सपने देख कर रह जाते हैं.