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शुरुआती कहानी है पकाऊ

शुरुआती एपिसोड्स में कहानी पक रही है, किरदार पनप रहे हैं तो इन खुलती परतों के बीच स्पीड अच्छी लगती है. लेकिन चौथे एपिसोड से 8वें एपिसोड तक कहानी बस गोलगोल धूम रही है. सस्पेंस की लेयर्स कम हो जाती हैं. शुरुआत से ही पता है कि सीरियल किलर कौन है, वह कैसे काम कर रहा है तो सस्पेंस या थ्रिल जैसा कुछ नहीं है, बल्कि कई बार पुलिस पर तरस आ रहा है कि ये कर क्या रही है.

‘दहाड़’ वेब सीरीज की सब से बड़ी कमजोरी है, इस के अधपके किरदार. शुरू से ले कर आखिर तक किसी भी किरदार की यात्रा नजर नहीं आती. पहले सीन में प्रेस की हुई ड्रेस पहने तन कर खड़ी अंजलि भाटी आखिरी सीन तक उसी अवतार में नजर आती है. इस किरदार की कोई इमोशनल जर्नी नहीं है, जिस से आप जुड़ें. लेकिन ये अकेली अंजलि के किरदार के साथ नहीं है, बल्कि किसी भी किरदार की परतों को खोलने की जहमत लेखक ने नहीं उठाई है.

जैसे खुद रिश्वत लेने के चक्कर में डिमोशन झेल रहा पारगी (सोहम शाह) आखिर अपनी पत्नी के पहली बार प्रेग्नेंट होने पर खुश क्यों नहीं है? इस बात के तर्क में वह कहता है, 'दुनिया कितनी बेकार है, कैसेकैसे लोग हैं यहां. ऐसे में यहां बच्चे को कैसे पैदा किया जाए.

ऐसे ही शो के कई सीन हैं जो अनसुलझे या अधूरे से हैं. पूरा थाना अंजलि को भाटी साहब कह रहा है, लेकिन एक शख्स है जो उस के निकलते ही अगरबत्ती जला कर धुआं करता है.

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