स्कूली और कालेज की पढ़ाई दिल्ली में पूरी करने के बाद वह मुंबई आई, फिल्म इंडस्ट्री में अपना रास्ता बनाने की कोशिश करने के सिलसिले में वन बीएचके की दमघोंटू हवा में अकेले रहने लगी, तब उन्हें जो अनुभव मिले, वह फिल्म में जस के तस उतार दिए.
विवाहित रुचिका का कहना है कि महानगर में सफलता और आमदनी के आनंद की विक्षिप्त दौड़ है. इस ने अलगाव जन्म दिया है. वह अपने पति को लेखन के लिए प्रेरणास्रोत बताती है. अपनी पहली फिल्म का निर्देशन करने से पहले रुचिका ने टेलीविजन उद्योग में काम करने का अनुभव प्राप्त किया.
रुचिका का कहना है कि वह अपने आसपास के लोगों की अराजक और रैकेट से भरी जीवनशैली के बारे में लिखने के लिए आकर्षित होती है. निर्देशन की शुरुआत फिल्म “चुटकन की महाभारत’ में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई थी, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.
वैसे फिल्म निर्माण और उस से जुड़ी पूरी प्रक्रिया उस के लिए अलग थी. उस ने कठिन तरीके से सीखा और पहली फिल्म “आइसलैंड सिटी (हिंदी)’ का विचार 2008-09 के दौरान पूरा हुआ. इस की बदौलत वह 2012 में स्क्रीनराइटर्स लैब, वेनिस और फिल्म बाजार (गोवा) का भी हिस्सा बनी. फिर 2015 में 72वें वेनिस फिल्म फेस्टिवल में फेडोरा की विजेता बन गई.
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा बनाई गई 110 मिनट तक चलने वाले आइसलैंड सिटी में विनय पाठक, ब्रिक लेन फेम तनिष्ठा चैटर्जी और अमृता सुभाष जैसे मंझे हुए कलाकारों की भूमिकाएं थीं. क्राइम थ्रिलर ‘दहाड़’ में रीमा कागती और रुचिका ओबेराय कहानी कहने के बदलते चेहरे और ओटीटी स्पेस में भारतीय मूल के प्रभाव को बेहतरीन तरीके से नहीं दर्शा पाई हैं.