फिल्म या टीवी इंडस्ट्री भले ही किसी भी भाषा से जुड़ी हुई हो, ग्लैमर इस इंडस्ट्री की पहली शर्त है. जहां ग्लैमर होता है, वहां और भी बहुत कुछ होता है. अंधेरेउजाले के दृश्य रच कर सिनेमा या टीवी के परदे पर लाने वालों के अपनी जिंदगी के असल दृश्य कभीकभी तो रंगीन न हो कर इतने काले होते हैं कि जिन्हें देख कर इंसानियत भी शरमा जाए. लेकिन पैसे का चक्कर ऐसे दृश्यों की कालिख को ढंक लेता है. यह भी कह सकते हैं कि ग्लैमर को देखने की चाह चाहे दर्शक की हो, ग्लैमर के मोहरों की हो या प्रस्तुतकर्ता की, अपना रंग तो दिखाती ही है. भले ही पीछे का परदा सफेद हो या काला. इसी चमक से पैसा बरसता है.

कभी घरघर में पहचानी जाने वाली कलर्स के सीरियल ‘बालिका वधू’ की आनंदी यानी प्रत्यूषा बनर्जी ग्लैमर के अंधेरों में खो गई. कब, कैसे, क्यों जैसे सवाल कुछ दिन तक उछलते रहे, फिर सब कुछ शांत हो गया. प्रत्यूषा का बौयफ्रैंड राहुल राज जैसे संदेह के दायरे में आया, वैसे ही निकल भी गया. बस इतना समझ लीजिए कि प्रत्यूषा को ग्लैमर के पीछे का अंधेरा निगल गया और उस प्यारी सी लड़की के लिए कोई कुछ न कर सका.

टौलीवुड यानी बंगला फिल्म एंड टीवी इंडस्ट्री का सच भी इस से जुदा नहीं है. कौन जाने इस इंडस्ट्री की खूबसूरत लड़की सोनिका सिंह चौहान की मौत के पीछे का सच भी कुछ ऐसा ही हो. क्योंकि वह भी तो ग्लैमर के अंधेरों से निकल कर मौत के अंधेरे में समाई है.

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