डायरेक्टर: सुमित सक्सेना
प्रोड्यूसर: सिकंदर राणा
लेखक: अरुणाभ कुमार, सुमित सक्सेना
सिनेमैटोग्राफी: मनीष भट्ट
कलाकार: विजय वर्मा, सीमा विश्वास, सुजाना मुखर्जी, यशपाल शर्मा, गोपाल दत्त और श्वेता त्रिपाठी शर्मा, वरुण टम्टा, नीता मोहिंद्रा, शशिभूषण, बासनेट रोमिला, एजाज खिजरा, गौरव गुप्ता, इला पांडे, लज्जावती मिश्रा, धीर हीरा, अवनीश श्रीवास्तव, आयुष सपरा, अभिषेक अग्रवाल, आदित्य वर्मा, हिबा कमर
‘कालकूट’ एसिड अटैक पर बनी वेब सीरीज है. कालकूट उस विष को कहा जाता है, जिसे असुरों और देवताओं ने समुद्र को मथ कर निकाला था. जबकि इस वेब सीरीज में ‘कालकूट’ हमारी रक्षा के लिए बनाए गए उस सिस्टम को कहा गया है, जिसे भ्रष्टाचारियों ने भ्रष्ट कर दिया है.
8 एपीसोड वाली इस वेब सीरीज में 2 किरदारों के माध्यम से थकेहारे सिस्टम की कहानी दिखाई गई है. इस सीरीज की शुरुआत एसिड अटैक से होती है. पारुल नाम की लड़की पर कोई एसिड फेंक कर फरार हो जाता है.
सबइंसपेक्टर रविशंकर त्रिपाठी, जो टिपिकल किस्म का आदमी नहीं है. इसलिए वह खाकी वरदी का बोझ सहन नहीं कर पा रहा है, जिस की वजह से वह पुलिस की यह नौकरी छोड़ना चाहता है. जबकि सीनियर हैं कि उस का इस्तीफा स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं और पारुल पर हुए एसिड अटैक की जांच की जिम्मेदारी ऊपर से सौंप देते हैं. रवि सच की तह तक पहुंचने की कोशिश करता है.
गोविंद निहलानी के निर्देशन में बनी एक फिल्म आई थी ‘अर्धसत्य’, जिस में एक आदर्शवादी पुलिस वाला भ्रष्ट तंत्र से बेचैन था, जिस के खिलाफ खुद को असहाय पा रहा था. रविशंकर त्रिपाठी की कहानी भी कुछ वैसी ही है.
समाज में होने वाले जघन्य अपराध उस से देखे नहीं जाते, उस से सहन नहीं हो रहा कि एक ओर किसी के उजागर हुए एमएमएस की बात हो रही है और दूसरी ओर उसी वाक्य को ठहाकों से पूरा किया जा रहा है. वह पूरे सिस्टम से चिढ़ा हुआ है, दूसरी ओर उस की मर्दानगी को चुनौती दी जाती है.
जहां एक ओर रवि अपने सीनियर्स और नौकरी से परेशान है, वहीं दूसरी ओर उस की मां शादी का रट लगाए उस के पीछे पड़ी है. जबकि उसे विवाह में कोई रुचि नहीं दिखाई देती. शायद उस की परेशानी को बढ़ाने के लिए ही उसे पारुल वाले मामले की जांच सौंपी गई है.
भ्रष्ट सिस्टम और शादी के प्रेशर और अपने मन में उठ रहे सैकड़ों सवालों से जूझते हुए एसआई रविशंकर त्रिपाठी न्याय की उम्मीद में बैठी एसिड अटैक की पीड़ित पारुल का केस सुलझा पाते हैं या नहीं? इस सीरीज की यही कहानी है.
इस वेब सीरीज की कहानी शुरुआत में भले ही ठीक लगती हो, पर अंत तक जो आनंद और उत्सुकता रहनी चाहिए, वह नहीं रह जाती और कहानी बोर करने लगती है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि कहानी को सस्पेंस बनाने के लिए बेमतलब की चीजें भरी गई हैं, जिन का मकसद सिर्फ दर्शकों को उलझाना है.
लेखक व डायरेक्टर अरुणाभ कुमार और सुमित सक्सेना ने रोजमर्रा की जिंदगी में घटने वाली घटनाओं को अच्छी और मार्मिक तरह से पिरोने की कोशिश तो की है, पर अपनी इस कोशिश में वह सफल नहीं हो पाए हैं. क्योंकि सीरीज देखने पर ये घटनाएं बनावटी और सत्यता से परे लगती हैं. रविशंकर त्रिपाठी अपने चेहरे पर जिस तरह के हावभाव लाता है, उस से लगता है कि उस ने अपने किरदार को अच्छी तरह निभाने की कोशिश की है.
‘कालकूट’ में सब से ज्यादा परेशान करती हैं पुलिस अधिकारियों द्वारा दी जाने वाली गालियां. पुलिस अधिकारी मातहत को डांटते हैं, धिक्कारते हैं, पर अपने ही स्टाफ को मांबहन की गंदीगंदी गालियां नहीं देते. डायरेक्टर ने यहां अपना गंवारपन दिखा दिया है.
मैकमोहनगंज नाम के काल्पनिक शहर में यूपी 65 नंबर की यामाहा पर घूमते दरोगा रविशंकर त्रिपाठी की भूमिका करने वाले विजय वर्मा 3 महीने पहले ही बने दरोगा के किरदार में जीने की कोशिश करता है तो उस के प्रयास ईमानदार लगते हैं, लेकिन इसी 3 महीने में वह अपनी नौकरी से उकता कर इस्तीफा देना चाहता है.
प्रशासनिक नौकरियों की तैयारी करते हुए उस का दिमाग भले ही कंप्यूटर की तरह चलता है, पर उस में रत्ती भर आत्मविश्वास नहीं दिखाई देता. एसएचओ उसे गालियां देता रहता है. सिपाही तक उस का मजाक उड़ाते हैं.
वेब सीरीज ‘कालकूट’ की कथा समुद्र मंथन से निकले हलाहल जैसी तो नहीं है, पर अपने नाम के अनुरूप दर्शकों के लिए समय मंथन अधिक है. आधेआधे घंटे के 8 एपीसोड हैं. हां, आखिरी एपीसोड करीब 50 मिनट का है. कहानी भी ऐसे सुडोकू की तरह है, जो कभी इस खाने की ओर ध्यान भटकाती है तो कभी उस खाने की ओर.
लोगों के बोलने का लहजा इसे उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि की कहानी साबित करने की कोशिश करता है. 1090 जैसी महिला सहायता हेल्पलाइन भी है. लेकिन इस का जो थाना है, वह इस की ऐसीतैसी करने में कोई कसर नहीं छोड़ता. क्योंकि पत्थरों के बीच जो थाना बना है, उस तरह का थाना उत्तर प्रदेश में मिलना मुश्किल है.
इस के अलावा इस का दूसरा सब से नकारात्मक पहलू है दरोगा और सिपाही का बिना हेलमेट पूरे समय घूमते रहना. लेखकों को इस बात पर भी अक्ल लगानी चाहिए थी कि उन का दरोगा रविशंकर त्रिपाठी उत्तर प्रदेश का ब्राह्मण कितना भी क्रांतिकारी क्यों न हो, वह तुलसी के थलहा पर बिना नहाए बिलकुल ही नहीं बैठेगा.
यह ठीक है कि उस के पिता कम क्रांतिकारी नहीं रहे. मरने से पहले उन्होंने ‘जांघों के बीच’ शीर्षक से एक कविता अपने बेटे को इसलिए अपने ईमेल से शेड्यूल सेंड में डाल जाते हैं कि वह इसे अपनी मां को उन के जन्मदिन पर पढ़ कर सुनाए.
सीने के आरपार हो गई सरिया लिए बाइक चलाना और फिर उस सरिए को खुद ही निकाल कर अमिताभ बच्चन बन जाना कहानी को कमजोर और नाटकीय बनाता है.
सीरीज में विजय वर्मा की जोड़ी सुजाना मुखर्जी के साथ बनी है. जबकि श्वेता त्रिपाठी शर्मा कहानी का संदर्भ बिंदु भर है. सीरीज में सब से अच्छा अभिनय सीमा विश्वास का है. एक अरसे बाद उसे देखना अच्छा भी लगता है. सिपाही यादव का रोल यशपाल शर्मा ने किया है. इस तरह के रोल कर देना उन के बाएं हाथ का खेल है.
वेब सीरीज ‘कालकूट’ की कहानी का तानाबाना अभी जल्दी रिलीज हुई फिल्म ‘बवाल’ जैसा है. नायक स्वच्छंद है. पिता सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित है. मां कोमलहृदय है और एक बहू लाने के लिए बेचैन है.
‘कालकूट’ की कहानी में पारुल नाम की एक लड़की कोचिंग पढ़ कर अपने घर जा रही होती है, तभी पीछे से बाइक सवार हेलमेट लगाए एक लड़का आता है और सभी के सामने पारुल पर एसिड फेंक कर फरार हो जाता है. पारुल का रोल श्वेता त्रिपाठी शर्मा ने किया है.
इस के पहले ‘मिर्जापुर’ में वह अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकी है. पर इस में वह कुछ खास नहीं कर पाई, क्योंकि पूरे समय वह अस्पताल में पड़ी रही. इस के बाद थाना मैकमोहनगंज दिखाया जाता है, जहां दर्शकों की भेंट एसआई रविशंकर त्रिपाठी से होती है.
3 महीने की ही अपनी इस नौकरी से उकता कर वह इस्तीफा देना चाहता है, पर उस का इस्तीफा मंजूर न कर के उसे पारुल पर हुए एसिड अटैक के केस की जांच की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है. एसआई की यह भूमिका विजय वर्मा ने की है. दूसरी ओर उस की मां रविशंकर त्रिपाठी पर विवाह के लगातार दबाव डाल रही होती है, जबकि उसे विवाह में कोई रुचि नहीं दिखाई देती.
एक दिन थाने में महिलाओं पर हो रहे उत्पीड़न पर एक मीटिंग थी, जिस में रविशंकर देर से पहुंचता है. तब उसे अधिकारियों की डांट खानी पड़ती है. इस से एसएचओ जगदीश उस से चिढ़ जाते हैं और उसे गालियां देते हुए सोलर लाइट की सफाई के लिए कहते हैं, लेकिन तभी अस्पताल से फोन आ जाता है कि पारुल को होश आ गया है.
एसएचओ जगदीश एसआई रविशंकर और सिपाही यादव को अस्पताल पारुल का बयान लेने भेज देते हैं. एसएचओ जगदीश का रोल गोपालदत्त ने निभाया है तो सिपाही यादव की भूमिका में यशपाल शर्मा है.
अस्पताल पहुंच कर पता चलता है कि पारुल को थोड़ी देर के लिए ही होश आया था. रवि के पिता की मौत हो चुकी होती है. वह अपने पिता का सामान लेने उन के औफिस जाता है, जहां उन के सामान में कुछ किताबें मिलती हैं. घर में उन्हें निकालने पर उन के बीच एक कागज मिलता है, जिस में एक कविता लिखी होती है.
उस कविता से पता चलता है कि उन्हें पता था कि रवि यह नौकरी नहीं करना चाहता. तभी एक घटना घट जाती है, जिस से एसएचओ की नौकरी खतरे में पड़ जाती है.