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मार्च का महीना बीतने वाला था. होली का त्यौहार खत्म हो चुका था. हिंदू रीतिरिवाज और परंपरा के मुताबिक शुभ कार्य करने के दिन आ चुके थे. इसे देखते हुए मध्य प्रदेश के जिला नर्मदापुरम के पोलगांव की रहने वाली राजकुंवर बाई ने अपने बेटे प्रकाश राजपूत और कमलेश राजपूत को बुलाया.

प्रकाश पहले आया और पूछा, “जी अम्मा, आप ने बुलाया? कोई विशेष बात है तो बोलो, मैं शहर जा रहा हूं.”

“तू शहर जा रहा है, अच्छी बात है, लेकिन मैं ने दूसरे काम के लिए बुलाया है. कमलेश को भी आवाज लगा दे.” राजकुंवर बोली.

“जी अम्मा,” प्रकाश बोला और ‘कमलेश...कमलेश’ की 2-3 आवाज लगा दी.

कमलेश भी आ गया. आते ही पूछा, “जी अम्मा, आप ने बुलाया है?”

“हां बेटा, मैं ने आज तुम दोनों को एक खास काम के लिए बुलाया है. मैं ने शिवपुर वाले जमीन के लिए पंडितजी से मुहूर्त निकलवा दिया है. यूं ही बेकार में पड़ी है. वहां तुम दोनों मिल कर एक अच्छा मकान बनवाने की तैयारी कर लो, तुम दोनों का परिवार भी बड़ा बन चुका है. बच्चे बड़े हो रहे हैं, वहां उन की पढ़ाई भी अच्छे से होगी.” रामकुंवर बाई ने कहा.

“लेकिन अम्मा उस जमीन पर मकान बनवाने में बहुत पैसा लगेगा, सडक़ से भी नीचे है. गड्ढा भरवाने और ऊंचा बनाने में ही बहुत पैसा खर्च हो जाएगा,” कमलेश दुविधा भरे लहजे में बोला.

“अरे कमलेश, तू हमेशा हां-ना में रहता है. उस में कितना पैसा खर्च हो जाएगा. मकान बनाने लायक तो तुम दोनों ने अपनेअपने पैसे बैंक में जमा कर ही रखे हैं. मेरे खाते में भी पड़े हैं. उस में से भी कुछ निकाल लेना.” रामकुंवर समझाती हुई बोलीं, “प्रकाश, तू कमलेश को समझा और मकान बनाने का खर्च निकाल, नक्शा बनवाङ”

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