प्रकाश उन की बातों को ध्यान से सुनने लगा था. बैंक के बारे में निराशाजनक बातें सुन कर वह भीतर ही भीतर कुछ असहज महसूस करने लगा था. आखिर रहा नहीं गया, तब उस ने एक से पूछ लिया, “भाई साहब, यहां की सर्विस खराब क्यों हैï?”
“खराब! अजी बहुत खराब कहिए. स्टाफ ही नहीं है. 2-4 लोगों के सहारे बैंक चल रहा है. उन में एक तो चपरासी ही है.”
“हां, सही कह रहे हैं. क्लर्क ही मैनेजर और खजांची है. वे भी 11-11 बजे तक आते हैं और 3 बजते ही चले जाते हैं.”
यह सुनते ही प्रकाश तपाक से बोल पड़ा, “आज तो अभी तक मैनेजर आया ही नहीं है.”
“कौन कहता है नहीं आया है, वही तो बैठा है सब से किनारे वाली सीट पर.”
“वही, जिस के पास दूसरे कर्मचारी बारबार जा रहे हैं? लेकिन सामने वाले ने तो बताया कि आज मैनेजर हैड औफिस गया है. वहां कोई मीटिंग है.”
“अजी काहे की मीटिंग, यह तो उन की रोज की बात है.” प्रकाश के ठीक बगल में बैठा व्यक्ति खीझता हुआ बोला, “वैसे भी हमें उन की मीटिंग से क्या लेनादेना.”
“आप ठीक कह रहे हो. चलो, हम सभी उस से पूछते हैं. बैंक का काम कब शुरू होगा.” प्रकाश बोला.
“हां...हां, चलो.” यह कहते हुए तीनों उठ खड़े हो गए. वे सीधा सब से किनारे बैठे बैंककर्मी के पास जा पहुंचे. एक ने पूछा,
“मैनेजर साहब, बैंक का काम शुरू होने में और कितनी देर लगेगी?”
“देर लगेगी? काहे की देर! काम तो शुरू हो चुका है. उधर देखो. जाओ, पैसे जमा करवाओ.”
“लेकिन मुझे तो पैसे निकलवाने हैं,” प्रकाश बीच में ही बोल पड़ा.