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एकटक से बैंककर्मी की गतिविधि को देखने लगा. वह कभी चैक को उलटपलट रहा था तो कभी कंप्यूटर पर आंखें गड़ा देता था. प्रकाश समझ नहीं पा रहा था कि बैंककर्मी आखिर कर क्या रहा है? कुछ समय बीतने के बाद प्रकाश पेमेंट के बारे में पूछने ही वाला था कि बैंककर्मी बोला, “प्रकाश राजपूत, पिता गंगा बिशन राजपूत, तुम हो?”

“जी सर, मेरा ही चैक है...कोई बात सर?” प्रकाश बोला.

“बात तो है. यहां तुम्हारे अकाउंट में तो बैलेंस ही नहीं है.” बैंककर्मी बोला.

“बैलेंस नहीं है, क्या मतलब हुआ?” प्रकाश ने आश्चर्य से पूछा.

“मतलब साफ है कि तुम तो पहले ही कई बार पैसा निकाल चुके हो. अब तुम्हारे खाते में उतना पैसा नहीं, जितने का तुम ने चैक दिया है.” बैंककर्मी बोला.

“पैसा नहीं है? मैं ने पैसा कब निकाला? मैं ने तो कभी इस खाते से पैसा निकाला ही नहीं है. ठीक से चैक कीजिए. कोई गलती तो नहीं हो रही है?” प्रकाश ने आग्रह किया.

“तो मैं गलत बता रहा हूं. यहां कंप्यूटर में जो तुम्हारा खाता दिखा रहा है, वही बता रहा हूं. तुम्हारे खाते से 15 से अधिक बार मोटी राशि निकाली गई है. इन की डिटेल्स जाननी है तो स्टेटमेंट निकलवा लो.” बैंककर्मी बोला और उस का चैक वापस कर दिया.

प्रकाश परेशान हो गया. सीधा मैनेजर के केबिन में चला गया. मैनेजर कुछ बोलता, इस से पहले प्रकाश ने तेज आवाज में बोलना शुरू कर दिया. मैनेजर अचानक प्रकाश के बोलने पर हक्काबक्का हो गया. संभलते हुए चपरासी को आवाज लगाई. चपरासी भागाभागा आया. आते ही प्रकाश पर बरस पड़ा, “मैं जरा सा उधर साहब को पानी क्या देने गया, तुम मौका देख कर यहां घुस आए.”

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