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फोन की घंटी बजी तो खाना खा रहे दिनेश ने टेबल पर रखे मोबाइल की स्क्रीन पर चमक रहे नाम को देखा. स्क्रीन पर राकेश आहूजा का नाम देख कर दिनेश ने हाथ में पकड़ा रोटी का टुकड़ा वापस प्लेट में रख दिया और फोन उठा कर काल रिसीव कर ली, “हां बोल आहूजा, इस वक्त कैसे फोन किया?”

“तू अभी इसी वक्त मेरे घर आ जा दिनेश,” दूसरी ओर से आहूजा का बहुत उतावला स्वर उभरा.

“खैरियत तो है... देख रहा है इस वक्त रात के 9 बज रहे हैं. मैं खाना खा रहा हूं और तेरी भाभी आशा मेरे सामने बैठी हुई है.”

“तू दोनों को कुछ देर के लिए छोड़ दे भाई. तेरा मेरे पास आना इस वक्त बहुत जरूरी है.”

“ऐसी क्या आफत आ गई तुझ पर, जो मुझे बुला रहा है.” दिनेश ने हैरान स्वर में पूछा.

“अरे, अगर आहूजा बुला रहा है तो चले जाओ, कोई काम होगा उसे.” दिनेश की पत्नी ने उन की बातचीत के बीच में टोका.

“ठीक है आहूजा, मैं आ रहा हूं.” दिनेश ने कहा और काल डिसकनेक्ट कर मोबाइल जेब में डालते हुए उठ कर खड़ा हो गया.

खूंटी पर टंगी पैंट पहन कर वह पत्नी से बोला, “तुम खाना खा लेना. मैं जल्दी लौट कर आता हूं.”

“ठीक है.” आशा ने गरदन हिला कर कहा और पति के खाने की थाली उस ने अपने सामने सरका ली.

दिल्ली के मौडल टाउन में रहने वाला दिनेश मुसकराता हुआ बाहर निकल गया. उस ने बाइक स्टार्ट की और पास के ही कैंप इलाके में रहने वाले राकेश आहूजा के घर की तरफ रवाना हो गया.

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