राजधानी दिल्ली की एक 34 वर्षीया डा. शोभा कपूर हर रोज की तरह 5 मई की सुबह सवा 10 बजे के करीब अपने प्राइवेट नर्सिंग होम पहुंच गई थीं. उन्होंने कुछ मरीजों को 11 बजे से मिलने का अपौइंटमेंट दे रखा था. मरीजों के आने में थोड़ा समय था, सो उन्होंने अपने केबिन में लैपटाप खोल लिया था. रिपोर्ट तैयार करने संबंधी कुछ काम करने लगी थीं.

इसी बीच मोबाइल पर एक काल आई. वह अनजान थी. इसलिए डाक्टर ने उसे नजरंदाज कर दिया. 8 सेकेंड के बाद रिंग बंद हो गया, लेकिन आधे मिनट बाद फिर उसी नंबर से काल आई. इस बार 10 सेकेंड के बाद भी रिंग बजती रही.

काम में बिजी डाक्टर कुछ पल के लिए असहज हो गईं, फिर केबिन के बाहर बैठे अपने कर्मचारी को आवाज लगाई. फोन उस की ओर बढ़ाते हुए बोलीं, “देखना कौन है, कोई मरीज होगा तो उसे साढ़े 12 के बाद का अपौइंटमेंट दे देना.”

बात करने पर डर गईं डा. शोभा

उस के बाद वह फिर अपने काम में लग गईं. तब तक कर्मचारी बोला, “मैडम, आप से ही बात करना चाहता है. बोल रहा है अर्जेंट है.”

“होल्ड करने को बोल. ला, इधर फोन रख. सब को अर्जेंट ही रहता है, पहले इस फाइल को सेव कर लूं.” उस के बाद सामने रखा फोन उठा कर बोली, “हैलो!”

“फोन सुनने में इतनी देरी मैडम, क्या बात है?” उधर से तीखे लहजे में आवाज आई.

“आप कौन साहब बोल रहे हैं?”

“मैं मुंबई से नारकोटिक्स विभाग का औफिसर बोल रहा हं. आप के खिलाफ एक शिकायत मिली है.”

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