समाज में ऐसे युवाओं की कमी नहीं है, जो आधुनिकता की चकाचौंध से प्रभावित हो कर बहुत कम समय में सफलताओं की इमारत खड़ी करने के सपने देखते हैं. वे सोचते हैं कि उन के पास सभी भौतिक सुविधाएं और ढेर सारी दौलत हो. महत्त्वाकांक्षाओं की हवाएं जब उन के दिलोदिमाग में सनसनाती हैं तो सोच खुदबखुद इस की गुलाम हो जाती है. सोच की यह गुलामी उन्हें इसलिए बुरी भी नहीं लगती, क्योंकि इस से उन्हें ख्वाबों में कल्पनाओं के खूबसूरत महल नजर आने लगते हैं. रिहान भी कुछ ऐसी ही सोच का शिकार था.

एमबीए पास कंप्यूटर एक्सपर्ट रिहान का ख्वाब था कि किसी भी तरह उस के पास इतनी दौलत आ जाए कि जिंदगी ऐशोआराम से बीते. यह कैसे हो, इस के लिए वक्त के दरिया में तैराकी करते हुए वह दिनरात अपने दिमाग को दौड़ाता रहता था. कुछ विचार उसे सही नजर आए, मगर उन विचारों को क्रियान्वित करने के लिए पैसों की जरूरत थी, जो उस के पास नहीं थे. क्योंकि वह बेरोजगारी की गॢदश झेल रहा था. लिहाजा उन विचारों का उस के लिए कोई महत्त्व नहीं रहा.

फिलहाल उस के सामने सब से बड़ी समस्या पैसों की थी, इसलिए वह अपने लिए सही नौकरी तलाशने लगा. इस के लिए उस ने कई जगह हाथपैर मारे, लेकिन जब उसे मन मुताबिक नौकरी नहीं मिली तो उस ने सन 2014 में एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी कर ली. यह कंपनी लोगों को विभिन्न बैंकों से लोन दिलाने का काम करती थी. इस के बदले वह लोन लेने वालों से तयशुदा कमीशन लेती थी.

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