हसरतें पूरी कर के विजयशंकर बहुत खुश थे. लेकिन आरती के चेहरे पर उदासी थी. विजयशंकर ने उस से उदासी की वजह जाननी चाही तो वह बोली, ‘‘मुझे अपने कालेज की फीस भरनी है. अगर समय से फीस नहीं भरी तो मुझे कालेज से निकाला जा सकता है. अगर 25 हजार रुपए का इंतजाम हो जाए तो मेरी फीस का इंतजाम हो सकता है.’’
चूंकि विजयशंकर उस के आशिक बन चुके थे, इसलिए उन्होंने उसे आश्वासन दिया, ‘‘आरती तुम्हारी पढ़ाई पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. 25 हजार रुपए मैं तुम्हें दूंगा. तुम अपनी फीस भर देना. तुम अभी मेरे साथ चलो, एटीएम से पैसे निकाल कर दे देता हूं.’’
विजयशंकर की बात सुन कर आरती खुश हो गई. वह उन्हें एक एटीएम बूथ तक ले गए और 25 हजार रुपए निकाल कर आरती को दे दिए. आरती ने जब घर जाने की बात कही तो वह अपनी कार से उसे व उस के चचेरे भाई को बरेली जंक्शन स्टेशन पर छोड़ आए.आरती के जाने के बाद विजयशंकर को जैसे सबकुछ सूनासूना सा लग रहा था. देर रात उन्होंने उस से फोन पर बात की तो आरती ने 4 दिन बाद उन से मिलने का कार्यक्रम बना लिया.
4 दिनों बाद आरती फिर विजयशंकर से मिलने बरेली आई. उस दिन वह निर्धारित समय से पहले आ गई. उस दिन पूरी दोपहर विजयशंकर ने आरती के साथ मौजमस्ती की. विजयशंकर आरती के मौजमस्ती के अंदाज से काफी खुश थे. वापस जाते वक्त आरती ने उन से 70 हजार रुपए की मांग कर दी. इस बार उस ने बताया कि जहां वह रहती है, वहां से उस का कालेज काफी दूर पड़ता है. आनेजाने में काफी दिक्कत होती है. इसलिए वह अपने लिए एक स्कूटी खरीदना चाहती है.
विजयशंकर ने उस की यह डिमांड भी पूरी कर दी. दोनों देर रात को फोन पर बात करते थे. आरती ने कह दिया था कि जब भी वह बुलाएंगे, चली आएगी. इस के एक हफ्ते बाद ही एक बात से विजयशंकर पर वज्रपात सा हो गया. आरती के चचेरे भाई ने विजयशंकर को फोन कर के कहा कि आरती ने जहर खा लिया है. उस की तबीयत काफी बिगड़ गई है. उसे अस्पताल में वेंटीलेटर पर रखा गया है. वह 4 लाख रुपए दे दें, नहीं तो आरती उन्हें बलात्कार और धमकी के मुकदमे में फंसा देगी.
इतना सुनते ही विजयशंकर हक्केबक्के रह गए. उन के माथे पर पसीने की बूंदें छलकने लगीं. वह समझ गए कि लड़की को चारा बना कर उन्हें फांसा गया है. उन्होंने काफी सोचनेसमझने के बाद पुलिस के पास जाने का फैसला कर लिया.
उन्होंने बरेली के थाना कोतवाली जा कर इंसपेक्टर अनिल समानिया को पूरी बात बता दी. उन्होंने भी समानिया को आरती का मोबाइल नंबर भी दे दिया. विजयशंकर से लिखित शिकायत लेने के बाद इंसपेक्टर अनिल समानिया ने आरती के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया. सर्विलांस के सहारे तहकीकात आगे बढ़ी तो पता चला कि उस फोन नंबर की लोकेशन किसी अस्पताल में नहीं थी. सर्विलांस के द्वारा आरती की जो लोकेशन पता चल रही थी, वहां से काफी दूर तक कोई अस्पताल नहीं था.
इस से वह समझ गए कि आरती का कथित चचेरा भाई विजयशंकर को ब्लैकमेल कर रहा है और इस में और भी लोग शामिल हो सकते हैं.
इंसपेक्टर अनिल समानिया ने विजयशंकर को बुलवा कर उन से कहा कि वह उन लोगों को फोन कर के पैसे देने के बहाने चौकी चौराहे पर बुलाएं. विजयशंकर ने ऐसा ही किया. उन्होंने आरती के चचेरे भाई से कहा कि पैसों का इंतजाम हो गया है.
पैसे लेने के लिए वह 30 सितंबर को बरेली के चौकी चौराहे पर आ जाए. वह चौकी चौराहा आने के लिए तैयार हो गया. विजयशंकर ने यह बात इंसपेक्टर अनिल समानिया को बता दी. 30 सितंबर को निर्धारित समय पर पुलिस टीम चौकी चौराहे के आसपास सादा कपड़ों में खड़ी हो गई.
अपराह्न करीब 3 बजे जब आरती का चचेरा भाई अपने एक साथी के साथ मारुति स्विफ्ट डिजायर कार से पैसे लेने चौकी चौराहे पर पहुंचा तो विजयशंकर ने उसे पहचान लिया. जैसे ही वह कार के नजदीक गए, पुलिस टीम ने कार को चारों तरफ से घर लिया. कार में 2 युवक सवार थे. उन्हें हिरासत में ले कर वह कोतवाली आ गए.
उन से पूछताछ की गई तो आरती के कथित चचेरे भाई ने अपना नाम विकास जैन बताया और दूसरा युवक विकास का दोस्त बजरंग यादव था. आरती द्वारा जाल में फांसने की पूरी योजना विकास जैन ने बनाई थी. पूरी साजिश को अंजाम देने की उस ने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.
आरती उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के एक छोटे से गांव की रहने वाली थी. उस के पिता के पास खेती की थोड़ी सी जमीन थी. उसी से वह जैसेतैसे परिवार को पाल रहे थे. आरती की 2 बहनें और एक भाई था. घर में आर्थिक अभाव होने की वजह से आरती की कोई हसरत पूरी नहीं हो पाती थी. उसे सजनासंवरना, अच्छे कपड़े पहनना, घूमना और मनपसंद चीजों की खरीदारी करना बेहद पसंद था, लेकिन इन सब चीजों के लिए पैसों की जरूरत होती है. जबकि पैसे घर में थे नहीं, इसलिए उस की हसरतें मन में ही दबी रह गईं.
आरती सरकारी स्कूल में पढ़ती थी, लेकिन उस का पढ़ने में मन नहीं लगता था. आठवीं कक्षा में फेल होने के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी. अपनी पैसे की भूख व अच्छे रहनसहन की इच्छा के चलते एक दिन वह घर छोड़ कर मुरादाबाद आ गई. वहां वह अपने एक परिचित के यहां रुकी और काम की तलाश में लग गई. वह कोई खास पढ़ीलिखी तो थी नहीं, जो उसे अच्छी नौकरी मिल जाती. जब कोई नौकरी मिलती नहीं दिखी तो वह कोई भी छोटामोटा काम करने को तैयार हो गई.
मुरादाबाद के सिविल लांइस थाने के अंतर्गत हिमगिरि कालोनी में विकास जैन नाम का युवक किराए पर रहता था. विकास मूलरूप से जयपुर का रहने वाला था. ग्रैजुएशन करने के बाद वह मुरादाबाद आ गया था और वहां के 3 निजी अस्पतालों में एंबुलेंस चलवाने का काम करने लगा था.