राजधानी पटना के थाना परसा बाजार के थानाप्रभारी नंदजी अपने औफिस में बैठे थे. तभी 60-65 साल का एक व्यक्ति अंदर आया. उन्होंने उस पर सरसरी निगाह डालने के बाद सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया. वह कुरसी पर बैठ गया. उस के माथे पर उभरी चिंता की लकीरों से साफ लग रहा था कि वह परेशान और चिंतित है.

नंदजी ने उस के आने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम राकेश चौधरी है, मैं तरेगना डीह गांव का रहने वाला हूं. मैं बहुत परेशान हूं, मेरी मदद कीजिए.’’

परेशानी पूछने पर वह बोला, ‘‘साहब, मेरी विवाहित बेटी गीता एक हफ्ते से घर से लापता है. उस का मोबाइल फोन भी बंद है. स्थानीय अखबारों में कई दिनों से टुकड़ों में मिली महिला की लाश की खबरें छप रही हैं. उस खबर को पढ़ कर ही मैं यहां आया हूं.’’

इस के बाद वह व्यक्ति अपने थैले से गीता की तसवीर निकाल कर नंदजी की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘यह गीता की तसवीर है, मुझे डर है कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी घटना तो नहीं घट गई.’’

‘‘आप फिक्र न करें.’’ नंदजी ने तसवीर पकड़ते हुए कहा, ‘‘वैसे आप कैसे इतने यकीन से कह सकते हैं कि गीता इसी थानाक्षेत्र से लापता हुई है?’’

‘‘साहब, मैं यह बताना भूल गया कि मेरी नातिन यानी गीता की बेटी जिस का नाम पूनम है, अपने पति रंजन के साथ कुसुमपुरम कालोनी में किराए के मकान में रहती है. जब मैं उस के घर गया तो ताला लगा मिला. पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि पूनम 18 तारीख से ही घर पर नहीं है. उस का फोन भी बंद है, इसलिए मैं यहां आ गया.’’

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