कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

“मैं जबलपुर जा रही हूं विनोद, आदिल का ध्यान रखना.’’ भव्या ने अपना सफारी बैग तैयार करते हुए कहा.

“अरे!’’ विनोद शर्मा के चेहरे पर आश्चर्य उमड़ आया, ‘‘अभी 2 दिन पहले ही तो तुम जबलपुर से लौटी हो. फिर जबलपुर..?’’

भव्या ने आंखें नचाईं, ‘‘क्यों, क्या दोबारा जबलपुर जाने की सरकार द्वारा पाबन्दी लगी हुई है?’’

“मेरा यह आशय नहीं है भव्या, जबलपुर एक बार क्या सौ बार जाओ, भला वहां जाने की कैसी पाबंदी. मैं तो कह रहा हूं तुम परसों ही जबलपुर हो कर आई हो, अब फिर जा रही हो.’’

“मेरा काम ही ऐसा है विनोद. मुझे दवा सप्लाई करनी होती है, दवा की दुकानों से और्डर लेने होते हैं. मेरा आनाजाना तो लगा ही रहेगा.’’

“तुम्हें कितनी बार कहा है, मुझे काम करने दो, तुम घर का चूल्हा संभालो, लेकिन तुम्हेें मेरा काम पर जाना पसंद ही नहीं है.’’

“मैं जो कर रही हूं, वह तुम नहीं कर पाओगे, फिर तुम्हें घर रहने में क्या परेशानी है, तुम्हें मैं पूरी सुखसुविधा तो दे रही हूं…’’

“यही तो परेशानी है भव्या, तुम्हारे टुकड़ों पर पल रहा हूं. लोग मुझे ताना मारने लगे हैं, निकम्मा और कामचोर समझने लगे हैं.’’ विनोद गंभीर हो गया.

“लोग मेरे मुंह पर तो कुछ नहीं बोलते, तुम्हें कौन बोलता है, बताओ, मैं उस की जुबान खींच कर हाथ में दे दूंगी.’’ भव्या गुस्से से बोली, ‘‘मैं कमा रही हूं. घर मेरा है, उस का खर्च कैसे चलता है, उन्हें क्या लेनादेना… मैं…’’

“बस.’’ विनोद ने उस की बात काट कर जल्दी से कहा, ‘‘अब गुस्सा बढ़ा कर अपना दिमाग खराब मत करो. बैग तैयार हो गया है तो जाओ, मैं आदिल की देखभाल कर लूंगा. हां, जा रही हो तो मुझे हजार रुपए देती जाओ.’’

“इतने रुपयों का क्या करोगे?’’

“आदिल को चीज दिलानी होती है और रात को मुझे अकेले नींद नहीं आती है, शराब के एकदो पैग पी लेता हूं तो सुकून मिल जाता है.’’

“बस एक साल का सब्र कर लो. मैं एक साल में अच्छा सा मकान ले लूंगी, थोड़ा जरूरत का सामान भी बना लूंगी, तब तुम्हारे साथ ही सोया करूंगी.’’ भव्या ने मुसकरा कर कहा और पर्स में से 5-5 सौ के 2 नोट निकाल कर विनोद की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘रख लो, तुम भी क्या याद रखोगे एक कमाऊ बीवी से नाता जुड़ा है.’’

विनोद शर्मा इस बात पर खुल कर हंसने वाला था, लेकिन उस की नजर भव्या के पर्स से झांक रहे 5-5 सौ रुपयों की गड्डी पर चली गई. इतने रुपए देख कर उस के दिमाग में धमाके होने शुरू हो गए ‘उस की पत्नी भव्या अनैतिक काम करती है… वह अपना जिस्म बेचती है… घर में हरे नोटों की रेलमपेल ऐसे ही नहीं हो रही. आयुर्वेदिक दवा का छोटा सा कारोबार इतनी मोटी कमाई नहीं दे सकता. भव्या बदचलन है, भव्या से शादी कर के वह धोखा खा गया है.’

भव्या कब अपना बैग उठा कर निकल गई, विनोद को पता ही नहीं चला. वह भव्या को ले कर बुरे खयालों के भंवरजाल में उलझता जा रहा था.

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के थाना विजय नगर में रोजाना की भांति कामकाज हो रहा था. इस थाने की इंसपेक्टर अनीता चौहान थी, जो अपने कक्ष में बैठी एक लूट व चोरी के मामले की फाइल देख रही थी कि कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी ने दरवाजे पर दस्तक दी. प्रभारी निरीक्षक ने सिर उठा कर दरवाजे की ओर देखा. कांस्टेबल अक्षय को दरवाजे पर देख कर उन्होंने उसे अंदर आने की अनुमति दे दी. कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी ने उन की मेज के पास आ कर सैल्यूट करने के बाद बगैर किसी भूमिका के कहा,

‘‘आवास विकास कालोनी वृंदावन एनक्लेव में एक महिला का कत्ल हो गया है मैडम.’’

“ओह!’’ हाथ में पकड़ी कलम इंसपेक्टर अनीता चौहान के हाथ से छूट कर फाइल पर गिर गई, वह चौंकते हुए बोली,

‘‘सुबहसुबह यह खबर तुम्हें कहां से मिल गई अक्षय?’’

“मैडम, वादी टीपू यहां आया है, उसी ने यह खबर दी है.’’

“कहां है टीपू, उसे अंदर बुलाओ.’’ कुरसी की पुश्त से लगती हुई अनीता चौहान ने कहा. कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी बाहर चला गया. कुछ ही देर में वह एक व्यक्ति के साथ अंदर आया. अनीता चौहान ने उस व्यक्ति को सिर से पांव तक देखा. वह बहुत घबराया हुआ था.

“क्या नाम है तुम्हारा?’’ अनीता चौहान ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

“जी, मेरा नाम टीपू है. मैं वृंदावन एनक्लेव की 9/2763 आवास विकास कालोनी में रहता हूं. मेरे बहन और जीजा भी इसी कालोनी के मकान नंबर 9/2556 में रहते हैं. मेरी बहन भव्या शर्मा का रात को मेरे जीजा विनोद शर्मा ने मर्डर कर दिया है.’’

“मर्डर तुम्हारे जीजा विनोद शर्मा ने किया है, यह तुम किस आधार पर कह रहे हो?’’ इंसपेक्टर चौहान ने हैरानी से पूछा.

“मेरी बहन के बेटे आदिल ने मुझे बताया है कि कल शाम से उस की मां भव्या और पिता विनोद शर्मा में जम कर झगड़ा हुआ था. वह कत्ल होते नहीं देख पाया, क्योंकि झगड़ा बढऩे पर उस को विनोद ने खिलौना लाने के लिए बाहर भेज दिया था.’’

“बैठ जाओ.’’ इंसपेक्टर अनीता चौहान ने हाथ का इशारा कर के कहा तो टीपू सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया.

“क्या तुम्हारी बहन ने अपने समाज से बाहर शादी की थी? यह विनोद शर्मा…’’

“विनोद शर्मा हिंदू ही है मैडम. मेरी बहन बेबी उर्फ अफसाना ने उस से तीसरी शादी की थी. तब उस का नाम भव्या शर्मा रख दिया गया था.’’

“क्या कह रहे हो?’’ चौंक कर प्रभारी निरीक्षक ने टीपू की ओर देखा, ‘‘तुम्हारी बहन ने 3-3 शादियां की थीं?’’

4 नाम, 3 शादियां, 2 बार बदला धर्म…

“जी हां,’’ टीपू ने बताया, ‘‘मेरी बहन बेबी उर्फ भव्या ने अपनी मरजी से पहली शादी 2004 में दिल्ली के रहने वाले योगेंद्र कुमार से की थी. योगेंद्र से शादी कर उस ने अपना नाम अंजलि रख लिया था. उस से उसे एक बेटा निहाल हुआ था, जो अब 16 साल का हो चुका है. योगेंद्र से नहीं बनी तो उस ने 2017 में अनीस अंसारी से निकाह कर लिया. अनीस से शादी कर वह अफसाना बन गई. आदिल अनीस अंसारी का ही बेटा है. मेरी बहन की अनीस से भी पटरी नहीं बैठी तो उस ने 2019 में विनोद शर्मा से शादी कर ली. आदिल इसी के साथ रहता आया है. उस ने तीनों ही लवमैरिज की थीं.’’

“हूं, अब बात मेरी समझ में आई है. नामों के घालमेल ने मुझे तो उलझा ही दिया था.’’ इंसपेक्टर अनीता चौहान हलके से मुसकरा दीं. मन ही मन वह भव्या की स्वच्छंद जिंदगी का अनुमान कर इतना तो समझ ही चुकी थी कि भव्या शर्मा उर्फ अफसाना उर्फ बेबी रंगीन तबीयत की महिला रही है, जिस की एक भी पति से पटरी नहीं बैठ पाई है.

फिलहाल मामला हत्या का था, इसलिए कुछ ज्यादा न पूछ कर रोजनामचे में अपनी रवानगी दर्ज करके एसआई योगराज सिंह, हैडकांस्टेबल अमित राय और कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी को साथ ले कर टीपू के साथ घटनास्थल वृंदावन एनक्लेव की आवास विकास कालोनी के लिए रवाना हो गई.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...