कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

कुहनी पर पट्ïटी देख कर वह विनोद से बोली, ‘‘मैं किस तरह आप का शुक्रिया अदा करूं, आप ने मेरे घायल बेटे की पट्टी करवाई और उसे छोडऩे घर भी आ गए.’’

“मैं ने अपना इंसानी फर्ज निभाया है,’’ विनोद मुसकरा कर बोला, ‘‘वैसे आप का बेटा है बहुत समझदार. छोटा है लेकिन यह बराबर मुझे अपने घर तक ले कर आया है.’’

“इसे स्कूल से घर तक आने का रास्ता बखूबी पता है. रोज पैदल मेरे साथ स्कूल तक आताजाता है इसलिए.’’ महिला मुसकरा कर बोली, ‘‘शायद आज इस की जल्दी छुट्टी हो गई, तभी यह स्कूल से बाहर निकल आया. वैसे 12 बजे मैं इसे लेने स्कूल जाती हूं.’’ महिला ने कहा.

“जी, लेकिन स्कूल वालों की गलती है, जब तक पेरेंट न पहुंचे, बच्चे को अकेले स्कूल से बाहर नहीं आने देना चाहिए.’’

“हां, यह तो आप ठीक कह रहे हैं. मैं कल स्कूल की आया से कहूंगी.’’

“बिलकुल कहना, ताकि वह आगे ऐसी गलती न करे,’’ विनोद ने कहने के बाद अपना स्कूटर स्टार्ट करना चाहा तो महिला

चौंक कर बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हैं, यहां तक आए हैं तो एक कप चाय पी कर जाइए.’’

“जी, रहने दीजिए.’’

“नहीं, मैं इस मामले में बहुत सख्त हूं, यदि आप चाय नहीं पी कर जाएंगे तो आप से चाय के 10 रुपए वसूल कर लूंगी.’’ महिला ने इतनी बेबाकी से यह बात कही कि विनोद हंस पड़ा, ‘‘अब तो चाय पीनी ही पड़ेगी, क्योंकि मैं 10 रुपए आप को देने के मूड में नहीं हूं.’’

महिला हंस पड़ी, ‘‘मैं तो मजाक कर रही थी. आइए, मैं चाय बनाती हूं.’’ महिला ने विनोद को आदर से अपने कमरे में बिठाया. चाय बना कर लाने तक विनोद शर्मा से वह ऐसे घुलमिल गई जैसे बरसों की मुलाकात हो. उस ने अपना नाम अफसाना बताया. उस ने विनोद से वादा लिया कि वह वहां आता रहेगा. अफसाना मूलरूप से बिहार के सीतामढ़ी की रहने वाली थी, लेकिन बाद में उस का परिवार का सिद्धार्थ विहार में शिफ्ट हो गया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 12 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...