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पिछले 8 सालों से सविता पास के ज्ञान भारती स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी. स्कूल से वापस आने के बाद उसे पति की गालियां सुनने को तो मिलती ही थीं, साथ में अपने पीटे जाने का दर्द भी झेलना पड़ता. 3-3 जवान बच्चों के पिता होने के बाद भी मधुसूदन की हरकतें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं.

सविता को अब मधुसूदन के साथ जिंदगी का एकएक पल बिताना भारी पड़ रहा था. लेकिन वह करे भी तो क्या करे, उस का कोई और ठिकाना नहीं था. वैसे भी वह घर जितना मधुसूदन का था, उतना ही सविता का का भी. वह घर छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी. सविता के दिमाग में अजीब सी उथलपुथल मची रहती थी.

लगभग 2 साल पहले एक खूबसूरत हैंडसम नौजवान सविता के स्कूल में बच्चों को विज्ञान और गणित पढ़ाने के लिए आया. उस नौजवान का नाम था आशीष वर्मा उर्फ टीनू. वह अविवाहित था और बादशाहपुर में ही रहता था.

आशीष सविता से 10 साल छोटा था. एक ही स्कूल में दोनों पढ़ाते थे, इसलिए दोनों का पहले मिलना जुलना, फिर बात करना शुरू हुआ. दोनों को एकदूसरे का साथ और बातें करना ऐसा भाया कि दोनों दोस्त बन गए. सविता को आशीष में एक अच्छे हमसफर के गुण दिखने लगे. हर लिहाज से आशीष साधारण से दिखने वाले शराबी पति मधुसूदन से लाख गुना अच्छा लगा था.

आशीष जैसे हमसफर की सविता ने कामना की थी, लेकिन समय और किस्मत ने कुछ ऐसा खेल खेला कि उस की शादी उस से 13 साल बड़े साधारण से दिखने वाले टेलर मास्टर मधुसूदन से हो गई. उस से शादी कर के मधुसूदन को खुश होना चाहिए था, अपनी पलकों पर बैठा के रखना चाहिए था, लेकिन हुआ इस का उल्टा. मधुसूदन ने कभी उस की कद्र नहीं की, प्यार देने के बजाय उसे गाली देता रहता और मारतापीटता रहता था.

आशीष ने दिल में बसा लिया था सविता को

जहां मधुसूदन ऐसा था, वहीं दूसरी तरफ आशीष सविता की परवाह करता था, उस की कद्र करता है, उस के लिए पलक पावड़े बिछाए रहता था. उस की तारीफ करता, उस के काम की सराहना करता, हर काम में उस की मदद करता. ऐसा इंसान जिंदगी में आ जाए तो इंसान खुशी से फूला नहीं समाता. सविता भी खुशी से फूली नहीं समा रही थी.

वह आशीष के नजदीक रहतेरहते उस से प्यार करने लगी थी, उस के साथ ही आगे की जिंदगी बिताना चाहती थी. आशीष के प्रति उस का प्यार उस की आंखों से साफ झलकता था. आशीष भी उसे चाहने लगा था, क्योंकि सविता जितनी अच्छी तरह से उसे समझती थी, अपनापन जताती थी, उतना समझने वाला अपनापन जताने वाला कोई नहीं था. सविता की खनकती हंसी और उस की मीठी बोली उस के दिल को लुभाती थी.

सविता उम्र में उस से बड़ी जरूर थी, लेकिन देखने में उस से बड़ी लगती नहीं थी. सविता उस से लाख हंस कर बातें करती थी, लेकिन आशीष उस की आंखों में उस के बात करने के लहजे में कभीकभी बहुत दर्द महसूस करता था. सविता के दिल में कैद दर्द जब भी उस के चेहरे और आवाज में झलकता तो आशीष भी बेचैन हो उठता था. घूमने, खानेपीने दोनों अकसर साथ बाहर जाते रहते थे.

एक दिन जब दोनों रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे, तब आशीष ने सविता को थोड़ा कुरेदा और उस के दर्द की वजह जानने के उद्देश्य से सविता से पूछा, “सविता, मैं ने कई बार तुम्हारी आवाज में दर्द महसूस किया है. ऐसा क्या दर्द है तुम को, जो असहनीय है. वह समयसमय पर छलक कर बाहर आ ही जाता है. कहते हैं दर्द बांटने से हल्का होता है, तुम मुझे बता कर अपना दर्द कम कर सकती हो, अगर मुझे अपना मानती हो तो…”

आशीष ने सविता के दिल के जख्मों पर लगाया प्यार का मरहम

आशीष ने सविता की आंखों में झांकते हुए अपना मानने वाली बात कही. जैसे वह सविता के अंदर की बात जानने का प्रयास कर रहा हो कि सविता के लिए वह कितना मायने रखता है. सविता भी उस से अपना दर्द छिपातेछिपाते परेशान हो गई थी और वह भी चाहती थी कि वह अपना हाल आशीष को बता दे, फिर देखे आशीष क्या प्रतिक्रिया देता है.

आशीष उस के साथ रिश्ता बना कर आगे बढऩे का इच्छुक होगा तो उस के दर्द को समझेगा और उस के दर्द पर अपने प्यार का मरहम लगाएगा और उसे दर्द से निजात दिलाएगा, नहीं तो वह पीछे हट जाएगा.

सविता को भी आशीष की प्रतिक्रिया जानने की जल्दी थी, इसलिए उस ने आशीष से कहा, “क्या करोगे जान कर, मेरा दर्द दूर नहीं होगा, बल्कि कुरेदने से और बढ़ जाएगा. तुम भी नाहक परेशान हो जाओगे. तुम इस में कुछ कर भी नहीं सकते. वैसे तुम्हें अपना ही मानती हूं, इसीलिए तुम्हारे साथ बैठ कर बातें कर लेती हूं, घूम लेती हूं. वरना सब होते हुए भी मेरा कोई सहारा नहीं, न ही मुझे कोई समझने वाला.”

आशीष तड़प उठा, “ये कैसी बातें कर रही हो सविता. एक पल में मुझे अपना कहती हो, दूसरे ही पल मुझे पराया कर देती हो. मैं तुम्हारा अपना हूं, मैं तुम्हें अपना मानता हूं इसलिए तुम्हारे साथ समय बिताता हूं, बातें करता हूं. मेरे रहते हुए तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. कोई दिक्कत है तो मैं बनूंगा तुम्हारा सहारा.” आशीष ने सविता को विश्वास दिलाते हुए कहा.

आशीष की बातों से सविता के अंदर का विश्वास जागा कि आशीष उस का साथ जरूर निभाएगा तो उस ने अपना दर्द बयान कर दिया. पति मधुसूदन के शराबी होने की बात और उस के द्वारा रोज गालियां देते हुए पिटाई करने की बात बता दी.

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